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Daily-current-affairs / 20 Mar 2024

हिंसा, बेघरता और महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य में अंतर्संबंध - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ :

     भारत में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) ने हाल ही में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के व्यापक मुद्दे पर प्रकाश डाला है। सर्वेक्षण के आंकड़े चिंताजनक हैं जो बताते हैं कि 18-49 आयु वर्ग की लगभग 30% महिलाओं ने शारीरिक हिंसा का अनुभव किया है और 6% ने यौन हिंसा की सूचना दी है जो 15 वर्ष की आयु से ही शुरू हो जाती है। हिंसा, बेघरी और महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य का अंतर्संबंध चुनौतियों का एक जटिल जाल प्रस्तुत करता है जिस पर ध्यान देने और व्यापक समाधान की आवश्यकता  है। प्रमाण बताते हैं कि हिंसा और मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के बीच एक पारस्परिक संबंध है जो बेघरी के जोखिम को बढ़ा देता है।

     बनयान (The Banyan) संस्था ने पिछले तीन दशकों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करने वाली बेघर महिलाओं के साथ व्यापक रूप से काम किया है और हिंसा, बेघरी और मानसिक स्वास्थ्य के बीच की जटिल गतिशीलता का पता लगाया

हिंसा और बेघर होने की परस्पर क्रिया

     मानसिक इलाज कराने वाली महिलाओं में, घर से बेघर होने का एक बड़ा कारण हिंसा के कारण  टूटा रिश्ता होता है। ये बात दुनियाभर के अध्ययनों में भी सामने आई है, जो बताते हैं कि हिंसा की वजह से घर पाना और उसमें रहना मुश्किल हो जाता है। बेघर महिलाओं पर किए गए शोध से पता चला है कि उनके साथ जो बुरा व्यवहार हुआ है, उसका असर गहरा होता है।

     अस्पताल में डॉक्टर बीमारी का पता लगाने के लिए जो तरीके अपनाते हैं, वो हमेशा इन महिलाओं के असल अनुभवों को पूरी तरह नहीं समझ पाते। मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित  महिलाओं से बात करने पर पता चला कि कई बार उन्हें घर छोड़कर भागना पड़ता है क्योंकि उनका परिवार या पति उनके साथ हिंसात्मक व्यवहर करते थे। बचपन में यौन शोषण या पति द्वारा की गई हिंसा का उन पर गहरा असर पड़ता है, जिससे उनकी मानसिक हालत खराब हो जाती है और उन्हें बेघर होना पड़ता है।

 

जद्दोजहद और संघर्ष की कहानियां

     बेघर महिलाओं के वास्तविक अनुभवों को समझने के लिए उनकी निजी कहानियां काफी महत्वपूर्ण हैं। ये कहानियां मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियों से जूझ रहीं महिलाओं के संघर्ष को दर्शाती हैं। लीला की कहानी ऐसी ही एक मार्मिक कहानी है। सिर्फ 5 साल की उम्र में लीला को अपनी मां के साथ बेघर होने की कठोर परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। उनकी कहानी हिंसा के उन गहरे घावों को दर्शाती है जो उनके जीवन पर हमेशा के लिए अंकित हो गए। गरीबी और जाति जैसी सामाजिक बाधाओं के जाल में, हिंसा पारंपरिक घर और समुदाय के विचारों को तोड़ने का कारण बनती है। यही वजह है कि महिलाओं को असुरक्षित जीवन स्थितियों का सामना करना पड़ता है।

     एलन कोरिन नाम की विदुषी का शोध सिज़ोफ्रेनिया (एक मानसिक बीमारी) के सीमित नजरिए को चुनौती देता है। एलन इस बात पर जोर देती हैं कि मानसिक बीमारी को व्यक्ति के पूरे जीवन के अनुभवों के संदर्भ में समझना जरूरी है। उसी तरह, बेघर महिलाओं की कहानियां भी इस बात को रेखांकित करती हैं कि सिर्फ दवाइयों पर आधारित चिकित्सा पद्धति, हिंसा और बेघरता के दायरे में महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य की जटिलताओं को पूरी तरह समझने में सक्षम नहीं है।

पागलपन: प्रतिरोध और मुक्ति का दूसरा रूप

     इतिहास में हमेशा से "पागल" का ठप्पा उन महिलाओं को दबाने और किनारे करने के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है जो पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाती हैं। आधुनिक समाज भी आज महिलाओं को सीमित दायरे में ही रखना चाहता है जिससे हिंसा और अत्याचार का चक्र चलता रहता है।

     लेकिन, कुछ महिलाएं "पागलपन" को प्रतिरोध के रूप में अपना लेती हैं। वे समाज की अपेक्षाओं को तोड़कर खुद को नई पहचान देती हैं। उनके लिए पागलपन एक आश्रय स्थल बन जाता है, जहां वे दर्द और समाज की नजरों में कमतर आंके जाने के बीच कुछ शांति पा लेती हैं। कुछ महिलाएं आध्यात्मिक कहानियों या आत्मिक जागरण में ताकत पाती हैं। वे सामाजिक बंधनों को तोड़कर अपनी पहचान पर अपना हक जताती हैं।

     यद्यपि, महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर होने वाली मुख्यधारा की चर्चा प्रायः  इन जटिल कहानियों को दरकिनार कर देती है।

व्यापक समाधानों की ओर

हिंसा, बेघरता और महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य के जटिल अंतर्संबंध को सुलझाने के लिए बहुआयामी समाधानों की आवश्यकता है जो सामाजिक न्याय और अंतर्संबंधिता के सिद्धांतों पर आधारित हों।

कुछ महत्वपूर्ण कदम इस प्रकार हैं:

     महिलाओं के अवैतनिक श्रम को मान्यता देना और उसका मुआवजा देना।

     पारंपरिक पारिवारिक ढांचे के बाहर सहायक नेटवर्क बनाना।

     बुनियादी आय और आवास तक पहुंच सुनिश्चित कर महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।

शिक्षा के क्षेत्र में हस्तक्षेप करके लैंगिक रूढ़ियों को चुनौती दी जा सकती है और समतावादी मूल्यों को बढ़ावा दिया जा सकता है, जिससे महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोका जा सके। साथ ही, नीतियों और हस्तक्षेपों में बचपन की कठिनाइयों और प्रारंभिक हस्तक्षेपों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि मानसिक स्वास्थ्य पर आघात के दीर्घकालिक प्रभाव को कम किया जा सके।

महिलाओं के अनुभवों की अंतर्संबंधिता को स्वीकार करते हुए और विविध दृष्टिकोणों को अपनाते हुए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। यह दृष्टिकोण हिंसा और बेघरता के मूल कारणों को दूर करने में सहायक होगा।

निष्कर्ष

हिंसा, बेघरता और महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य का जटिल अंतरसंबंध व्यापक समाधानों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है जो पारंपरिक जैविक चिकित्सा ढांचे से परे हों। व्यक्तिगत कहानियां महिलाओं के अनुभवों की जटिलताओं को प्रकट करती हैं और यह दर्शाती हैं कि मौजूदा चर्चा उनके वास्तविक जीवन के अनुभवों को पूरी तरह से समझने में सक्षम नहीं है। बेघर महिलाओं की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मजबूत प्रतिक्रियाएं विकसित करने में अंतर्संबंधिता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को अपनाना सबसे महत्वपूर्ण है। विविध दृष्टिकोणों को प्राथमिकता देकर और समग्र दृष्टिकोण अपनाकर हम सार्थक बदलाव का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं और सभी महिलाओं के लिए एक अधिक न्यायपूर्ण समाज बना सकते हैं।

पीएससी मुख्य परीक्षा के संभावित प्रश्न

प्रश्न 1. हालिया अध्ययनों और व्यक्तिगत कहानियों से प्राप्त समझ के आधार पर हिंसा, बेघरता और महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य के जटिल संबंधों की व्याख्या करें। ये समझ बेघर महिलाओं द्वारा मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के साथ सामना की जाने वाली जटिल चुनौतियों से निपटने के लिए प्रभावी नीतिगत हस्तक्षेपों को किस प्रकार सूचित कर सकती हैं?  (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न 2. हिंसा और बेघरता के संदर्भ में विशेष रूप से महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में धारणाओं पर सामाजिक मानदंडों और ऐतिहासिक संदर्भों के प्रभाव का मूल्यांकन करें। कमजोर आबादी के बीच मानसिक स्वास्थ्य असमानताओं को दूर करने के लिए अधिक समावेशी रणनीतियों को आकार देने में नारीवादी दृष्टिकोण के संभावित योगदानों पर चर्चा करें।  (15 अंक, 250 शब्द)

स्रोत -  हिंदू

 

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