संदर्भ:
हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को उन "फर्जी आर्य समाज सोसाइटियों" की जाँच करने का निर्देश दिया है, जोकि आवश्यक आयु सत्यापन और धर्मांतरण विरोधी कानूनों का पालन किए बिना विवाह संपन्न कराती हैं।
आर्य समाज विवाह के बारे में:
· आर्य समाज विवाह, आर्य समाज द्वारा निर्धारित रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न होते हैं, जो स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा 1875ई. में स्थापित एक हिंदू सुधारवादी आंदोलन है।
· इन विवाहों को आर्य विवाह मान्यता अधिनियम (1937) द्वारा मान्यता प्राप्त हैं। इसके अंतर्गत विवाह जाति या धर्म की परवाह किए बिना मान्य हैं, बशर्ते दोनों पक्ष विवाह योग्य आयु के हों।
· ये विवाह विशेष रूप से अंतरधार्मिक या अंतरजातीय जोड़ों के बीच लोकप्रिय हैं, क्योंकि ये विवाह शीघ्र संपन्न होते हैं और विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) की तुलना में इनके लिए कागजी कार्रवाई की आवश्यकता कम होती है, जिसमें 30 दिनों की सार्वजनिक सूचना शामिल होती है।
न्यायालय की चिंताएँ:
कानूनी मान्यता के बावजूद, न्यायालयों ने आर्य समाज विवाहों में प्रक्रियात्मक मुद्दों पर चिंताएँ जताई हैं:
1. विशेष विवाह अधिनियम (SMA) का पालन न होना: आर्य समाज विवाह एसएमए की सार्वजनिक सूचना की आवश्यकता को दरकिनार कर देते हैं, जिससे स्वैच्छिकता और वैधता को लेकर चिंताएँ पैदा होती हैं, विशेषकर अंतर्धार्मिक विवाहों में।
2. धर्मांतरण विरोधी कानून: उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, धर्मांतरण विरोधी कानूनों के तहत विवाह से पहले एक सख्त धर्मांतरण प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। आर्य समाज के कई मंदिर इन नियमों का पालन नहीं करते, विशेषकर अंतर्धार्मिक विवाहों में।
3. अवैध विवाह और फर्जी प्रमाण पत्र: कुछ मंदिरों पर आयु सत्यापन या उचित धर्मांतरण प्रक्रियाओं के बिना विवाह संपन्न कराने का आरोप लगाया गया है, जिसके कारण न्यायिक जाँच शुरू हुई है।
जांच क्यों महत्वपूर्ण है:
• बाल संरक्षण: जांच का उद्देश्य बाल विवाह की रोकथाम हेतु सख्त आयु सत्यापन सुनिश्चित करना है।
• धार्मिक स्वतंत्रता बनाम कानूनी सुरक्षा उपाय: जबरन धर्मांतरण और जबरन विवाह से कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए, संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता एवं स्वैच्छिक आस्था का संतुलन बनाए रखना।
• अंतर्धार्मिक विवाह: यह मुद्दा जटिल कानूनी प्रक्रियाओं के कारण भारत में अंतर्धार्मिक जोड़ों के सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर करता है।
निहितार्थ:
आर्य समाज विवाहों की जांच का प्रत्यक्ष प्रभाव उन युगलों पर पड़ता है जो इस विकल्प को अपनाते हैं। उदाहरणस्वरूप, उत्तर प्रदेश धर्मांतरण विरोधी अधिनियम के तहत, यदि विवाह से पूर्व किया गया धार्मिक धर्मांतरण गैरकानूनी या प्रक्रियागत रूप से गैर-अनुपालन हो, तो ऐसे विवाह को अमान्य घोषित किया जा सकता है। यह स्थिति विशेषकर उन मामलों में गंभीर हो जाती है, जहाँ धर्मांतरण प्रक्रिया निर्धारित कानूनी प्रावधानों के अनुरूप पूरी नहीं की जाती, जिससे आर्य समाज विवाह कानूनी अमान्यता और विवाद के दायरे में आ जाते हैं।
निष्कर्ष:
आर्य समाज विवाहों से जुड़े विवाद, संबंधित कानूनों और नियमों को बेहतर समझने की आवश्यकता को उजागर करता है। हालांकि आर्य समाज ने अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक विवाहों को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई है, लेकिन इनकी वैधता और भरोसे को बनाए रखने के लिए प्रक्रियात्मक अनियमितताओं और कानूनों के पालन में कमी से जुड़े मुद्दों का समय पर समाधान जरूरी है।