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Daily-current-affairs / 10 Jul 2023

जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद का पुनरुत्थान: चिंताएँ और संभावित समाधान - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख (Date): 11-07-2023

प्रासंगिकता: जीएस पेपर 3: सुरक्षा - उग्रवाद

की-वर्ड: AFSPA, नियंत्रण रेखा, कश्मीर उग्रवाद

सन्दर्भ :

जम्मू-कश्मीर में राजौरी-पुंछ क्षेत्र में आतंकवाद में पुनरुत्थान देखा गया है, जिससे सुरक्षा स्थिति को लेकर ऊहापोह बढ़ गई है।

जम्मू कश्मीर में आतंकवाद

  • उग्रवाद का अर्थ सामान्यतया किसी उद्देश्य का समर्थन करने के लिए हिंसा या आक्रामकता का उपयोग करना है।
  • संघर्षरत समाज 'हमारे' और 'वे' के बीच विभाजन को मजबूत करते हैं, जो कश्मीर में स्पष्ट है।
  • 1989 के अलगाववादी प्रकोप और उसके बाद के सरकारी अभियानों ने कश्मीरियों के बीच 'हम बनाम वे' की कहानी को तेज कर दिया है, जिससे वे भारतीय राजनीति से अलग हो गए हैं।
  • राज्य की कार्रवाइयों में गिरफ़्तारी, स्थानीय उग्रवादियों की हत्या और पीएसए और एएफएसपीए जैसे कानूनों को लागू करना शामिल है।
  • कश्मीरियों के बीच भारत के बारे में "उपनिवेशवादी" या "कब्जाधारी" के रूप में नकारात्मक धारणाएं उत्पन्न हुई हैं।

सरकारी प्रयास :

  • स्थानीय उग्रवादियों की खोज ,लक्षित कार्रवाई और गिरफ़्तारी ।
  • PSA और AFSPA जैसे कानूनों का क्रियान्वयन।

प्रभाव:

  • नकारात्मक धारणाओं का सुदृढ़ीकरण।
  • भारत को उपनिवेशक या कब्ज़ाकर्ता के रूप में देखना।

नवीन गतिविधियाँ

  • 2014 और 2020 के बीच, इस क्षेत्र में स्थानीय उग्रवाद और पथराव की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, परिणामस्वरूप, भारतीय सशस्त्र बलों ने आतंकवादी नेटवर्क और शीर्ष कमांडरों को समाप्त करने के लिए 2017 में 'ऑपरेशन ऑल आउट' आरंभ किया।, चूंकि अधिकांश आतंकवादी स्थानीय थे, इसलिए इन अभियानों ने 'हम बनाम वे' विभाजन को और गहरा कर दिया।
  • 2019 में जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति को समाप्त करने से आतंकवाद-प्रेरित हिंसा में वृद्धि से चिंताएँ बढ़ गईं। हालाँकि, डोडा को आतंकवादी-मुक्त जिला घोषित किए जाने के बाद से सुरक्षा स्थिति में सुधार हुआ है।
  • जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश के रूप में दो साल पूरे होने पर भी , आतंकवाद एक बड़ी चुनौती बनी हुई है,क्योंकि अफगानिस्तान में तालिबान के नियंत्रण से जेईएम और एचयूएम जैसे आतंकवादी संगठनों को मजबूती मिल रही है।

भावी रणनीति :

  • राजनीतिक और शासन संबंधी मुद्दों के समाधान के साधन के रूप में जिला विकास परिषदों (डीडीसी) और जमीनी स्तर के विकास पर बल दिया जाना चाहिए ।
  • सोशल मीडिया सूचना का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है, इसलिए चरमपंथी सामग्री के प्रसार को रोकने के लिए एआई और अन्य प्रौद्योगिकियों में निवेश किया जाना प्रभावकारी परिणाम दे सकता है ।
  • इसके अतिरिक्त, शिक्षा और विश्वासपूर्ण संबंधों की स्थापना पर विशेष पर ध्यान देने से दीर्घकालिक शांति की स्थापना में योगदान मिल सकता है।
  • कश्मीर और भारत के बीच विभाजन को पाटने वाली कहानियों का निर्माण महत्वपूर्ण है, और सशस्त्र संघर्ष की अनुपस्थिति इन प्रयासों को मजबूत करने और क्षेत्र में स्थायी शांति लाने का अवसर प्रदान करती है। क्योंकि कश्मीरियों को यह अहसास दिलाना की वो भारत का अभिन्न अंग हैं कश्मीर की शांति व प्रगति का सबसे अहम पहलु है ।

उग्रवाद के पुनरुथान से सम्बन्धित चिंताएँ:

आतंक संबंधी घटनाओं में वृद्धि:

  • राजौरी-पुंछ क्षेत्र में हाल के वर्षों में आतंकवादी घटनाओं में अपेक्षाकृत वृद्धि देखी गई है।
  • आतंकी हमलों के परिणामस्वरूप सुरक्षा कर्मियों सहित कई लोगों की जान चली गई, जो प्रभावी उग्रवाद विरोधी उपायों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

घुसपैठ की बदलती गतिशीलता:

  • नियंत्रण रेखा (एलओसी) के माध्यम से घुसपैठ के पारंपरिक मार्ग बदल गए हैं, आतंकवादियों के द्वारा नेपाल और बांग्लादेश सीमाओं के माध्यम से वैकल्पिक मार्गों के उपयोग किया जा रहा है। यह आतंकवादी घुसपैठ को रोकने में सुरक्षा बलों के लिए एक चुनौती उत्पन्न करता है।

उग्रवादियों के प्रभावी होने के लिए उत्तरदायी कारक :

  • इसके कई कारक उत्तरदायी हैं , जैसे स्मार्ट तकनीक का उपयोग, छोटे समूहों में ऑपरेशन, और स्लीपर सेल और ओवर ग्राउंड वर्कर्स का पुनर्जीवन, ने उग्रवादियोंको मजबूत किया है ।
  • इसके अतिरिक्त, नशीली दवाओं का खतरा और आतंकवाद के साथ इसका संबंध नयी चुनौतियां उत्पन्न कर रहा है।

चुनौतियों का समाधान:

स्थानीय समर्थन का महत्व:

  • सेना को स्थानीय आबादी, विशेषकर गुर्जर-बक्करवाल समुदाय के समर्थन ने अतीत में उग्रवाद का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • समुदाय के भीतर किसी भी शिकायत या अलगाव को समझने और उसका समाधान करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

व्यापक दृष्टिकोण:

  • उग्रवाद का मुकाबला करने के लिए " समग्र दृष्टिकोण" की आवश्यकता है,इन चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए शासन, न्याय और सुरक्षा क्षेत्रों में समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।

सामाजिक-राजनीतिक कारक:

  • वन अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन में अंतराल और आरक्षण के मुद्दों पर गुर्जर-बक्करवाल और पहाड़ियों के बीच तनाव जैसे सामाजिक-राजनीतिक कारकों की जांच करने से अलगाव के मूल कारणों की पहचान करने और उन्हें संबोधित करने में मदद मिल सकती है।

निष्कर्ष:

राजौरी-पुंछ क्षेत्र में आतंकवाद के पुनरुत्थान पर तत्काल ध्यान देने और व्यापक रणनीति अपनाने की आवश्यकता है। स्थानीय आबादी, विशेषकर गुर्जर-बक्करवाल के साथ जुड़कर और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को संबोधित करके, चुनौतियों पर नियंत्रण पाना और क्षेत्र में शांति बहाल करना आवश्यक है। आतंकवाद का मुकाबला करने और दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है जिसमें कई क्षेत्र और हितधारक शामिल हों।

मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  • प्रश्न 1. उग्रवाद क्या है? जम्मू कश्मीर में आतंकवाद के बढ़ने के लिए जिम्मेदार अंतर्निहित कारकों का विश्लेषण कीजिये । उग्रवाद से निपटने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं इसकी भी विवेचना कीजिये ? (10 अंक, 150 शब्द)
  • प्रश्न 2. उग्रवादियों द्वारा नेपाल और बांग्लादेश सीमा से वैकल्पिक मार्गों से घुसपैठ की बदलती गतिशीलता का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये । बढ़ते उग्रवाद के समाधान के लिए व्यवहारिक सुझाव भी दीजिये ? (15 अंक, 250 शब्द)

Source : The Hindu

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