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Daily-current-affairs / 27 Aug 2023

संवैधानिक मूल्यों को कायम रखना: संविधान को लागू करना या नष्ट करना? - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख (Date): 28-08-2023

प्रासंगिकता: जीएस पेपर 2 - राजव्यवस्था - संविधान

कीवर्ड: संविधान की अखंडता, समानता, न्याय, शासन

सन्दर्भ :

  • डॉ. बी.आर. अंबेडकर के अंतर्दृष्टिपूर्ण शब्द संविधान के कामकाज में व्यक्तियों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हैं। जैसे-जैसे भारत का लोकतंत्र परिपक्व हो रहा है वैसे-वैसे कुछ प्रश्न उठते हैं जैसे: क्या हम संविधान के अनुरूप काम कर रहे हैं, इसके सिद्धांतों की रक्षा कर रहे हैं, या अनजाने में इसके मूल मूल्यों को कमजोर कर रहे हैं?
  • भारत ने अपनी संवैधानिक यात्रा के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों और सतर्क शासन की आवश्यकता को कैसे पार किया है, इसका विश्लेषण संविधान की अखंडता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है।

संवैधानिक शासन की शक्ति:

  • विश्व के अन्य संवैधानिक लोकतंत्रों की तुलना से भारत के शासन की अनूठी गतिशीलता है। एकतरफ जहां ब्रिटेन लिखित संविधान के बिना सफलतापूर्वक काम करता है, और डेनमार्क, स्वीडन व स्विट्जरलैंड जैसे देश लिखित संविधान के साथ कम कर कर रहे हैं ।
  • वहीं भारत, अपने सावधानीपूर्वक तैयार किए गए संविधान के साथ, लोकतंत्र और शासन के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करने वाले राष्ट्र का प्रतीक है।

ऐतिहासिक मील के पत्थर:

  • डॉ. बी.आर. अम्बेडकर और संविधान सभा के समर्पित प्रयासों की परिणति भारत के व्यापक संविधान के रूप में हुई, जो दो साल, ग्यारह महीने और सत्रह दिनों के विचार-विमर्श का परिणाम था।
  • संविधान सभा की बहसें लोकतांत्रिक विचार-विमर्श, असहमति और निर्णय लेने के सर्वोत्तम आदर्श हैं।

संघर्ष को सुलझाने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में संवैधानिक मूल्य:

  • समानता, समता, न्याय और निष्पक्षता जैसे संवैधानिक मूल्य नैतिक मार्गदर्शन के एक उपकरण के रूप में कार्य करते हैं। संवैधानिक मूल्य हमेशा नागरिक कल्याण और एक समावेशी समाज के विकास को बढ़ावा देते हैं। इसलिए जब भी व्यक्तिगत नैतिकता और व्यावसायिक नैतिकता के बीच संघर्ष होता है, तो इन परस्पर विरोधी मूल्यों के संबंध में नैतिक दुविधा को हल करने के लिए संवैधानिक मूल्यों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
  • इसलिए संवैधानिक मूल्य इन नैतिक मूल्यों के बीच संघर्ष को हल करने और नागरिकों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए एक आदर्श उपकरण के रूप में कार्य करते हैं।

चुनौतियाँ का सामना करना :

  • भारत की संवैधानिक यात्रा ने लचीलेपन के साथ चुनौतियों का सामना किया गया । संसद ने संविधान में 105 बार संशोधन किये, कमियों को दूर किया और इसकी प्रासंगिकता सुनिश्चित की।
  • आपातकाल की ऐतिहासिक चुनौती ने संविधान की नींव का परीक्षण किया। इसी प्रकार जब संविधान की आन्तरिक चुनौतियां सामने आईं तब सुप्रीम कोर्ट ने, त्रुटियों को स्वीकार करने और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कायम रखने में सक्रिय भिमिका निभाई।

वर्तमान चुनौतियाँ:

हाल की कई घटनाएँ संविधान के कुछ प्रावधानों के सन्दर्भ में चिंताएं उत्पन्न करती हैं:

  • जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन: 2019 में जम्मू और कश्मीर के पुनर्गठन और राज्य को केंद्र शासित प्रदेशों में बदलने से संवैधानिक औचित्य और लोकतांत्रिक परामर्श पर प्रश्न उठ रहे हैं।
  • केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली (जीएनसीटीडी): केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की शक्तियों में दो बार कटौती करने के प्रयासों को सर्वोच्च न्यायालय ने रोक दिया, जिसने संवैधानिक जांच और संतुलन को बनाए रखने में न्यायपालिका की भूमिका स्पष्ट किया।
  • चुनाव आयोग की स्वायत्तता: चुनाव आयुक्तों के चयन की प्रक्रिया में संशोधन ने चुनाव आयोग के गैर-पक्षपातपूर्ण चरित्र पर सवाल उठाया, जिससे संभावित रूप से लोकतांत्रिक चुनावों की पवित्रता पर असर पड़ा।
  • कार्यकारी हस्तक्षेप: राज्यपालों द्वारा राज्य विधानसभा और नामांकन पर निर्णयों में देरी करने के उदाहरण संवैधानिक मानदंडों को चुनौती देते हैं, जो संभावित रूप से शासन और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व में बाधा डालते हैं।
  • मणिपुर का संकट: क्षेत्रीय बाधाओं और राजनीतिक व्यवधानों के साथ मणिपुर का वास्तविक विभाजन, संवैधानिक अखंडता और शासन की विफलता के बारे में चिंता उतपन्न करता है।

संवैधानिक मूल्यों को कायम रखना:

हाल की कई घटनाएं संवैधानिक मूल्यों को कायम रखने के उदाहरण को दर्शाती हैं जैसे :

  • हरियाणा संकट वाद: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा किया गया प्रदर्शन, संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को प्रमाणित करता है। यह उच्च न्यायालयों को न केवल मौलिक अधिकारों की रक्षा करने में सक्षम बनाता है, बल्कि सामान्य कानूनी अधिकारों की भी वकालत करता है, इस प्रकार यह अन्याय के खिलाफ एक व्यापक सुरक्षा प्रदान करता है।
  • नाज़ फाउंडेशन वाद: इस वाद के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक नैतिकता के बजाय संवैधानिक नैतिकता कायम रहनी चाहिए। यह अंतर संवैधानिक सिद्धांतों के साथ कानूनी और सामाजिक मानदंडों को संरेखित करने के महत्व पर प्रकाश डालता है।
  • सबरीमाला मंदिर वाद : इस वाद पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में, संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 के तहत गारंटी के रूप में धार्मिक स्वतंत्रता, लैंगिक समानता और महिलाओं के पूजा करने के अधिकार को बहाल करके संवैधानिक नैतिकता संरक्षण किया।
  • 2017 के पुट्टास्वामी वाद : इस वाद के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने 'भारतीय न्यायशास्त्र में मौलिक अधिकार के रूप में निजता के अधिकार' की पुष्टि की। तब से, इसे कई मामलों में एक महत्वपूर्ण तर्क के रूप में प्रस्तुत किया गया है, ताकि निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित किया जा सके और इसके दायरे को स्पष्ट किया जा सके।
  • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ वाद: इस वाद में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वसम्मति से माना कि भारतीय दंड संहिता 1860 (आईपीसी) की धारा 377, जो 'प्रकृति के आदेश के खिलाफ कामुक संभोग को अपराध मानती है, असंवैधानिक है। इसने समान लिंग के वयस्कों के बीच सहमति से यौन आचरण को अपराध की श्रेणी से बहार कर दिया।

वास्तव में संविधान की अखंडता उसके मूल्यों को बनाए रखने के सचेत प्रयासों पर निर्भर करती है। इस सन्दर्भ में डॉ. अम्बेडकर के शब्द विशेष महत्व रखते हैं :

"कोई संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो, उसका बुरा होना निश्चित है यदि इसे कार्यान्वित करने के लिए चुने गये लोग बुरे हैं। इसी प्रकार कोई संविधान कितना भी बुरा क्यों न हो, वह अच्छा हो सकता है यदि इसे कार्यान्वित करने के लिए चुने गये लोग अच्छे हैं,। इसप्रकार संविधान का कार्य करना पूरी तरह से संविधान की प्रकृति पर निर्भर नहीं करता है।"

संवैधानिक मूल्यों का महत्व

संवैधानिक मूल्य कई महत्वपूर्ण कारणों से एक लोकतांत्रिक समाज के कामकाज के लिए अत्यधिक महत्व रखते हैं:

  • नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा: संविधान यह सुनिश्चित करके कि सरकार संविधान में निहित लोकतंत्र, न्याय, स्वतंत्रता और समानता के सिद्धांतों का पालन करती है, नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करता है ।
  • लोकतांत्रिक आदर्शों को बढ़ावा देना: यह लोगों की इच्छा और संवैधानिक सिद्धांतों के ढांचे के भीतर सरकार के कार्यों को स्थापित करके लोकतांत्रिक संस्थानों की अखंडता को कायम रखता है।
  • सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन को सुविधाजनक बनाना: संवैधानिक नैतिकता समसामयिक मूल्यों के अनुरूप पुराने कानूनों की व्याख्या को सक्षम बनाती है, जिससे समाज में सकारात्मक परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है।
  • समावेशिता को बढ़ावा देना: सभी नागरिकों की पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना उनके अधिकारों को मान्यता और सुरक्षा प्रदान करके, यह सामाजिक एकजुटता और विविधता के प्रति सम्मान को बढ़ावा देता है।

भारत में संवैधानिक मूल्यों को कायम रखने में चुनौतियाँ

  • स्पष्टता का अभाव: कुछ महत्वपूर्ण संवैधानिक अवधारणा की अस्पष्टता विभिन्न व्याख्याओं की अनुमति देती है, जो संभावित रूप से पूर्वानुमान और कानून के शासन को कमजोर करती है।
  • न्यायिक अतिरेक संबंधी चिंताएँ: यदि संवैधानिक समीक्षा का अनियंत्रित प्रयोग किया गया, तो संवैधानिक नैतिकता का अत्यधिक प्रयोग सरकार की शाखाओं के बीच शक्तियों के पृथक्करण पर अतिक्रमण कर सकता है।
  • व्यक्तिपरकता के मुद्दे: संवैधानिक नैतिकता की व्यक्तिपरक प्रकृति इसकी व्याख्या करने वालों के दृष्टिकोण के आधार पर अलग-अलग औचित्य को जन्म दे सकती है।
  • वैधता का प्रश्न: कुछ लोगों का तर्क है कि संवैधानिक नैतिकता में लोकप्रिय सहमति का अभाव है और इसे समाज पर थोपा जाता है, जो संभावित रूप से सार्वजनिक नैतिकता के साथ विरोधाभासी है।
  • चयनात्मक अनुप्रयोग: विशिष्ट समूहों या मुद्दों पर चयनात्मक अनुप्रयोग के उदाहरण निष्पक्षता और कानून के शासन को कमजोर कर सकते हैं।

संवैधानिक मूल्यों को प्रभावी ढंग से साकार करने की दिशा में कदम

संवैधानिक मूल्यों का प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए कुछ कदमों पर विचार किया जा सकता है:

  • व्यापक परिभाषा: 'संवैधानिक मूल्यों' की एक स्पष्ट और व्यापक परिभाषा एक मानक ढांचा स्थापित कर सकती है, विशेषकर उन मामलों में जहां व्यक्तिगत अधिकार सांस्कृतिक या धार्मिक प्रथाओं के साथ टकराते हैं।
  • उद्देश्य मानक: 'बुनियादी संरचना सिद्धांत' के समान वस्तुनिष्ठ मानकों का विकास, सिद्धांत प्रभाव को बढ़ा सकता है।
  • संतुलित कार्यान्वयन: संवैधानिक नैतिकता को प्रत्येक स्थिति के के अनुरूप संवैधानिक सिद्धांतों के साथ लगातार लागू किया जाना चाहिए।
  • सक्रिय नागरिकता: नागरिकों को सक्रिय रूप से राजनीति में शामिल होने और निर्वाचित प्रतिनिधियों को जवाबदेह बनाने के लिए प्रोत्साहित करना संवैधानिक मूल्यों को मजबूत कर सकता है।
  • निगरानी संस्थानों को मजबूत करें: न्यायपालिका और प्रेस जैसे स्वतंत्र और मजबूत संस्थान संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

निष्कर्ष:

यह प्रश्न कि क्या हम संविधान पर काम कर रहे हैं या अनजाने में इसे नष्ट कर रहे हैं, संवैधानिक मूल्यों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रतिबिंब है। भारत को अपनी लोकतांत्रिक यात्रा जारी ररखने के लिए , संविधान के सिद्धांतों की सुरक्षा के लिए सतर्कता, जवाबदेही और सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो लोग शासन करते हैं वे संविधान की भावना के साथ संरेखित हैं। इन मूल्यों को कायम रखने से यह सुनिश्चित होता है कि संविधान लोकतंत्र और प्रगति का प्रतीक बना रहे, जैसा कि भारत के संवैधानिक लोकतंत्र के दूरदर्शी वास्तुकारों द्वारा परिकल्पना की गई थी।

मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

  • प्रश्न 1. भारत के संविधान का ऐतिहासिक विकास शासन और लोकतंत्र के संदर्भ में इसकी अद्वितीय गतिशीलता को कैसे दर्शाता है? लिखित संविधान की भूमिका को स्पष्ट करने के लिए अन्य देशों के उदाहरण प्रस्तुत कीजिये। (10 अंक, 150 शब्द)
  • प्रश्न 2. लोकतांत्रिक समाज के सिद्धांतों को बनाए रखने में संवैधानिक मूल्यों के महत्व पर चर्चा कीजिये। भारत में हाल के उदाहरणों पर प्रकाश डालें जहां संवैधानिक मूल्यों को बरकरार रखा गया, और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के समक्ष उपस्थित चुनौतियों और प्रयासों कदमों का विश्लेषण कीजिये। (15 अंक,250 शब्द)

Source-The Indian Express

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