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Daily-current-affairs / 26 Dec 2023

भारत में आत्महत्या की जटिल चुनौती तथा उसका समाधान - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख Date : 27/12/2023

Relevance: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1: समाज

Keywords: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB), आत्महत्या जोखिम, राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति, भारतीय न्याय संहिता (BNS) विधेयक, COVID-19

संदर्भ :

आत्महत्या एक वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है, जिससे प्रति वर्ष लगभग 8,00,000 लोगों की मृत्यु होती है। आकड़ों के अनुसार यह प्रत्येक 40 सेकंड में एक व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है । लैंसेट की रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया में आत्महत्या से होने वाली मौतों की सबसे बड़ी संख्या के साथ दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में है। आत्महत्या से जुड़ा कलंक मानसिक स्वास्थ्य की इस समस्या को रोकने में एक बड़ी बाधा है। आत्महत्या को रोकथाम योग्य कृत्य के बजाय व्यक्तिगत चयन के रूप में परिभाषित करना अनुचित है। इस गंभीर मुद्दे के व्यापक समाधान के लिए, आत्महत्या की परिभाषित विशेषताओं की गहरी समझ जरूरी है।


आत्महत्या को परिभाषित करना: इमाइल दुर्खीम और NCRB का दृष्टिकोण

    समाजशास्त्री इमाइल दुर्खीम ने आत्महत्या को पीड़ित के सकारात्मक या नकारात्मक कार्य के कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से होने वाली मृत्यु के रूप में परिभाषित किया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) आत्महत्या को एक व्यक्तिगत त्रासदी मानता है जिसका प्रभाव परिवारों, मित्रों और समुदायों पर पड़ता है। दुर्खीम का विश्लेषण व्यक्तिगत कारकों की बजाय आत्महत्या की सामूहिक प्रकृति पर जोर देता है।

दुर्खीम ने आत्महत्याओं को विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया:

  • अहंवादी आत्महत्या (Egoistic Suicide): जब व्यक्ति अपने समूह या समाज से घनिष्ठ संबंध नहीं रखता और अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को सर्वोपरि समझता है, तो उसे अहंवादी आत्महत्या कहा जाता है।
  • परार्थवादी आत्महत्या (Altruistic Suicide):जब व्यक्ति अपने समूह अथवा समाज के लिए जान दे देता है, तो उसे परार्थवादी आत्महत्या कहा जाता है। इस प्रकार की आत्महत्या उन समुदायों में अधिक आम है जहां समूह के हितों को व्यक्तिगत हितों से अधिक महत्व दिया जाता है।
  • आर्दशविहीन आत्महत्या (Anomic Suicide): जब समाज में सामाजिक सामंजस्य असंतुलित हो जाता है और व्यक्ति अपने जीवन के उद्देश्य और अर्थ खो देता है, तो उसे आर्दशविहीन आत्महत्या कहा जाता है। इस प्रकार की आत्महत्या आर्थिक मंदी या सामाजिक उथल-पुथल के समय में अधिक आम है।
  • भाग्यवादी आत्महत्या (Fatalistic Suicide): जब व्यक्ति अपने जीवन पर कोई नियंत्रण नहीं रखता और उसे लगता है कि उसका जीवन एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, तो वह आत्महत्या कर सकता है। इस प्रकार की आत्महत्या उन समुदायों में अधिक आम है जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता को दबा दिया जाता है, यथा गुलामी या तानाशाही के अधीन समुदाय।

भारत में आत्महत्या की स्थिति

2021 में भारत में 164,033 आत्महत्याएँ हुईं, जो 2020 की तुलना में 7.2% अधिक थीं। भारत में आत्महत्या की दर 2017 में 9.9 से बढ़कर 2021 में 12.0 हो गई। आत्महत्या 15-29 आयु वर्ग के लोगों में चिंताजनक रूप से मृत्यु का प्रमुख कारण बन गई है। 2021 में सभी आत्महत्याओं में से दो-तिहाई 18-45 आयु वर्ग की हैं।

भारत में आत्महत्या के जोखिम के मुख्य कारक

सामान्य कारक:

General Factors:

  • व्यक्तिगत: मानसिक स्वास्थ्य मुद्दे, मादक द्रव्यों का सेवन और रिश्तों से संबंधित समस्याएं।
  • सामाजिक: सामाजिक समर्थन का अभाव, कार्यस्थल पर उत्पीड़न और नस्ल या लिंग आधारित भेदभाव।
  • आर्थिक: वित्तीय कठिनाइयाँ, बेरोजगारी और सामाजिक सुरक्षा की कमी।

महिलाओं में बढ़ती आत्महत्या के कारक:

  • सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंड: कम उम्र में विवाह, सीमित वित्तीय स्वायत्तता और अकेलेपन की भवना।
  • विवाह से संबंधित मुद्दे: घरेलू दुर्व्यवहार, दहेज संबंधी समस्याएं और सामाजिक वर्जनाएं।
  • अपराध से पीड़ित: यौन अपराधों से पीड़ितों में कलंक की भावना।

छात्रों में बढ़ती आत्महत्या के कारक:

  • कम उम्र: मनोवैज्ञानिक और शारीरिक परिवर्तन के कारण आवेगपूर्ण व्यवहार का होना।
  • शैक्षणिक संकट: प्रमुख संस्थानों में प्रवेश पाने का दबाव और हाशिए पर रहने वाले छात्रों के साथ भेदभाव।
  • सामाजिक अपेक्षाएँ: एक 'आदर्श बच्चा' या 'आदर्श छात्र' होने का बोझ मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियों को जन्म देता है।

सशस्त्र बलों में आत्महत्याएँ:

भारत में सशस्त्र बलों को आत्महत्या की चिंताजनक प्रवृत्ति का सामना करना पड़ रहा है। 2001 के बाद से सालाना 100 से 140 सैनिक आत्महत्या के कारण जान गंवा रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस प्रवृत्ति में योगदान देने वाले तीन प्रमुख कारकों की पहचान की: सेवा की स्थिति, काम करने की स्थिति और व्यक्तिगत मुद्दे। इसके उपचारात्मक उपायों में आर्ट ऑफ लिविंग पाठ्यक्रम, पारदर्शी नीतियां, मनोवैज्ञानिक परामर्शदाताओं का सहयोग और सहायता के लिए हेल्पलाइन शामिल हैं।

आत्महत्याओं के दूरगामी परिणाम

आत्महत्याओं के परिणाम व्यक्तिगत त्रासदियों से परे बड़े पैमाने पर परिवारों, समुदायों और समाज को प्रभावित करते हैं:

परिवार के लिए:

  • भावनात्मक आघात: अत्यधिक दुःख, अपराधबोध, क्रोध और उदासी।
  • वित्तीय कठिनाइयाँ: आय में कमी और स्वास्थ्य देखभाल की लागत में वृद्धि।
  • पारिवारिक विघटन: तनावपूर्ण रिश्ते, तलाक और परिवार के सदस्यों के बीच संघर्ष।

समाज के लिए:

  • निराशावादी विचार: नकारात्मक सामाजिक दृष्टिकोण निराशावादी विचारों को बढ़ावा देते हैं, जिससे खुली चर्चा बाधित होती है।
  • अनुकरणीय आत्महत्याएं: प्रचारित आत्महत्याएं विशेष रूप से सुभेद्य व्यक्तियों के बीच अनुकरणीय आत्महत्याओं को बढ़ावा दे सकती हैं।
  • शैक्षिक प्रभाव: छात्रों के बीच आत्महत्या शैक्षिक वातावरण और प्रदर्शन को प्रभावित करती है।

देश के लिए:

  • स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर प्रभाव: आपातकालीन सेवाओं और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पर दबाव बढ़ता है।
  • मानव पूंजी का ह्रास: कार्यबल विविधता, कौशल और विशेषज्ञता प्रभावित होती है।
  • दीर्घकालिक आर्थिक प्रभाव: सामाजिक कल्याण की लागत में वृद्धि होती है।

आत्महत्या की रोकथाम के लिए भारत में उठाए गए कदम

भारत में आत्महत्याओं को रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न कदम और रणनीतियाँ लागू की गई हैं:

  • राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति: 2022 में लागू की गई राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति में पहली बार सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के रूप में आत्महत्या की रोकथाम को प्राथमिकता दी गई है। WHO की दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र रणनीति का लक्ष्य 2030 तक आत्महत्या मृत्यु दर में 10% की कमी हासिल करना है। यह रणनीति स्वास्थ्य सेवाओं की क्षमता को बढ़ाती है, सामुदायिक लचीलापन विकसित करती है और निगरानी को मजबूत करती है।
  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति (2014): यह नीति जागरूकता सृजन, कलंक-मुक्ति और साधनों तक पहुंच को प्रतिबंधित करने की सिफारिश करती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017: यह आत्महत्या का प्रयास करने वालों के लिए सजा की बजाय मानसिक स्वास्थ्य सहायता पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता (BNS) विधेयक: इसमें आत्महत्या के अपराधीकरण को हटाया गया है।
  • न्यायिक व्याख्याएँ: पी. रथिनम बनाम भारत संघ वाद (1994)- सर्वोच्च न्यायालय ने आईपीसी की धारा 309 को असंवैधानिक घोषित किया। जियान कौर बनाम पंजाब राज्य वाद (1996)- इसमें घोषित किया गया कि जीवन के अधिकार में मरने का अधिकार शामिल नहीं है।

आत्महत्या की रोकथाम में नई चुनौतियाँ

  • मीडिया संदेश और प्रचार: प्रसिद्ध व्यक्तिओं की आत्महत्याओं की लगातार प्रेस रिपोर्टें इस कृत्य को ग्लैमराइज कर सकती हैं, जिससे सुभेद्य व्यक्ति प्रभावित हो सकते हैं।
  • इंटरनेट और संचार नेटवर्क का प्रभाव: किशोर मोबाइल फोन और इंटरनेट के माध्यम से जोखिम लेने वाले व्यवहार की ओर आकर्षित होते हैं, जिससे मनोसामाजिक समस्याएं पैदा होती हैं।
  • उभरती प्रौद्योगिकियां: एक पूर्ण लेकिन कृत्रिम संबंध का अनुभव प्रदान करने वाले एआई-संचालित आभासी तकनीकियाँ व्यक्ति के अकेलेपन को बढ़ा सकते हैं।
  • महामारी से संबंधित मानसिक स्वास्थ्य मुद्दे: COVID-19 जैसी महामारी हाशिए पर रहने वाले और सुभेद्य समूहों के लिए मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों को बढ़ा देती है।
  • भारतीय अनुसंधान में खामियाँ: आत्महत्या के मनोसामाजिक और जैविक निर्धारकों पर व्यापक शोध का अभाव नीति-निर्माण में बाधा डालता है।
  • कानूनी रुझानों में बदलाव: इच्छामृत्यु पर कानूनी दुविधा और समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने से आत्महत्या के जोखिम कारक बढ़ जाते हैं।

आत्महत्या की रोकथाम के लिए समग्र दृष्टिकोण

आत्महत्या की रोकथाम की जटिलता को दूर करने के लिए, कई हितधारकों को शामिल करते हुए समग्र दृष्टिकोण महत्वपूर्ण हैं:

राज्य की भूमिका:

  • संस्थागत उपाय: आत्महत्या की रोकथाम को प्राथमिकता देने के लिए क्रॉस-सेक्टोरल आयोगों की स्थापना करना।
  • प्रभावी निगरानी: आत्महत्याओं पर डेटा संग्रह और रिपोर्टिंग में सुधार करना।
  • बजटीय आवंटन: राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति के अनुरूप पर्याप्त वित्तीय सहायता सुनिश्चित करना।

सिविल सोसायटी और मीडिया की भूमिका:

  • क्षमता निर्माण: संकटपूर्ण स्थिति में सहायता प्रदान करना और कानूनी सुधारों को प्रोत्साहित करना।
  • जिम्मेदार मीडिया रिपोर्टिंग: गैर-कलंकात्मक भाषा का उपयोग करना और मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा देना।

शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका:

  • मानसिक स्वास्थ्य सहायता: परामर्श तक पहुंच को मजबूत करना और छात्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करना।
  • पाठ्यक्रम में सुधार: जीवन कौशल विकास और तनाव प्रबंधन पर जोर देना।

सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखना:

  • तमिलनाडु में नवीन परीक्षा नीतियों ने छात्र आत्महत्याओं को कम किया है तथा श्रीलंका ने व्यापक उपायों के माध्यम से अपनी आत्महत्या दर को सफलतापूर्वक आधा कर दिया है। ये दोनों उदाहरण आत्महत्या की रोकथाम हेतु मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

निष्कर्ष

भारत में आत्महत्या की रोकथाम एक बहुआयामी चुनौती है जिसके लिए व्यापक और सहयोगात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसके प्रमुख कारकों को समझने, साक्ष्य-आधारित रणनीतियों को लागू करने और विविध हितधारकों को शामिल करने से इस चुनौती का सामना किया जा सकता है। आत्महत्या की रोकथाम सतत विकास लक्ष्य 3 के अनुरूप है, जिसमें स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करना और सभी उम्र के लोगों के लिए कल्याण को बढ़ावा देना शामिल है। भारत को अपने आत्महत्या संबंधी रोकथाम प्रयासों को जारी रखते हुए जागरूकता और सहयोग को बढ़ावा देना होगा।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  1. व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक पहलुओं को शामिल करते हुए भारत में आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले विविध कारकों की जांच कीजिए। प्रस्तुत जानकारी से ठोस उदाहरण प्रदान करते हुए, आत्महत्या की रोकथाम के संदर्भ में इन कारकों को संबोधित करने के महत्व पर विस्तार से चर्चा कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)
  2. राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति और 2017 का मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम जैसी आत्महत्या की रोकथाम के लिए भारत की राष्ट्रीय स्तर की पहलों का आकलन कीजिए। वैश्विक आत्महत्या रोकथाम दृष्टिकोण के साथ उनके संभावित प्रभाव और संरेखण का मूल्यांकन कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

Source- Indian Express



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