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Blog / 19 Jun 2025

मगरमच्छ संरक्षण के 50 साल

संदर्भ:
हाल ही में 17 जून को विश्व मगरमच्छ दिवस मनाया गया। वर्ष 2025 में भारत अपने मगरमच्छ संरक्षण कार्यक्रम के 50 वर्ष पूरे कर रहा है। यह राष्ट्रीय प्रयास, जो 1975 में शुरू हुआ था, देश में प्रजातियों के पुनरुद्धार के सबसे सफल उदाहरणों में से एक है। ओडिशा ने इस कार्यक्रम की शुरुआत और इसे बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई है।

पृष्ठभूमि
मगरमच्छ संरक्षण परियोजना 1 अप्रैल 1975 को भारत सरकार और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के सहयोग से शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य भारत की तीन देशज मगरमच्छ प्रजातियों की रक्षा करना था:
घड़ियाल (Gavialis gangeticus)
नमकीन पानी का मगरमच्छ (Crocodylus porosus)
मगर या दलदली मगरमच्छ (Crocodylus palustris)

परियोजना की शुरुआत के समय, इन तीनों प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा था। इनके आवास नष्ट हो रहे थे, शिकार किया जा रहा था, और मानवीय गतिविधियों से बाधाएं उत्पन्न हो रही थीं।

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ओडिशा की भूमिका
ओडिशा भारत के पहले वैज्ञानिक मगरमच्छ संरक्षण कार्य का केंद्र बना। यह देश का एकमात्र राज्य है जहाँ तीनों मगरमच्छ प्रजातियाँ वन्य अवस्था में पाई जाती हैं। प्रत्येक प्रजाति के लिए ओडिशा में विशिष्ट स्थानों की पहचान की गई:
घड़ियाल के लिए टिकरपाड़ा (महानदी नदी)
नमकीन पानी के मगरमच्छ के लिए डंगमाल (भितरकनिका मैंग्रोव)
मगर के लिए रामतीर्थ (मयूरभंज ज़िले की नदी धाराएँ)

1975 में ओडिशा पहला राज्य बना जिसने मगरमच्छों के अंडे को पालने के लिए केंद्र स्थापित किए। इन केंद्रों ने जंगल में रखे गए अंडों को इकट्ठा किया, नियंत्रित परिस्थितियों में उन्हें सेया और बच्चों को तब तक पाला जब तक वे प्राकृतिक आवास में छोड़ने लायक सुरक्षित आकार के न हो गए।
पहली सफल हैचिंग जून 1975 में टिकरपाड़ा और डंगमाल में हुई, परियोजना शुरू होने के केवल दो महीने बाद।

मुख्य उपलब्धियाँ
ओडिशा पहला राज्य था जिसने मगरमच्छ संरक्षण के लिए प्रशिक्षित वन्यजीव जीवविज्ञानी नियुक्त किए।
इसने नंदनकानन चिड़ियाघर और डंगमाल में घड़ियालों के लिए प्रजनन तालाब बनाए।
इसने पाले-पोसे गए घड़ियालों और नमकीन पानी के मगरमच्छों को पहली बार जंगल में छोड़ा।
ओडिशा ने अंतरराष्ट्रीय सहयोगों में भी भाग लिया, जैसे कि जर्मनी की फ्रैंकफर्ट जूलॉजिकल सोसाइटी से एक वयस्क नर घड़ियाल मंगवाना ताकि प्रजनन में सुधार हो सके।

भितरकनिका और सतकोसिया को मगरमच्छों के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया और बाद में इन्हें राष्ट्रीय उद्यान तथा टाइगर रिज़र्व का दर्जा भी दिया गया।

वर्तमान स्थिति
भारत के पास अब दुनिया की लगभग 80% वन्य घड़ियाल आबादी है, जिसकी संख्या लगभग 3,000 आंकी गई है।
वन में नमकीन पानी के मगरमच्छों की संख्या बढ़कर लगभग 2,500 हो गई है, जिनमें सबसे बड़ा समूह ओडिशा के भितरकनिका में है।
मगरमच्छ की संख्या भी अच्छी तरह बढ़ी है, जिनकी वन्य संख्या अब 8,000 से 10,000 के बीच है।

नया घड़ियाल परियोजना
मार्च 2025 में एक नई राष्ट्रीय घड़ियाल संरक्षण परियोजना की घोषणा की गई। इसका उद्देश्य घड़ियालों को गंगा और इसकी सहायक नदियों के साथ-साथ ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी प्रणालियों में उनके पुराने आवासों में फिर से बसाना है। यह परियोजना ओडिशा की महानदी नदी में मौजूदा आबादी को भी मजबूत करने की योजना रखती है।

निष्कर्ष
पिछले 50 वर्षों में भारत के मगरमच्छ संरक्षण प्रयासों ने तीनों प्रजातियों की वन्य आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि की है। ओडिशा की शुरुआती और लगातार की गई संरक्षण, अनुसंधान और आवास सुरक्षा की कोशिशों ने इस सफलता में अहम भूमिका निभाई है। जैसे-जैसे यह कार्यक्रम अपने छठे दशक में प्रवेश कर रहा है, देशभर में मगरमच्छ संरक्षण को विस्तार और मजबूती देने की नई योजनाएँ बनाई जा रही हैं।