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Daily-current-affairs / 28 May 2025

शहरी भारत में अधिक पोषण (ओवरन्यूट्रिशन): एक बढ़ती हुई सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता

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सन्दर्भ:
भारत तीव्र शहरीकरण और आर्थिक विकास के दौर से गुजर रहा है
, जिससे जीवनशैली और खानपान की आदतों में गहरा बदलाव आया है। जहां एक ओर देश के कई क्षेत्रों में कुपोषण (अल्पपोषण) की समस्या बनी हुई है, वहीं दूसरी ओर एक समानांतर लेकिन अक्सर अनदेखी की जाने वाली चुनौती है अधिक पोषण (ओवरन्यूट्रिशन), जो अत्यधिक कैलोरी और अस्वास्थ्यकर पोषक तत्वों के सेवन से होने वाला कुपोषण का एक रूप है। शहरी भारत में ओवरन्यूट्रिशन गैर-संचारी रोगों (NCDs) का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य, आर्थिक उत्पादकता और सामाजिक कल्याण के लिए खतरा है।

ओवरन्यूट्रिशन को समझना:
ओवरन्यूट्रिशन वह स्थिति है जब शरीर की ऊर्जा आवश्यकता से अधिक कैलोरी का लगातार सेवन किया जाता है। पारंपरिक कुपोषण जहां पोषक तत्वों की कमी से जुड़ा होता है, वहीं ओवरन्यूट्रिशन में असंतुलन होता है, जहां अतिरिक्त कैलोरी (अक्सर अस्वास्थ्यकर स्रोतों से) अधिक वजन, मोटापा और संबंधित चयापचय संबंधी विकारों को जन्म देती है। यह स्थिति सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के साथ भी हो सकती है, जिससे दोहरा कुपोषण (Double Burden of Malnutrition) पैदा होता है।

ओवरन्यूट्रिशन के प्रमुख लक्षण:

·         शरीर में विशेष रूप से पेट के आसपास वसा (फैट) की अधिकता

·         टाइप-2 डायबिटीज, हृदय रोग, और कुछ कैंसर जैसे दीर्घकालिक रोगों का बढ़ा हुआ खतरा

·         उच्च कैलोरी सेवन के बावजूद सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी, जैसे एनीमिया और विटामिन D की कमी

शहरी भारत में ओवरन्यूट्रिशन का आंकड़ा:

·         राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5, 2019-21) के अनुसार, लगभग 33% शहरी महिलाएं और 29% शहरी पुरुष अधिक वजन या मोटापे (BMI ≥ 25) से ग्रसित हैं, जो NFHS-3 (2005-06) के 20% से काफी अधिक है।

·         ICMR-INDIAB अध्ययन (2021) के अनुसार, दिल्ली, केरल और तमिलनाडु जैसे शहरी क्षेत्रों में मोटापे की दर 40% से अधिक है। शहरी डायबिटीज की दर 12-14% है, जो ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में दोगुनी है।

·         WHO ग्लोबल ओबेसिटी ऑब्ज़र्वेटरी (2023) ने चेतावनी दी है कि भारतीय शहरों में बचपन में मोटापा तेजी से बढ़ रहा है, जो भविष्य में स्वास्थ्य प्रणाली पर बोझ डाल सकता है।

·         तमिलनाडु की STEPS सर्वे (2021) में पाया गया कि चेन्नई की 60% वयस्क आबादी अधिक वजन या मोटापे से ग्रसित है, जिनमें से 41% को उच्च रक्तचाप और 22% को डायबिटीज है, जो दर्शाता है कि ओवरन्यूट्रिशन और NCDs आपस में कितने गहराई से जुड़े हैं।

शहरी क्षेत्रों में ओवरन्यूट्रिशन के कारण
शहरी भारत में ओवरन्यूट्रिशन की बढ़ती समस्या खानपान, जीवनशैली, सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय कारणों के जटिल मेल से उत्पन्न होती है।

खानपान में बदलाव (Dietary Transition):
शहरी आबादी का पारंपरिक साबुत अनाज, फल और सब्ज़ियों पर आधारित आहार से बदलाव हुआ है, और अब यह आहार निम्नलिखित पर केंद्रित हो गया है:

·         अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड, जिनमें परिष्कृत चीनी, संतृप्त वसा और नमक की मात्रा अधिक होती है

·         फास्ट फूड, मीठे पेय और स्नैक्स का बार-बार सेवन

·         बढ़ा हुआ भोजन का हिस्सा और बार-बार खाने की आदतें, जो मार्केटिंग और उपलब्धता से प्रभावित हैं
यह बदलाव फूड डिलीवरी सेवाओं, विज्ञापन अभियानों और शहरों में सुविधाजनक जीवनशैली की संस्कृति से और भी बढ़ गया है।

बैठे रहने की जीवनशैली:
शहरी वातावरण अक्सर शारीरिक निष्क्रियता को बढ़ावा देता है:

·         लंबे समय तक बैठने वाली ऑफिस की नौकरियां

·         कंप्यूटर, स्मार्टफोन और मनोरंजन उपकरणों के कारण स्क्रीन टाइम में वृद्धि

·         व्यायाम, सुरक्षित पैदल पथ और पार्कों की अनुपलब्धता

·         मोटर वाहन पर निर्भरता के कारण शारीरिक गतिविधि में कमी

सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक कारण:

·         शहरी लोगों के पास भोजन पर खर्च करने के लिए अधिक आय होती है, लेकिन अक्सर वे स्वस्थ विकल्पों के बारे में जागरूक नहीं होते।

·         अक्सर यह सांस्कृतिक धारणा होती है कि मोटापा समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है।

·         पोषण संबंधी शिक्षा की कमी के कारण शहरी लोग ओवरन्यूट्रिशन के स्वास्थ्य खतरों से अनजान रहते हैं।

विपणन और पहुंच:

·         अस्वास्थ्यकर खाद्य उत्पादों का आक्रामक प्रचार, विशेषकर बच्चों और युवाओं को लक्षित कर, बड़ा योगदान देता है।

·         शहरी बाजारों में कैलोरी से भरपूर लेकिन सस्ते खाद्य पदार्थों की भरमार है, जबकि ताजे और पोषक आहार महंगे होते हैं।

शहरी क्षेत्रों में कमजोर आबादी-

  • बच्चे और किशोर: जंक फूड के विज्ञापन, स्क्रीन टाइम में बढ़ोतरी और शारीरिक गतिविधियों की कमी के कारण कम उम्र में मोटापा बढ़ रहा है।
  • कामकाजी लोग: लंबे समय तक बैठने वाले काम, तनाव, अनियमित भोजन और प्रोसेस्ड फूड पर निर्भरता से मोटापे का खतरा बढ़ता है।
  • महिलाएं: प्रसव के बाद वजन बढ़ना, हार्मोनल बदलाव और शारीरिक गतिविधि की कमी समस्या को और बढ़ाते हैं।
  • वृद्ध लोग: गतिशीलता में कमी और एक जैसा खानपान उन्हें अधिक कमजोर बनाता है।
  • शहरी गरीब: सीमित आय के बावजूद सस्ते और कैलोरी से भरपूर भोजन पर निर्भरता तथा पोषण शिक्षा की कमी से विडंबनात्मक रूप से मोटापा और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी दोनों होते हैं।

स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभाव-
स्वास्थ्य संबंधी जोखिम:

  • हृदय रोग, स्ट्रोक, टाइप-2 डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और कुछ प्रकार के कैंसर का बढ़ता खतरा।
  • नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लीवर डिजीज (NAFLD), नींद में रुकावट (स्लीप एपनिया) और ऑस्टियोआर्थराइटिस जैसी समस्याओं में वृद्धि।
  • मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं जैसे डिप्रेशन, चिंता और कम आत्मसम्मान, जो शरीर की बनावट को लेकर होती हैं।

आर्थिक बोझ:

  • मोटापे से जुड़ी बीमारियों के इलाज में स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि, जिससे व्यक्ति और सरकार दोनों पर आर्थिक दबाव बढ़ता है।
  • बीमारी के कारण उत्पादकता में कमी, अधिक छुट्टियां, विकलांगता और समय से पहले मृत्यु।
  • शहरी स्वास्थ्य व्यवस्था, बीमा प्रणाली और सामाजिक कल्याण योजनाओं पर बढ़ता दबाव।

सरकारी हस्तक्षेप और उनकी सीमाएं (Government Interventions and Their Limitations)

  • पोषण अभियान (POSHAN Abhiyaan): समग्र रूप से कुपोषण को संबोधित करता है, लेकिन वयस्क मोटापे और शहरी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों पर सीमित ध्यान देता है।
  • ईट राइट इंडिया (Eat Right India – FSSAI): स्वस्थ भोजन को बढ़ावा देता है, जैसे फूड लेबलिंग और ट्रांस फैट में कमी, लेकिन कार्यान्वयन में कठिनाइयाँ हैं।
  • आयुष्मान भारत के तहत स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम: पोषण शिक्षा को शामिल करता है, लेकिन इसे सभी शहरी स्कूलों में लागू करने की आवश्यकता है।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017: गैर-संचारी रोगों के बढ़ते बोझ को स्वीकार करती है, लेकिन शहरी ओवरन्यूट्रिशन पर विशेष रणनीति का अभाव है।

प्रमुख चुनौतियाँ:

  • वयस्कों के लिए पोषण शिक्षा और जनजागरूकता अभियान की कमी।
  • स्कूलों के पास जंक फूड विज्ञापन पर कमजोर नियंत्रण।
  • शहरी जीवनशैली और शारीरिक गतिविधियों को लेकर खास कार्यक्रमों की कमी।
  • शहरी गरीब आबादी पोषण योजनाओं में उपेक्षित रहती है।

शहरी ओवरन्यूट्रिशन से निपटने की रणनीतियाँ (Strategies to Address Urban Overnutrition)

1. जनजागरूकता और शिक्षा:

  • बड़े पैमाने पर अभियान चलाकर पोषण साक्षरता और स्वस्थ खानपान की आदतों को बढ़ावा देना।
  • मास मीडिया और सामुदायिक कार्यक्रमों के माध्यम से संतुलित भोजन और सीमित मात्रा में खाने को बढ़ावा देना।
  • स्कूल पाठ्यक्रम और कार्यस्थल स्वास्थ्य कार्यक्रमों में पोषण शिक्षा को शामिल करना।

2. शहरी योजना और बुनियादी ढांचा:

  • पैदल चलने योग्य रास्ते, पार्क और खेलकूद के स्थानों का विकास।
  • शहरी बाजारों के माध्यम से ताजे और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थों को सुलभ और किफायती बनाना।
  • स्कूलों और रिहायशी क्षेत्रों के पास फास्ट फूड दुकानों की संख्या सीमित करना।

3. नियामक और वित्तीय उपाय:

  • मीठे पेय और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों पर कर लगाना।
  • फलों, सब्जियों और पारंपरिक स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थों पर सब्सिडी देना।
  • अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के विज्ञापन, विशेषकर बच्चों के लिए, पर कड़े नियम लागू करना।
  • पैकेज्ड और रेस्तरां के भोजन पर स्पष्ट पोषण लेबल अनिवार्य करना।

4. स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करना:

  • शहरी स्वास्थ्य केंद्रों में मोटापे की नियमित जांच शुरू करना।
  • आहार, व्यायाम और वजन प्रबंधन के लिए परामर्श सेवाएं प्रदान करना।
  • हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स को जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के प्रबंधन में प्रशिक्षित करना।

5. अनुसंधान और निगरानी:

  • शहरी पोषण निगरानी प्रणाली स्थापित करना ताकि प्रवृत्तियों और जोखिमों की जानकारी मिल सके।
  • शहरी खानपान व्यवहार और शारीरिक गतिविधि के पैटर्न पर अध्ययन करना।
  • नीति और कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना ताकि भविष्य की योजनाओं का मार्गदर्शन हो सके।

निष्कर्ष-
शहरी भारत में ओवरन्यूट्रिशन एक चुपचाप बढ़ती हुई लेकिन गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बनता जा रहा है। जहां अभी भी अल्पपोषण पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है, वहीं मोटापा और अधिक वजन की बढ़ती समस्या को नजरअंदाज करना स्वास्थ्य तंत्र पर गंभीर दबाव डाल सकता है।
इस चुनौती से निपटने के लिए तत्काल और लगातार कार्रवाई की आवश्यकता है, जिसमें जनजागरूकता, सख्त नियम, बेहतर शहरी योजना और मजबूत स्वास्थ्य सेवाएं शामिल हों।
भारत को पोषण की हर रूप में पहचान करते हुए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा, जो ओवरन्यूट्रिशन और अल्पपोषण दोनों की रोकथाम और प्रबंधन को प्राथमिकता दे। केवल सरकार, समाज और समुदायों के समन्वित प्रयासों से ही भारत शहरी आबादी को स्वस्थ बना सकता है और आने वाले दशकों में सतत विकास सुनिश्चित कर सकता है।

प्रश्न: शहरी भारत में पोषण की दोहरी चुनौतीअल्पपोषण और अधिक पोषण (ओवरन्यूट्रिशन)को संबोधित करने में शहरी शासन की क्या भूमिका हो सकती है? चर्चा कीजिए।