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Daily-current-affairs / 03 Apr 2024

तमिलनाडु की राजनीति में कच्चातीवु द्वीप - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ -
भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में अवस्थित कच्चातीवु द्वीप विशेष रूप से तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य में एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी और सिरीमा R.D. भंडारनायके के बीच हुए एक समझौते के माध्यम से इसे भारत से श्रीलंका को हस्तांतरित कर दिया गया था इस हस्तांतरण पर पिछले कुछ वर्षों में काफी बहस, विरोध और राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप होते रहे है। इस लेख में हम इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, मछुआरों के लिए कच्चातीवु के महत्व, इस मुद्दे के राजनीतिक उपयोग और केंद्र सरकार के बदलते रुख पर विचार कर रहे हैं।  
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
कच्चातीवु द्वीप (285 एकड़ क्षेत्र पर विस्तारित) पर विवाद औपनिवेशिक काल में आरंभ हुआ था जब भारत और श्रीलंका दोनों ब्रिटिश शासन के अधीन थे। श्रीलंका ने 16वीं से 17वीं शताब्दी के दौरान पुर्तगाली कब्जे के आधार पर इस द्वीप पर दावा किया, जबकि भारत ने रामनाद के पूर्ववर्ती राजा के अधिकार क्षेत्र के माध्यम से इस पर ऐतिहासिक स्वामित्व का दावा किया। मद्रास (अब तमिलनाडु) और सीलोन (अब श्रीलंका) की सरकारों के बीच द्वीप के स्वामित्व को लेकर 1921 में बातचीत शुरू हुई थी, जिसकी परिणति 1974 के समझौते में हुई।
इंदिरा गांधी और सिरीमा R.D. भंडारनायके के बीच बातचीत ने भारत और श्रीलंका के बीच की सीमा को परिभाषित किया, जिसके परिणामस्वरूप कच्चातीवू द्वीप श्रीलंका के नियंत्रण में चला गया। ऐतिहासिक दावों और विरोधों के बावजूद, इस निर्णय को बरकरार रखा गया, जिससे विभिन्न राजनीतिक दलों और तमिलनाडु के लोगों में असंतोष पैदा हो गया।
इस संदर्भ में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाओं दायर की गई, जिसमें तर्क दिया गया कि 1974 के समझौते ने भारतीय मछुआरों के पारंपरिक अधिकारों और आजीविका को प्रभावित किया है। हालांकि राजनीतिक बयानबाजी के बावजूद, भारत सरकार की ओर से कच्चातीवु को पुनः प्राप्त करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है और मामला विचाराधीन ही है।
श्रीलंका का कहना है कि कच्चातीवु की स्थिति अंतरराष्ट्रीय समझौतों द्वारा तय की गई है और इसकी वापसी के संबंध में भारत से कोई आधिकारिक संचार नहीं हुआ है।
ध्यातव्य है कि जहां राजनीतिक नेता बयानबाजी में संलग्न रहते हैं, वहीं विदेश नीति का दृष्टिकोण सतर्क रहता है, इस मुद्दे पर फिर से विचार करने के सक्रिय प्रयासों का कोई संकेत नहीं है।
मछुआरों के लिए द्वीप का महत्व
कच्चातीवु भारत और श्रीलंका दोनों देशों के मछुआरों के लिए महत्वपूर्ण है, पारंपरिक रूप से मछली पकड़ने के लिए मछुआरे इसके जल का उपयोग करते है। श्रीलंका को संप्रभुता के हस्तांतरण के बावजूद, यहाँ मछली पकड़ने की गतिविधियां जारी रहीं, हालांकि बाद के समझौतों द्वारा यह नियंत्रित की गईं। द्वीप पर सेंट एंथोनी चर्च में वार्षिक उत्सव एक सांस्कृतिक और धार्मिक सभा के रूप में आयोजित होता है, जो दोनों देशों के मछली पकड़ने वाले समुदायों की साझा विरासत का प्रतीक है।
1976
के पूरक समझौते ने मछली पकड़ने की गतिविधियों को विनियमित किया, इसमें यह निर्धारित किया गया था कि संबंधित देश के जहाजों और मछुआरों को निर्दिष्ट जल में मछली पकड़ने से पहले श्रीलंका या भारत से स्पष्ट अनुमति लेनी होगी। इस प्रतिबंध के कारण मछुआरों और दोनों देशों के अधिकारियों के बीच तनाव और कभी-कभी संघर्ष हुए हैं।

राजनीतिक उपयोग
तमिलनाडु में राजनीतिक दलों द्वारा, विशेष रूप से चुनाव के प्रचार के दौरान, समर्थन जुटाने और वोट हासिल करने के लिए कच्चातीवु मुद्दे का लगातार प्रयोग किया गया है। द्रमुक, अन्नाद्रमुक और भाजपा जैसी पार्टियों ने विरोधियों पार्टियों की आलोचना करने के लिए इस मुद्दे का इस्तेमाल किया है, उन पर तमिलनाडु के हितों की उपेक्षा करने और श्रीलंका के सामने आत्मसमर्पण करने का आरोप लगाया है।
M.K.
स्टालिन और जयललिता जैसे नेताओं ने तमिल गौरव और संप्रभुता की भावनाओं की अपील करते हुए कच्चातीवु की पुनर्प्राप्ति की वकालत की है। द्वीप की वापसी या स्थायी रूप से पट्टे पर लेने की उनकी मांग तमिल आबादी के प्रमुख वर्गों के साथ प्रतिध्वनित हुई है, जिससे इस मुद्दे को हल करने के लिए केंद्र सरकार पर निरंतर दबाव बना हुआ है।
केंद्र सरकार का रुख
कच्चातीवु मुद्दे पर केंद्र सरकार की स्थिति समय के साथ विकसित हुई है, जो राजनयिक जटिलताओं और कानूनी व्याख्याओं को दर्शाती है। प्रारंभ में, सरकार ने 1974 के समझौते का बचाव करते हुए तर्क दिया कि कोई भी भारतीय क्षेत्र श्रीलंका को नहीं दिया गया था और यह द्वीप ब्रिटिश भारत और सीलोन के बीच विवाद का विषय था।
हालांकि, हाल के वर्षों में, केंद्र सरकार ने दोहराया है कि अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा के आधार पर कच्छथीवु श्रीलंका के क्षेत्र में स्थित है। इस रुख को तमिलनाडु के राजनीतिक नेताओं और नागरिक समाज की जांच और आलोचना का सामना करना पड़ा है, जो भारत की स्थिति के पुनर्मूल्यांकन और द्वीप को पुनः प्राप्त करने के प्रयासों की मांग कर रहे हैं।  
हालिया घटनाक्रम
लोकसभा चुनावों से पहले कच्चतीवु मुद्दे का पुनरुत्थान तमिलनाडु के राजनीतिक विमर्श में इसकी स्थायी प्रासंगिकता को रेखांकित करता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कांग्रेस पर कच्चतीवु द्वीप को छोड़ने का आरोप लगाने वाली टिप्पणी ने इस मुद्दे को लेकर बहस और तनाव को पुनः जन्म दिया है।
1974
और 1976 के समझौतों का हवाला और मामले की न्यायिक स्थिति पर जोर देते हुए केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया, विवाद की जटिलताओं को दूर करने के लिए इसके सतर्क दृष्टिकोण को दर्शाती है। इस बीच, रामनाथपुरम जिले में मछुआरा संघों द्वारा श्रीलंका की कार्रवाइयों के विरोध में वार्षिक उत्सव का बहिष्कार प्रभावित समुदायों के बीच चल रही शिकायतों और तनाव को उजागर करता है।
निष्कर्ष
कच्चातीवु मुद्दा भारत-श्रीलंका संबंधों में एक विवादास्पद विषय बना हुआ है, जो ऐतिहासिक दावों, सामाजिक-आर्थिक महत्व और राजनीतिक पैंतरेबाज़ी से प्रेरित है। हालांकि 1974 के समझौते ने क्षेत्रीय विवाद को औपचारिक रूप से सुलझा लिया, लेकिन इसके निहितार्थ तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य में प्रतिध्वनित होते रहते हैं, जिससे चुनावी आख्यानों और सार्वजनिक विमर्श को आकार मिलता है।
मछुआरों की दुर्दशा, सांस्कृतिक संबंध और संप्रभुता एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं, जो सभी हितधारकों के लिए इस मुद्दे को संतोषजनक ढंग से हल करने के प्रयासों को जटिल बनाती हैं। चूंकि राजनीतिक दल सत्ता और प्रभाव के लिए संघर्ष कर रहे हैं, इस संदर्भ में कच्चातीवु का भाग्य अनिश्चित बना हुआ है, जो द्विपक्षीय संबंधों और क्षेत्रीय गतिशीलता में व्यापक चुनौतियों को दर्शाता है। अंततः, प्रभावित समुदायों की आकांक्षाओं और राजनयिक वास्तविकताओं पर विचार करते हुए, क्षेत्र में स्थायी समाधान और शांति प्राप्त करने के लिए एक व्यापक और समावेशी दृष्टिकोण आवश्यक है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

प्रश्न 1: कच्चातीवु विवाद के ऐतिहासिक संदर्भ की जांच करें, 1974 में श्रीलंका में इसके हस्तांतरण की घटनाओं पर ध्यान केंद्रित करें। समझौते के प्रभावों और मछुआरा समुदायों के लिए द्वीप के महत्व पर चर्चा करें। ( 10 Marks, 150 Words)
प्रश्न 2: तमिलनाडु में कच्चातीवु मुद्दे के राजनीतिक दोहन का मूल्यांकन करें, विशेष रूप से चुनावों के दौरान। इस बात का आकलन करें कि दल चुनावी लाभ के लिए विवाद का उपयोग कैसे करते हैं और स्थिति के प्रबंधन में केंद्र सरकार के सामने आने वाली चुनौतियों का आकलन करें। (15 Marks, 250 Words)

 

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