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Blog / 10 Dec 2025

पारंपरिक चिकित्सा पर दूसरा डब्लूएचओ  ग्लोबल समिट

संदर्भ:

हाल ही में भारत 17-19 दिसंबर 2025 को भारत मंडपम, नई दिल्ली में पारंपरिक चिकित्सा पर दूसरे विश्‍व स्वास्थ्‍य संगठन (WHO) ग्लोबल समिट की मेज़बानी करने की तैयारी कर रहा है। यह समिट वैज्ञानिक सत्यापन, नीतिगत सहयोग और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी के माध्यम से विश्व स्तर पर पारंपरिक, पूरक और एकीकृत चिकित्सा (TCIM) को बढ़ावा देने में भारत के नेतृत्व को रेखांकित करता है।

समिट के विषय में:

    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा आयोजित यह उच्च-स्तरीय वैश्विक स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन वैज्ञानिक सत्यापन और नीतिगत सहयोग के माध्यम से पारंपरिक चिकित्सा को आधुनिक स्वास्थ्य प्रणालियों में प्रभावी रूप से एकीकृत करने का उद्देश्य रखता है। इसे WHO और भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जा रहा है तथा जामनगर स्थित WHO ग्लोबल ट्रेडिशनल मेडिसिन सेंटर (GTMC) जोकि भारत के सहयोग से स्थापित किया गया है, का समर्थन प्राप्त है। 2025 की थीम संतुलन बहाल करना: स्वास्थ्य और कल्याण का विज्ञान और अभ्यास पारंपरिक चिकित्सा की समग्र (होलिस्टिक) अवधारणा को रेखांकित करती है।

पारंपरिक चिकित्सा के बारे में:

परिभाषा:

WHO के अनुसार, पारंपरिक चिकित्सा है:

"विभिन्न संस्कृतियों के स्वदेशी सिद्धांतों, विश्वासों और अनुभवों पर आधारित ज्ञान, कौशल और प्रथाओं का कुल योग जिसका उपयोग स्वास्थ्य बनाए रखने के साथ-साथ शारीरिक और मानसिक बीमारी की रोकथाम, निदान, सुधार या उपचार में किया जाता है।"

समग्र दृष्टिकोण:

यह दृष्टिकोण मन, शरीर और पर्यावरण के संतुलन पर आधारित है, जो व्यक्ति-केंद्रित स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देता है। पारंपरिक चिकित्सा की प्रमुख प्रणालियों में भारत की आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी, चीन की पारंपरिक चीनी चिकित्सा (TCM) तथा जापान की काम्पो चिकित्सा शामिल हैं।

आधुनिक चिकित्सा और दवा खोज में पारंपरिक प्रणाली का महत्त्वछ
पारंपरिक चिकित्सा आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और दवा-विकास के लिए एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करती है। आज उपयोग में आने वाली लगभग 40% आधुनिक दवाएँ पारंपरिक ज्ञान से प्रेरित प्राकृतिक उत्पादों पर आधारित हैं। कई वैश्विक स्तर पर प्रभावी दवाओं की खोज भी प्राचीन उपचार परंपराओं से ही हुई हैजैसे विलो की छाल से प्राप्त एस्पिरिन, चीनी पारंपरिक चिकित्सा ग्रंथों से विकसित मलेरिया-रोधी दवा आर्टेमिसिनिन, और विविध औषधीय पौधों से तैयार किए गए कई कैंसर-रोधी उपचार

चुनौतियाँ और विनियमन:

सुरक्षा और प्रभावकारिता:

o आधुनिक मानकों के अनुसार कई पारंपरिक उपचारों के लिए सीमित व्यवस्थित प्रमाण।

मानकीकरण:

o प्रथाओं और उत्पाद की गुणवत्ता में भिन्नता संदूषण जैसे जोखिम पैदा करती है।

विनियमन:

o कुछ देशों में हर्बल दवाओं को विनियमित किया जाता है, लेकिन चिकित्सकों और प्रथाओं में अक्सर लगातार निगरानी की कमी होती है।

जैव विविधता संबंधी चिंताएँ:

o कुछ प्रथाओं में जानवरों के अंगों का उपयोग अवैध वन्यजीव व्यापार और प्रजातियों के लुप्तप्राय होने में योगदान देता है।

हाल के घटनाक्रम:

    • WHO रणनीति (2025–2034): यह रणनीति साक्ष्य-आधारित शोध, नवाचार और राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों में TCIM के सुरक्षित तथा प्रभावी एकीकरण पर केंद्रित है।
    • WHO ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन (GCTM), जामनगर: पारंपरिक चिकित्सा में शोध, ज्ञान-विकास और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए इसे 2022 में स्थापित किया गया।
    • भारत सरकार की पहल: राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाओं में आयुष प्रणालियों का एकीकरण किया जा रहा है, साथ ही पारंपरिक चिकित्सा के लिए समर्पित अनुसंधान, शिक्षा और मजबूत फार्माकोविजिलेंस प्रणाली विकसित की जा रही है।

शिखर सम्मेलन का महत्व:

    • भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ावा:
      योग की वैश्विक सफलता और आयुर्वेद की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता के आधार पर यह पहल भारत को पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में एक सशक्त वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करती है।
    • WHO–भारत सहयोग का सुदृढ़ीकरण:
      यह प्रयास जामनगर स्थित WHO–GTMC की भूमिका को और मजबूत करता है, जो भारत की पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों के प्रति वैश्विक समुदाय में बढ़ते विश्वास को दर्शाता है।
    • स्वास्थ्य प्रणाली इंटीग्रेशन को प्रोत्साहन:
      यह देशों को पारंपरिक चिकित्सा को सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं और सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में प्रभावी रूप से शामिल करने में सहायता प्रदान करता है।

निष्कर्ष:

पारंपरिक चिकित्सा पर दूसरा डब्लूएचओ ग्लोबल शिखर सम्मेलन भारत के लिए एक ऐतिहासिक घटना है, जो पारंपरिक चिकित्सा की वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और नीतिगत क्षमता को उजागर करता है। यह भारत के वैश्विक स्वास्थ्य नेतृत्व को मजबूत करता है, स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देता है, और दुनिया भर में एकीकृत स्वास्थ्य सेवा मॉडल के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।