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Blog / 26 Jul 2025

आदि तिरुवाथिरै महोत्सव: राजेन्द्र चोल प्रथम की विरासत

संदर्भ:

संस्कृति मंत्रालय, महान चोल सम्राट राजेन्द्र चोल प्रथम की जयंती के अवसर पर "आदि तिरुवाथिरै महोत्सव" का आयोजन हुआ। यह आयोजन 23 से 27 जुलाई 2025 तक गंगैकोंडा चोलपुरम, तमिलनाडु में आयोजित होगा

  • यह विशेष महोत्सव राजेन्द्र चोल द्वारा दक्षिण-पूर्व एशिया में की गई ऐतिहासिक समुद्री विजय और गंगैकोंडा चोलपुरम मंदिर के निर्माण की शुरुआत के 1,000 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में मनाया जा रहा है। यह मंदिर चोल कालीन स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट और भव्य उदाहरण है, जो उस युग की सांस्कृतिक और शिल्पकला की समृद्धि को दर्शाता है।

राजेन्द्र चोल प्रथम के बारे में:

राजेन्द्र चोल प्रथम ने 1014 से 1044 ईस्वी तक शासन किया और चोल साम्राज्य को उसकी सर्वोच्च सीमा तक पहुँचाया। वे एक दूरदर्शी, सामरिक और कुशल शासक थे, जिन्होंने अपने अभियानों के माध्यम से साम्राज्य की सीमाओं को दक्षिण भारत से लेकर उत्तर भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया तक विस्तारित किया।

  • वे महान सम्राट राजराजा चोल प्रथम के पुत्र थे, जिन्होंने चोल साम्राज्य की नींव को सशक्त और संगठित बनाया। राजेन्द्र चोल ने गंगा घाटी पर विजय प्राप्त कर "गंगैकोंडा चोलन" (अर्थात 'गंगा को जीतने वाला चोल') की उपाधि धारण की।
  • इस ऐतिहासिक विजय की स्मृति में उन्होंने एक नई राजधानी 'गंगैकोंडा चोलपुरम' की स्थापना की और वहाँ एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया, जो चोल स्थापत्य कला की उत्कृष्टता और उनकी शक्ति का प्रतीक बना।

Celebrating the Glorious Legacy of Rajendra Chola I Aadi Thiruvathirai  Festival - 23rd to 27th July, 2025 - The Truth One

समुद्री अभियान और विरासत:

राजेन्द्र चोल प्रथम के समुद्री अभियान, विशेष रूप से श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया के शक्तिशाली श्रीविजय साम्राज्य के खिलाफ, उनकी नौसैनिक शक्ति और रणनीतिक दूरदर्शिता का प्रमाण हैं।

·         श्रीविजय साम्राज्य 7वीं शताब्दी में दक्षिण-पूर्व एशिया की एक प्रमुख समुद्री शक्ति था, और उस पर राजेन्द्र चोल की विजय भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है।

·         अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की राजधानी का नाम "श्री विजय पुरम" इसी ऐतिहासिक विजय से प्रेरित है।

चोल साम्राज्य के बारे में:
चोल साम्राज्य ने 9वीं शताब्दी में विजयालय चोल के नेतृत्व में शक्ति प्राप्त की थी। यह शासन अपने प्रशासनिक कौशल और सांस्कृतिक योगदान के लिए जाना जाता है।

·         चोलों की प्रभावी शासन व्यवस्था, कर प्रणाली और स्थानीय प्रशासन की बहुत प्रशंसा होती है।

·         उत्तरमेरूर अभिलेख चोल शासन के चुनाव और प्रशासन की विस्तृत जानकारी देते हैं, जो उनकी उन्नत प्रणाली का प्रमाण हैं।

सांस्कृतिक उपलब्धियाँ:

चोल साम्राज्य अपनी सांस्कृतिक उपलब्धियों विशेष रूप से वास्तुकला और कला के क्षेत्र के लिए भी जाना जाता था।

·        गंगईकोंडा सहित महान जीवित चोल मंदिर चोलपुरम , ऐरावतेश्वर और बृहदेश्वर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं और साम्राज्य की स्थापत्य कला की कुशलता को प्रदर्शित करते हैं।

·        चोल अपनी उत्कृष्ट कांस्य मूर्तियों, विशेष रूप से प्रतिष्ठित नटराज के लिए भी जाने जाते थे।

निष्कर्ष:

राजेन्द्र चोल प्रथम की समुद्री विजय के 1,000 वर्ष पूरे होने का उत्सव, उनकी उपलब्धियों और चोल साम्राज्य की समृद्ध विरासत को याद करने का एक उपयुक्त अवसर है। आदि तिरुवाथिरै महोत्सव न सिर्फ उनके प्रशासनिक, सांस्कृतिक और नौसैनिक योगदान को सम्मानित करता है, बल्कि यह हमारे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और समझ को गहरा करने का भी संदेश देता है।