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Daily-current-affairs / 02 Feb 2024

भारत में इंटरनेट शटडाउन की चुनौती: संवैधानिक अधिकार तथा आर्थिक अनिवार्यताएं

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सन्दर्भ

  • इंटरनेट तक अनिवार्य पहुँच को अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायलय द्वारा विगत 10 जनवरी, 2020 को भारत में मौलिक अधिकार घोषित किया गया था।
  • इस निर्णय ने सरकार द्वारा लगाए जाने वाले इंटरनेट सम्बन्धी सभी प्रतिबंधों के लिए उपयुक्त मानकों को रेखांकित किया। साथ ही उनकी अस्थायी, सीमित, वैध, आवश्यक और आनुपातिक प्रकृति के महत्त्व को भी उजागर किया।
  • हालाँकि, इन सुरक्षा उपायों के बावजूद, पिछले कई वर्षों में इंटरनेट शटडाउन में लगातार वृद्धि हुई है, जिससे भारत सहित वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
  • सूचना के प्रवाह पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए इंटरनेट या इलेक्ट्रॉनिक संचार को जानबूझकर बाधित करना ही इंटरनेट शटडाउन कहलाता है। यह सामान्यतः सूचना के प्रवाह पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए किसी विशिष्ट आबादी के लिए या किसी विशेष क्षेत्र में, विशेषकर मोबाइल इंटरनेट को प्रभावी रूप से अनुपयोगी बना देता है। ये शटडाउन विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लागू किए जाते हैं, जिनका सामान्य औचित्य सांप्रदायिक तनाव, नागरिक अशांति या दंगों की रोकथाम करना है।

इंटरनेट शटडाउन के दो मुख्य प्रकार हैं:

  • निवारक शटडाउन:
    • इसे संभावित विघटनकारी घटना घटित होने से पहले सक्रिय रूप से कार्यान्वित किया जाता है।
    • उदाहरण:
      • उदयपुर में एक दर्जी का सिर काटने वाले वीडियो के प्रसार के जवाब में, संभावित सांप्रदायिक दंगे की आशंका में इस प्रकार का शटडाउन लागू किया गया था।
  • प्रतिक्रियाशील शटडाउन:
    • यह किसी ऐसी घटना के प्र्त्युतर में लागू किया गया जाता है, जो पहले ही घटित हो चुकी है।
    • इस प्रकार के शटडाउन का उपयोग अक्सर अनियंत्रित कानून-व्यवस्था को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने और प्रबंधित करने के लिए एक त्वरित उपाय के रूप में किया जाता है।

वैधानिक उपबंध:

  • वर्ष 2017 में, एक संशोधन के तहत दूरसंचार सेवाओं का अस्थायी निलंबन (सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा) नियम, 2017 लाया गया था। यह संशोधित कानून पारंपरिक नियमों से हटकर टेलीग्राफ अधिनियम 1855 की धारा 5(2) की व्यापक व्याख्या पर निर्भर करता है।
  •  ऐसे निर्देश जारी करने का अधिकार इस समय गृह मंत्रालय के सचिव के पास है।
  • उच्चतम न्यायलय ने अनुराधा भसीन और फहीमा शिरीन जैसे निर्णयों में इंटरनेट तक पहुंच को संरक्षित एवं सीमित करने के महत्व पर जोर दिया है।
  • अदालत ने विशिष्ट निर्देशों की रूपरेखा तैयार की है, जिसमें कहा गया है, कि इंटरनेट शटडाउन केवल असाधारण नियंत्रण और निगरानी की आवश्यक स्थितियों में ही लागू किया जाना चाहिए।
  • इसके अलावा, अदालत ने इस बात का भी उल्लेख किया है, कि ऐसे शटडाउन अस्थायी, सीमित दायरे में, वैध और आनुपातिक होने चाहिए।
  • अनुराधा भसीन मामले के निर्णय के आधार पर यह अनिवार्य किया गया है, कि यदि इंटरनेट शटडाउन लागू किया जाता है, तो प्रभावित व्यक्तियों को सूचित किया जाना चाहिए। हालाँकि, यह अक्सर देखा गया है कि इन शटडाउन के संबंध में सार्वजनिक जानकारी का अभाव रहता है।

हालिया उदाहरण और आदेशों का गैर-अनुपालन:

  • हालिया आदेशों के गैर-अनुपालन का एक ज्वलंत उदाहरण केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर द्वारा लगाए गए हालिया प्रतिबंधों में स्पष्ट दिखता है। कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी की मौत के विरोध में, सरकार ने कश्मीर घाटी में मोबाइल डेटा तक पहुंच प्रतिबंधित कर दी थी।
  • किसानों के विरोध प्रदर्शन के बाद हरियाणा में भी देखे गए ऐसे प्रतिबंध चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाते हैं। हालाँकि पहुँच को प्रतिबंधित करने वाले कुछ आदेश प्रकाशित किए गए हैं, लेकिन वे अनिवार्यता के बजाय केवल अपवाद बने हुए हैं। विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर सरकार अपनी आधिकारिक वेबसाइटों पर निलंबन आदेश अपलोड करने में लापरवाही बरत रही है, जिससे पारदर्शिता का अभाव बढ़ता जा रहा है।
  • सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर द्वारा निर्मित इंटरनेट शटडाउन ट्रैकर जम्मू और कश्मीर में विशिष्ट उदाहरणों के साथ, इंटरनेट सेवाओं के लगातार निलंबन को चिन्हित करता रहा है। इन आदेशों का गैर-प्रकाशन केवल व्यक्तियों को अदालत में प्रतिबंधों की वैधता को चुनौती देने से रोकता है, बल्कि सरकार और उसके नागरिकों के बीच विश्वास की कमी को भी बढ़ावा देता है।

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव:

  • कानूनी निहितार्थों से परे, इंटरनेट शटडाउन अर्थव्यवस्था और समाज दोनों को प्रभावित करता है। वर्ष 2020 में, लगभग $2.8 बिलियन का आर्थिक नुकसान और इंटरनेट निलंबन की 129 घटनाओं के कारण हुए व्यवधान ने लगभग 10.3 मिलियन व्यक्तियों को प्रभावित किया। सूचना, मनोरंजन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और आजीविका के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में, सेवा करने वाला इंटरनेट आधुनिक मानव जीवन का एक अभिन्न अंग है। इस तरह के निलंबन से होने वाला नुकसान, जिसमें आर्थिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और पत्रकारिता जैसे कई पहलू शामिल हैं; किसी भी अनुमानित लाभ से अधिक है।
  • वर्तमान इंटरनेट प्रतिबंधों के औचित्य में अक्सर मोबाइल डेटा सेवाओं पर सीमित प्रभाव का हवाला दिया जाता है, जबकि, यह तर्क वास्तविकता को नजरअंदाज कर देता है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार कुल इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से 97.02% मोबाइल उपकरणों पर निर्भर हैं, केवल 3% के पास ही ब्रॉडबैंड इंटरनेट तक पहुंच है। परिणामस्वरूप, इंटरनेट प्रतिबंध निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के लोगों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं, जिससे असमानताएं और अधिक बढ़ जाती हैं।

इंटरनेट शटडाउन के पक्ष में तर्क:

  • हानिकर कंटेंट के प्रसार को रोकना: समर्थकों का तर्क है कि इंटरनेट शटडाउन से नफरत भरे भाषण और फर्जी खबरों के प्रसार को रोका जा सकता है, जो हिंसा और अशांति को भड़का सकते हैं।
    • उदाहरण:
      • किसानों के विरोध प्रदर्शन के बाद दिल्ली एनसीआर में सरकार द्वारा इंटरनेट बंद करने का उद्देश्य गलत सूचना से निपटना और कानून-व्यवस्था को बनाए रखना था।
  • सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखना: कई अधिवक्ताओं का दावा है, कि सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा को बाधित करने वाले विरोध प्रदर्शनों के संगठन एवं लामबंदी पर अंकुश लगाने के लिए इंटरनेट शटडाउन आवश्यक है।
    • उदाहरण:
      • अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद राष्ट्र विरोधी गतिविधियों और अलगाववादी आंदोलनों को रोकने के लिए कश्मीर में शटडाउन लागू किया गया था।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा करना: समर्थकों का तर्क है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता को बाह्य खतरों और साइबर हमलों से बचाने के लिए इंटरनेट शटडाउन आवश्यक है।
    • उदाहरण:
      • सरकार ने जासूसी या तोड़फोड़ को रोकने के लिए चीन के साथ गतिरोध के दौरान सीमावर्ती क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया था।
  • हानिकर कंटेंट के वितरण को नियंत्रित करना: कुछ लोगों का तर्क है कि इंटरनेट शटडाउन उस कंटेंट के वितरण और उपभोग को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है जो कुछ समूहों या व्यक्तियों के लिए हानिकारक या आक्रामक हो सकती है। साथ ही आपत्तिजनक छवियों या वीडियो के प्रसार को रोकने के उपाय के रूप में विशिष्ट क्षेत्रों में इंटरनेट पहुंच को अवरुद्ध करने का हवाला दिया गया है।

इंटरनेट शटडाउन के विरुद्ध तर्क:

  • लोकतंत्र और जवाबदेही को कमजोर करना: आलोचकों का तर्क है कि इंटरनेट शटडाउन नागरिकों को जानकारी तक पहुंचने, राय व्यक्त करने, सार्वजनिक बहस में भाग लेने और अधिकारियों को उनके कार्यों के लिए उत्तरदायी बनाने से रोककर लोकतंत्र को कमजोर करता है।
  • अधिनायकवाद को बढ़ावा देना: विरोधियों का दावा है कि इंटरनेट शटडाउन सत्तावादी सरकारों को आलोचकों को चुप कराने और विकृत सूचना के प्रसार करने, असहमति और विविध दृष्टिकोणों को दबाने में सक्षम बना सकता है।
  • गैर-प्रभावीता और प्रतिकूलता: कई आलोचकों का तर्क है कि इंटरनेट शटडाउन अप्रभावी और प्रतिकूल है, क्योंकि वे उन मुद्दों के मूल कारणों को संबोधित करने में विफल रहते हैं, जिन्हें वे हल करना चाहते हैं।
    • उदाहरण:
      • शटडाउन से हिंसा या आतंकवाद नहीं रुकता, बल्कि प्रभावित आबादी में विरोध और नाराजगी बढ़ सकती है।
  • गलत सूचना को नियंत्रित करने में विफलता: आलोचकों का तर्क है कि इंटरनेट शटडाउन गलत सूचना या घृणास्पद भाषण को प्रभावी ढंग से नहीं रोकता है। इसके बजाय, वे सूचना शून्यता उत्पन्न करते हैं।
  • मनमानी प्रकृति और उचित प्रक्रिया का अभाव: आलोचकों का कहना है कि इंटरनेट शटडाउन मनमानी प्रकृति का है और इसका दुरुपयोग होने की संभावना है। इससे अक्सर उचित प्रक्रिया, पारदर्शिता या न्यायिक निरीक्षण के बिना लगाया जाता है। कानूनी शक्ति के अभाव में स्थानीय अधिकारी अक्सर इस प्रकार के शटडाउन का आदेश देते हैं।
  • स्पष्ट मानदंड और निरीक्षण का अभाव: आलोचक इस बात पर भी जोर देते हैं, कि इंटरनेट शटडाउन में स्पष्ट और वस्तुनिष्ठ मानदंड, समयावधि और सीमा का अभाव है, जो उन्हें राजनीतिक हस्तक्षेप और मानवाधिकारों के उल्लंघन के प्रति संवेदनशील बनाता है।

निष्कर्ष:

  • भारत में इंटरनेट शटडाउन की लगातार समस्या दोहरी चुनौती पेश करती है: - संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन तथा अर्थव्यवस्था और समाज पर हानिकारक प्रभाव। उच्चतम न्यायलय के अनुराधा भसीन निर्णय ने स्पष्ट दिशानिर्देश दिए, जिसमें प्रतिबंधों की अस्थायी प्रकृति और पारदर्शिता और कानूनी जांच की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। हालाँकि, बाद में इंटरनेट शटडाउन में वृद्धि, विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर में, गैर-अनुपालन और जवाबदेही की कमी की एक चिंताजनक प्रवृत्ति को रेखांकित करती है।
  • वैश्विक "इंटरनेट शटडाउन राजधानी" होने के टैग को हटाने और डिजिटल इंडिया की क्षमता का एहसास करने के लिए, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का ईमानदारी से अनुपालन अनिवार्य है। इसमें केवल अनुराधा भसीन द्वारा उल्लिखित संवैधानिक सिद्धांतों का पालन करना शामिल है, बल्कि इन सिद्धांतों को वैधानिक ढांचे में शामिल करना भी शामिल है। सरकार को यह समझना चाहिए कि समकालीन दुनिया में इंटरनेट उपयोग एक आवश्यकता है, और सार्वजनिक रूप से बताए गए कारणों के बिना कोई भी प्रतिबंध आम जनों में विश्वास की कमी पैदा करता है।
  • अतः इंटरनेट शटडाउन से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो विभिन्न मुद्दे के आर्थिक, सामाजिक और कानूनी आयामों पर विचार करे। नीतियों को संवैधानिक सिद्धांतों के साथ जोड़कर, पारदर्शिता को बढ़ावा देने के साथ-साथ सूचना तक पहुंच के मौलिक अधिकार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि भारत डिजिटल युग में सुरक्षा चिंताओं और लोकतांत्रिक मूल्यों के बीच नाजुक संतुलन बना रहे। 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

1.    इंटरनेट शटडाउन पर उच्चतम न्यायलय के दिशानिर्देशों की व्याख्या करें। गैर-अनुपालन के हालिया उदाहरणों का विश्लेषण करें और सरकार को नीतियों को प्रभावी ढंग से संरेखित करने के तरीके सुझाएं। (10 अंक, 150 शब्द)

2.    भारत पर इंटरनेट शटडाउन के प्रभाव की चर्चा करें। संवैधानिक अधिकारों और आर्थिक विचारों को संबोधित करते हुए एक संतुलित दृष्टिकोण का प्रस्ताव करते हुए शटडाउन के पक्ष और विपक्ष में तर्कों का मूल्यांकन करें। (15 अंक, 250 शब्द)

 

स्रोत- हिंदू

 

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