संदर्भ-
सह्याद्रि की खूबसूरत पहाड़ियों में जब "ऑल्ड लैंग साइन" की धुन गूंज रही थी, तब नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) का 148वाँ कोर्स अपने तीन साल के कठिन सैन्य और शैक्षणिक प्रशिक्षण की यात्रा पूरी कर रहा था। हाल ही में 336 कैडेट्स ने सफलतापूर्वक राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) से पास आउट किया, जिनमें 17 महिला कैडेट्स शामिल थीं। खे़त्रपाल ग्राउंड पर आयोजित यह पासिंग आउट परेड (POP) केवल एक वार्षिक परंपरा नहीं थी, यह ऐतिहासिक थी क्योंकि पहली बार महिला कैडेट्स ने इस परेड में हिस्सा लिया और सफलतापूर्वक NDA से पास आउट हुईं। यह भारत की शीर्ष सैन्य प्रशिक्षण संस्था में लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
यह परेड केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं थी, बल्कि एक संस्थागत बदलाव का प्रतीक थी। महिला कैडेट्स का कठिन प्रशिक्षण में सफलतापूर्वक शामिल होना भविष्य के लिए एक उदाहरण बनेगा और यह NDA को भारतीय सशस्त्र बलों में समावेशी नेतृत्व और संयुक्त प्रशिक्षण का केंद्र बनाता है।
भारतीय सेना में महिलाएँ: बराबरी की ओर एक लंबा सफर
महिलाओं की भारतीय सेना में शुरुआत ब्रिटिश काल के दौरान प्रथम विश्व युद्ध के समय हुई, जब पुरुष डॉक्टरों की कमी के कारण महिलाओं को नर्स के रूप में शामिल किया गया।
- बाद में "वीमेन ऑक्ज़ीलियरी कॉर्प्स" नामक संस्था बनी, जिसमें महिलाएं प्रशासन, लेखा और संचार जैसे गैर-युद्ध क्षेत्रों में कार्य करने लगीं।
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज ने “रानी झाँसी रेजीमेंट” का गठन किया, जिसमें महिलाओं ने बर्मा में जापानी सेना के साथ मिलकर युद्ध में भाग लिया।
स्वतंत्रता के बाद:
1950 के सेना अधिनियम की धारा 12 के तहत महिलाओं को सेना में शामिल होने से रोका गया था, जब तक कि सरकार विशेष आदेश जारी न करे।
- 1958 में महिलाओं को भारतीय सेना की मेडिकल कोर में नियमित कमीशन दिया गया।
- 1992 में सरकार ने महिलाओं को पोस्टल सर्विस, जज एडवोकेट जनरल (JAG), आर्मी एजुकेशन कोर (AEC), ऑर्डनेंस कोर जैसे विभागों में कमीशन प्राप्त करने की अनुमति दी।
- शुरुआत में महिलाएं "वीमेन स्पेशल एंट्री स्कीम (WSES)" के तहत छोटी अवधि की नौकरी करती थीं। 2005 में इसे बदलकर "शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC)" किया गया, जिसकी अवधि 14 साल की थी।
कानूनी लड़ाई:
2003 में एडवोकेट बबीता पुनिया ने दिल्ली हाई कोर्ट में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन (Permanent Commission) देने के लिए याचिका दायर की।
- 2006 में अन्य महिला अधिकारियों ने भी इस मामले में साथ दिया।
- 2010 में हाई कोर्ट ने महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन रक्षा मंत्रालय ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी और कार्यवाही को लगभग एक दशक तक टाल दिया।
- 17 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को सभी गैर-युद्ध भूमिकाओं में स्थायी कमीशन देने के अधिकार को मान्यता दी और यह कहा कि शारीरिक क्षमता या पारिवारिक जिम्मेदारियों के आधार पर महिलाओं को रोकना असंवैधानिक है।
फैसले में ऐसी महिला अधिकारियों का उल्लेख किया गया जिन्होंने देश का गौरव बढ़ाया—जैसे कि कर्नल सोफिया कुरैशी, जिन्होंने "एक्सरसाइज फोर्स 18" में भारतीय सेना की टीम का नेतृत्व किया और 2006 में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में भी सेवा दी।
महिला पायलटों और अन्य महिला सैनिकों ने भी पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ भारत की सैन्य कार्रवाई (ऑपरेशन सिंदूर) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मार्च 2023 तक सरकार के आंकड़ों के अनुसार:
- भारतीय सेना में 7,000 से अधिक महिलाएँ
- वायुसेना में 1,636 महिलाएँ
- नौसेना में 748 महिलाएँ कार्यरत हैं।
यह सब दर्शाता है कि भारतीय सेना में महिलाएं न केवल प्रवेश कर रही हैं, बल्कि नेतृत्व की नई मिसाल भी कायम कर रही हैं।
हाल की प्रगति और न्यायिक हस्तक्षेप
जनवरी 2023 में, एक विशेष चयन बोर्ड ने 1992 से 2006 बैच की 108 महिला अधिकारियों के प्रमोशन की समीक्षा की और उन्हें कर्नल रैंक तथा कमांड पदों पर नियुक्त करने के लिए मंजूरी दी, जिससे लंबित मामलों को सुलझाया गया।
• NDA के माध्यम से महिला अधिकारियों की सीधी भर्ती और मिलिट्री पुलिस व असम राइफल्स जैसी विशिष्ट इकाइयों में महिलाओं की नियुक्ति सीमित स्तर पर शुरू हो गई है।
• महिलाएं अब आर्टिलरी यूनिट्स में भी शामिल हो रही हैं और उन्होंने डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कोर्स (DSSC) और डिफेंस सर्विसेज टेक्निकल स्टाफ कोर्स (DSTSC) जैसे प्रतिष्ठित कोर्स भी पूरे किए हैं। एक महिला अधिकारी अब सियाचिन ग्लेशियर जैसी अत्यंत कठिन परिस्थितियों में सेवा दे रही हैं।
• हालांकि, महिलाएं अभी भी कुछ मुख्य युद्ध इकाइयों जैसे कि आर्मर्ड कोर, इन्फैंट्री/मेकनाइज्ड इन्फैंट्री और स्पेशल फोर्सेज में प्रवेश से वंचित हैं। इन शाखाओं में भर्ती भी योग्यता आधारित प्रतिस्पर्धा की बजाय रिक्तियों के आधार पर होती है।
सुप्रीम कोर्ट और महिलाओं के लिए स्थायी कमीशन
9 दिसंबर 2024 को, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए एक महिला अधिकारी को स्थायी कमीशन प्रदान किया, जिन्हें उत्कृष्ट सेवा रिकॉर्ड के बावजूद अनुचित रूप से वंचित किया गया था। यह फैसला प्रणालीगत भेदभाव को दूर करता है और सैन्य सेवा में योग्यता के सिद्धांत को मजबूत करता है।
• अनुच्छेद 142 का उपयोग: न्यायालय को “पूर्ण न्याय” सुनिश्चित करने के लिए आदेश पारित करने का अधिकार प्रदान करता है।
• स्थायी कमीशन: महिला अधिकारियों को सीमित अवधि की सेवा (SSC) के बजाय सेवानिवृत्ति तक सेवा करने की अनुमति देता है।
• सेवा की मान्यता: अधिकारी के विशिष्ट योगदान को न्यायसंगत व्यवहार का आधार माना गया।
• न्यायिक बल: सैनिकों के निःस्वार्थ साहस को मान्यता दी गई और सेवा की योग्यता को लैंगिक भेदभाव से ऊपर रखा गया।
सशस्त्र बलों में महिलाओं का महत्व
1. सामाजिक समावेश: सेना में महिलाओं की उपस्थिति विभिन्न समूहों के बीच बेहतर समझ और संवाद को बढ़ावा देती है। यह स्थानीय जनसंख्या के साथ बेहतर संबंध बनाने में मदद करता है, जिससे विश्वास और सहयोग मजबूत होता है।
2. विचारों की विविधता: महिलाएं नई सोच और समस्या सुलझाने के अलग दृष्टिकोण लाती हैं, जिससे रचनात्मकता और नवाचार बढ़ता है। यह निर्णय-निर्माण को बेहतर बनाता है और अभियानों की सफलता में योगदान देता है।
3. संचालन क्षमता: आधुनिक युद्ध में तकनीक, संचार और खुफिया जानकारी की भूमिका बढ़ गई है। महिलाएं इन क्षेत्रों में मजबूत कौशल दिखाती हैं, जिससे सशस्त्र बलों की कार्यक्षमता बढ़ती है। उनकी विशेषज्ञता साइबर ऑपरेशन, सूचना संग्रहण और संचार में सैन्य लक्ष्यों को समर्थन देती है।
4. भर्ती के अवसर: महिलाओं को शामिल करने से भर्ती का दायरा बढ़ता है, जिससे योग्य उम्मीदवारों का बड़ा समूह सेना में शामिल हो सकता है। यह विविधता तकनीकी क्षेत्रों में विशेषज्ञ कर्मियों की बढ़ती मांग को पूरा करने में मदद करती है।
सशस्त्र बलों में महिलाओं के समक्ष चुनौतियाँ
• रूढ़िवादी सोच और पूर्वाग्रह: सांस्कृतिक धारणाएं अक्सर महिलाओं की क्षमता और युद्ध या नेतृत्व भूमिकाओं में उनकी भूमिका पर सवाल उठाती हैं, जिससे उनके अवसर सीमित होते हैं।
• सीमित मान्यता: कई महिला अधिकारियों को अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में बराबर सम्मान और पहचान नहीं मिलती, जिससे मनोबल और करियर में प्रगति प्रभावित होती है।
• उत्पीड़न का खतरा: महिलाओं को यौन उत्पीड़न जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और बेहतर सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होती है।
• जैविक सीमाएँ: गर्भावस्था और मातृत्व के दौरान महिलाओं को सैन्य माहौल में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि पर्याप्त सहयोगी तंत्र और सुविधाजनक नीतियाँ उपलब्ध नहीं होतीं।
• पर्याप्त नियमन की कमी: मौजूदा सैन्य नियम महिलाओं की विशेष आवश्यकताओं और चिंताओं को पूरी तरह से संबोधित नहीं करते, जिससे नीति और व्यवहार में अंतर आ जाता है।
निष्कर्ष
सशस्त्र बलों में लैंगिक समानता की दिशा में भारत की यात्रा धीमी लेकिन स्थिर है। नेतृत्वकारी भूमिकाओं में महिलाओं की बढ़ती संख्या भावी पीढ़ियों के लिए उदाहरण स्थापित करती है, जिसमें प्रदर्शन और स्वीकृति एक फीडबैक लूप में एक दूसरे से जुड़े होते हैं।
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