सन्दर्भ:
हाल ही में 9 मई को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने संकेत दिया कि वह पंजाब सरकार को अवमानना नोटिस जारी कर सकती है। यह मामला उस समय सामने आया जब बीबीएमबी (भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड) के रेस्ट हाउस पर हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान अधिकारियों को हरियाणा को 4,500 क्यूसेक पानी छोड़ने से रोका गया। कोर्ट ने पहले ही पंजाब को बीबीएमबी के कामकाज में हस्तक्षेप न करने का निर्देश दिया था।
भाखड़ा-नांगल परियोजना की पृष्ठभूमि-
भाखड़ा-नांगल परियोजना भारत की स्वतंत्रता के बाद की सबसे प्रमुख नदी घाटी विकास योजनाओं में से एक है। यह सतलुज नदी पर स्थित है और इसमें हिमाचल प्रदेश में भाखड़ा डैम और पंजाब में नांगल डैम शामिल हैं। इसका प्रबंधन भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) करता है, जो पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के बीच पानी का बंटवारा करता है। हर वर्ष की शुरुआत में बीबीएमबी इन राज्यों को जल आवंटन करता है। मौजूदा वर्ष के लिए आवंटन इस प्रकार है: पंजाब को 5.512 मिलियन एकड़ फीट (MAF), हरियाणा को 2.987 MAF और राजस्थान को 3.318 MAF।
पंजाब का दावा है कि हरियाणा पहले ही 3.110 MAF पानी ले चुका है, जो उसकी निर्धारित मात्रा से 104% अधिक है।
पंजाब और हरियाणा में जल संकट के संरचनात्मक कारण:
जल संसाधनों की कमी:
केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, पंजाब में भूजल निष्कर्षण पुनर्भरण दर से 66%, राजस्थान में 51%, और हरियाणा में 34% अधिक है, जिससे दीर्घकालिक भूजल संकट उत्पन्न हो रहा है। इसके अतिरिक्त, भाखड़ा, रंजीत सागर जैसे प्रमुख जलाशयों में पश्चिमी हिमालय से होने वाली बर्फबारी में कमी के कारण जल स्तर असामान्य रूप से कम दर्ज किया गया है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दर्शाता है।
मानवजनित कारण:
धान जैसी जल-गहन फसलों की व्यापक खेती, साथ ही पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में सब्सिडी युक्त बिजली और नि:शुल्क जल आपूर्ति भूजल के अनियंत्रित दोहन को प्रोत्साहित करती है। गुरुग्राम, चंडीगढ़, और लुधियाना जैसे शहरों में तेज़ शहरी विस्तार से नगरपालिका और औद्योगिक जल मांग में वृद्धि हुई है, जिससे सीमित संसाधनों पर दबाव बढ़ा है।
सिंधु जल संधि की चुनौतियाँ:
1960 में हस्ताक्षरित यह संधि भारत की पश्चिमी नदियों (सिंधु, चिनाब, झेलम) के उपयोग को सीमित करती है, जिससे उत्तरी-पश्चिमी भारतीय राज्यों के लिए जल की उपलब्धता घट गई है।
कानूनी और संवैधानिक ढाँचा:
संघ सूची की प्रविष्टि 56: यह संघ सरकार को अंतर्राज्यीय नदियों के नियमन और विकास का अधिकार देती है।
राज्य सूची की प्रविष्टि 17: यह राज्यों को अपने अधिकार क्षेत्र में जल संसाधनों पर नियंत्रण का अधिकार देती है।
संविधान का अनुच्छेद 262: संसद को यह अधिकार देता है कि वह जल विवादों को सुलझाने के लिए कानून बना सके और ऐसे विवादों पर न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र समाप्त कर सके।
अनुच्छेद 262 को क्रियान्वित करने वाले दो प्रमुख अधिनियम:
नदी बोर्ड अधिनियम, 1956: यह केंद्र सरकार को राज्यों के परामर्श से अंतर्राज्यीय नदियों और नदी घाटियों के लिए बोर्ड गठित करने की अनुमति देता है (अब तक कोई बोर्ड गठित नहीं हुआ है)।
अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956: यह विवादों के समाधान के लिए प्राधिकरणों (ट्रिब्यूनल) के गठन की अनुमति देता है। 2002 के संशोधन में सिफारिश की गई कि ट्रिब्यूनल गठन एक वर्ष में और निर्णय तीन वर्षों में दिया जाए।
निष्कर्ष-
भाखड़ा-नांगल विवाद यह दर्शाता है कि भारत में अंतरराज्यीय जल बंटवारे से जुड़े मसले कितने जटिल हैं। इसमें कानून का पालन, पारदर्शिता और सभी राज्यों को न्यायपूर्ण रूप से संसाधन उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती है। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ रहा है, वैसे-वैसे ऐसे विवाद भी बढ़ सकते हैं। इन समस्याओं का समाधान वैज्ञानिक अध्ययन, राज्यों के बीच संवाद और न्यायिक निगरानी के ज़रिए ही संभव है। जरूरी है कि सभी राज्य संस्थागत व्यवस्था का सम्मान करें और सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाएं ताकि न सिर्फ पानी का न्यायपूर्ण बंटवारा हो, बल्कि आपसी संबंध भी खराब न हों और सभी के लिए जल सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।