संदर्भ:
हाल ही में केरल के मध्य क्षेत्र में प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएंसेफलाइटिस (PAM) का पहला मामला दर्ज किया गया है। यह एक अत्यंत दुर्लभ, लेकिन जानलेवा संक्रमण है, जो एक स्वतंत्र रूप से रहने वाले अमीबा के कारण होता है। वर्ष 2025 में केरल में इस बीमारी के 150 से अधिक मामले सामने आए हैं। इनमें से अधिकतर मामले कोझिकोड, मलप्पुरम, तिरुवनंतपुरम और कोल्लम ज़िलों से रिपोर्ट किए गए हैं।
अमीबिक मेनिंगोएंसेफलाइटिस के बारे में:
अमीबिक मेनिंगोएंसेफलाइटिस (PAM) मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाला एक अत्यंत दुर्लभ संक्रमण है। यह नेगलेरिया फॉउलेरी (Naegleria fowleri) नामक अमीबा के कारण होता है, जिसे सामान्य रूप से “ब्रेन-ईटिंग अमीबा” या “दिमाग खाने वाला अमीबा” कहा जाता है।
• यह अमीबा झीलों, तालाबों, गर्म मीठे पानी के स्रोतों और कम क्लोरीन वाले स्विमिंग पूलों में पाया जाता है।
• संक्रमण तब होता है जब संक्रमित पानी नाक के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है और अमीबा सूंघने वाली नस (Olfactory Nerve) के रास्ते मस्तिष्क तक पहुँच जाता है।
रोग का फैलाव और संक्रमण:
· यह बीमारी संक्रामक नहीं है, अर्थात यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलती।
· संक्रमण के 2 से 7 दिनों के भीतर इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं और अक्सर एक से दो हफ्तों के अंदर मृत्यु हो जाती है, क्योंकि इसका पता लगाना बहुत कठिन होता है और रोग तेजी से बढ़ता है।
लक्षण:
शुरुआती लक्षण सामान्य वायरल मेनिनजाइटिस जैसे होते हैं:
· तेज़ सिरदर्द
· बुखार और मतली
· उल्टी और गर्दन में अकड़न
· व्यवहार या मानसिक स्थिति में बदलाव
· उन्नत अवस्था में दौरे (seizures) और बेहोशी
चूंकि इसके लक्षण अन्य मस्तिष्क संक्रमणों जैसे लगते हैं, इसलिए सही पहचान में देरी हो जाती है, जिससे मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है।
चिकित्सीय उपचार:
· इस रोग का पूरी तरह प्रभावी कोई इलाज नहीं है। हालांकि, अगर शुरुआती अवस्था में पहचान हो जाए, तो एम्फोटेरिसिन बी (Amphotericin B), मिल्टेफोसिन (Miltefosine), एज़िथ्रोमाइसिन (Azithromycin) और रिफैम्पिसिन (Rifampicin) जैसी दवाओं का प्रयोग सीमित रूप से लाभदायक हो सकता है।
निष्कर्ष:
हाल ही में केरल में सामने आया मामला इस बात का संकेत है कि बदलते पर्यावरणीय परिस्थितियाँ और जीवनशैली में आए परिवर्तन इस प्रकार के दुर्लभ संक्रमणों को बढ़ावा दे रहे हैं। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए एक गंभीर चुनौती बनती जा रही है। यद्यपि केरल ने अपनी सक्रिय निगरानी और जांच प्रणाली के माध्यम से मामलों की शीघ्र पहचान में उल्लेखनीय सुधार किया है, फिर भी इस बीमारी की रोकथाम के लिए जनजागरूकता बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है।

