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Blog / 16 May 2025

छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर एंटी-नक्सल ऑपरेशन

संदर्भ:

हाल ही में भारतीय सुरक्षा बलों ने छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सीमा पर स्थित कर्रगुट्टालू पहाड़ियों में 21 दिनों तक चलाया गया एक बड़ा एंटी-नक्सल अभियान सफलतापूर्वक पूरा किया। इस अभियान में 31 माओवादी मारे गए। यह ऑपरेशन भारत के नक्सल विरोधी इतिहास में अब तक के सबसे बड़े और निर्णायक अभियानों में से एक माना जा रहा है।

ऑपरेशन के बारे में:

यह ऑपरेशन 21 अप्रैल 2025 को शुरू हुआ था और इसे केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF), स्पेशल टास्क फोर्स (STF), डिस्ट्रिक्ट रिज़र्व गार्ड (DRG) और तेलंगाना की खास ग्रेहाउंड्स यूनिट ने मिलकर पूरा किया।

  • यह अभियान माओवादियों के गढ़ माने जाने वाले कर्रगुट्टालू के घने जंगल और दुर्गम पहाड़ियों में चलाया गया, जहाँ पहुंचना बेहद मुश्किल होता है।

नक्सलवाद क्या है?

नक्सलवाद, जिसे वामपंथी उग्रवाद (Left-Wing Extremism - LWE) भी कहा जाता है, भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती है। इसकी शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव में किसान आंदोलन के रूप में हुई थी, जिसे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) ने शुरू किया था।

  • यह आंदोलन सामाजिक और आर्थिक असमानताओं, भूमि विवादों और आदिवासी अधिकारों के मुद्दों से जुड़ा हुआ है। इसका प्रभाव छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में फैला हुआ है, जिसे 'रेड कॉरिडोर' कहा जाता है।

नक्सलवाद खत्म करने की भारत की रणनीति:

भारत सरकार नक्सलवाद को खत्म करने के लिए एक व्यापक और संतुलित रणनीति अपनाए हुए है, जिसमें सुरक्षा, विकास और समुदाय की भागीदारी को महत्व दिया जाता है।

1.      विकासात्मक पहलें: ये योजनाएँ उन कारणों को दूर करने के लिए हैं जो नक्सलवाद को जन्म देते हैं, जैसे गरीबी, उपेक्षा और बुनियादी सुविधाओं की कमी। इनमें शामिल हैं:

·         प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY-II): दूर-दराज़ आदिवासी इलाकों को जोड़ने से विकास और सुरक्षा दोनों में मदद मिलती है।

·         एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय: आदिवासी बच्चों को शिक्षा के बेहतर अवसर प्रदान करते हैं।

·         मोबाइल कनेक्टिविटी (USOF/डिजिटल भारत निधि): दूर-दराज़ के इलाकों को जोड़कर प्रशासन और सेवाओं में सुधार लाते हैं।

2.     सुरक्षा अभियान: माओवादी हिंसा से निपटने के लिए सरकार ने कई सुरक्षा कदम उठाए हैं:

·         ऑपरेशन ग्रीन हंट: माओवादियों के ठिकानों को खत्म करने के लिए चलाया गया संगठित सैन्य अभियान।

·         CAPF, कोबरा और ग्रेहाउंड्स की तैनाती: ये विशेष बल जंगलों में लड़ाई और गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित हैं।

3.     कानूनी और प्रशासनिक उपाय: सरकार कानूनी ढांचे के ज़रिए माओवादी गतिविधियों को रोकने के साथ-साथ आदिवासियों के अधिकारों की भी रक्षा करती है।

·         गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA): माओवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने और उनके सदस्यों पर कार्रवाई के लिए।

·         वन अधिकार अधिनियम (2006): जंगलों में रहने वाले लोगों के पारंपरिक अधिकारों को मान्यता देता है।

·         PESA अधिनियम (1996): अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को संसाधन और स्थानीय शासन में अधिकार देता है।

·         सरेंडर करने वाले नक्सलियों के पुनर्वास की योजना भी चलाई जा रही है ताकि वे मुख्यधारा में लौट सकें।

अब तक की प्रगति:

गृह मंत्रालय और सीआरपीएफ के आंकड़े पिछले दशक में हुई प्रगति पर प्रकाश डालते हैं:

  • नक्सल प्रभावित ज़िलों की संख्या 2014 में 126 थी, जो अब 2025 में घटकर 18 रह गई है।
  • सबसे अधिक प्रभावित ज़िले 35 से घटकर सिर्फ 6 बचे हैं।
  • हिंसक घटनाएँ 2014 में 1,080 थीं, जो 2024 में घटकर 374 रह गईं।
  • सुरक्षा बलों की शहादत 287 से घटकर 2024 में 19 हो गई।
  • 2014 से अब तक 2,089 माओवादी मारे जा चुके हैं।
  • 2024 में 928 और 2025 में अब तक 718 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है।

निष्कर्ष:

यह अभियान वामपंथी उग्रवाद के विरुद्ध सरकार की दीर्घकालिक लड़ाई में एक निर्णायक क्षण साबित हुआ है। यह स्पष्ट संकेत देता है कि अब विद्रोहियों के लिए देश के किसी भी हिस्से में आश्रय स्वीकार नहीं किया जायेगा। जैसे-जैसे भारत 2026 तक नक्सल-मुक्त राष्ट्र बनने के अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर है, कर्रगुट्टालू की यह सफलता सैन्य दृष्टि से ही नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक रूप से भी एक ऐतिहासिक और यादगार क्षण के रूप में दर्ज की जाएगी।