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Blog / 09 Jul 2025

बिहार एसआईआर चुनौती

संदर्भ:
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए 1977 के एक ऐतिहासिक निर्णय (एम.एस. गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त) का उल्लेख किया है। कोर्ट ने कहा कि संविधान चुनाव आयोग को असीमित या निरंकुश अधिकार नहीं देता।

1977 के फैसले के मुख्य बिंदु:

·         चुनाव आयोग की शक्ति पर सीमाएं: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 324 जो चुनाव आयोग को "निगरानी, निर्देशन और नियंत्रण" की शक्ति देता है, इसका मतलब यह नहीं कि आयोग अपनी मर्जी से कुछ भी कर सकता है। उसे निष्पक्ष और कानूनी ढंग से काम करना होगा।

·         स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव: फैसले में यह स्पष्ट किया गया कि सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार पर आधारित निष्पक्ष चुनाव भारतीय लोकतंत्र की नींव हैं। चुनाव आयोग को "संवैधानिक तानाशाह" नहीं बनने देना चाहिए।

·         न्यायिक समीक्षा: सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि चुनाव आयोग अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करता है या अनुचित निर्णय लेता है, तो कोर्ट उन्हें खारिज कर सकता है।

1977 के फैसले की पृष्ठभूमि:
यह फैसला तब आया था जब चुनाव आयोग ने पंजाब की फिरोजपुर लोकसभा सीट पर चुनाव रद्द कर दोबारा चुनाव कराने का आदेश दिया था क्योंकि वहां भीड़ ने हिंसा की थी। कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 324 के तहत आयोग को चुनाव रद्द करने और फिर से कराने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार विवेकपूर्ण ढंग से इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

बिहार में मौजूदा मामला:
विपक्षी दलों सहित याचिकाकर्ताओं का कहना है कि बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया मनमानी है और इससे हाशिए के समुदायों के मताधिकार छीने जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई को इस मुद्दे पर आगे सुनवाई करेगा और देखेगा कि क्या बिहार की यह प्रक्रिया संविधान और कानून के अनुरूप है या नहीं।

निर्णय का प्रभाव:
कोर्ट द्वारा 1977 के फैसले का उल्लेख यह दिखाता है कि चुनाव आयोग की शक्तियों का उपयोग पारदर्शी और निष्पक्ष ढंग से किया जाना चाहिए। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की इस बात पर विचार करने में मदद करेगा कि बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया वैध और न्यायसंगत है या नहीं।

निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि चुनाव आयोग को अपनी शक्तियों का प्रयोग संतुलित, पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से करना होगा। बिहार एसआईआर मामले में जब तक अंतिम फैसला नहीं आता, तब तक 1977 के ऐतिहासिक निर्णय के सिद्धांत इस मामले की कानूनी समीक्षा के आधार बने रहेंगे।