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Blog / 09 Jul 2025

भारत में वायु प्रदूषण और उसका जन्म संबंधी प्रभाव

संदर्भ:

भारत में वायु प्रदूषण करोड़ों लोगों के जीवन का एक सामान्य हिस्सा बन चुका है। यह न सिर्फ़ सांस और हृदय से जुड़ी बीमारियों का कारण है, बल्कि अब शोध से यह भी सामने आया है कि इसका असर गर्भ में पल रहे शिशु पर भी पड़ता है। हाल ही में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के आंकड़ों और सैटेलाइट आधारित वायु गुणवत्ता डेटा के आधार पर हुई एक अध्ययन में पाया गया है कि गर्भवती महिलाओं के PM2.5 जैसे सूक्ष्म कणों के संपर्क में आने से समय से पहले प्रसव (Preterm Birth - PTB) और कम वजन (Low Birth Weight - LBW) जैसे गंभीर जोखिमों में भारी बढ़ोतरी होती है।

मुख्य बिंदु:

PM2.5 के संपर्क से सेहत को खतरा

·         PM2.5 वे बेहद छोटे कण होते हैं, जिनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से भी कम होता है और जो शरीर में रक्त प्रवाह तक पहुंच सकते हैं।

·         अध्ययन में पाया गया कि जो महिलाएं गर्भावस्था में अधिक PM2.5 के संपर्क में आईं, उनमें:

o    समय से पहले बच्चे के जन्म का खतरा 70% ज़्यादा था

o    कम वजन वाले शिशु के जन्म का खतरा 40% ज़्यादा था

क्षेत्रीय असमानताएं

·         उत्तर भारत के राज्यों में यह खतरा सबसे ज़्यादा पाया गया:

o    दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार में PM2.5 का स्तर सबसे ज़्यादा था।

o    दिल्ली में PM2.5 की मात्रा केरल की तुलना में 13.8 गुना अधिक पाई गई।

·         समय से पहले जन्म के सबसे अधिक मामले मिले:

o    हिमाचल प्रदेश (39%)

o    दिल्ली (17%)

·         कम वजन के मामलों में सबसे अधिक संख्या रही:

o    पंजाब (22%)

o    दिल्ली (19%)

लिंग और सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

·         कम वजन की समस्या लड़कियों में ज़्यादा पाई गई (20%) जबकि लड़कों में यह 17% रही।

·         जिन महिलाओं की शिक्षा कम थी या जो गरीब थीं, उनके बच्चों में PTB और LBW के मामले ज़्यादा देखे गए।

·         जिन घरों में खाना बनाने के लिए ठोस ईंधनों (लकड़ी, कोयला आदि) का इस्तेमाल होता था, वहां भी ये समस्याएं ज़्यादा थीं।

Ambient air pollution and infant health: a narrative review - eBioMedicine

तापमान और वर्षा का प्रभाव

·         हल्की गर्मी बढ़ने पर भी बच्चों का वजन कम होने की संभावना बढ़ जाती है, हालांकि इसका सीधा असर समय से पहले जन्म पर नहीं देखा गया।

·         गर्मी से मां को पानी की कमी, हीट स्ट्रेस और हृदय पर असर हो सकता है, जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे की वृद्धि प्रभावित होती है।

·         मानसून में अत्यधिक वर्षा के कारण:

o    पानी से फैलने वाली बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

o    बाढ़ और विस्थापन से अस्पतालों तक पहुंच मुश्किल हो जाती है।

o    गर्भावस्था में जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है।

सुझाए गए उपाय:

समय से पहले जन्म और कम वजन जैसे खतरे केवल पर्यावरणीय नहीं बल्कि सामाजिक-आर्थिक कमज़ोरियों को भी दर्शाते हैं। इससे निपटने के लिए ज़रूरी है कि:

·         वाहनों, फैक्ट्रियों और घरेलू ईंधनों से निकलने वाले धुएं को कम किया जाए

·         लोगों को साफ-सुथरे ईंधनों तक आसान पहुंच दी जाए

·         गर्भवती महिलाओं को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिलें

·         गर्भावस्था के दौरान गर्मी और बाढ़ से महिलाओं को सुरक्षित रखा जाए

निष्कर्ष:
यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि वायु प्रदूषण का असर मां और बच्चे की सेहत पर गर्भ में ही शुरू हो जाता है, खासकर उन राज्यों में जहां प्रदूषण सबसे अधिक है। स्वच्छ हवा न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है, बल्कि हर बच्चे के अच्छे और स्वस्थ जीवन की शुरुआत के लिए भी अनिवार्य है।