सन्दर्भ:
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, जो हर साल वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या से जूझती है, अब इस संकट से निपटने के लिए एक अभिनव कदम उठाने जा रही है। 4 से 11 जुलाई 2025 के बीच, दिल्ली में पहली बार कृत्रिम वर्षा (Artificial Rain) की योजना बनाई गई थी जिसका परीक्षण मानसून के कारण स्थगित कर दिया गया और अब यह 30 अगस्त से 10 सितंबर के बीच किया जाएगा। यह परियोजना भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर के नेतृत्व में चलाई जा रही है, जिसका उद्देश्य क्लाउड सीडिंग तकनीक के माध्यम से प्रदूषण को कम करना है।
क्लाउड सीडिंग क्या है?
क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें बादलों में विशेष रसायन जैसे सिल्वर आयोडाइड, नमक, सूखी बर्फ आदि मिलाए जाते हैं ताकि उनमें जल वाष्प संघनित होकर बारिश या हिमपात के रूप में जमीन पर गिर सके। ये पदार्थ जल वाष्प को आकर्षित करने वाले "नाभिक" के रूप में कार्य करते हैं। जब वाष्प इन कणों के चारों ओर इकट्ठा होता है तो वह बड़ी बूंदों में परिवर्तित होकर वर्षा को उत्पन्न करता है।
क्लाउड सीडिंग दो प्रकार की होती है –
1. शीत क्लाउड सीडिंग: इसमें सिल्वर आयोडाइड का उपयोग 0°C से नीचे के अतिशीतित बादलों में बर्फ के क्रिस्टल बनाने के लिए किया जाता है।
2. गर्म क्लाउड सीडिंग: इसमें नमक के कणों का उपयोग कर छोटी जल बूंदों को मिलाकर बड़ी वर्षा बूंदें बनाई जाती हैं।
दिल्ली परियोजना की विशेषताएं:
- यह परियोजना “दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण शमन के वैकल्पिक उपाय के रूप में क्लाउड सीडिंग की प्रौद्योगिकी प्रदर्शन और मूल्यांकन” (“Technology Demonstration and Evaluation of Cloud Seeding as an Alternative for Delhi NCR Pollution Mitigation”) शीर्षक से चलाई जा रही है। इसके तहत विशेष रूप से संशोधित सेसना विमान का उपयोग किया जाएगा जो फ्लेयर आधारित प्रणाली से सीडिंग मिश्रण का छिड़काव करेगा।
- IIT कानपुर द्वारा विकसित सीडिंग मिश्रण में सिल्वर आयोडाइड नैनोपार्टिकल्स, आयोडीन युक्त नमक और रॉक सॉल्ट शामिल हैं। यह मिश्रण नमी से भरपूर बादलों में बूंदों के निर्माण को तेज करता है, जिससे कृत्रिम वर्षा उत्पन्न होती है। इस वर्षा के माध्यम से वायु में मौजूद धूल, धुएं और अन्य प्रदूषक कणों को धोकर वातावरण को शुद्ध किया जाएगा।
प्रभावशीलता और वैश्विक अनुभव:
- क्लाउड सीडिंग की प्रभावशीलता परिस्थितियों पर निर्भर करती है। यह तकनीक तभी कारगर होती है जब आसमान में पहले से ही नमी युक्त या अतिशीतित बादल मौजूद हों। अंतरराष्ट्रीय अनुभव दर्शाते हैं कि इससे वर्षा में औसतन 5-15 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।
- उदाहरण के लिए, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में इसे बर्फबारी और जल आपूर्ति बढ़ाने के लिए सफलतापूर्वक अपनाया गया है। यूएई और चीन जैसे देश भी इसे वायु गुणवत्ता सुधार और सूखे से निपटने के लिए उपयोग कर रहे हैं। भारत में पूर्व की एक पायलट परियोजना में वर्षा में लगभग 3% की वृद्धि देखी गई थी।
- इसके अतिरिक्त, सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायनों का उपयोग पर्यावरणीय चिंताओं को जन्म दे सकता है, क्योंकि इनका दीर्घकालिक प्रभाव पूरी तरह से समझा नहीं गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, सिल्वर आयोडाइड की छोटी मात्रा को पर्यावरण के लिए सुरक्षित माना जाता है, लेकिन बड़े पैमाने पर उपयोग के लिए और अध्ययन की आवश्यकता है। साथ ही, इस तकनीक की लागत और स्केलेबिलिटी भी एक चुनौती हो सकती है, खासकर दिल्ली जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्र में।
निष्कर्ष:
दिल्ली में कृत्रिम वर्षा का यह प्रयास भारत में शहरी वायु प्रदूषण से निपटने की दिशा में एक प्रयोगात्मक और विज्ञान-आधारित कदम है। हालांकि इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि मौसम की परिस्थितियाँ अनुकूल हों, लेकिन यदि यह योजना कारगर सिद्ध होती है, तो यह देश के अन्य प्रदूषित शहरों के लिए भी एक मॉडल समाधान बन सकती है। प्रदूषण से लड़ने के लिए यह तकनीक वैज्ञानिक नवाचार और पर्यावरणीय चेतना का संगम है।