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Daily-current-affairs / 28 Oct 2025

हरित भारत की ओर: वैश्विक वन परिदृश्य में भारत का उभरता नेतृत्व

हरित भारत की ओर: वैश्विक वन परिदृश्य में भारत का उभरता नेतृत्व

सन्दर्भ:

भारत ने पर्यावरण संरक्षण में एक महत्वपूर्ण वैश्विक उपलब्धि हासिल की है। खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा जारी ग्लोबल फॉरेस्ट रिसोर्सेज असेसमेंट (GFRA) 2025 के अनुसार, भारत अब कुल वन क्षेत्र में विश्व में 9वें स्थान पर पहुंच गया है और वार्षिक शुद्ध वन क्षेत्र वृद्धि में लगातार तीसरा स्थान बनाए हुए है। बाली में आयोजित ग्लोबल फॉरेस्ट ऑब्ज़र्वेशन्स इनिशिएटिव (GFOI) प्लेनरी के दौरान प्रकाशित यह रिपोर्ट भारत की वनीकरण, सतत वन प्रबंधन और जलवायु कार्रवाई के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

ग्लोबल फॉरेस्ट रिसोर्सेज असेसमेंट GFRA 2025 के बारे में:

    • ग्लोबल फॉरेस्ट रिसोर्सेज असेसमेंट (GFRA), खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा हर पाँच वर्ष में प्रकाशित एक व्यापक मूल्यांकन है। यह वैश्विक स्तर पर वन क्षेत्र, स्थिति, प्रबंधन और उपयोग पर आधिकारिक राष्ट्रीय रिपोर्टों के आधार पर डेटा प्रदान करता है। आकलन में वनों को प्राकृतिक रूप से पुनर्जीवित या लगाए गए वनों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जिसमें प्राथमिक वन, प्लांटेशन वन (जैसे रबर) और अन्य लगाए गए वन जैसी श्रेणियाँ शामिल हैं।
    • 2025 संस्करण ने वनों की कटाई, वन विस्तार और कार्बन भंडारण में वैश्विक प्रवृत्तियों का मूल्यांकन किया। रिपोर्ट में पुष्टि की गई कि विश्व का कुल वन क्षेत्र लगभग 4.14 अरब हेक्टेयर है, जो पृथ्वी की स्थलीय सतह का लगभग 32% या प्रति व्यक्ति लगभग 0.5 हेक्टेयर है।

भारत की रैंकिंग और योगदान:

GFRA 2025 में भारत का प्रदर्शन उसके पर्यावरणीय प्रयासों में निरंतर प्रगति को दर्शाता है:

    • कुल वन क्षेत्र में 9वां स्थान: भारत का वन क्षेत्र 72.74 मिलियन हेक्टेयर है, जो वैश्विक वन आच्छादन का लगभग 2% है। यह 2020 के आकलन में 10वें स्थान से सुधार है।
    • वार्षिक शुद्ध वन क्षेत्र वृद्धि में तीसरा स्थान: 2015 से 2025 के बीच भारत में हर वर्ष औसतन 1,91,000 हेक्टेयर वन क्षेत्र की शुद्ध वृद्धि दर्ज की गई, जो चीन और रूस के बाद तीसरे स्थान पर है।
    • वैश्विक कार्बन सिंक में 5वां स्थान: 2021–2025 के दौरान भारतीय वनों ने प्रतिवर्ष लगभग 150 मिलियन टन CO अवशोषित किया, जिससे यह वैश्विक जलवायु शमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

ये उपलब्धियाँ मुख्यतः वृक्षारोपण अभियानों, वनीकरण प्रयासों और राष्ट्रीय कार्यक्रमों के तहत सतत वन प्रबंधन के कारण संभव हुई हैं।

वैश्विक वन परिदृश्य:

विश्व स्तर पर वन वितरण अत्यंत असमान है:

    • यूरोप के पास सबसे अधिक वन क्षेत्र है (वैश्विक कुल का 25%)
    • दक्षिण अमेरिका में भूमि क्षेत्र के अनुपात में सबसे अधिक वन आच्छादन (49%) है।
    • विश्व के आधे से अधिक वन क्षेत्र केवल पाँच देशों रूस, ब्राज़ील, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन में स्थित हैं।
    • कुछ देशों जैसे मोनाको और वेटिकन सिटी में कोई वन क्षेत्र नहीं है।

रिपोर्ट यह भी बताती है कि वनों की कटाई की दर में गिरावट आई है 1990–2000 के दौरान 17.6 मिलियन हेक्टेयर प्रति वर्ष से घटकर 2015–2025 के दौरान लगभग 10.9 मिलियन हेक्टेयर प्रति वर्ष रह गई है, जो सतत प्रबंधन की दिशा में प्रगति को दर्शाती है।

भारत की वन प्रोफाइल:

इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (ISFR) 2023 के अनुसार:

    • कुल वन आच्छादन: 7,15,343 वर्ग किमी, जो भारत के भौगोलिक क्षेत्र का 21.76% है।
    • शीर्ष राज्य: मध्य प्रदेश (77,073 वर्ग किमी), अरुणाचल प्रदेश (65,882 वर्ग किमी) और छत्तीसगढ़ (55,812 वर्ग किमी)।
    • मैंग्रोव आच्छादन: लगभग 4,992 वर्ग किमी, जो अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह, गुजरात, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में केंद्रित है।
    • संरक्षित क्षेत्र: भारत में 106 राष्ट्रीय उद्यान, 573 वन्यजीव अभयारण्य, 115 संरक्षण रिज़र्व और 220 सामुदायिक रिज़र्व हैं।

ये आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत ने न केवल अपने हरित क्षेत्र का विस्तार किया है बल्कि जैव विविधता संरक्षण और पारिस्थितिक पुनर्स्थापन को भी सुदृढ़ किया है।

भारत की प्लांटेड फॉरेस्ट्स और एग्रोफॉरेस्ट्री में शक्ति:

    • बाँस के वन (Bamboo Plantations):
      भारत के पास 11.8 मिलियन हेक्टेयर बाँस वन हैं जो वैश्विक बाँस क्षेत्र का लगभग 39% है। वैश्विक बाँस संसाधन लगभग 30.1 मिलियन हेक्टेयर हैं, जिनका अधिकांश हिस्सा एशिया में स्थित है। पिछले तीन दशकों में भारत और चीन बाँस वन क्षेत्र में वृद्धि के प्रमुख योगदानकर्ता रहे हैं।
    • रबर प्लांटेशन:
      भारत रबर प्लांटेशन में वैश्विक स्तर पर 5वें स्थान पर है, जिसका क्षेत्रफल 8.31 लाख हेक्टेयर है, जबकि वैश्विक कुल 10.9 मिलियन हेक्टेयर है। ये प्लांटेशन जीविकोपार्जन का समर्थन करते हुए कार्बन अवशोषण में भी योगदान देती हैं।
    • एग्रोफॉरेस्ट्री विस्तार:
      एग्रोफॉरेस्ट्री जिसमें फसलों और पशुधन के साथ पेड़ों का एकीकरण किया जाता है भारत में वन विस्तार का एक प्रमुख कारक बनकर उभरा है। भारत और इंडोनेशिया मिलकर विश्व के लगभग 70% एग्रोफॉरेस्ट्री क्षेत्र (55.4 मिलियन हेक्टेयर) के लिए जिम्मेदार हैं। एशिया में लगभग पूरा एग्रोफॉरेस्ट्री क्षेत्र (39.3 मिलियन हेक्टेयर) इन्हीं दो देशों से आता है।
      यह दृष्टिकोण न केवल हरित आवरण बढ़ाता है बल्कि मिट्टी की उर्वरता, जल धारण क्षमता और ग्रामीण आय में भी सुधार करता है।

वन कार्बन प्रवृत्तियाँ (1990–2025):

FAO के विश्लेषण में उत्साहजनक कार्बन प्रवृत्तियाँ सामने आई हैं:
वैश्विक वनों ने 2021–2025 के दौरान प्रति वर्ष 3.6 अरब टन CO
अवशोषित कर एक शुद्ध कार्बन सिंक के रूप में कार्य किया।
वनों के रूपांतरण (वनों की कटाई) से 2.8 अरब टन कार्बन उत्सर्जन हुआ, जिससे प्रति वर्ष 0.8 अरब टन CO
का शुद्ध निष्कासन दर्ज हुआ।
यूरोप और एशिया में वन कार्बन सिंक सबसे मजबूत रहा जो क्रमशः 1.4 Gt और 0.9 Gt CO
का प्रति वर्ष अवशोषण कर रहा है।
भारत का योगदान उल्लेखनीय है इसके वनों ने प्रतिवर्ष 150 Mt CO
अवशोषित किया, जो निरंतर संरक्षण और वृक्षारोपण प्रयासों का परिणाम है।

वन वृद्धि को प्रोत्साहित करने वाली प्रमुख सरकारी पहलें:

1. हरित भारत मिशन (GIM)
2014 में राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्ययोजना (NAPCC) के तहत शुरू किया गया ग्रीन इंडिया मिशन निम्नलिखित लक्ष्यों पर केंद्रित है:
• 5 मिलियन हेक्टेयर वन एवं वृक्ष आच्छादन बढ़ाना और अन्य 5 मिलियन हेक्टेयर की गुणवत्ता सुधारना।
जैव विविधता, जल और कार्बन भंडारण जैसी पारिस्थितिकी सेवाओं को बढ़ाना।
लगभग 30 लाख वन-निर्भर परिवारों के लिए आजीविका के अवसर सुधारना।
हाल के वर्षों में, ग्रीन इंडिया मिशन ने अरावली, पश्चिमी घाट, हिमालय और मैंग्रोव जैसे क्षतिग्रस्त परिदृश्यों पर ध्यान केंद्रित किया है, जो भारत के व्यापक पुनर्स्थापन लक्ष्यों के अनुरूप है।

2. राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP)
यह कार्यक्रम विकेंद्रीकृत प्रणाली के माध्यम से क्षतिग्रस्त वनों के पारिस्थितिक पुनर्जनन को बढ़ावा देता है, जिसमें शामिल हैं:
राज्य वन विकास एजेंसियाँ (SFDA)
प्रभाग स्तर पर वन विकास एजेंसियाँ (FDA)
ग्राम स्तर पर संयुक्त वन प्रबंधन समितियाँ (JFMCs)
यह स्थानीय समुदायों को वनीकरण और वन संरक्षण के प्रयासों में एकीकृत करता है।

3. मिशन LiFE (Lifestyle for Environment)
भारत द्वारा शुरू किया गया यह वैश्विक आंदोलन व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर सतत जीवनशैली अपनाने पर केंद्रित है।
“MeriLiFE” पोर्टल नागरिकों को पर्यावरण-अनुकूल आदतें अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।
एक पेड़ माँ के नाम जैसे अभियान वृक्षारोपण के प्रति भावनात्मक जुड़ाव को बढ़ावा देते हैं।
मिशन LiFE को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा द्वारा मान्यता प्राप्त हुई, जिससे भारत की पर्यावरणीय नेतृत्व भूमिका मजबूत हुई।

4. पर्यावरण क्षेत्र के लिए बजटीय प्रोत्साहन
2025–26 के केंद्रीय बजट में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) को ₹3,412.82 करोड़ का आवंटन मिला, जो पिछले वर्ष की तुलना में 9% अधिक है। इसमें ₹3,276.82 करोड़ राजस्व व्यय शामिल है, जो वनीकरण, वन पुनर्स्थापन और वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रमों को समर्थन प्रदान करता है।

वैश्विक प्रतिबद्धताएँ और भविष्य के लक्ष्य:

भारत की राष्ट्रीय जलवायु प्रतिज्ञा के तहत लक्ष्य हैं:
• 2030 तक 2.5–3 अरब टन CO
के अतिरिक्त कार्बन सिंक का निर्माण बढ़े हुए वन एवं वृक्ष आच्छादन के माध्यम से करना।
बॉन चैलेंज और UNCCD प्रतिबद्धताओं के तहत 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर क्षतिग्रस्त भूमि को बहाल करना।
ग्रीन इंडिया मिशन, ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट और अन्य वनीकरण पहलों के तहत किए जा रहे प्रयास इन लक्ष्यों की प्राप्ति में केंद्रीय भूमिका निभाएँगे।

वनों का महत्व:

वन केवल कार्बन सिंक नहीं हैं वे जीवन-समर्थन प्रणाली हैं।
वे भूजल को फ़िल्टर करते हैं और पुनर्भरण करते हैं, प्राकृतिक शुद्धिकर्ता के रूप में कार्य करते हैं।
जड़ें मिट्टी को स्थिर करती हैं और भूस्खलन तथा बाढ़ को रोकती हैं।
मैंग्रोव तटीय तूफानों और कटाव से रक्षा करते हैं।
वन पारिस्थितिकी तंत्र स्थलीय जैव विविधता का 80% से अधिक समर्थन करते हैं, जिसमें अधिकांश उभयचर, पक्षी और परागणकर्ता शामिल हैं।
वे स्थानीय समुदायों को ईंधन, भोजन, औषधि और आजीविका संसाधन प्रदान करते हैं।

निष्कर्ष:

कुल वन क्षेत्र में विश्व में 9वां और वार्षिक वन वृद्धि में तीसरा स्थान प्राप्त करना इस बात का प्रमाण है कि सतत नीति फोकस, सामुदायिक भागीदारी और वैज्ञानिक वनीकरण से ठोस परिणाम संभव हैं। जहाँ कई क्षेत्रों में वनों की कटाई जारी है, वहीं भारत का निरंतर वन विस्तार और शीर्ष वैश्विक कार्बन सिंक में स्थान उसकी इस क्षमता को दर्शाता है कि वह विकास और पारिस्थितिक उत्तरदायित्व के बीच संतुलन बनाए रख सकता है। जन, नीति और प्रकृति को जोड़कर भारत धीरे-धीरे एक हरित और अधिक लचीले भविष्य की ओर अग्रसर है जहाँ वन पर्यावरणीय सुरक्षा और मानव कल्याण दोनों के केंद्र में हैं।

UPSC/PCS मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारत के वन पुनर्स्थापन और कार्बन अवशोषण लक्ष्यों की प्राप्ति में हरित भारत मिशन (GIM) और राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP) की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिए।