संदर्भ:
हाल ही में व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मध्यस्थता में अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच एक ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए। यह समझौता दशकों से चले आ रहे द्विपक्षीय संघर्ष को समाप्त कर क्षेत्र में स्थायी शांति एवं स्थिरता स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण विकास है।
समझौते के प्रमुख प्रावधान:
- शत्रुता का स्थायी अंत: दोनों देशों ने सभी प्रकार की शत्रुता को स्थायी रूप से समाप्त करने पर सहमति व्यक्त की, जिससे संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान का मार्ग प्रशस्त होगा।
- सीमापार परिवहन संपर्कों की बहाली – आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच प्रमुख परिवहन मार्गों को पुनः खोलने का प्रावधान किया गया है, जिससे व्यापार और आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहन मिलेगा।
- राजनयिक संबंधों की बहाली: दोनों देश यात्रा, व्यापार और राजनयिक संबंधों को फिर से शुरू करेंगे, जिससे उनके द्विपक्षीय संबंध मजबूत होंगे।
- अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं समृद्धि के लिए के लिए मार्ग –अमेरिका एक प्रमुख पारगमन गलियारे के निर्माण में सहायता करेगा, जिसे "अंतर्राष्ट्रीय शांति और समृद्धि के लिए ट्रम्प रूट" के रूप में जाना जाना जाएगा, जो मुख्य भूमि अज़रबैजान को अर्मेनियाई क्षेत्र के माध्यम से उसके नखचिवन एक्सक्लेव से जोड़ेगा।
सामरिक महत्व:
- अमेरिकी भू-राजनीतिक प्रभाव में वृद्धि – यह समझौता काकेशस क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को सुदृढ़ करता है, रूस के प्रभुत्व को चुनौती देता है और अमेरिकी रणनीतिक हितों को प्रोत्साहित करता है।
- क्षेत्रीय संपर्क में विस्तार – "ट्रम्प रूट" ईरान और रूस को दरकिनार करते हुए तुर्की, अज़रबैजान और मध्य एशिया के बीच माल एवं जन-परिवहन को सुगम बनाएगा।
- आर्थिक लाभ – इस गलियारे से द्विपक्षीय व्यापार, आर्थिक सहयोग और क्षेत्रीय समृद्धि में वृद्धि की संभावना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- नागोर्नो-काराबाख, मुस्लिम-बहुल अज़रबैजान के भीतर स्थित एक प्रमुखतः अर्मेनियाई (ईसाई) आबादी वाला क्षेत्र, सोवियत काल में एक स्वायत्त क्षेत्र था। सोवियत संघ के विघटन (1991) से पूर्व ही जातीय तनाव तीव्र हो गया, जिसके परिणामस्वरूप प्रथम नागोर्नो-काराबाख युद्ध (1988–1994) छिड़ा। इस युद्ध में आर्मेनिया ने नागोर्नो-काराबाख एवं आसपास के अज़रबैजानी क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। यद्यपि यह क्षेत्र जातीय अर्मेनियाई प्रशासन के अधीन रहा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे अज़रबैजान का अभिन्न हिस्सा माना जाता रहा।
हालिया घटनाक्रम:
- द्वितीय नागोर्नो-काराबाख युद्ध (2020) में अज़रबैजान ने महत्वपूर्ण क्षेत्र पर पुनः कब्ज़ा किया। 2023 में एक दिन के सैन्य अभियान के बाद उसने पूरे नागोर्नो-काराबाख पर नियंत्रण स्थापित कर लिया और क्षेत्र को भंग कर दिया। इस कारण 1,00,000 से अधिक जातीय अर्मेनियाई आर्मेनिया पलायन कर गए, जिससे बड़ा मानवीय संकट उत्पन्न हुआ।
भारत की स्थिति और रणनीतिक हित:
- भारत की नीति तटस्थता की रही है। भारत OSCE मिन्स्क समूह के माध्यम से विवाद के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करता है। आर्मेनिया और अज़रबैजान दोनों अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) के सदस्य हैं, जो मध्य एशिया और उससे आगे भारत के व्यापार के लिए महत्वपूर्ण मार्ग है। इस कारण क्षेत्र में शांति भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है
आगे की चुनौतियाँ:
- कार्यान्वयन: समझौते की सफलता इसके कार्यान्वयन और दोनों पक्षों की साथ मिलकर काम करने की इच्छा पर निर्भर करती है।
- शरणार्थियों का पुनर्वास: नागोर्नो-काराबाख से विस्थापित अर्मेनियाई लोगों और युद्धबंदियों का भविष्य एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है।
- घरेलू विरोध: दोनों देशों को घरेलू विरोध का सामना करना पड़ रहा है, जो समझौते की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
निष्कर्ष:
यह समझौता क्षेत्र में स्थायी शांति एवं स्थिरता स्थापित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। यद्यपि भविष्य में कई चुनौतियाँ बनी रहेंगी, फिर भी इसमें आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित करने, तनाव कम करने और क्षेत्रीय संपर्क को सुदृढ़ करने की उल्लेखनीय क्षमता है।