संदर्भ:
हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की अध्यक्षता में सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने दो उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों — बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आलोक अराधे तथा पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपुल मनुभाई पंचोली — को सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत करने की सिफारिश की है।
न्यायमूर्ति आलोक आराधे के विषय में:
- न्यायमूर्ति आलोक अराधे का न्यायिक करियर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में दिसंबर 2009 में अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में शुरू हुआ था, तथा वे फरवरी 2011 में स्थायी न्यायाधीश बने। उन्होंने मई से अगस्त 2018 तक जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश और जुलाई से अक्टूबर 2022 तक कर्नाटक उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी कार्य किया। जुलाई 2023 में उन्हें तेलंगाना उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया, जिसके बाद वे 21 जनवरी 2025 को बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर स्थानांतरित हुए।
न्यायाधीश विपुल मनुभाई पंचोली के विषय में:
· न्यायमूर्ति विपुल मनुभाई पंचोली को 1 अक्टूबर 2014 को गुजरात उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था, जिसके बाद वे 10 जून 2016 को स्थायी न्यायाधीश बने। जुलाई 2023 में उनका स्थानांतरण पटना उच्च न्यायालय में हुआ और 21 जुलाई 2025 को उन्हें पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया।
संवैधानिक प्रावधान:
· भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(2) के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, जिसके लिए आवश्यक परामर्श सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के उन न्यायाधीशों से लिया जाता है जिन्हें उपयुक्त समझा जाता है।
कॉलेजियम प्रणाली (न्यायिक नवाचार, संविधान में नहीं):
· कॉलेजियम प्रणाली भारत में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रक्रिया है। यह प्रणाली संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लिखित नहीं है, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है, जिसे "जजेस केस" (Judges Cases) के नाम से जाना जाता है। सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
प्रक्रिया के चरण:
कॉलेजियम की अनुशंसा:
नामों का चयन वरिष्ठता, योग्यता, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और मूल उच्च न्यायालय के आधार पर किया जाता है।
2. सरकार को अग्रेषण:
चयनित नामों की सूची विधि मंत्रालय को भेजी जाती है।
3. पृष्ठभूमि जांच:
खुफिया ब्यूरो (आईबी) द्वारा नामित व्यक्तियों की पृष्ठभूमि की जांच की जाती है।
4. प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा समीक्षा:
प्रधानमंत्री कार्यालय सिफारिशों की समीक्षा करता है।
5. राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति:
अंततः, भारत के राष्ट्रपति औपचारिक रूप से न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संरचना और योग्यताएँ:
· भारत के सर्वोच्च न्यायालय में प्रारंभ में एक मुख्य न्यायाधीश और सात अन्य न्यायाधीशों का प्रावधान था, किंतु संसद द्वारा समय-समय पर किए गए संशोधनों के फलस्वरूप वर्तमान में इसमें मुख्य न्यायाधीश सहित कुल 34 न्यायाधीश नियुक्त किए जा सकते हैं।
योग्यता (अनुच्छेद 124(3):
संविधान के अनुच्छेद 124(3) के अनुसार, कोई व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किए जाने के लिए तब पात्र होता है, यदि वह:
- भारत का नागरिक हो;
- किसी उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कम से कम पाँच वर्ष कार्य कर चुका हो; या
- उच्च न्यायालयों में अधिवक्ता के रूप में कम से कम दस वर्ष तक अभ्यास कर चुका हो; या
- राष्ट्रपति की राय में एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता (Jurist) हो।
शपथ और कार्यकाल:
· सर्वोच्च न्यायाधीश के न्यायाधीश संविधान की रक्षा और निष्पक्ष न्याय का शपथ लेते हैं। न्यायाधीशों के लिए कोई न्यूनतम आयु निर्धारित नहीं है, परंतु वे 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं। वे राष्ट्रपति को पत्र देकर इस्तीफा दे सकते हैं। उनका वेतन और भत्ते भारत की संचित निधि से दिए जाते हैं।
कॉलेजियम प्रणाली और उसके विकास के बारे में:
कॉलेजियम प्रणाली, जो संविधान में उल्लिखित नहीं है, न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण की प्रक्रिया को नियंत्रित करती है। इसमें मुख्य न्यायाधीश तथा सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
· प्रथम न्यायाधीश वाद (1981): कार्यपालिका को वरीयता।
· द्वितीय (1993) वाद: कॉलेजियम की स्थापना।
· तृतीय (1998) वाद: कॉलेजियम का विस्तार (CJI + 4 वरिष्ठतम न्यायाधीश)।
· चतुर्थ (2015) वाद: NJAC असंवैधानिक घोषित; कॉलेजियम प्रणाली पुनः स्थापित।