संदर्भ:
हाल ही में गंभीर रूप से संकटग्रस्त एशियाई विशालकाय कछुए (मनौरिया एमिस) के 10 कछुओं को नागालैंड के पेरेन ज़िले में स्थित ज़ेलियांग सामुदायिक अभ्यारण्य में उनके प्राकृतिक आवास में पुनः छोड़ा गया। यह पुनःस्थापन नागालैंड वन विभाग और भारतीय कछुआ संरक्षण कार्यक्रम (ITCP) के संयुक्त प्रयासों से संभव हुआ।
· इस संरक्षण प्रयास की एक विशेष विशेषता यह है कि इसमें स्थानीय युवाओं को 'कछुआ संरक्षक' के रूप में सक्रिय रूप से शामिल किया गया है। ये संरक्षक न केवल पुनःस्थापित कछुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे, बल्कि डेटा संग्रह एवं निगरानी में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
एशियाई विशालकाय कछुए के बारे में:
· एशियाई विशालकाय कछुआ (मनौरिया एमिस) एशिया का सबसे बड़ा स्थलीय कछुआ है, जो उष्णकटिबंधीय वन पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह धीमी गति से चलने वाला शाकाहारी कछुआ बीजों के प्रसार, मृदा पुनर्चक्रण तथा वन पारिस्थितिकी के संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण इसे ‘जंगल का छोटा हाथी’ कहा जाता है।
आवास और वितरण:
· यह प्रजाति भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया के नम उष्णकटिबंधीय तथा उपोष्णकटिबंधीय वनों में पाई जाती है। भारत में एशियाई विशालकाय कछुआ कभी पूर्वोत्तर क्षेत्र, विशेष रूप से नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में व्यापक रूप से पाया जाता था।
संरक्षण स्थिति:
• IUCN लाल सूची: गंभीर रूप से संकटग्रस्त
• वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची IV प्रजाति
मुख्य विशेषताएँ:
• आकार: लंबाई लगभग 60 सेंटीमीटर तक और वजन 35 किलोग्राम से अधिक हो सकता है।
• कवच: गहरे रंग का, भारी गुंबदनुमा (domed) कवच, जिस पर स्पष्ट वृद्धि वलय (growth rings) दिखाई देते हैं।
• अंग: हाथी जैसे मोटे और शल्कदार (scaly) पैर, जो इसे "जंगल का छोटा हाथी" उपनाम दिलाते हैं।
• जीवनकाल: 80-100 वर्ष
• आहार: पत्ते, फल, मशरूम और सड़ते हुए पौधे
• गतिविधि: दिनचर और एकान्तवासी, आर्द्र जंगलों में पनपता है।
विशेष गुण:
· एशियाई विशालकाय कछुआ उन कुछ दुर्लभ कछुआ प्रजातियों में से एक है जो ज़मीन पर घोंसला बनाती है और अंडों की रक्षा के लिए मातृ देखभाल करती है — जो कछुओं में बहुत ही कम देखा जाने वाला व्यवहार है। इसके विलुप्त होने से जंगलों का पुनर्जनन (forest regeneration) प्रभावित हो सकता है, इसलिए यह प्रजाति पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन के लिए एक महत्वपूर्ण 'कीस्टोन प्रजाति' मानी जाती है।
भारत कछुआ संरक्षण कार्यक्रम (आईटीसीपी) के बारे में:
यह कार्यक्रम संकटग्रस्त कछुआ प्रजातियों के कैप्टिव ब्रीडिंग (बंदी प्रजनन) और उन्हें उनके प्राकृतिक आवास में पुनःस्थापित करने पर केंद्रित है।
• उदाहरणस्वरूप, गंभीर रूप से संकटग्रस्त एशियाई विशालकाय कछुआ (Manouria emys) को प्रशिक्षित स्थानीय युवाओं की सहायता से जंगल में पुनःस्थापित किया जा रहा है। इन युवाओं को “पैराबायोलॉजिस्ट” के रूप में प्रशिक्षित किया गया है।
• आईटीसीपी सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता पर ज़ोर देता है। स्थानीय समुदाय गश्त, डेटा संग्रह, निगरानी और कछुआ संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने में लगे हुए हैं।
सामुदायिक आरक्षित क्षेत्रों के बारे में:
· सामुदायिक आरक्षित क्षेत्र निजी या सामुदायिक भूमि पर स्थापित क्षेत्र होते हैं, जिन्हें राज्य सरकार द्वारा स्थानीय समुदायों की सहमति से वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण के लिए नामित किया जाता है।
· इन आरक्षित क्षेत्रों का उद्देश्य सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार लाना और वन्यजीव संरक्षण के साथ-साथ स्थानीय रीति-रिवाजों, संस्कृतियों और प्रथाओं की रक्षा करना है।
· इनका प्रबंधन एक सामुदायिक रिज़र्व प्रबंधन समिति द्वारा किया जाता है और ये वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WLPA), 1972 के दायरे में आते हैं।
निष्कर्ष:
यह संरक्षण यह पहल समुदाय-आधारित संरक्षण मॉडलों की प्रभावशीलता को स्पष्ट रूप से रेखांकित करती है। ज़ेलियांग सामुदायिक रिज़र्व—जहाँ इन कछुओं को पुनःस्थापित किया गया—नागालैंड के उन अनेक सामुदायिक एवं संरक्षण रिज़र्वों में से एक है, जो स्थानीय समुदायों और वन विभाग के साझे प्रयासों से वनों एवं वन्यजीवों के संरक्षण में सफल उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।