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Daily-current-affairs / 23 Jan 2024

अमृत काल में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) की भूमिका और चुनौतियां

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संदर्भ:

·       अमृत काल की शुरुआत, भारत के अगले 25 वर्षों की महत्वपूर्ण तकनीकी प्रगति और वैश्विक आर्थिक बदलावों द्वारा चिह्नित अवधि को दर्शाती है। इस परिवर्तनकारी युग में, प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) की जटिलताओं को चिन्हित कर एक प्रतिस्पर्धी, समावेशी और लचीले आर्थिक वातावरण को प्रोत्साहित करना अनिवार्य है।

भारतीय अर्थव्यवस्था का ऐतिहासिक संदर्भः

·       भारत का स्वतंत्रता के बाद का आर्थिक विकासः आरंभ में एक बंद अर्थव्यवस्था मॉडल को अपनाते हुए, भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में आयात प्रतिस्थापन और सरकारी हस्तक्षेप के माध्यम से आत्मनिर्भरता लाने की कोशिश की। हालाँकि, 1990 के दशक की शुरुआत में आर्थिक उदारीकरण के साथ इस मॉडल में एक आदर्श बदलाव देखा गया।

·       आर्थिक उदारीकरण के बाद वैश्विक बाजार में एकीकरण:  वैश्विक अर्थव्यवस्था में एकीकृत होने की आवश्यकता से प्रेरित होकर, भारत ने बाजार-उन्मुख नीतियों को अपनाया, अपने व्यापार को उदार बनाया, उद्योगों को विनियमित किया और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को प्रोत्साहित किया। इस प्रयास ने वैश्विक बाजार में भारत को प्रवेश हेतु एक सुगम विकल्प प्रदान किया, जिससे व्यापार और निवेश के प्रवाह में वृद्धि हुई। सेवाओं और सूचना प्रौद्योगिकी के प्रमुखता प्राप्त करने के साथ-साथ देश मुख्य रूप से कृषि अर्थव्यवस्था से विविध और गतिशील अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हो गया।

भारत का वर्तमान आर्थिक परिदृश्य:

·       नई डिजिटल क्रांति: अमृत काल की शुरुआत ने अर्थव्यवस्था के प्रत्येक पहलू में डिजिटल क्रांति की शुरुआत की है। अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी; व्यवसाय संचालन, नवाचार और संचार के पीछे की एक प्रेरक शक्ति बन गई है, जिसने उद्योगों के संचालन और प्रतिस्पर्धा के परंपरागत तरीके को मौलिक रूप से बदल दिया है।

·       उभरते नए बिजनेस मॉडल: वर्तमान आर्थिक परिदृश्य विशेष रूप से डिजिटल और तकनीकी क्षेत्रों में नए बिजनेस मॉडल के उद्भव का साक्षी है। स्टार्ट-अप और तकनीक-संचालित उद्यम पारंपरिक उद्योगों को नित नया आकार दे रहे हैं, जिस कारण नवाचार के अवसर के साथ-साथ बाजार व्यवधान संबंधित चुनौतियां भी सामने रही हैं।

भारत की आर्थिक यात्रा में सीसीआई का महत्वः

·       प्रवर्तन कार्रवाई; प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं को संबोधित करनाः सीसीआई को प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली प्रथाओं को नियंत्रित अथवा समाप्त करने का अधिकार है। इसमें उद्यमों के होने वाली सभी प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौतों की जांच करना और उनके खिलाफ कार्रवाई करना भी शामिल है, जैसे कि गुटबंदी, अधिक मूल्य-निर्धारण, नीलामी की धांधली, प्रतिस्पर्धी परिदृश्य को कमजोर करने वाली मिली-जुली प्रथाएं आदि।

·       प्रमुख कंपनियों की जांचः सीसीआई प्रमुख कंपनियों के आचरण की बारीकी से जांच करता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे बाजार में अपनी स्थिति का दुरुपयोग करें। इसमें असमय एवं अनियंत्रित मूल्य निर्धारण, बाजार तक सीमित पहुंच और विशेष समझौतों जैसी प्रणालियों की जांच करना शामिल है जो स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

·       उपचारात्मक समाधान: ऐसे मामलों में जहां प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार की पहचान की जाती है, सीसीआई के पास उपयुक्त दंडात्मक और उपचारात्मक समाधान करने का अधिकार है। ये उपाय केवल गलत काम करने वालों को दंडित करने के लिए बल्कि बाजार की विकृतियों को सुधारने और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा स्थापी करने के लिए भी लाभप्रद हैं।

·       प्रतिस्पर्धा की संस्कृति को बढ़ावा देना: सीसीआई बाजारों में प्रतिस्पर्धा की संस्कृति को बढ़ावा देने की सिफारिश करता है। इसमें प्रतिस्पर्धा कानूनों के अनुपालन को प्रोत्साहित करने और ऐसे वातावरण को बढ़ावा देने के लिए हितधारकों, उद्योग प्रतिभागियों और जनता के साथ काम करना शामिल है जहां नवाचार अपनाया जा सके।

·       हितधारकों को शिक्षित करना: सीसीआई प्रतिस्पर्धी बाजार माहौल के लाभों के बारे में हितधारकों को शिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के महत्व के बारे में जागरूकता और समझ बढ़ाकर, सीसीआई एक ऐसे बाजार के निर्माण में योगदान देता है जहां व्यवसाय समान स्तर पर काम कर सकें।

·       नीतिगत सिफ़ारिशें: प्रवर्तन कार्रवाइयों के अलावा, सीसीआई प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करने वाले नीतिगत मामलों पर समयानुसार अपनी राय और सिफ़ारिशें प्रदान करती रहती हैं। साथ ही साथ यह भागीदारी सुनिश्चित करती है कि नियामक ढांचा उभरते बाजार की गतिशीलता के अनुकूल बना रहे और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के लिए अनुकूल हो।

सीसीआई के व्यापक अधिदेश:

·       प्रतिकूल प्रथाओं का उन्मूलन: सीसीआई के अधिदेश में प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली प्रथाओं का उन्मूलन शामिल है। इसमें केवल प्रत्यक्ष प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौते, बल्कि ऐसे कार्य भी हैं, जो अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिस्पर्धी परिदृश्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

·       प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना और बनाए रखना: प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं को रोकने के अलावा, सीसीआई को सक्रिय रूप से प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और बनाए रखने का काम सौंपा गया है। इसमें एक ऐसा वातावरण बनाना शामिल है जहां व्यवसाय निष्पक्ष रूप से प्रतिस्पर्धा कर सकें और उपभोक्ताओं के पास विकल्पों की एक विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध हो।

·       उपभोक्ता संरक्षण: सीसीआई उपभोक्ता हितों की रक्षा करने, उचित मूल्य निर्धारित करने, गुणवत्ता वाले उत्पाद की जांच और बाजार में विविध विकल्प सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

सीसीआई के समक्ष नवीन चुनौतियाँ:

·       बाज़ार एकाग्रता: डिजिटल अर्थव्यवस्था में अक्सर कुछ तकनीकी दिग्गज कम्पनियों का ही प्रभुत्व होता है, जो अपने संसाधनों और डेटा नियंत्रण के कारण, बाजार में प्रतिस्पर्धा को सीमित करते हुए एकाधिकार स्थिति स्थापित करने की क्षमता रखते हैं।

·       नवप्रवर्तन को अवरुद्ध करना: शक्ति का संकेंद्रण नवप्रवर्तन को हतोत्साहित कर सकता है। इस संदर्भ में छोटे प्रतिस्पर्धियों का बाज़ार में प्रवेश करना या प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्धा करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जिससे नई और विविध प्रौद्योगिकियों एवं सेवाओं के विकास में बाधा सकती है।

·       आक्रामक मूल्य निर्धारण: टेक्नोलॉजी की दिग्गज कंपनियां आक्रामक मूल्य निर्धारण रणनीति अपना सकती हैं, जिससे छोटे प्रतिस्पर्धियों के लिए बाजार में बने रह पाना मुश्किल हो जाता है। अगर इसे सख्ती से नियंत्रित किया गया तो बाज़ार से प्रतियोगिता समाप्त हो सकती है और एकाधिकार वाली बाज़ार संरचना का निर्माण हो सकता है।

·       एकाधिकार वाले अनुबंध: डिजिटल प्लेटफॉर्म द्वारा एकाधिकार वाले अनुबंधों का उपयोग कुछ विशेष उत्पादों या सेवाओं तक पहुंच को सीमित कर सकता है। इससे उपभोक्ताओं के लिए विकल्प कम हो जाता है।

चुनौतियों के समाधान हेतु सीसीआई का दृष्टिकोण:

·       डिजिटल बाज़ारों की वैश्विक प्रकृति को समझना: डिजिटल अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर संचालित होती है, जिससे सीमा पार प्रतिस्पर्धा नीतियों को विनियमित करना और लागू करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। सीसीआई को डिजिटल बाजारों की अंतरराष्ट्रीय प्रकृति से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समकक्षों के साथ सहयोग करने और प्रभावी वैश्विक सहयोग के लिए रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है।

·       गतिशील तकनीकी परिवर्तनों का अनुकूलन: प्रौद्योगिकी की सहायता से तीव्र विकास हेतु सीसीआई को नवीनतम तकनीकों पर अद्यतन रहने की आवश्यकता है। इसके लिए उभरती चुनौतियों से निपटने में नियामक ढांचे को लगातार अद्यतन करना और डिजिटल बाजारों की गतिशील प्रकृति को अपनाना हितकारी हो सकता है।

·       विनियमन के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना: डिजिटल अर्थव्यवस्था में नवाचार को बढ़ावा देने और आवश्यक नियमों को लागू करने के बीच संतुलन बनाना एक जटिल कार्य है। सीसीआई को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विनियामक हस्तक्षेप सूक्ष्म हों, अति-विनियमन से बचना होगा क्योंकि यह बाजार की विकृतियों को रोकने के साथ-साथ नवाचार को रोकता है।

निष्कर्ष:

·       भारत की अर्थव्यवस्था, नियामक प्रथाओं में लचीलापन लाने के लिए सीसीआई की प्रतिबद्धता को सर्वोत्कृष्ट बताती है। संभावित बाजार व्यवधानों की सक्रिय पहचान, अनुसंधान निवेश, विशेषज्ञता निर्माण और तकनीकी सहयोग एक ऐसे भविष्य को आकार देने में सक्षम होंगे जहां प्रतिस्पर्धा पनपती है, नवाचार को प्रोत्साहित किया जाता है और उपभोक्ता कल्याण की रक्षा की जाती है। आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर, सीसीआई ने प्रतिस्पर्धात्मकता, समावेशिता और लचीलेपन की दिशा में भारत की आर्थिक यात्रा को आगे बढ़ाने की अपनी प्रतिबद्धता पुनः दोहराई है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

1.     भारत के आर्थिक विकास और डिजिटल क्रांति से उत्पन्न चुनौतियों पर विचार करते हुए, अमृत काल के दौरान एक लचीले आर्थिक माहौल को बढ़ावा देने में सीसीआई के महत्व का आकलन करें। (10 अंक, 150 शब्द)

2.     डिजिटल अर्थव्यवस्था में बाजार की सघनता, नवप्रवर्तन को दबाने, आक्रामक मूल्य निर्धारण आदि चुनौतियों से निपटने के लिए सीसीआई के दृष्टिकोण का मूल्यांकन करें। निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए रणनीतियों पर भी चर्चा करें। (15 अंक, 250 शब्द)

 

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

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