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Blog / 08 May 2025

जम्मू और कश्मीर में 4 जलविद्युत परियोजनाएँ

संदर्भ:

हाल ही में भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में चार प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण कार्य में तेज़ी लाने का निर्णय लिया है। यह निर्णय पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव के कारण लिया गया है। 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए एक भीषण आतंकी हमले में 26 पर्यटकों की दुखद मृत्यु के पश्चात भारत ने सिंधु जल संधि को अस्थायी रूप से निलंबित करने की घोषणा की थी। इसके तुरंत बाद केंद्र सरकार ने इन परियोजनाओं को शीघ्र पूरा करने की दिशा में कार्यवाही शुरू की है।

परियोजनाओं का संक्षिप्त विवरण:

इन चारों जलविद्युत परियोजनाओं के तहत पकल दुल (1,000 मेगावाट), रतले (850 मेगावाट), किरू (624 मेगावाट) और क्वार (540 मेगावाट)का निर्माण चिनाब नदी तथा इसकी सहायक नदियों पर किया जा रहा है। इनका क्रियान्वयन भारत सरकार के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एनएचपीसी लिमिटेड तथा इसकी संयुक्त उद्यम (ज्वाइंट वेंचर) कंपनियों द्वारा किया जा रहा है।

मुख्य विशेषताएँ:

  • पकल दुल: इसमें 109 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) की जल भंडारण क्षमता होगी। यह जम्मू और कश्मीर की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना होगी और इन चारों में एकमात्र जल भंडारण आधारित परियोजना है।
  • रतले: यह एक रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना है, जिसमें 24 एमसीएम जल संग्रहित किया जा सकेगा।
  • किरू: इसकी भंडारण क्षमता 10.5 एमसीएम होगी।
  • क्वार: इसमें 9.2 एमसीएम पानी संग्रहित किया जा सकेगा।

निर्माण की समयसीमा:

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) के अनुसार:

  • पकल दुल और किरू परियोजनाएँ सितंबर 2026 तक पूरी होने की संभावना है।
  • क्वार परियोजना दिसंबर 2027 तक पूरी होने की उम्मीद है।
  • रतले परियोजना नवंबर 2028 तक पूरी होने की उम्मीद है।

रणनीतिक महत्व:

इन जलविद्युत परियोजनाओं के त्वरित निर्माण का निर्णय केवल बुनियादी ढाँचे के विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण रणनीतिक पहल भी है। चिनाब नदी (जो सिंधु नदी प्रणाली का अभिन्न अंग है) भारत से होकर पाकिस्तान की ओर बहती है। 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई सिंधु जल संधि के अंतर्गत भारत को चिनाब नदी के जल का सीमित उपयोग करने की अनुमति प्राप्त है। यद्यपि संधि के तहत कुछ शर्तों के साथ रन-ऑफ-द-रिवरप्रकार की जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण भारत को अनुमत है।

आर्थिक और क्षेत्रीय प्रभाव:

इन परियोजनाओं से केवल रणनीतिक नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक विकास के भी कई लाभ उम्मीद है:

जम्मू-कश्मीर में बिजली उत्पादन क्षमता में भारी बढ़ोतरी हो सकती है।

निर्माण और संचालन के दौरान बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर मिलेंगे।

किश्तवाड़ और आसपास के क्षेत्रों की स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।

जम्मू-कश्मीर की बिजली व्यवस्था सशक्त होगी और बाहरी बिजली पर निर्भरता कम होगी।

सिंधु जल संधि (IWT) के बारे में:

सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता से संपन्न एक ऐतिहासिक जल समझौता है, जिसका उद्देश्य सिंधु नदी प्रणाली के जल का न्यायपूर्ण बँटवारा सुनिश्चित करना है।

इस संधि के अनुसार:

  • पूर्वी नदियाँ: रावी, ब्यास और सतलुज का संपूर्ण जल उपयोग भारत को अधिकारपूर्वक प्राप्त है।
  • पश्चिमी नदियाँ: सिंधु, झेलम और चिनाब का प्राथमिक उपयोग पाकिस्तान को प्रदान किया गया है, किंतु भारत को सीमित उपयोग की अनुमति दी गई है।

भारत को पश्चिमी नदियों से निम्नलिखित कार्यों की अनुमति है:

  • घरेलू उपयोग
  • गैर-उपभोज्य उपयोग (जैसे नौवहन, बाढ़ नियंत्रण, मछली पालन)
  • कृषि उपयोग
  • जलविद्युत उत्पादन, बशर्ते वह नदी के प्रवाह को महत्वपूर्ण रूप से न बदले।

जल विवाद सुलझाने की प्रक्रिया:

सिंधु जल संधि में जल संबंधी विवादों के निपटारे हेतु तीन स्तरीय समाधान प्रणाली का प्रावधान किया गया है:

  1. स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission - PIC): यह आयोग भारत और पाकिस्तान के बीच नियमित संवाद के माध्यम से प्रारंभिक स्तर पर विवादों के समाधान का प्रयास करता है।
  2. तटस्थ विशेषज्ञ (Neutral Expert): यदि कोई तकनीकी विवाद स्थायी सिंधु आयोग के स्तर पर सुलझ नहीं पाता, तो दोनों देशों की सहमति से अथवा विश्व बैंक की मध्यस्थता से एक तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त किया जाता है।
  3. आर्बिट्रेशन न्यायालय (Court of Arbitration): यदि विवाद का समाधान पूर्ववर्ती दोनों स्तरों पर संभव न हो, तो एक सात सदस्यीय न्यायाधिकरण गठित किया जाता है, जो संबंधित कानूनी विवादों का अंतिम और बाध्यकारी समाधान प्रदान करता है।

निष्कर्ष:

केंद्र सरकार द्वारा इन चार जलविद्युत परियोजनाओं के त्वरित निर्माण का निर्णय न केवल भारत की जल एवं ऊर्जा नीति में एक रणनीतिक मोड़ को दर्शाता है, बल्कि यह सिंधु जल संधि के अंतर्गत भारत के वैध अधिकारों के अधिक assertive (साहसिक एवं प्रभावशाली) प्रयोग की दिशा में भी एक स्पष्ट संकेत है। ये परियोजनाएँ न केवल रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, बल्कि यह जम्मू और कश्मीर के उस क्षेत्र में आर्थिक विकास, बुनियादी ढाँचे के सशक्तिकरण तथा रोजगार सृजन के माध्यम से समग्र प्रगति को भी गति प्रदान करेंगी, जो लंबे समय से विकास की मुख्यधारा से वंचित रहा है।