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Blog / 10 May 2025

एयर डिफेंस सिस्टम्स

संदर्भ:

हाल ही में भारत ने पाकिस्तान के लाहौर में एक एयर डिफेंस सिस्टम को निष्क्रिय किया है। यह घटना आधुनिक युद्धों में ऐसे सिस्टम्स के रणनीतिक महत्व को दर्शाती है।

एयर डिफेंस सिस्टम्स के बारे में:

  • एक आधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम एक नेटवर्क आधारित, बहु-स्तरीय संरचना होती है जो विभिन्न तकनीकों के समन्वय से मजबूत सुरक्षा प्रदान करती है और दुश्मन को हवाई वर्चस्व से वंचित रखती है, जिससे जमीनी और हवाई बलों को परिचालन संबंधी लचीलापन मिलता है। हाल ही में पाकिस्तान की भारत पर क्रॉस-बॉर्डर हमले में विफलता इन प्रणालियों की रणनीतिक अहमियत को रेखांकित करती है।
  • इसके विपरीत, दुश्मन के एयर डिफेंस को निष्क्रिय करना, जिसे दुश्मन की वायु रक्षा को निष्क्रिय करना (Suppression of Enemy Air Defences (SEAD)) कहा जाता है, हवाई वर्चस्व हासिल करने के लिए बेहद जरूरी होता है। इससे बमबारी, पैरा ट्रूपर की तैनाती और लॉजिस्टिक सपोर्ट में कोई बाधा नहीं आती। 2005 की अमेरिकी कांग्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, हाल के युद्धों में अमेरिका के लगभग 25% कॉम्बैट मिशन SEAD पर आधारित थे। लाहौर में भारत द्वारा एयर डिफेंस सिस्टम को निशाना बनाना इसी रणनीतिक सोच को दर्शाता है।

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कार्यप्रणाली:

1.        पता लगाना (Detection): यह सबसे प्रारंभिक और अहम चरण होता है। इसमें रडार सिस्टम इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें छोड़ते हैं, जो दुश्मन के विमान या मिसाइल जैसे वस्तुओं से टकराकर वापस लौटती हैं। इन संकेतों से उनके स्थान, गति और दिशा का पता चलता है। रणनीतिक मामलों में, सैटेलाइट्स का उपयोग लंबी दूरी की मिसाइलों जैसे ICBMs को ट्रैक करने के लिए किया जाता है।

2.      निगरानी (Tracking): पता चलने के बाद, रडार, इन्फ्रारेड सेंसर और लेज़र रेंजफाइंडर की मदद से लगातार निगरानी की जाती है। यह प्रणाली कई हवाई वस्तुओं को एक साथ ट्रैक कर सकती है और मित्र व शत्रु लक्ष्यों में फर्क करती है। सटीक ट्रैकिंग गलत पहचान से बचाव और समय पर प्रतिक्रिया के लिए जरूरी है।

3.      अवरोधन (Interception): जब खतरे की पहचान और निगरानी हो जाती है, तब उसकी प्रकृति और दूरी के अनुसार उसे निष्क्रिय करने की रणनीति बनाई जाती है। इस चरण की सफलता कमांड, नियंत्रण और संचार (C3) प्रणालियों की प्रभावी समन्वय पर निर्भर करती है।

अवरोधन के साधन:

  • फाइटर एयरक्राफ्ट: ये तेज़ और फुर्तीले विमान होते हैं, जो आधुनिक एयर-टू-एयर मिसाइल, रडार और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम से लैस होते हैं। भारतीय वायु सेना में इस भूमिका के लिए MiG-21 Bison, MiG-29, Sukhoi Su-30MKI, HAL Tejas और Dassault Rafale जैसे विमान उपयोग में हैं।
  • सर्फेस-टू-एयर मिसाइल (SAM): ये किसी भी एयर डिफेंस नेटवर्क की रीढ़ होती हैं। ये पारंपरिक एंटी-एयरक्राफ्ट तोपों की तुलना में अधिक प्रभावी और सुरक्षित होती हैं। ये विभिन्न प्रकार की होती हैं:
    • भारी, लंबी दूरी की प्रणालियाँ (जैसे S-400 Triumf): उच्च ऊंचाई के खतरों जैसे बैलिस्टिक मिसाइलों को निशाना बनाती हैं।
    • मध्यम दूरी की मोबाइल प्रणालियाँ (जैसे Akash, Barak): संचालन में लचीलापन प्रदान करती हैं।
    • छोटी दूरी की, व्यक्ति द्वारा ले जाई जा सकने वाली प्रणालियाँ (MANPADS): कम ऊँचाई पर उड़ने वाले विमान या ड्रोन को निशाना बनाती हैं। ये कम लागत वाली होती हैं और असंगठित बलों द्वारा भी इस्तेमाल की जाती हैं।
  • एंटी-एयरक्राफ्ट आर्टिलरी (AAA): भले ही ये आधुनिक मिसाइल प्रणालियों के सामने पुरानी मानी जाती हों, फिर भी ये अंतिम उपाय के रूप में और ड्रोन से रक्षा के लिए उपयोगी रहती हैं। ये तोपें तेज़ गति से फायर करती हैं और बड़े क्षेत्र को कवर करती हैं।
  • इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर (EW): आधुनिक एयर डिफेंस में अब भौतिक हमलों के अलावा जैमिंग, स्पूफिंग और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक हस्तक्षेप जैसे तरीकों का भी इस्तेमाल होता है। EW सिस्टम दुश्मन के रडार, मार्गदर्शन और संचार को निशाना बनाते हैं, जिससे उनकी तकनीक बिना सीधे टकराव के निष्क्रिय हो जाती है।

निष्कर्ष:
एयर डिफेंस सिस्टम निगरानी, संचार और हमला करने की क्षमताओं का समन्वय हैं। इनका उपयोग सिर्फ रक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि ये आक्रामक हवाई अभियानों और व्यापक सैन्य रणनीतियों को सक्षम बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।