संदर्भ:
हाल ही में केंद्र सरकार ने 1 अगस्त 2025 को बैंकिंग कानून (संशोधन) अधिनियम, 2025 की धारा 3, 4, 5, 15, 16, 17, 18, 19 और 20 के प्रावधान लागू करने के लिए अधिसूचित किया है। इस अधिनियम को 15 अप्रैल 2025 को अधिसूचित किया गया था, जिसके तहत कुल 19 संशोधन पाँच प्रमुख अधिनियमों “रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम, 1934; बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949; भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955; और बैंकिंग कंपनियों (अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970 एवं 1980” में किए गए थे।
मुख्य प्रावधान और विशेषताएँ:
इस अधिनियम का उद्देश्य बैंकिंग क्षेत्र में शासन को अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनाना, जमाकर्ताओं और निवेशकों की सुरक्षा को मजबूत करना, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) में ऑडिट की गुणवत्ता को बेहतर बनाना और सहकारी बैंकों को संवैधानिक मानकों के अनुरूप लाना है।
• ‘महत्वपूर्ण हित’ की परिभाषा में संशोधन: अब किसी व्यक्ति के बैंक में "महत्वपूर्ण हित" की पहचान की सीमा ₹5 लाख से बढ़ाकर ₹2 करोड़ कर दी गई है। यह सीमा 1968 से बिना किसी संशोधन के बनी हुई थी, जो मौजूदा आर्थिक परिवेश और बैंकिंग संचालन की बढ़ी हुई व्यापकता को नहीं दर्शाती थी। इस बदलाव से शासन प्रणाली अधिक व्यावहारिक और संतुलित बनेगी, जिससे छोटे हिस्सेदारों द्वारा अनावश्यक प्रभाव डालने की संभावना कम होगी।
• सहकारी बैंकों में निदेशकों का कार्यकाल बढ़ा: संविधान के 97वें संशोधन के अनुरूप, सहकारी बैंकों के निदेशकों (अध्यक्ष और पूर्णकालिक निदेशकों को छोड़कर) के लिए अधिकतम कार्यकाल को 8 वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दिया गया है। यह बदलाव सहकारी बैंकों में अधिक स्थायित्व, लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं और जवाबदेही सुनिश्चित करेगा।
• बिना दावे की गई संपत्ति का IEPF को स्थानांतरण: अब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भी कंपनियों की तरह बिना दावे की गई राशि—जैसे शेयर, ब्याज और बॉन्ड रिडेम्पशन की रकम—को निवेशक शिक्षा और संरक्षण निधि (IEPF) में स्थानांतरित कर सकेंगे। इससे निष्क्रिय पड़ी वित्तीय संपत्तियों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित हो सकेगा।
• सार्वजनिक बैंकों में ऑडिट सुधार: संशोधन के तहत अब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अपने वैधानिक ऑडिटरों को बेहतर पारिश्रमिक देने में सक्षम होंगे, जिससे वे अधिक योग्य और अनुभवी पेशेवरों को नियुक्त कर सकेंगे। इससे ऑडिट प्रक्रिया की स्वतंत्रता, पारदर्शिता और गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार होगा।
• वैधानिक रिपोर्टिंग प्रणाली में बदलाव: अब बैंकों को हर शुक्रवार आरबीआई को रिपोर्ट भेजने की बाध्यता नहीं होगी। इसकी जगह रिपोर्टिंग की प्रणाली को आवश्यकता अनुसार पखवाड़े, मासिक या तिमाही आधार पर किया जाएगा। इससे बैंकों पर परिचालनिक बोझ घटेगा और रिपोर्टिंग अधिक प्रासंगिक व उपयोगी बन सकेगी।
संबंधित विधायिकाओं के बारे में जानकारी:
· रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम, 1934: मुद्रा, ऋण और मौद्रिक नीति को नियंत्रित करने का अधिकार देता है।
· बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949: बैंकिंग कार्यों जैसे लाइसेंसिंग, ऑडिट, पूंजी मानदंड आदि को नियंत्रित करता है।
· भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955: एसबीआई की स्थापना और उसकी संरचना व कार्य तय करता है।
· बैंकिंग कंपनियों (अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970 व 1980: वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए 20 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया , तथा 'नव स्थापित बैंक' का निर्माण किया गया।
अधिनियम का महत्व:
· नियमों का आधुनिकीकरण: पाँच दशक पुराने प्रावधानों को अपडेट कर आधुनिक वित्तीय परिस्थितियों के अनुरूप लाया गया है।
· सहकारी बैंकों पर बेहतर निगरानी: निदेशकों का बढ़ा कार्यकाल बैंकिंग प्रणाली में स्थायित्व और जवाबदेही लाता है।
· निवेशक और जमाकर्ता संरक्षण: बिना दावे की गई संपत्ति का सुरक्षित उपयोग और उच्च गुणवत्ता के ऑडिट से भरोसा बढ़ेगा।
· प्रभावी बैंकिंग संचालन: रिपोर्टिंग नियमों में लचीलापन लाकर कामकाज को आसान और असरदार बनाया गया है।
निष्कर्ष:
बैंकिंग कानून (संशोधन) अधिनियम, 2025 एक समयानुकूल और आवश्यक सुधार है, जो भारत के बदलते वित्तीय माहौल की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। यह अधिनियम पुराने नियमों की खामियों को दूर करते हुए संवैधानिक और कॉरपोरेट गवर्नेंस के मानकों से मेल खाता है, जिससे बैंकिंग व्यवस्था अधिक पारदर्शी, उत्तरदायी और मजबूत बन सकेगी।