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Blog / 14 Nov 2025

गुजरात ATS ने रिकिन साज़िश का पर्दाफाश किया: डॉक्टर समेत तीन गिरफ्तार | Dhyeya IAS

सन्दर्भ:

हाल ही में गुजरात एंटी-टेररिस्ट स्क्वॉड (ATS) ने तीन व्यक्तियों (जिनमें एक चिकित्सक भी शामिल है) को गिरफ्तार किया है, जो अत्यंत घातक रासायनिक विष रिसिन के निर्माण का प्रयास कर रहे थे जिसका उपयोग संभावित आतंकवादी गतिविधियों में करने की योजना बना रहे थे।

रिसिन क्या है?

      • रिसिन एक प्रोटीन-आधारित घातक ज़हर है, जो अरंडी के बीजों से प्राप्त होता है, जबकि अरंडी के पौधे की खेती मुख्यतः कैस्टर ऑयल उत्पादन के लिए की जाती है। यह विष शरीर में प्रोटीन संश्लेषण की प्रक्रिया को रोक देता है, जिसके परिणामस्वरूप कोशिकाएँ नष्ट होने लगती हैं और स्थिति बहु-अंग विफलता तक पहुँच सकती है। रिसिन अत्यंत कम मात्रा में भी मृत्यु का कारण बन सकता है।
      • इसका संपर्क निगलने, साँस के माध्यम से भीतर जाने या इंजेक्शन के रूप में होने पर गंभीर प्रभाव उत्पन्न करता है। इसके प्रमुख लक्षणों में उल्टी, दस्त, साँस लेने में कठिनाई, दौरे पड़ना तथा अंगों की क्रियाओं का रुक जाना शामिल है।

Hundreds Of Ohio Emergency Responders Exposed To Ricin At FEMA Facility

इतिहास और वैश्विक महत्व:

      • रिसिन को लंबे समय से एक संभावित रासायनिक हथियार के रूप में अध्ययन किया जाता रहा है। इसका उपयोग कई जैव-आतंकी योजनाओं में हुआ है।
      • 1978 में लंदन में बुल्गारियाई पत्रकार जॉर्जी मार्कोव की हत्या में रिसिन का इस्तेमाल किया गया था।
      • इसकी अत्यधिक विषाक्तता के कारण इसे रासायनिक हथियार सम्मेलन (Chemical Weapons Convention) में शेड्यूल-1 विषैले पदार्थ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

चुनौतियाँ और खतरे:

      • आसान निर्माण: अरंडी के बीज विश्वभर में उपलब्ध होने के कारण रिसिन का निष्कर्षण तुलनात्मक रूप से सरल है, जिससे गैर-राज्य तत्वों द्वारा इसके दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाती है।
      • अत्यधिक घातक: इसकी कुछ मिलीग्राम मात्रा भी घातक है, और इसका कोई विशेष एंटीडोट (दवा) नहीं है। इलाज केवल सहायक उपचार पर आधारित है।
      • निदान में कठिनाई: इसके शुरुआती लक्षण सामान्य बीमारियों जैसे लगते हैं, जिससे समय पर पहचान और उपचार कठिन हो जाता है।
      • सार्वजनिक सुरक्षा: खुले बाज़ार, मॉल, संस्थान और भीड़ वाली जगहें ऐसे हमलों के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।

नीतिगत सुझाव:

      • बायो-सुरक्षा मज़बूत करना: पौधों, बीजों और रसायनों की निगरानी रखना और संदिग्ध गतिविधियों पर नज़र रखना आवश्यक है।
      • स्वास्थ्य क्षेत्र की क्षमता बढ़ाना: डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को ऐसे दुर्लभ ज़हरों की पहचान और उपचार में प्रशिक्षित करना चाहिए।
      • अनुसंधान व विकास: तेज़ी से पहचान करने वाले उपकरण, न्यूट्रलाइजिंग एजेंट और संभावित दवाओं पर निवेश करना ज़रूरी है।
      • कानूनी नियंत्रण: घातक पदार्थों पर सख़्त नियंत्रण और खुफिया-आधारित कार्रवाई बढ़ानी चाहिए।
      • जन-जागरूकता: जनता को संभावित जोखिमों और सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूक करना आवश्यक है।

निष्कर्ष:

यह घटना दर्शाती है कि रासायनिक और जैविक एजेंटों का खतरा आज भी अत्यंत गंभीर है, विशेष रूप से तब जब वे गैर-राज्य तत्वों के हाथों में पहुँच जाते हैं। यह स्थिति कानून-व्यवस्था, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली, वैज्ञानिक अनुसंधान तथा नीतिगत निगरानी, सभी क्षेत्रों में समन्वित और बहुआयामी रणनीति अपनाने की आवश्यकता को रेखांकित करती है, जिससे  ऐसे जैव-आतंकी खतरों की समय पर रोकथाम और प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके।