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Daily-current-affairs / 25 Nov 2025

भारत में ट्रांसजेंडर अधिकार: कानूनी विकास और नीतिगत परिदृश्य

भारत में ट्रांसजेंडर अधिकार: कानूनी विकास और नीतिगत परिदृश्य

परिचय:

पिछले एक दशक में भारत में ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिए कानूनी और नीतिगत ढाँचा तेजी से विकसित हुआ है। एक समय पर लगभग अदृश्य और हाशिए पर रहने वाला यह समुदाय आज संवैधानिक मान्यता, समर्पित कल्याण योजनाओं और औपचारिक कानूनी संरक्षण का अधिकारी है। फिर भी नीतिगत कमियां अब भी स्वास्थ्य सेवाओं, दस्तावेज़ीकरण, आजीविका और शारीरिक स्वायत्तता जैसे क्षेत्रों में बाधाएँ उत्पन्न करती हैं।

      • हाल ही में केरल हाईकोर्ट में दायर एक याचिका जिसमें एक ट्रांसजेंडर ने अपने प्रजनन कोशिकाओं (Gametes) को संरक्षित करने का अधिकार मांगा, ने इन कमियों पर नए सिरे से ध्यान आकर्षित किया है। केंद्र सरकार द्वारा अदालत में यह हलफ़नामा दाखिल करना कि मौजूदा क़ानूनों के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्ति सहायक प्रजनन तकनीक (ART) का उपयोग नहीं कर सकते, ने ट्रांसजेंडर के प्रजनन अधिकारों, परिवार की परिभाषा और भारत में समावेशी स्वास्थ्य सेवा के भविष्य पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।

भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की स्थिति:

      • जनगणना 2011 में लगभग 4.87 लाख व्यक्तियों ने स्वयं को "अन्य लिंग" के रूप में दर्ज किया है, हालांकि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक मानी जाती है। हाल के वर्षों में कानूनी मान्यता में सुधार हुआ है, लेकिन सामाजिक स्वीकृति अब भी बहुत धीमी है।
        कई ट्रांसजेंडर व्यक्ति अभी भी
        • पारिवारिक अस्वीकार,
        • बाधित या अप्राप्य शिक्षा,
        • सीमित रोजगार अवसर, और
        • अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं से जूझ रहे हैं।
      • यहाँ तक कि जब कल्याण योजनाएँ उपलब्ध हैं, तब भी दस्तावेज़ों की जटिलता के कारण उन तक पहुँच कठिन हो जाती है। इसी दौरान लिंग-पुष्टि (Gender Affirming) स्वास्थ्य सेवाओं की मांग तेजी से बढ़ रही है और भारत इस क्षेत्र में एक प्रमुख चिकित्सा केंद्र के रूप में उभर रहा है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय मेडिकल टूरिज़्म भी शामिल है।

ART अधिनियम और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का बहिष्कार:

      • सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत ART सेवाएँ केवल
        • विवाहिता विषमलैंगिक दंपतियों और
        • एकल महिलाओं को उपलब्ध हैं।
      • यह अधिनियम एकल पुरुषों या ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को IVF, गैमेट संरक्षण या सरोगेसी से जुड़ी सेवाओं तक पहुँच की अनुमति नहीं देता।
      • केरल हाईकोर्ट में दाखिल हलफ़नामे में केंद्र सरकार ने कहा कि यह बहिष्कार जानबूझकर किया गया था और व्यापक संसदीय विमर्श के बाद कानून में शामिल किया गया है। सरकार के अनुसार कानून का उद्देश्य "बच्चे के सर्वोत्तम हित" की रक्षा करना है, और पात्रता में किसी भी विस्तार के लिए विशेषज्ञों से परामर्श और नई नीति की आवश्यकता होगी।
      • इस मामले में याचिकाकर्ता जो जेंडर-अफर्मिंग उपचार से गुजर रहे एक ट्रांसमैन हैं, ने भविष्य में उपयोग के लिए अपने गैमेट्स को संरक्षित करने की अनुमति मांगी थी। परन्तु कानून उन्हें पात्र लाभार्थी नहीं मानता, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
      • केंद्र सरकार का तर्क है कि यह मुद्दा केवल कानूनी नहीं बल्कि नीतिगत है, जिसमें परिवार संरचना, अभिभावकीय अधिकारों और ART के माध्यम से जन्म लेने वाले बच्चों के दीर्घकालिक कल्याण पर गहन विचार आवश्यक है। मामला अभी विचाराधीन है, लेकिन इसने राष्ट्रीय स्तर पर यह बहस फिर से तेज कर दी है कि क्या प्रजनन प्रौद्योगिकियाँ सभी को, उनकी लैंगिक पहचान से परे, उपलब्ध होनी चाहिए।

Transgender Rights in India

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ:

      • सामाजिक कलंक और भेदभाव: हिंसा, बहिष्करण और स्वीकृति का अभाव व्यापक रूप से विद्यमान है। अनेक व्यक्तियों को अनौपचारिक या असुरक्षित आजीविकाओं में धकेल दिया जाता है।
      • स्वास्थ्य सेवा संबंधी बाधाएँ: प्रशिक्षित चिकित्सीय विशेषज्ञों की कमी, सीमित जेंडर-अफर्मिंग स्वास्थ्य सेवाएँ, तथा अत्यधिक उपचार लागत सुरक्षित स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच को बाधित करती हैं।
      • दस्तावेज़ीकरण संबंधी समस्याएँ: पहचान पत्रों में लिंग-संबंधी विवरण संशोधन की प्रक्रियाओं में असंगति के कारण योजनाओं, नौकरी, आवास और शिक्षा तक पहुँच प्रभावित होती है।
      • आर्थिक हाशियाकरण: सीमित कौशल प्रशिक्षण और औपचारिक रोजगार अवसरों की कमी के कारण कई ट्रांसजेंडर व्यक्ति अर्थव्यवस्था के हाशिये पर धकेल दिए जाते हैं।
      • आवास असुरक्षा: सामाजिक अस्वीकृति और किराये पर घर लेने में भेदभाव के चलते ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को बेघरपन या असुरक्षित आवास परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
      • वित्तीय आवंटन की कमी: मंत्रालयों और सरकारी योजनाओं में ट्रांसजेंडर कल्याण हेतु बजटीय प्रावधान अब भी अपर्याप्त हैं।

ट्रांसजेंडर अधिकार:

1. संवैधानिक आधार:

      • भारत में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आधुनिक चरण की शुरुआत सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक NALSA बनाम भारत संघ (2014) निर्णय से हुई। इस फैसले में न्यायालय ने:
        • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को तृतीय लैंगिक श्रेणीके रूप में मान्यता दी,
        • आत्म-पहचान के अधिकार की पुष्टि की,
        • अनुच्छेद 14, 15, 16, 19 और 21 के अंतर्गत उनके अधिकारों का विस्तार किया, तथा
        • सरकारों को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक समावेशन हेतु नीतियाँ बनाने का निर्देश दिया।
      • यह निर्णय इस सिद्धांत को स्थापित करता है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति समानता, गरिमा, गोपनीयता और गैर-भेदभाव के अधिकारों के अधिकारी हैं, जो अन्य नागरिकों के समान हैं।

2. ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019

NALSA निर्णय को विधायी आधार प्रदान करने हेतु संसद ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 पारित किया, जो 10 जनवरी 2020 से प्रभावी हुआ। यह अधिनियम ट्रांसजेंडर अधिकारों और कल्याण हेतु प्रमुख केंद्रीय कानून के रूप में कार्य करता है।

अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ:

      • समावेशी परिभाषा: अधिनियम ट्रांसजेंडर पुरुष, ट्रांसजेंडर महिला, जेंडरक्वियर व्यक्ति, इंटरसेक्स वेरिएशन वाले व्यक्ति, हिजड़ा समुदाय और अन्य पहचानों को मान्यता देता है, चाहे उन्होंने सर्जरी या हार्मोनल उपचार कराया हो या नहीं।
      • भेदभाव-रोधी प्रावधान: शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा, आवागमन, निवास, तथा सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच में किसी भी प्रकार का भेदभाव निषिद्ध है।
      • आत्म-पहचान का अधिकार: व्यक्ति जिला मजिस्ट्रेट के माध्यम से पहचान प्रमाणपत्र प्राप्त कर सकते हैं। जेंडर-अफर्मिंग सर्जरी के उपरांत संशोधित प्रमाणपत्र जारी किया जा सकता है।
      • सरकार की कल्याणकारी ज़िम्मेदारियाँ: अधिनियम सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों, स्वास्थ्य सुविधाओं, बचाव सहायता और पुनर्वास सेवाओं को अनिवार्य करता है।
      • रोजगार संबंधी व्यवस्थाएँ: संस्थानों को शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करना, भेदभाव रोकना तथा समान अवसर उपलब्ध कराना आवश्यक है।
      • शिक्षा और कौशल विकास: समावेशी शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और छात्रवृत्ति योजनाओं पर बल दिया गया है।
      • स्वास्थ्य सेवा प्रावधान: सरकारी अस्पतालों में परामर्श, जेंडर-अफर्मिंग उपचार और बीमा कवरेज उपलब्ध कराना अपेक्षित है।

3. ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020

      • ये नियम 2019 के अधिनियम को कार्यान्वित करते हैं तथा निम्नलिखित प्रावधानों को अनिवार्य बनाते हैं
        • प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में अपराधों की निगरानी के लिए ट्रांसजेंडर संरक्षण प्रकोष्ठ (Protection Cells) की स्थापना
        • नीतियों के क्रियान्वयन हेतु ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड का गठन
        • पहचान प्रमाणपत्र जारी करने की समयबद्ध प्रक्रिया
      • वर्तमान में 20 राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों में संरक्षण प्रकोष्ठ तथा 25 राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों में कल्याण बोर्ड स्थापित हो चुके हैं।

4. संस्थागत समर्थन

      • राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद: वर्ष 2020 में गठित राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद एक राष्ट्रीय सलाहकार एवं निगरानी निकाय के रूप में कार्य करती है। इसमें समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ-साथ केंद्रीय मंत्रालयों, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC), राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW), राज्य सरकारों तथा विशेषज्ञों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
      • मुख्य कार्य:
        • नीतियों और विधिक प्रावधानों पर सलाह देना
        • कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की निगरानी
        • मंत्रालयों के बीच समन्वय स्थापित करना
        • शिकायतों का निवारण
        • योजनाओं की समीक्षा और नीतिगत अंतरालों की पहचान
      • यह परिषद समुदाय और सरकार के बीच एक महत्वपूर्ण संवाद सेतु के रूप में कार्य करती है।

प्रमुख सरकारी योजनाएँ:

राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर पोर्टल (2020)

एक बहुभाषीय डिजिटल मंच जो पहचान प्रमाणपत्र हेतु ऑनलाइन आवेदन की सुविधा प्रदान करता है तथा विभिन्न सरकारी योजनाओं तक पहुँच उपलब्ध कराता है। यह पूर्णतः डिजिटल प्रक्रिया पारदर्शिता बढ़ाती है और भौतिक बाधाओं को कम करती है।

SMILE योजना (2022)

यह योजना आजीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आश्रय और पुनर्वास पर केंद्रित है।

मुख्य घटक

      • कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण
      • विद्यालय छोड़ने की समस्या रोकने हेतु छात्रवृत्तियाँ
      • चिकित्सीय सहायता, जिसमें जेंडर-अफर्मिंग उपचार शामिल है
      • आयुष्मान भारत TG Plus बीमा, जिसमें प्रति व्यक्ति ₹5 लाख तक का कवरेज
      • गरिमा गृहजहाँ आवास, भोजन, परामर्श और आवश्यक सेवाएँ प्रदान की जाती हैं

वर्तमान में देशभर में 20 से अधिक गरिमा गृह संचालित हैं, जो त्यागे गए या बेघर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए सुरक्षित आवास उपलब्ध कराते हैं।

आगे की राह:

      • 2019 अधिनियम और 2020 नियमों का प्रभावी कार्यान्वयन: राज्यों को संरक्षण प्रकोष्ठ, कल्याण बोर्ड, शिकायत निवारण तंत्र और संस्थागत सुरक्षा उपायों को पूर्णतः क्रियाशील बनाना चाहिए।
      • स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुदृढ़ करना: TG Plus बीमा का विस्तार, सरकारी अस्पतालों में जेंडर-अफर्मिंग सेवाओं की वृद्धि तथा उपचार लागत में कमी स्वास्थ्य परिणामों में महत्वपूर्ण सुधार ला सकती है।
      • चिकित्सा शिक्षा में ट्रांसजेंडर स्वास्थ्य का समावेशन: चिकित्सकों, नर्सों, परामर्शदाताओं और प्रशासकों के लिए अनिवार्य प्रशिक्षण संवेदनशील और सूचित स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक है।
      • उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना: अनुसंधान, शल्य चिकित्सा, परामर्श और सामुदायिक समर्थन पर केंद्रित विशेष संस्थानों की स्थापना भारत को ट्रांसजेंडर स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व प्रदान कर सकती है।
      • दस्तावेज़ीकरण प्रणाली में सुधार: आधार, पैन, पासपोर्ट एवं शैक्षणिक अभिलेखों में लिंग संशोधन हेतु सरल और समयबद्ध प्रक्रियाएँ अत्यंत आवश्यक हैं।
      • उच्च वित्तीय समर्थन सहित राष्ट्रीय रणनीति का निर्माण: दीर्घकालिक और समन्वित रणनीति, पर्याप्त बजटीय प्रावधानों के साथ, आजीविका, स्वास्थ्य, आवास और सामाजिक सुरक्षा से संबंधित संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान कर सकती है।
      • प्रजनन प्रौद्योगिकियों तक पहुँच पर पुनर्विचार: केरल उच्च न्यायालय में चल रही याचिका ने यह आवश्यकता उजागर की है कि क़ानूनों को विविध पारिवारिक संरचनाओं को प्रतिबिंबित करने हेतु अद्यतन किया जाए। प्रजनन स्वायत्तता सुनिश्चित करना संविधान में प्रदत्त गरिमा और समानता के सिद्धांतों के अनुरूप है।

निष्कर्ष:

केरल उच्च न्यायालय में लंबित ART संबंधी मामला इस बात का महत्वपूर्ण स्मरण है कि ट्रांसजेंडर अधिकार विकास की प्रक्रिया में हैं। 2014 में संवैधानिक मान्यता से लेकर आज कल्याणकारी योजनाओं, डिजिटल समावेशन और नीतिगत सुधारों तक भारत ने ट्रांसजेंडर के सन्दर्भ में उल्लेखनीय प्रगति की है। तथापि, वास्तविक सशक्तिकरण तभी संभव होगा जब ये सुरक्षा उपाय व्यावहारिक जीवन में प्रभावी रूप से परिलक्षित हों।

 

UPSC/PCS मुख्य परीक्षा प्रश्न

भारतीय संविधान में प्रदत्त गरिमा, समानता और स्वायत्तता के सिद्धांतों के संदर्भ में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के प्रजनन अधिकारों को कैसे देखा जाना चाहिए? चर्चा कीजिए।