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Blog / 08 Dec 2025

भारतीय न्यायपालिका में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI)

संदर्भ:

एआई के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश बनाने की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि न्यायाधीश एआई को अपनाने में अत्यधिक सावधानी बरतें। साथ ही में, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस किसी भी परिस्थिति में न्यायिक निर्णय-निर्माण का विकल्प नहीं बनना चाहिए।

पृष्ठभूमि:

    • एआई ऐसी तकनीक है जो मानव बुद्धि जैसी क्षमताओं के साथ कार्य कर सकते हैं, जैसे सोचने, सीखने और समस्याओं का समाधान करने की योग्यता।
    • न्यायपालिका में एआई को जजों, वकीलों और न्यायालय प्रशासन की सहायता के लिए, विशेष रूप से कानूनी शोध, केस प्रबंधन और डेटा विश्लेषण के क्षेत्र में एक उपयोगी उपकरण के रूप में देखा जा रहा है।
    • भारत की न्याय प्रणाली में 4 करोड़ से अधिक लंबित मामलों का बोझ है, जिसके कारण न्याय प्रक्रिया में अत्यधिक देरी होती है, ऐसे में एआई को न्यायिक दक्षता बढ़ाने और विलंब को कम करने के एक संभावित समाधान के रूप में माना जा रहा है।

न्यायपालिका में एआई के उपयोग से जुड़ी चिंताएँ:

1. हैलुसिनेशन (गलत और काल्पनिक जानकारी का निर्माण)

      • जेनरेटिव एआई कभी-कभी पूरी तरह झूठी या मनगढ़ंत जानकारियाँ उत्पन्न कर सकता है, जैसे नकली न्यायिक फैसले, पूर्व के फैसले के उदाहरण या शोध सामग्री।
      • उदाहरण: यूके हाई कोर्ट में वकीलों ने एआई द्वारा तैयार किए गए ऐसे कानूनी तर्क प्रस्तुत किए जिनमें उन मामलों का उल्लेख था जो वास्तव में अस्तित्व में ही नहीं थे, यह घटना एआई पर बिना सत्यापन निर्भर रहने के गंभीर जोखिम को उजागर करती है।

2. असमान व्यवहार (Disparate Treatment)

      • यदि एआई सिस्टम गलत तरीके से विकसित या लागू किए जाएँ, तो वे व्यक्तियों या समूहों के साथ असंगत, असमान या पक्षपातपूर्ण व्यवहार कर सकते हैं।
      • इससे लैंगिक, जातिगत, वर्ग आधारित या सामाजिक-आर्थिक पूर्वाग्रहों के जारी रहने या और बढ़ने की आशंका बनी रहती है।

3. पारदर्शिता की कमी

      • कई एआई एल्गोरिदम ब्लैक बॉक्सकी तरह काम करते हैं, अर्थात् एआई ने कोई परिणाम कैसे और किन मानकों के आधार पर दिया, इसे समझ पाना अत्यंत कठिन हो जाता है।
      • यह स्थिति न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता, जवाबदेही और विश्वसनीयता को प्रभावित कर सकती है।

न्यायपालिका में एआई के संभावित लाभ:

दक्षता, केस प्रबंधन और लंबित मामलों में कमी

      • एआई दस्तावेज़ प्रबंधन, शेड्यूलिंग, पुराने न्यायिक निर्णयों की खोज और केस सारांश तैयार करने जैसे कार्यों को स्वचालित बनाता है।
      • यह मामलों में संभावित विलंब का पूर्वानुमान लगाने में सक्षम है, जिससे संसाधनों का अधिक प्रभावी और समयबद्ध उपयोग किया जा सके।
      • न्यायालयों के प्रशासनिक कार्यों को सरल बनाकर एआई भारत में लंबित मामलों के अत्यधिक बोझ को कम करने में सहायक सिद्ध हो सकता है।

बेहतर पहुँच, पारदर्शिता और सहभागिता

      • अनुवाद, वॉयस-टू-टेक्स्ट और केस सारांश जैसी एआई आधारित सुविधाएँ भाषायी अल्पसंख्यकों और दूरदराज़ के वादियों के लिए न्याय तक पहुँच को अधिक सुगम बनाती हैं।
      • यह रिकॉर्ड रखने की प्रक्रिया में मानव त्रुटियों को कम करती है और पुराने फैसलों की खोज को अधिक तेज़, सटीक और व्यवस्थित बनाती है।
      • डिजिटलीकरण के माध्यम से न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता, निरंतरता और जवाबदेही को मजबूती मिलती है।

न्यायिक विवेचना में सहायता

      • एआई कानूनी शोध में जजों और वकीलों को सहायता प्रदान करता है, जैसे प्रासंगिक पूर्व के फैसले के उदाहरण की पहचान करना और विस्तृत न्यायिक फ़ैसलों का संक्षिप्त सार प्रस्तुत करना।
      • जटिल मामलों में बड़े पैमाने पर उपलब्ध डेटा का विश्लेषण करने में सहयोग देता है, जबकि अंतिम निर्णय का अधिकार पूरी तरह जज के पास ही सुरक्षित रहता है।

निष्कर्ष:

एआई न्यायिक व्यवस्था के संदर्भ में एक दोधारी तलवार की तरह है, यह न्यायिक दक्षता और न्याय तक पहुँच को बेहतर बना सकता है, लेकिन इसके साथ अपारदर्शिता, पक्षपात और मानवीय विवेक को कमजोर करने जैसे जोखिम भी जुड़े हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह दृष्टिकोण कि एआई को सावधानीपूर्ण केवल सहायक उपकरण के रूप में रखा जाए। एआई को न्यायिक प्रक्रिया में एकीकृत करने के लिए इसे धीरे-धीरे और विनियामक (Regulated) तरीके से अपनाना अनिवार्य है, जिसमें जजों का प्रशिक्षण, एआई आउटपुट का स्वतंत्र ऑडिट, पारदर्शिता सुनिश्चित करना और एक सशक्त कानूनी ढाँचा स्थापित करना शामिल है।