संदर्भ:
गुजरात वन विभाग की 21 मई, 2025 को जारी हालिया रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात में एशियाई शेरों (Panthera leo persica) की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2020 से 2025 के बीच इनकी आबादी में 32% की वृद्धि दर्ज की गई है। अब कुल शेरों की संख्या 891 हो गई है। वयस्क मादा शेरों की संख्या में 27% की वृद्धि होकर 330 हो गई जो भविष्य में आबादी में और वृद्धि का एक महत्वपूर्ण संकेतक है।
भौगोलिक वितरण और संरक्षण क्षेत्र:
गिर राष्ट्रीय उद्यान और पनिया वन्यजीव अभयारण्य शेरों के मुख्य संरक्षण स्थल बने हुए हैं, जहाँ 394 शेर रहते हैं। 2025 के सर्वेक्षण में निम्नलिखित बातें सामने आईं:
• अब शेरों की अधिकांश आबादी मुख्य संरक्षित क्षेत्रों से बाहर निवास कर रही है और वे उपग्रह क्षेत्रों व मानव-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में फैल रही है।
• उपग्रह आबादी के प्रमुख केंद्रों में बारदा वन्यजीव अभयारण्य, जेतपुर, बाबरा-जसदण और हाल ही में चिन्हित गलियारा क्षेत्र शामिल हैं, जहाँ 22 शेर दर्ज किए गए हैं। कुल मिलाकर, अब 497 शेर नौ उपग्रह क्षेत्रों में रह रहे हैं, जो एक फैलती हुई आबादी को दर्शाता है।
• विशेष रूप से मितियाला वन्यजीव अभयारण्य में शेरों की संख्या दोगुनी हो गई है जो 2020 में 16 से बढ़कर 2025 में 32 हो गई।
क्षेत्र विस्तार और आवास उपयोग:
शेरों का क्षेत्रीय विस्तार 2015 से 2020 के बीच 36.4% बढ़ा और यह 30,000 वर्ग किमी तक पहुँच गया। 2025 तक यह और बढ़कर 35,000 वर्ग किमी हो गया, जो मात्र पाँच वर्षों में 16.67% की वृद्धि है। यह प्रवृत्ति प्राकृतिक विस्तार की सफलता और चल रहे संरक्षण प्रयासों की प्रभावशीलता को दर्शाती है, हालांकि इसके साथ जटिल पारिस्थितिक और सामाजिक परिणाम भी जुड़े हैं।
चुनौतियाँ:
संरक्षित क्षेत्रों से बाहर विस्तार होने के कारण शेर अब मानव बस्तियों के नज़दीक आ गए हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ने की चिंता है।
कंजरवेशन बायोलॉजी में 2024 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि हर वर्ष उन गाँवों की संख्या में 10% की वृद्धि हो रही है जो पशुधन के शिकार की रिपोर्ट करते हैं। हर गाँव में मारे गए पशुओं की संख्या में 15% वार्षिक वृद्धि देखी गई है।
इसके बावजूद, 61% स्थानीय समुदायों ने शेरों के प्रति सहिष्णुता व्यक्त की जो एक नाज़ुक लेकिन टिकाऊ मानव-शेर सह-अस्तित्व को दर्शाता है।
प्रोजेक्ट लायन के बारे में:
2020 में शुरू हुआ प्रोजेक्ट लायन एक दीर्घकालिक संरक्षण पहल है, जिसका उद्देश्य गुजरात के गिर क्षेत्र में एशियाई शेरों का भविष्य सुरक्षित करना है। यह परियोजना आवास की गुणवत्ता सुधारने, मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने पर केंद्रित है।
- गुजरात वन विभाग इस परियोजना का नेतृत्व कर रहा है, जिसमें रेडियो कॉलरिंग, कैमरा ट्रैप और GPS ट्रैकिंग जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है।
- चुंबकीय, गति-संवेदन और इन्फ्रारेड सेंसर युक्त एक स्वचालित सेंसर ग्रिड निगरानी में सहायता करता है, जबकि GIS आधारित रियल-टाइम मॉनिटरिंग से डेटा-आधारित प्रबंधन संभव होता है।
- नियमित शेर गणना से संरक्षण रणनीतियों को बेहतर बनाने में मदद मिलती है, जिससे भारत की एकमात्र जंगली शेर आबादी की सुरक्षा और सतत प्रबंधन सुनिश्चित होता है।
निष्कर्ष:
एशियाई शेरों की बढ़ती आबादी गुजरात की मजबूत संरक्षण व्यवस्था का प्रमाण है। हालांकि, यह शेरों के आवास के रणनीतिक विस्तार, संघर्ष प्रबंधन और विकेंद्रीकरण की तत्काल आवश्यकता को भी रेखांकित करता है। पारिस्थितिकीय स्थिरता और समुदायों के कल्याण के बीच संतुलन बनाए रखना भारत के इस प्रमुख मांसाहारी संरक्षण कार्यक्रम की प्रमुख चुनौती है।