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Daily-current-affairs / 05 Feb 2024

उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बांड बाजारों और मुद्राओं के अंतर्राष्ट्रीयकरण के जोखिम

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संदर्भ:

     वर्तमान वैश्विक वित्तीय प्रणाली में उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बांड बाजारों और मुद्राओं के एकीकरण को; "मूल आर्थिक दोषों" से उत्पन्न चुनौतियों को नियंत्रित करने और आर्थिक लचीलेपन को बढ़ावा देने वाले समाधान के रूप में पेश किया गया है।

     हालाँकि, भारत में जे.पी. मॉर्गन और ब्लूमबर्ग द्वारा उल्लेखित हालिया घटनाक्रम ने, इस तरह के एकीकरण से जुड़े संभावित जोखिमों की भी उजागार किया है।

पृष्ठभूमि:

     भारत ने 2019 की शुरुआत से ही अपने सरकारी बांडों को वैश्विक सूचकांकों में एकीकृत करने के प्रयास आरम्भ कर दिए थे। इस संदर्भ में जेपी मॉर्गन ने भारतीय स्थानीय मुद्रा सरकारी बांड (LCGBs) को अपने सरकारी बांड सूचकांक के उभरते बाजार GBI-EM ग्लोबल इंडेक्स समूह में एकीकृत करने की घोषणा की, जो जून 2024 से प्रभावी होगा। इस घोषणा ने ब्लूमबर्ग-बार्कलेज और एफटीएसई रसेल जैसे अन्य सूचकांक प्रदाताओं में प्रत्याशा जगा दी।

     विगत 8 जनवरी, 2024 को, ब्लूमबर्ग इंडेक्स सर्विसेज ने ब्लूमबर्ग इमर्जिंग मार्केट लोकल करेंसी इंडेक्स में भारत के FAR (Fully Accessible Route) बांड को सितंबर 2024 के लिए निर्धारित कार्यान्वयन के साथ जोड़ने का प्रस्ताव दिया। यह प्रयास बेंचमार्क सूचकांकों में भारतीय बांड को शामिल करने की वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप है।

     FTSE Russell ने अंतरराष्ट्रीय निवेशकों की अपेक्षाओं के अनुरूप सरकारी बांड बाजार में सुधार की आवश्यकता को चिन्हित करते हुए संभावित उन्नति के लिए अपनी निगरानी सूची में भारत की स्थिति यथावत रखी। जे.पी. मॉर्गन के प्रयासों ने प्रमुख सूचकांक निर्माताओं द्वारा प्रदत्त प्रतिक्रियाओं की एक श्रृंखला का निर्माण किया है, जो वैश्विक मंच पर भारतीय बांडों में निवेश की बढ़ती रुचि का संकेत देता है।

कुछ मुख्य शब्द और परिभाषाएँ:

     स्थानीय मुद्रा सरकारी बांड (LCGB): ये बांड सरकार द्वारा अपनी मूल मुद्रा में जारी किए जाते हैं। आमतौर पर इसका  उपयोग सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए धन सुरक्षित करने या सरकार के वित्त का प्रबंधन करने के लिए उपयोग किए जाते हैं।

     GBI-EM ग्लोबल इंडेक्स सूट: इस सूट में उभरते बाजार देशों द्वारा जारी सरकारी बॉन्ड के प्रदर्शन की निगरानी के लिए जे.पी. मॉर्गन द्वारा प्रेरित इंडेक्स शामिल हैं।

     Fully Accessible Route बांड: ये भारत सरकार द्वारा जारी किए गए बांड हैं, जो विदेशी निवेशकों के लिए बिना किसी प्रतिबंध के खरीद के लिए उपलब्ध हैं।

     ब्लूमबर्ग इमर्जिंग मार्केट स्थानीय मुद्रा सूचकांक: ब्लूमबर्ग इंडेक्स सर्विसेज द्वारा तैयार किया गया यह सूचकांक, उभरते बाजार देशों द्वारा जारी, स्थानीय मुद्राओं वाले सरकारी बांडों के प्रदर्शन का आकलन करता है।

     एफटीएसई रसेल: यह एक प्रमुख वैश्विक सूचकांक प्रदाता है, जो सूचकांको के संकलन के लिए प्रसिद्ध है। इसका उपयोग निवेशक विभिन्न बाजारों और परिसंपत्ति वर्गों के प्रदर्शन को ट्रैक करने के लिए करते हैं।

     Original Sin: यह शब्द उभरती अर्थव्यवस्थाओं की दुर्दशा का वर्णन करता है, जो अपनी मुद्राओं में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उधार लेने में असमर्थ हैं, जिससे उन्हें विनिमय दर जोखिम का सामना करना पड़ता है।

     अपतटीय बाज़ार (Offshore Market): किसी देश की सीमाओं से परे संचालित होने वाला एक वित्तीय बाज़ार, जहाँ विदेशी मुद्राओं का व्यापार होता है। इसमें अक्सर नियामक बाधाएँ कम होती हैं।

 

बांड बाज़ारों का अंतर्राष्ट्रीयकरण:

     जे.पी. मॉर्गन और ब्लूमबर्ग जैसे प्रमुख सूचकांक प्रदाताओं द्वारा विभिन्न योजनाओं का अनावरण, इस संबंध में भारत के प्रयासों के महत्व को रेखांकित करता है।  हालाँकि, इस प्रक्रिया में कर नीतियों और स्थानीय निपटान से संबंधित बाधाओं का सामना करना पड़ा है, जो इसमें शामिल जटिलताओं को उजागर करता है।

     अक्टूबर 2022 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की अंतर-विभागीय समूह (IDG) द्वारा जारी रिपोर्ट ने रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण से जुड़े लाभों और जोखिमों को रेखांकित किया। साथ ही बाहरी कारकों के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता को स्वीकार करते हुए अंतर्राष्ट्रीय संसाधनों तक पहुँचने के संभावित लाभों पर जोर दिया।  अन्य प्रत्याशित लाभों के बावजूद, इस समय बांड बाज़ारों में स्वायत्तता की हानि और बाह्य जोखिमों की संभावनाएं अति प्रबल हैं।

संभावित लाभ:

     समर्थकों का तर्क है, कि विदेशी निवेशकों के लिए स्थानीय बांड बाजार की उपस्थिति, चालू खाते और राजकोषीय घाटे के लिए वित्तपोषण की सुविधा को संभव कर सकती है। इससे उधार लेने की लागत में गिरावट आएगी और निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा।

     इसके अलावा, स्थानीय मुद्रा में उधार लेकर, उभरती अर्थव्यवस्थाएं आरक्षित मुद्राओं में नामित बाहरी ऋण से जुड़े जोखिमों को भी कम कर सकती हैं। हालाँकि, ये सभी कथित लाभ ट्रेड-ऑफ़ के साथ संरेखित हैं।

स्थायी फंडिंग का भ्रम:

     स्थानीय मुद्रा बांड बाजार (एलसीबीएम) में विदेशी पोर्टफोलियो प्रवाह को अक्सर स्थायी और दीर्घकालिक वित्तपोषण स्रोतों के रूप में माना जाता है।  हालाँकि, मुख्य आरक्षित मुद्रा वाले देशों के संप्रभु बांड के विपरीत, उभरती अर्थव्यवस्थाओं का स्थानीय मुद्रा संप्रभु ऋण, अस्थिर निवेशकों; मुख्य रूप से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के धन प्रबंधकों के अधीन है।  यह ऐसे प्रवाह की स्थिरता को बाजार संकट की अवधि के दौरान अनिश्चित बना देता है।

     पिछले संकटों के साक्ष्य, जैसे कि 2014-15 के दौरान मलेशिया की स्थानीय मुद्रा परिसंपत्तियों से निवेशकों का तेजी से बाहर निकलना आदि; उभरती अर्थव्यवस्थाओं के अचानक स्थिरीकरण और पूंजी प्रवाह के प्रभाव को उजागर करता है। उसी प्रकार तुर्क देशों में, बांड बाजार से विदेशी निवेशकों के बाहर निकलने से, मुद्रा में गिरावट और आरक्षित हानि बढ़ गई, जिससे विनिमय दर में अस्थिरता के प्रतिकूल प्रभाव देखे गए।

विनिमय दर की अस्थिरता और आरक्षित हानियाँ:

     बांड बाजारों के एकीकरण से उभरती अर्थव्यवस्थाओं को बाजार संकट के समय विनिमय दर में अस्थिरता और आरक्षित हानि में वृद्धि का सामना करना पड़ता है।  विदेशी मुद्रा ऋण के विपरीत, स्थानीय मुद्रा में व्यक्त बाह्य ऋण निवेशकों पर विनिमय दर जोखिम स्थानांतरित करता है, जिससे स्थानीय मुद्रा बांड प्रवाह में अस्थिरता बढ़ जाती है।

     एशियाई संकट के दौरान मलेशिया और 2018 में तुर्क देशों के अनुभव अपतटीय (Offshore)मुद्रा बाजारों के अस्थिर प्रभावों को रेखांकित करते हैं। अपतटीय बाजारों में सट्टेबाजी गतिविधियां मुद्रा मूल्यह्रास और तरलता चुनौतियों को बढ़ा सकती हैं, जिससे स्थिरता लाने के लिए पूंजी नियंत्रण जैसे समाधान उपायों की आवश्यकता होती है।

रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण:

     रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण में सीमा पार लेनदेन में इसके उपयोग को बढ़ाने की प्रक्रिया शामिल है।  इसका तात्पर्य केवल अमेरिकी डॉलर जैसी प्रमुख वैश्विक मुद्राओं पर निर्भर रहने के बजाय रुपये में अधिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्तीय गतिविधियों के संचालन से है।

     भारत के लिए, रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण कई संभावित लाभ प्रस्तुत करता है:

     कम निर्भरता: रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण करके, भारत अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है, जिससे डॉलर के मूल्य में उतार-चढ़ाव और संबंधित जोखिमों की संभावना कम हो जाएगी।

     लागत दक्षता: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं लेनदेन के लिए इस प्रकार के रुपये का उपयोग करने से व्यवसायों के लिए लेनदेन लागत कम हो सकती है, क्योंकि यह बार-बार मुद्रा रूपांतरण और संबंधित शुल्क की आवश्यकता को समाप्त करता है।

     बढ़ी हुई वित्तीय स्थिरता: अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में अधिक व्यापक रूप से स्वीकृत रुपया भारत की वित्तीय प्रणाली को मजबूत करने और विदेशी निवेश को आकर्षित करने में योगदान दे सकता है, जिससे अधिक वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा।

     वैश्विक व्यापार को बढ़ावा: अंतर्राष्ट्रीय रुपये में व्यापार की सुविधा क्षेत्रीय व्यापार साझेदारी के लिए उत्प्रेरक के रूप में काम कर सकती है और वैश्विक मंच पर भारत के आर्थिक प्रभाव को मजबूत करने में योगदान कर सकती है।

मुद्रा अंतर्राष्ट्रीयकरण में चुनौतियाँ:

     मुद्रा अंतर्राष्ट्रीयकरण एक बहुआयामी प्रक्रिया है जो समय के साथ मजबूत वित्तीय प्रणालियों के विकास और निरंतर आर्थिक प्रदर्शन पर निर्भर करती है।  भारतीय रुपये को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में बढ़ावा देने के भारत के प्रयासों के बावजूद, आवश्यक बुनियादी ढांचे की स्थापना और निवेशकों के विश्वास को बढ़ावा देने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

     वाई.वी.  रेड्डी (पूर्व आरबीआई गवर्नर) की अंतर्दृष्टि निरंतर विकासात्मक प्रयासों के माध्यम से मुद्रा अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए आधार तैयार करने के महत्व पर जोर देती है।  अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में भारतीय रुपये की यात्रा संरचनात्मक कमियों को दूर करने और आर्थिक बुनियादी सिद्धांतों को मजबूत करने पर निर्भर करती है।

     यद्यपि बांड बाजारों और मुद्राओं का समय से पहले अंतर्राष्ट्रीयकरण, उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए महत्वपूर्ण जोखिम पैदा करता है, जिससे विनिमय दर अस्थिरता और पूंजी प्रवाह में अस्थिरता बढ़ जाती है।  तथापि निर्बाध बाज़ार पहुंच के आकर्षण के बावजूद, वित्तीय एकीकरण के संभावित परिणामों को कम करके नहीं आंका जा सकता है।

निष्कर्ष

     निष्कर्षतः, उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बांड बाजारों और मुद्राओं का अंतर्राष्ट्रीयकरण एक दोधारी तलवार की तरह कार्य करता है, जो राष्ट्रों को अस्थिरता के बढ़ते जोखिमों को उजागर करते हुए आर्थिक विकास के अवसर प्रदान करता है।  अपने सरकारी बांडों को वैश्विक सूचकांकों में एकीकृत करने के भारत के प्रयास विदेशी निवेश को आकर्षित करने के इच्छुक उभरते बाजारों में व्यापक रुझान को दर्शाते हैं।  हालाँकि, वित्तीय एकीकरण के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए सावधानी बरती जानी चाहिए, ऐसा हो कि अल्पकालिक लाभ की खोज दीर्घकालिक कमजोरियों को जन्म दे। पिछले अनुभवों के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय वित्त की जटिलताओं के प्रबंधन के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जो स्थिरता और लचीलेपन को प्राथमिकता देता है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

  1. अपने सरकारी बांडों को वैश्विक सूचकांकों में एकीकृत करने के भारत के प्रयासों के महत्व को स्पष्ट करें, जैसा कि जे.पी. मॉर्गन और ब्लूमबर्ग द्वारा शुरू किए गए हालिया घटनाक्रमों से उजागर हुआ है।  भारत की वित्तीय प्रणाली और अर्थव्यवस्था के लिए इस एकीकरण से जुड़े संभावित लाभों और जोखिमों पर चर्चा करें।  (10 अंक, 150 शब्द)
  2. सीमा पार लेनदेन में रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण से जुड़ी चुनौतियों और अवसरों का विश्लेषण करें।  मुद्रा उपयोग का विविधीकरण भारत की आर्थिक लचीलापन और वैश्विक व्यापार साझेदारी में कैसे योगदान दे सकता है?  वाई.वी. रेड्डी की अंतर्दृष्टि और भारत की वित्तीय स्थिरता और बाजार एकीकरण के लिए निहितार्थ के संदर्भ में चर्चा करें।  (15 अंक, 250 शब्द)

स्रोत: हिन्दू

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