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Daily-current-affairs / 11 Dec 2023

भारत में बुनियादी संरचना सिद्धांत की स्थायी विरासत - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख Date : 12/12/2023

प्रासंगिकता: जीएस पेपर 2 - भारतीय राजनीति

कीवर्ड्स: बुनियादी संरचना सिद्धांत, केशवानंद भारती वाद, मौलिक अधिकार, संविधान संशोधन शक्ति

संदर्भ:

वर्ष 2023 में भारतीय न्यायशास्त्र में “बुनियादी संरचना सिद्धांत" की स्थापना करने वाले ऐतिहासिक केशवानंद भारती वाद की 50वीं वर्षगांठ है। यह सिद्धांत मानता है कि संविधान की कुछ मूलभूत विशेषताएं संसद की संशोधन शक्ति की पहुंच से भी परे हैं। जहां इस सिद्धांत को भारतीय लोकतंत्र के मूल मूल्यों की रक्षा करने के लिए सराहा गया है, वहीं इसकी खुली प्रकृति और न्यायिक अतिरेक की संभावना के कारण आलोचना भी की गई है।



सिद्धांत की उत्पत्ति: डिट्रिच कॉनराड की भूमिका

बुनियादी संरचना सिद्धांत को जानने से पहले, इसके संदर्भ में जर्मन न्यायविद् डिट्रिच कॉनराड के महत्वपूर्ण योगदान को समझना आवश्यक है। कॉनराड ने 1965 में, केशवानंद भारती निर्णय से लगभग आठ साल पहले,संसद की संविधान संशोधन शक्ति की सीमाओं के बारे में गंभीर प्रश्न उठाते हुए एक व्याख्यान दिया था। उन्होंने अपने व्याख्यान में मौलिक अधिकारों को समाप्त करने या संशोधनों के माध्यम से निरंकुशता को फिर से स्थापित करने की संभावना जैसे विचार-उत्तेजक परिदृश्य प्रस्तुत किए थे।

इनकी इन अतिवादी कल्पनाओं ने संशोधन शक्ति सहित सभी शक्तियों पर नियंत्रण और संतुलन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला था।

बुनियादी संरचना सिद्धांत के पक्ष में प्रमुख तर्क:

  1. शक्तियों पर सीमाएं: न्यायपालिका सहित सभी संस्थानों की शक्तियों पर सीमाएं होनी चाहिए। यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि संसद की संशोधन शक्ति पूर्ण नहीं है और यह संभावित दुरुपयोग के खिलाफ सुरक्षा के रूप में कार्य करता है। आपातकाल के समय, मानवाधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के अनुभव को देखते हुए विधायिका पर ऐसी न्यायिक जांच की अति आवश्यकता है।
  2. मूलभूत विशेषताओं की रक्षा करना: सिद्धांत संविधान के मूल सिद्धांतों को मान्यता देता है और उन्हें संशोधन या विधायी हस्तक्षेप से बचाता है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और व्यक्तिगत अधिकारों के मूल्य संविधान में निहित रहें।
  3. संविधान के व्याख्याकार के रूप में न्यायपालिका: भारतीय संविधान के तहत, सर्वोच्च न्यायालय के पास संविधान और उसके अर्थ की व्याख्या करने की शक्ति है। यह स्थिति न्यायपालिका को संविधान के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए बुनियादी संरचना सिद्धांत जैसे सिद्धांत बनाने की अनुमति देती है।
  4. लोकतंत्र की रक्षा: यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि संसद संविधान की मूल लोकतांत्रिक विशेषताओं को बदलने में सक्षम नहीं है। संबिधान की इन विशेषताओं मे संसदीय प्रणाली, बहुमत की सरकार और मौलिक अधिकारों का समावेश शामिल है। यदि संसद की संशोधन शक्ति असीमित होती, तो पूर्ण बहुमत की सरकार संविधान को अपनी इच्छानुसार बदल सकती थी।

बुनियादी संरचना सिद्धांत के विपक्ष में प्रमुख तर्क:

  1. बुनियादी संरचना" की स्पष्ट परिभाषा के अभाव से न्यायिक निर्णय लेने में मनमानी हो सकती है। इससे न्यायपालिका द्वारा शक्ति के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंताएं उत्पन्न होती हैं।
  2. सूचना क्रांति के युग में जहां लोकतांत्रिक संस्थानों में जनता का विश्वास महत्वपूर्ण है, वहीं न्यायपालिका को अपने निर्णयों की वैधता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। बुनियादी ढांचे जैसे सिद्धांतों की अस्पष्टता न्यायपालिका में जनता के विश्वास को कम करती है।
  3. बुनियादी संरचना सिद्धांत संसद की संशोधन शक्ति को कमजोर करता है। संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति दी गई है ताकि इसे समय के साथ बदला जा सके।
  4. यह सिद्धांत न्यायिक अतिसक्रियता को बढ़ावा देता है। इसके तहत, न्यायपालिका को संसद द्वारा पारित कानूनों की समीक्षा करने और उन्हें अमान्य घोषित करने का अधिकार है। यह न्यायपालिका को सरकार की अन्य शाखाओं पर नियंत्रण प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
  5. यह सिद्धांत संविधान की व्याख्या में अस्पष्टता उत्पन्न करता है। बुनियादी संरचना सिद्धांत के तहत, “बुनियादी संरचना" को परिभाषित करना मुश्किल हो सकता है। इससे यह अनिश्चितता हो सकती है कि कौन से संशोधन संविधान के अनुरूप हैं और कौन से नहीं हैं।

सुधार हेतु सुझाव

बुनियादी संरचना सिद्धांत की चुनौतियों का समाधान करने और इसको अधिक प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं:

  1. बुनियादी संरचना को परिभाषित करना: सुप्रीम कोर्ट को कानूनी विशेषज्ञों और अन्य हितधारकों के सहयोग से बुनियादी संरचना के मूल तत्वों को अधिक स्पष्टता और सटीकता के साथ परिभाषित करना चाहिए। यह स्पष्टता भविष्य के न्यायिक निर्णयों के लिए एक रूपरेखा प्रदान करेगी और मनमानी के जोखिम को कम करेगी।
  2. निर्णय लेने में पारदर्शिता: सुप्रीम कोर्ट को बुनियादी संरचना सिद्धांत से संबंधित निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता बढ़ानी चाहिए। इसके लिए विस्तृत लिखित निर्णय प्रदान करना, अदालती दस्तावेजों तक पहुंच की अनुमति देना और महत्वपूर्ण मामलों पर सार्वजनिक सुनवाई में शामिल होना आदि प्रावधान किए जा सकते हैं।
  3. सार्वजनिक संवाद: बुनियादी संरचना सिद्धांत पर खुले और समावेशी सार्वजनिक संवाद को बढ़ावा देना सार्वजनिक समझ और समर्थन के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके लिए सार्वजनिक परामर्श और शैक्षिक कार्यक्रम आयोजित करना तथा नागरिक समाज संगठनों एवं मीडिया के साथ संवाद एक प्रभावी तरीका हो सकता है।
  4. संवैधानिक समीक्षा आयोग: एक आवधिक संवैधानिक समीक्षा आयोग की स्थापना पर विचार किया जा सकता है, जिसमें कानूनी विशेषज्ञ और समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधि शामिल हों। यह आयोग बुनियादी संरचना सिद्धांत सहित संविधान की नियमित समीक्षा करके एक विकसित व परिवर्तनशील समाज में संविधान की निरंतर प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिए संशोधन या सुधार की सिफारिश कर सकता है।

न्यायमूर्ति नांबियार का डॉक्टरेट शोध प्रबंध: भविष्य के लिए एक दृष्टिकोण

न्यायमूर्ति ए. के. जयशंकरन नांबियार का डॉक्टरेट शोध प्रबंध, “द ज्यूडिशियल रोल इन कंस्टीट्यूशनल प्रोटेक्शन: एक्जामिनिंग द लीजिटिमेसी ऑफ बेसिक स्ट्रक्चर रिव्यू इन इंडिया," बुनियादी संरचना सिद्धांत के भविष्य के बारे में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। वह सिद्धांत की एक “नई कल्पना" का तर्क देते हैं, जो स्पष्ट, अधिक पारदर्शी और संवैधानिक रूप से अधिक अनुकूल है।

निष्कर्ष

बुनियादी संरचना सिद्धांत ने भारतीय लोकतंत्र और उसके मूल मूल्यों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि, अभी भी यह एक जटिल और विकासशील कानूनी अवधारणा बनी हुई है। यद्यपि पारदर्शिता, सार्वजनिक संवाद और सिद्धांत को परिष्कृत व स्पष्ट करके, न्यायपालिका भारतीय संविधान के मौलिक सिद्धांतों की रक्षा में अपनी निरंतर प्रभावशीलता सुनिश्चित कर सकती है। इसके अलावा, सुधार के लिए प्रस्तावित सुझावों को लागू करने से सिद्धांत को और मजबूत किया जा सकता है जिससे आने वाले वर्षों में इसकी वैधता बढ़ सकती है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न

  1. भारतीय संवैधानिक ढांचे में बुनियादी संरचना सिद्धांत के विकास और महत्व का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। इसकी खुली प्रकृति से उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा करें और इसकी निरंतर प्रासंगिकता और वैधता सुनिश्चित करने के लिए संभावित उपाय सुझाएं। (10 अंक, 150 शब्द)
  2. भारतीय लोकतंत्र के संदर्भ में “बुनियादी संरचना सिद्धांत" के पक्ष और विपक्ष में दिए जाने वाले तर्कों का मूल्यांकन करें। सर्वोच्च न्यायालय इस सिद्धांत की व्याख्या और अनुप्रयोग में पारदर्शिता और सार्वजनिक विश्वास कैसे सुनिश्चित कर सकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

Source- Indian Express



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