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Blog / 03 Nov 2025

एडॉप्टेशन गैप रिपोर्ट 2025: जलवायु अनुकूलन पर वैश्विक संकट | Dhyeya IAS

संदर्भ:

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट 2025 जारी की है। यह रिपोर्ट इस तथ्य पर बल देती है कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के बीच, विकासशील देशों को अनुकूलन (Adaptation) के लिए जितनी वित्तीय सहायता की आवश्यकता है, वह लगातार कम पड़ रही है, जबकि जलवायु प्रभाव लगातार बढ़ते जा रहे हैं।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

रिपोर्ट के अनुसार, विकासशील देशों को वर्ष 2035 तक जलवायु अनुकूलन के लिए प्रति वर्ष लगभग 310 से 365 अरब अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी। यह अनुमान मॉडल आधारित लागतों और विभिन्न देशों की राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं (NAPs) के आंकड़ों पर आधारित है।

      • इसके विपरीत, वर्ष 2023 में विकासशील देशों को अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक अनुकूलन वित्तीय सहायता के रूप में केवल 26 अरब अमेरिकी डॉलर मिले, जो पिछले वर्ष (28 अरब डॉलर) से भी कम हैं। इसलिए वर्तमान वित्तीय प्रवाह आवश्यकता से लगभग 12 से 14 गुना कम है।
      • रिपोर्ट यह भी बताती है कि अनुकूलन के लिए मिलने वाली वित्तीय सहायता का बड़ा हिस्सा ऋण के रूप में है, जिससे देशों पर कर्ज का बोझ और बढ़ता जा रहा है, जबकि निजी क्षेत्र से मिलने वाली वित्तीय सहायता अभी भी बहुत कम (सिर्फ कुछ अरब डॉलर) है।
      • रिपोर्ट चेतावनी देती है कि यदि मौजूदा रुझान जारी रहे, तो ग्लासगो जलवायु समझौते का लक्ष्य “2025 तक अनुकूलन वित्त को 40 अरब डॉलर तक दोगुना करनापूरा नहीं हो पाएगा।
      • यहां तक कि COP29 (बाकू) में तय किया गया नया सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य (NCQG), जो 2035 तक जलवायु कार्रवाई के लिए 300 अरब डॉलर प्रति वर्ष तय करता है, वह भी पर्याप्त नहीं है, क्योंकि इसमें शमन और अनुकूलन दोनों शामिल हैं।

विकासशील देशों के लिए प्रभाव:

अनुकूलन वित्त की गंभीर कमी के कारण विकासशील देश जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बने हुए हैं। इन देशों को बुनियादी ढांचे की क्षति, फसलों की हानि, जल संकट, समुद्र-स्तर में वृद्धि और चरम मौसम घटनाओं जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

         यदि जलवायु संबंधी स्थिति लगातार बनी रही और अनुकूलन की क्षमता मजबूत नहीं की गई, तो गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा तथा बुनियादी ढांचे के विकास में हासिल की गई प्रगति कम हो सकती है।

         चूंकि अनुकूलन वित्त का बड़ा हिस्सा ऋण के रूप में है और वह भी अक्सर गैर-रियायती (non-concessional) शर्तों पर इसलिए विकासशील देशों पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है, भले ही वे अपनी जलवायु सहनशीलता (Climate Resilience) बढ़ाने का प्रयास कर रहे हों।

         अनेक विकासशील देश ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में बहुत कम योगदान देते हैं, फिर भी उन्हें जलवायु परिवर्तन के सबसे गंभीर प्रभावों का सामना करना पड़ता है, जिससे वैश्विक असमानता और गहराती जा रही है।

यूएनईपी की नीतिगत सिफारिशें:

1.        वित्तीय अंतर को कम करना: विकासशील देशों पर ऋण का बोझ बढ़ाए बिना सार्वजनिक और निजी वित्त के नए स्रोतों को जुटाना आवश्यक है, ताकि अनुकूलन की बढ़ती जरूरतों को पूरा किया जा सके।

2.      वैश्विक सहयोग को सशक्त बनाना: COP29 में अपनाए गए बाकू से बेलेम रोडमैपको प्रभावी रूप से लागू किया जाए, जिससे वित्तीय प्रवाह में समानता और पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।

3.      शमन प्रयासों को मजबूत करना: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तेजी से कटौती कर वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित किया जाए, ताकि भविष्य में अनुकूलन की लागत को कम किया जा सके।

4.     अनुदान और गैर-ऋण साधनों को प्राथमिकता देना: जलवायु-संवेदनशील देशों के लिए अनुदान-आधारित वित्तपोषण (grant-based funding) और ऋण राहत (debt relief) को बढ़ावा दिया जाए, ताकि वे बिना कर्ज के बोझ के अपनी अनुकूलन क्षमता बढ़ा सकें।

5.      अनुकूलन योजनाओं को अद्यतन करना और मुख्यधारा में शामिल करना: देशों को अपनी राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं (NAPs) की नियमित समीक्षा करते रहना चाहिए तथा लचीलापन (resilience) को अपने राष्ट्रीय विकास ढांचे का अभिन्न हिस्सा बनाना चाहिए।

निष्कर्ष:

यूएनईपी की अनुकूलन अंतर रिपोर्ट 2025 एक गंभीर चेतावनी प्रस्तुत करती है, जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों से संवेदनशील देशों की रक्षा करने के लिए दुनिया के पास समय और संसाधन तेजी से समाप्त हो रहे हैं। यदि अनुकूलन वित्त में पर्याप्त वृद्धि नहीं की गई और वित्तीय बोझ का न्यायसंगत बंटवारा सुनिश्चित नहीं हुआ, तो वैश्विक स्तर पर असमानता बढ़ने और सतत विकास की दिशा में हुई प्रगति रुकने या कम होने का गंभीर खतरा बना रहेगा।