संदर्भ:
हाल ही में 47वां आसियान शिखर सम्मेलन 26 से 28 अक्टूबर 2025 तक कुआलालंपुर (मलेशिया) में आयोजित हुआ। इस सम्मेलन का विषय “समावेशिता और सततता” था। इस अवसर पर तिमोर-लेस्ते (पूर्वी तिमोर) को औपचारिक रूप से आसियान का 11वां सदस्य बनाया गया। यह 1990 के दशक के बाद आसियान का पहला विस्तार है।
भारत की भूमिका और प्रमुख योगदान:
भारतीय प्रधानमंत्री ने इस सम्मेलन को भारत से वर्चुअल रूप में संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि भारत और आसियान मिलकर विश्व की लगभग एक-चौथाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं। दोनों क्षेत्र न केवल भौगोलिक रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, बल्कि गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और साझा मूल्यों पर आधारित संबंधों से भी एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े हैं। भारतीय प्रधानमंत्री ने आसियान को भारत की “एक्ट ईस्ट नीति” का प्रमुख स्तंभ बताया।
मुख्य घोषणाएँ और प्रतिबद्धताएँ:
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- भारत ने 2026 को “आसियान-भारत समुद्री सहयोग वर्ष घोषित किया। इसका उद्देश्य समुद्री सहयोग, ब्लू इकोनॉमी, समुद्री सुरक्षा, और परिवहन संपर्क जैसे क्षेत्रों में साझेदारी को बढ़ावा देना है।
- भारत और आसियान ने समुद्री सुरक्षा, व्यापारिक संपर्क, लचीली आपूर्ति श्रृंखला (Resilient Supply Chains), डिजिटल समावेशन और ब्लू इकोनॉमी को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता दोहराई।
- भारत और आसियान ने आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौते (AITIGA) की समीक्षा और सुधार पर सहमति जताई ताकि दोनों क्षेत्रों के बीच आर्थिक क्षमता को बढ़ावा मिल सके।
- भारत ने आसियान की केंद्रीय भूमिका (ASEAN Centrality) और इंडो-पैसिफिक पर आसियान दृष्टिकोण के प्रति अपना समर्थन दोहराया।
- भारत ने 2026 को “आसियान-भारत समुद्री सहयोग वर्ष घोषित किया। इसका उद्देश्य समुद्री सहयोग, ब्लू इकोनॉमी, समुद्री सुरक्षा, और परिवहन संपर्क जैसे क्षेत्रों में साझेदारी को बढ़ावा देना है।
22वां आसियान–भारत शिखर सम्मेलन:
22वां आसियान-भारत शिखर सम्मेलन भी 26 अक्टूबर 2025 को कुआलालंपुर (मलेशिया) में आयोजित हुआ। इस बैठक का विषय सतत और समावेशी सहयोग पर केंद्रित था। इसमें विशेष रूप से समुद्री संपर्क, डिजिटल समावेशन और सांस्कृतिक जुड़ाव पर जोर दिया गया।
आसियान–भारत शिखर सम्मेलनों का इतिहास:
भारत ने 1992 में आसियान के साथ अपने औपचारिक संबंधों की शुरुआत क्षेत्रीय वार्ता साझेदार (Sectoral Dialogue Partner) के रूप में की।
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- 1996 में, भारत को पूर्ण वार्ता साझेदार (Full Dialogue Partner) का दर्जा दिया गया।
- 2002 में, भारत और आसियान के संबंधों को और मजबूत करते हुए उन्हें शिखर सम्मेलन स्तर तक बढ़ाया गया। इसका अर्थ यह है कि अब भारत और आसियान सदस्य देशों के शासनाध्यक्ष या राष्ट्राध्यक्ष नियमित रूप से शिखर सम्मेलनों में मिलते हैं।
- 1996 में, भारत को पूर्ण वार्ता साझेदार (Full Dialogue Partner) का दर्जा दिया गया।
भारत और आसियान के लिए रणनीतिक महत्व:
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- भारत–आसियान संबंधों को मजबूत करना भारत की “एक्ट ईस्ट नीति” और इंडो–पैसिफिक क्षेत्र पर केंद्रित रणनीतिक दृष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- समुद्री सहयोग पर विशेष ध्यान देकर भारत न केवल हिंद महासागर क्षेत्र में बल्कि विस्तृत इंडो–पैसिफिक क्षेत्र में भी अपनी भूमिका को मजबूत कर रहा है, जिससे क्षेत्रीय संपर्क, व्यापारिक मार्गों की सुरक्षा और सामरिक स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा।
- एआईटीआईजीए समझौते (ASEAN-India Trade in Goods Agreement) के सुधार और उन्नयन, साथ ही डिजिटल, हरित और उन्नत प्रौद्योगिकी क्षेत्रों पर फोकस, भारत की आर्थिक प्रगति और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को गति देने के अनुरूप है।
- इसके साथ ही, आसियान भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में से एक है, वित्तीय वर्ष 2023–24 में दोनों के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 122.67 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचा, जो इन संबंधों की गहराई और आर्थिक संभावनाओं को दर्शाता है।
- भारत–आसियान संबंधों को मजबूत करना भारत की “एक्ट ईस्ट नीति” और इंडो–पैसिफिक क्षेत्र पर केंद्रित रणनीतिक दृष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
निष्कर्ष:
हाल ही में आयोजित 47वां आसियान शिखर सम्मेलन और 22वां आसियान–भारत शिखर सम्मेलन ने भारत–आसियान साझेदारी को एक नए आयाम पर पहुंचा दिया है। यह आयोजन न केवल लंबे समय से चले आ रहे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ करता है, बल्कि समुद्री सहयोग, डिजिटल कनेक्टिविटी और सतत विकास के एक नए युग की शुरुआत भी करता है। भारत और आसियान मिलकर जनसंख्या, अर्थव्यवस्था और क्षेत्रीय प्रभाव के आधार पर विश्व के सबसे बड़े साझेदार समूहों में से एक हैं। इसलिए, बदलते वैश्विक परिदृश्य में उनकी साझेदारी का रणनीतिक महत्व और भी बढ़ गया है, जो आने वाले समय में एशिया और इंडो–पैसिफिक क्षेत्र की स्थिरता और समृद्धि को नई दिशा देगा।
