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Daily-current-affairs / 16 Sep 2025

“अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स और बालपन मोटापा: एक मौन वैश्विक महामारी”

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परिचय:

यूनिसेफ़ ने फ़ीडिंग प्रॉफ़िट: हाउ फ़ूड एन्वायरनमेंट्स आर फ़ेलिंग चिल्ड्रन शीर्षक से हाल ही में एक प्रमुख रिपोर्ट जारी की है, जो बचपन के अधिक वज़न और मोटापे जैसे सबसे तेज़ी से बढ़ते लेकिन कम चर्चित वैश्विक स्वास्थ्य खतरों में से एक पर प्रकाश डालती है। दशकों तक, कुपोषण मुख्य रूप से बच्चों में भूख, ठिगनापन (stunting) और क्षीणता (wasting) से जुड़ा हुआ था जो पर्याप्त भोजन की कमी के कारण उत्पन्न होते थे।

    • हालाँकि, स्थिति अब नाटकीय रूप से बदल गई। आज, भूख से पीड़ित बच्चों की तुलना में अधिक बच्चे अतिरिक्त वज़न ढो रहे हैं। इस बदलाव का मुख्य कारण अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (UPFs) का बढ़ता प्रभुत्व है। इनमें शक्कर, नमक और अस्वास्थ्यकर वसा की मात्रा अधिक होती है, लेकिन पोषण मूल्य कम होता है। यह परिवर्तन स्वाभाविक रूप से नहीं आया है; इसे ऐसे वातावरण द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है जहाँ अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थ व्यापक रूप से उपलब्ध हैं, विपणन आक्रामक है, और नियमन कमज़ोर हैं, जिससे ये खाद्य पदार्थ बच्चों के आहार में तेज़ी से फैल रहे हैं।
    • रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि मोटापे की यह "मौन महामारी" बच्चों के जीवित रहने और पोषण में वर्षों की प्रगति को नष्ट कर सकती है। इसमें इस बात पर भी जोर दिया गया है कि इस संकट की आर्थिक लागत बहुत अधिक होगी, क्योंकि मोटापे से संबंधित बीमारियां देशों के लिए दीर्घकालिक स्वास्थ्य देखभाल बोझ पैदा करेंगी।

यूनिसेफ़ रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:

बढ़ता वज़न और मोटापा

      • 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में 5% पहले से ही अधिक वज़न वाले हैं।
      • बड़े बच्चों (5–19 वर्ष) में 20% अधिक वज़न वाले हैं, जबकि केवल 10% का वज़न कम है।
      • 2025 में, पहली बार इस आयु वर्ग में मोटापा (9.4%) ने कम वज़न (9.2%) को पीछे छोड़ दिया।

विकासशील देशों में सबसे तेज़ वृद्धि

      • 2000 से अब तक, अधिक वज़न वाले बच्चे और किशोर 194 मिलियन से बढ़कर 391 मिलियन हो गए।
      • अब 80% से अधिक अधिक वज़न वाले बच्चे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं, यह दर्शाता है कि यह अब केवल अमीर देशोंकी समस्या नहीं रह गई है।

आहार संबंधी आदतें

      • कई बच्चे नियमित रूप से फल, सब्जियाँ या प्रोटीन-समृद्ध खाद्य पदार्थ नहीं खाते।
      • इसके बजाय, उनके आहार में अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ (UPFs) जैसे चिप्स, मीठे पेय, पैक्ड स्नैक्स, बिस्कुट और इंस्टैंट नूडल्स का प्रभुत्व है।
      • सर्वेक्षण के निष्कर्ष:
        • 60% किशोर प्रतिदिन मीठे खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं।
        • 32% ने पिछले दिन सॉफ्ट ड्रिंक लिया।
        • 25% ने नमकीन प्रोसेस्ड फूड खाया।

विपणन का प्रभाव

      • जंक फूड विज्ञापन बच्चों की पसंद को आकार देने में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
      • 4 में से 3 युवाओं ने एक सप्ताह के भीतर जंक फूड विज्ञापन देखने की बात कही।
      • इनमें से अधिकांश डिजिटल विज्ञापन हैं, जिनमें कार्टून, सेलिब्रिटी और इन्फ्लुएंसर्स के ज़रिये अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ का प्रचार किया जाता है, जिससे इन्हें माता-पिता और नियामकों के लिए ट्रैक करना विशेष रूप से कठिन हो जाता है।

मोटापे को समझना:

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) मोटापे को असामान्य या अत्यधिक वसा संचय जो स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता हैके रूप में परिभाषित करता है।

    • वैश्विक मानक:
      • अधिक वज़न BMI ≥ 25
      • मोटापा BMI ≥ 30
    • भारत-विशिष्ट मानक:
      • अधिक वज़न BMI 23.0 – 24.9
      • मोटापा BMI ≥ 25
      • गंभीर मोटापा BMI ≥ 35

वैश्विक रुझान

    • 1990 और 2022 के बीच, बच्चों और किशोरों (5–19 वर्ष) में मोटापा 2% से बढ़कर 8% हो गया।
    • वयस्कों में, इसी अवधि में मोटापा 7% से बढ़कर 16% हो गया।

यह एक बड़े वैश्विक बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है। भूख और अल्पपोषण धीरे-धीरे घट रहे हैं, लेकिन मोटापा तेज़ी से कुपोषण का प्रमुख रूप बनकर उभर रहा है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के सामने नई चुनौतियाँ खड़ी हो रही हैं।

भारत की स्थिति:

भारत अब कुपोषण के दोहरी बोझ (double burden) का सामना कर रहा है। एक ओर कई बच्चे अभी भी ठिगनापन और क्षीणता से पीड़ित हैं, वहीं दूसरी ओर, विशेष रूप से शहरी और समृद्ध घरों में मोटापा लगातार बढ़ रहा है।

      • NFHS-5 (2019–21) डेटा:
        • 24% महिलाएँ और 23% पुरुष अधिक वज़न या मोटापे से ग्रस्त हैं।
        • 15–49 वर्ष की आयु में, 6.4% महिलाएँ और 4% पुरुष मोटापे से ग्रस्त हैं।
      • 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे:
        • NFHS-4 (2015–16) में अधिक वज़न का प्रसार 2.1% था, जो NFHS-5 (2019–21) में बढ़कर 3.4% हो गया।

बचपन के अधिक वज़न प्रतिशत में छोटी वृद्धि भी चिंताजनक है क्योंकि यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह तेज़ी से बढ़ सकती है।

बचपन में मोटापा क्यों बढ़ रहा है?

1.        खाद्य आदतें

o    कई बच्चों के आहार में फल, सब्जियाँ, दालें और अंडे की कमी है।

o    इसके बजाय, पैकेज्ड स्नैक्स, तले हुए खाद्य पदार्थ और मीठे पेय उनके दैनिक उपभोग पर हावी हैं।

2.      आक्रामक विपणन

o    जंक फूड विज्ञापन कार्टून पात्रों, खेल सितारों और इन्फ्लुएंसर्स का उपयोग करके उत्पादों को आकर्षक बनाते हैं।

o    डिजिटल बदलाव इस तरह के विपणन को अधिक व्यक्तिगत और बिना नियमन वाला बनाता है।

3.      शहरी जीवनशैली

o    स्क्रीन टाइम में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

o    बच्चे अधिक समय घर के अंदर बिताते हैं, जिससे बाहरी खेल और व्यायाम घट गया है।

4.     आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन

o    आय और शहरीकरण बढ़ने के साथ, फास्ट फूड सस्ता, त्वरित और व्यापक रूप से उपलब्ध है।

o    पारंपरिक, घर का बना भोजन प्रोसेस्ड सुविधा-जन्य खाद्य पदार्थों से प्रतिस्थापित हो रहा है।

बचपन के मोटापे के परिणाम:

    • स्वास्थ्य जोखिम: मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अस्थमा, हृदय रोग, यकृत विकार और यहाँ तक कि कुछ प्रकार के कैंसर का उच्च जोखिम।
    • मानसिक स्वास्थ्य: मोटापा अक्सर आत्मविश्वास की कमी, बुलिंग, शरीर की छवि से जुड़े मुद्दे और अवसाद की ओर ले जाता है।
    • आर्थिक बोझ: यदि रुझान जारी रहे, तो समाजों को भविष्य की स्वास्थ्य देखभाल लागतों में खरबों डॉलर का सामना करना पड़ेगा।
    • अंतरपीढ़ी प्रभाव: अधिक वज़न वाले बच्चे वयस्क होने पर मोटापे से ग्रस्त बने रहने की अधिक संभावना रखते हैं, जिससे खराब स्वास्थ्य पैटर्न अगली पीढ़ी तक पहुँचता है।

India’s Policy Response

भारत की नीति प्रतिक्रिया:

1.        स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय

o    राष्ट्रीय गैर-संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NP-NCD): जीवनशैली से संबंधित रोगों जैसे मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और कैंसर पर ध्यान केंद्रित करता है।

o    स्वास्थ्य अवसंरचना: भारत में 682 जिला NCD क्लिनिक, 191 कार्डियक केयर यूनिट और 5,408 CHC NCD क्लिनिक।

2.      आयुष मंत्रालय

o    आयुर्वेद और योग हस्तक्षेप: पंचकर्म चिकित्सा, योग और पारंपरिक आहार जैसी प्रथाओं को मोटापा प्रबंधन के लिए बढ़ावा दिया जाता है।

o    अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान से 45,000 से अधिक मरीज लाभान्वित हुए।

o    आयुस्वास्थ्य योजना: मोटापा, मधुमेह और उच्च रक्तचाप को लक्षित करने वाली परियोजनाओं को वित्तपोषित करती है।

o    CSIR के साथ सहयोग: आयुर्वेद को आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ एकीकृत करना।

3.      महिला एवं बाल विकास मंत्रालय

o    पोषण अभियान (2018): बच्चों, किशोरों और माताओं के पोषण में सुधार पर काम करता है।

o    पोषण 2.0 (2021):

§  आंगनवाड़ी केंद्रों को मज़बूत करता है।

§  पोषण वाटिका (पोषण उद्यान) और बाजरे-आधारित आहार को बढ़ावा देता है।

§  सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों का उपयोग बढ़ाता है।

4.     युवा मामले और खेल मंत्रालय

o    फिट इंडिया मूवमेंट (2019): साइक्लिंग, योग, दैनिक गतिविधि और स्कूल प्रमाणपत्रों के माध्यम से फिटनेस को प्रोत्साहित करता है।

o    खेलो इंडिया (2016–17): अवसंरचना और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ जमीनी खेल संस्कृति का विस्तार करता है।

5.      भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI)

o    ईट राइट इंडिया मूवमेंट: सुरक्षित, पौष्टिक और टिकाऊ आहार को बढ़ावा देता है।

o    आज से थोड़ा कमअभियान: लोगों से वसा, चीनी और नमक का सेवन कम करने का आग्रह करता है।

o    हाई फैक्ट सुगर एंड साल्ट (HFSS) नियमन: उच्च वसा, नमक और शर्करा वाले खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग पर अनिवार्य लेबलिंग।

o    रिपर्पज़ यूज़्ड कुकिंग ऑयल (RUCO) पहल: रेस्तरां से इस्तेमाल किया हुआ तेल इकट्ठा कर उसे बायोडीजल में बदलना, हानिकारक पुनः उपयोग को रोकना।

आगे की राह:

    • कड़े नियमन: विशेषकर डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर जंक फूड विज्ञापनों पर कड़े नियंत्रण लागू करना।
    • सस्ती स्वास्थ्यवर्धक खाद्य सामग्री: सुनिश्चित करना कि सभी वर्गों के लिए ताजे फल, सब्जियाँ और प्रोटीन-समृद्ध वस्तुएँ उपलब्ध हों।
    • स्कूल-आधारित हस्तक्षेप: पोषण शिक्षा और दैनिक शारीरिक गतिविधि को स्कूल कार्यक्रमों में शामिल करना।
    • सामुदायिक जागरूकता: परिवारों में पारंपरिक, संतुलित आहार को पुनर्जीवित करना और पैक्ड खाद्य पदार्थों पर निर्भरता कम करना।
    • आधुनिक और पारंपरिक प्रथाओं का एकीकरण: दीर्घकालिक जीवनशैली परिवर्तन के लिए चिकित्सा उपचारों को योग और माइंडफुलनेस जैसी निवारक विधियों के साथ जोड़ना।

निष्कर्ष:

यूनिसेफ़ की रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि बचपन का मोटापा एक वैश्विक महामारी बन चुका है। भूख और अल्पपोषण अब भी मौजूद हैं, लेकिन मोटापा अब दुनिया भर में कुपोषण का सबसे आम रूप बनता जा रहा है। भारत के लिए, यह एक दोहरी चुनौती है कि किसी भी बच्चे को भूखा नहीं रहना चाहिए, लेकिन साथ ही बढ़ते मोटापे को नियंत्रण से बाहर होने से पहले रोकना होगा। जब तक सरकारें, स्कूल, समुदाय और परिवार मिलकर काम नहीं करेंगे, तब तक आज के बच्चे कल के ऐसे वयस्क बन सकते हैं जो जीवनभर स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त रहेंगे। बचपन के मोटापे से लड़ाई केवल रोग की रोकथाम के बारे में नहीं है जबकि यह सुनिश्चित करने के बारे में है कि आने वाली पीढ़ी स्वस्थ, उत्पादक और आर्थिक व सामाजिक विकास में योगदान देने में सक्षम हो।

यूपीएससी/पीसीएस मुख्य प्रश्न:- अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (UPFs) स्वाद, सुविधा और लाभ के लिए बनाए जाते हैं, लेकिन वे स्वास्थ्य और पारंपरिक आहार को नष्ट करते हैं।भारत में बढ़ते बचपन के मोटापे के संदर्भ में इस कथन पर चर्चा कीजिए।