संदर्भ-
साइंस एडवांसेज (जुलाई 2025) में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि दुनिया का 9% से अधिक भूमि क्षेत्र जूनोटिक प्रकोपों के "उच्च" या "अत्यधिक" जोखिम में है - ऐसे संक्रमण जो जानवरों से मनुष्यों में फैलते हैं। भू-स्थानिक रोग और जनसंख्या डेटा पर आधारित निष्कर्ष, विशेष रूप से पारिस्थितिक रूप से अशांत और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य कमजोरियों को उजागर करते हैं।
जूनोटिक रोग क्या हैं?
• जूनोसिस ऐसे रोग हैं जो रोगजनकों के कारण होते हैं जो जानवरों से मनुष्यों में और कभी-कभी जानवरों से मनुष्यों में भी फैलते हैं।
• उदाहरण: कोविड-19, इबोला, निपाह, एवियन इन्फ्लूएंजा, रेबीज, आदि।
• मनुष्यों में उभरने वाले लगभग 75% संक्रामक रोगों की उत्पत्ति पशुओं से होती है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
• वैश्विक भूमि क्षेत्र का 9% हिस्सा जूनोटिक संचरण के उच्च/अत्यधिक जोखिम में है।
• वैश्विक जनसंख्या का 3% अत्यधिक उच्च-जोखिम वाले क्षेत्रों में रहता है।
• जनसंख्या का 20% मध्यम-जोखिम वाले क्षेत्रों में रहता है।
यह विश्लेषण निम्नलिखित स्रोतों पर आधारित है:
· वैश्विक संक्रामक रोग और महामारी विज्ञान नेटवर्क (GIDEON)
· विश्व स्वास्थ्य संगठन की महामारी क्षमता वाले प्राथमिक रोगजनकों की सूची।
भौगोलिक हॉटस्पॉट
यद्यपि यह अध्ययन वैश्विक है, दक्षिण एशिया, उप-सहारा अफ्रीका, लैटिन अमेरिका के कुछ हिस्से और दक्षिण-पूर्व एशिया इन कारणों से उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों के रूप में सामने आए हैं:
• मानव और पशु का ज्यादा संपर्क का होना
• वन्यजीव व्यापार और उपभोग
• वनों की कटाई और आवास अतिक्रमण
• अपर्याप्त निगरानी प्रणालियाँ
उच्च खतरे के मुख्य कारण-
कारण |
विवरण |
आवास क्षति |
वनों की कटाई और शहरी विस्तार से इंसान और जानवरों के बीच संपर्क बढ़ता है। |
जलवायु परिवर्तन |
जानवरों के प्रवास और बीमारियों को फैलाने वाले जीवों के व्यवहार में बदलाव आता है। |
कृषि विस्तार |
इंसान और पशुपालन वन्यजीवों के करीब आ जाते हैं। |
वन्यजीव व्यापार |
प्रजातियों के बीच बीमारियाँ फैलने का खतरा बढ़ता है। |
कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली |
रोगों की पहचान, रिपोर्टिंग और प्रतिक्रिया में देरी होती है। |
भारत और दुनिया के लिए महत्त्व
जन स्वास्थ्य की तैयारी:
- भारत में पहले भी निपाह वायरस, बर्ड फ्लू, और कोविड-19 जैसे झूनोटिक संक्रमण हो चुके हैं।
- यह केवल स्वास्थ्य का नहीं, बल्कि रोजगार, जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा, और आर्थिक स्थिरता का भी प्रश्न है।
वन हेल्थ (One Health) दृष्टिकोण:
- यह मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के आपसी संबंध को स्वीकार करता है।
- इसे WHO, FAO, UNEP जैसी संस्थाएं बढ़ावा दे रही हैं।
- भारत में भी नेशनल वन हेल्थ मिशन की योजना बनाई जा रही है।
प्रभावित सतत विकास लक्ष्य (SDGs):
- SDG 3: सबके लिए अच्छा स्वास्थ्य
- SDG 13: जलवायु परिवर्तन की कार्रवाई
- SDG 15: भूमि पर जीवन की रक्षा
निष्कर्ष:
यह अध्ययन एक गंभीर चेतावनी है, यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो अगली महामारी इन्हीं उच्च-जोखिम क्षेत्रों में जन्म ले सकती है। भारत जैसे देश के लिए, जहाँ जनसंख्या घनी, जैव विविधता समृद्ध और शहरीकरण तेज़ है, यह खतरा और भी बड़ा है इसलिए वन हेल्थ जैसी समेकित नीति अपनाना अब विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता बन गया है।