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Daily-current-affairs / 10 Jan 2024

अफ्रीकी यूनियन की G20 सदस्यता: चुनौतियां और अवसर

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संदर्भ:

भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान G20 में अफ्रीकी यूनियन (AU) को स्थायी सदस्य के रूप में शामिल करना एक ऐतिहासिक क्षण था इसने G20 को एक विशिष्ट क्लब से अधिक समावेशी मंच के रूप में परिवर्तित कर दिया। इस विकास में G20 की वैधता को बढ़ाने और अफ्रीका को वैश्विक मंच पर अपने हितों को संरक्षित करने की क्षमता है। यद्यपि  AU के प्रवेश का प्रतीकात्मक महत्व है परंतु  असली परीक्षा इस बात में निहित है कि क्या वह प्रभावी ढंग से इस मंच का उपयोग अफ्रीकी हितों की रक्षा के लिए कर सकता है, अपना पक्ष प्रस्तुत कर सकता है और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों में योगदान दे सकता है जैसा कि उसके एजेंडा 2063 रणनीतिक मास्टरप्लान में उल्लिखित है।

एजेंडा 2063 क्या है?

       एजेंडा 2063 अफ्रीका महाद्वीप के लिए एक महत्वाकांक्षी रणनीतिक योजना है, जिसका उद्देश्य 2063 तक इसे एक समृद्ध, एकीकृत और शांतिपूर्ण महाद्वीप बनाना है। यह योजना 50 वर्षीय दृष्टिकोण पर आधारित है, जो अफ्रीकी संघ (AU) द्वारा 2013 में स्वीकृत किया गया था।

       यह अफ्रीकी संघ के नेतृत्व में महाद्वीप की उभरती जरूरतों और अवसरों के अनुरूप कृषि-व्यवसाय, बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में परिवर्तनकारी परिणामों के लिए प्रमुख कार्यक्रमों और 10-वर्षीय कार्यान्वयन योजना की रूपरेखा तैयार करता है।

एजेंडा 2063 के मुख्य उद्देश्यों में शामिल हैं:

     आर्थिक विकास: अफ्रीका की अर्थव्यवस्थाओं को गति देना और उन्हें वैश्विक अर्थव्यवस्था में अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना।

     क्षेत्रीय एकीकरण: अफ्रीकी देशों के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना और महाद्वीप के बुनियादी ढांचे को विकसित करना।

     शासन: अफ्रीकी देशों में लोकतंत्र, सुशासन और मानवाधिकारों को मजबूत करना।

     शांति: अफ्रीका में संघर्षों को समाप्त करना और स्थायी शांति स्थापित करना।

एजेंडा 2063 एक महत्वाकांक्षी योजना है, लेकिन इसे प्राप्त करने के लिए अफ्रीकी देशों को राजनीतिक इच्छाशक्ति, संसाधनों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समर्थन की आवश्यकता होगी।

अफ्रीकी संघ (एयू) के बारे में:

       स्थापना: 2002

       पूर्ववर्ती: अफ्रीकी एकता संगठन (OAU)

       सदस्य देश: 55

       मुख्यालय: अदीस अबाबा, इथियोपिया

अफ्रीकी संघ (एयू) एक महाद्वीपीय संगठन है जिसमें अफ्रीकी महाद्वीप के देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले 55 सदस्य देश शामिल हैं। 2002 में स्थापित अफ्रीकी संघ (एयू) ने  अफ्रीकी एकता संगठन (OAU) का स्थान लिया जिसकी स्थापना 1963 में हुई थी। AU का प्राथमिक उद्देश्य अफ्रीकी देशों के बीच एकता, सहयोग और विकास को बढ़ावा देना है साथ ही साथ विश्व स्तर पर महाद्वीप के हितों को आगे बढ़ाना है। इसका व्यापक दृष्टिकोण एक एकीकृत, समृद्ध और शांतिपूर्ण अफ्रीका प्राप्त करना है।

 

अफ्रीकी संघ की संरचना:

अफ्रीकी संघ (एयू) एक सुव्यवस्थित ढांचे के माध्यम से कार्य करता है, जिसका मुख्यालय अदीस अबाबा, इथियोपिया में है:

1. असेंबली: यह  अफ्रीकी संघ का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है, जिसमें सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष और सरकार के प्रमुख शामिल होते हैं। यह महाद्वीपीय नीति, रणनीति और दिशा को परिभाषित करने का दायित्व रखता है, और यह अफ्रीकी संघ को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दों पर वार्षिक सम्मेलन आयोजित करता है।

2. कार्यकारी परिषद: यह विदेशी मामलों के मंत्रियों से बना, कार्यकारी परिषद अफ्रीकी संघ के कार्यों के सुचारू संचालन की देखरेख करती है। यह मंत्रिस्तरीय स्तर पर नीतिगत मामलों की चर्चा और निर्णय लेती है तथा असेंबली को सिफारिशें प्रस्तुत करती  है।

3. अफ्रीकी संघ आयोग: अदीस अबाबा में मुख्यालय के साथ आयोग संसद और कार्यकारी परिषद द्वारा लिए गए निर्णयों को लागू करने के लिए प्रशासनिक शाखा के रूप में कार्य करता है।

4. शांति और सुरक्षा परिषद: शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना तथा संघर्षों को रोकना और समाप्त करना अफ्रीकी संघ के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है। शांति और सुरक्षा परिषद इस कर्तव्य को पूरा करती है, महाद्वीप में शांति बनाए रखने के लिए प्रतिक्रियात्मक और निवारक उपायों की पहल करती है।

अफ्रीकी नागरिकों और नागरिक समाज की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए, अफ्रीकी संघ पैन-अफ्रीकी संसद और आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिषद (ECOSOCC) जैसे संस्थानों के माध्यम से प्रयास करता है। इसका अंतिम लक्ष्य अफ्रीकी देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक एकीकरण को मजबूत करना है, जिससे एक एकीकृत और समृद्ध महाद्वीप का निर्माण हो सके

अफ्रीकी संघ की G20 सदस्यता चुनौतियाँ:

 अफ्रीकी संघ (एयू) को जी20 में स्थायी सदस्यता प्रदान करना अफ्रीका के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, लेकिन यह कई महत्वपूर्ण चुनौतियों को भी सामने लाता है। जोकि निम्नलिखित हैं :

1. यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ संरचनात्मक अंतर:

     भले ही अफ्रीकी संघ को  यूरोपीय संघ के समान दर्जा दिया गया है लेकिन उनकी संरचना में महत्वपूर्ण अंतर है जो चुनौतियां उत्पन्न करता है एयू एक सुपरनेशनल संगठन नहीं है और अफ्रीकी राज्यों के बीच मौद्रिक सहयोग भी सीमित ही है। इससे यह चिंता उत्पन्न  होती है कि क्या तकनीकी कार्य समूहों और बैठकों में, विशेष रूप से सेंट्रल बैंक गवर्नरों और वित्त मंत्रियों से जुड़े अफ्रीकी संघ में  सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व पर्याप्त रूप से होगा।

2. प्रतिनिधित्व की चुनौतियां:

     यह निर्धारित करना कि मुख्य जी20 बैठकों में एयू का प्रतिनिधित्व कौन करेगा, एक तात्कालिक चुनौती है। इसके लिए सुझावों में अफ्रीकी संघ आयोग के व्यापार और उद्योग आयुक्त, अफ्रीकी संघ अध्यक्ष के वित्त मंत्री से लेकर विशेष दूत शामिल हैं जो एयू अध्यक्ष, वित्त मंत्री और सेंट्रल बैंक गवर्नर के साथ जाते हैं। स्पष्ट प्रतिनिधित्व का चुनाव यह सुनिश्चित करने के लिए  महत्वपूर्ण है कि जी20 में अफ्रीका की आवाज़ सुनी जाए और उसका सम्मान किया जाए।

3. साझा रुख विकसित करना:

     अफ्रीकी देशों के बीच विविध औपनिवेशिक और ऐतिहासिक गठबंधनों के कारण अफ्रीकी संघ को प्रमुख मुद्दों पर साझा रुख विकसित करने में बाधा का सामना करना पड़ता है। अफ्रीकी संघ के भीतर सर्वसम्मति के लिए एक तंत्र के बिना, जी20 सदस्यता के लाभ उठाना दुष्कर हो जाएगा

4. एयू अध्यक्षता का घूमना (रोटेशन) और निरंतरता:

     अफ्रीकी संघ अध्यक्षता का वार्षिक रोटेशन वार्ता की स्थिति में निरंतरता बनाए रखने के लिए एक चुनौती प्रस्तुत करता है। ईयू परिषद के अध्यक्ष के विपरीत जिसका कार्यकाल ढाई साल का होता है, अफ्रीकी संघ अध्यक्ष को अपने देश का भी शासन करना होता है यह प्रभावी प्रबंधन और वार्ता के लिए दबाव बनाता है विशेषकर सीमित नौकरशाही क्षमता वाले छोटे अफ्रीकी देशों के लिए।

5. एयू अध्यक्ष के लिए संस्थागत समर्थन का अभाव:

     एक पूर्ण जी20 सदस्य के रूप में प्रभावी रूप से योगदान करने के लिए अफ्रीकी संघ अध्यक्ष के पास पर्याप्त संस्थागत समर्थन का अभाव है। समर्थक  संरचनाओं की अनुपस्थिति अफ्रीकी संघ की अन्य जी20 देशों, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के देशों के साथ साझेदारी बनाने की क्षमता को बाधित करती है।

अफ्रीकी संघ को इन चुनौतियों का सामना करने और जी20 के सदस्य के रूप में अपनी पूरी क्षमता का एहसास करने के लिए रणनीतिक और सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। अफ्रीकी संघ के भीतर मजबूत संचार और समन्वय, स्पष्ट प्रतिनिधित्व तंत्र, और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग इनमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

रणनीतियाँ और समाधान:

1. प्रभावी प्रतिनिधित्व:

अलग-अलग जी20 बैठकों में एयू का प्रतिनिधित्व करने के लिए उपयुक्त लोगों का चयन महत्वपूर्ण है। एयू व्यापार और उद्योग आयुक्त, एयू चेयर के वित्त मंत्री और विशेष दूतों को शामिल करते हुए एक संतुलित दृष्टिकोण यह सुनिश्चित कर सकता है कि एयू का अंतराष्टीय मंचों पर व्यापक प्रतिनिधित्व होगा। अफ्रीकी विकास बैंक और अफ्रेक्सिम बैंक जैसे संस्थानों की विशेषज्ञता का लाभ उठाना एयू के प्रभाव में वृद्धि कर सकता है।

2. एकीकृत रणनीति का विकास करना:

अफ्रीकी संघ को प्रमुख मुद्दों पर साझा रुख विकसित करने के लिए एक रणनीतिक ढांचा तैयार करना चाहिए। एयू को अफ्रीकी देशों के बीच विविध ऐतिहासिक गठबंधनों को ध्यान में रखते हुए प्रमुख मुद्दों पर विशेषज्ञ समूहों का गठन करना चाहिए एयू की जी20 सदस्यता के लाभों को अधिकतम करने के लिए सावधानीपूर्वक तैयार की गई रणनीति आवश्यक है।

3. घूर्णनशील (रोटेशनल ) अध्यक्षता एवं निरंतरता:

  घूर्णनशील (रोटेशनल ) अध्यक्षता और निरंतरता की चुनौती का समाधान करने के लिए, एयू को सुचारू बदलाव के लिए तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है। इसमें संस्थागत ज्ञान साझा करने के लिए एक रूपरेखा तैयार करना, आने वाले अध्यक्षों को व्यापक ब्रीफिंग प्रदान करना और संभवतः स्थिरता और निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए एयू अध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ाना शामिल हो सकता है।

4. ग्लोबल साउथ और भारत के साथ साझेदारी:

    ग्लोबल साउथ के देशों के साथ साझेदारी करके जी20 में एयू की प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सकता है। भारत, ग्लोबल साउथ के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और अफ्रीका के साथ दीर्घकालिक संबंधों में सहयोग के लिए एक मूल्यवान अवसर प्रस्तुत करता है। भारत और एयू के बीच संयुक्त प्रयासों के लिए अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सुधार, जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा और शिक्षा जैसे क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

 निष्कर्ष:

अफ्रीकी संघ की जी20 सदस्यता वैश्विक शासन गतिशीलता में बदलाव का प्रतीक है, इसका वास्तविक प्रभाव आंतरिक चुनौतियों के समाधान और प्रभावी साझेदारी बनाने पर निर्भर करता है। अफ्रीकी संघ को संरचनात्मक मतभेदों को दूर करना होगा, आम सहमति के लिए तंत्र स्थापित करना होगा, निरंतरता के मुद्दों को संबोधित करना होगा और जी20 के भीतर अपने प्रभाव को अधिकतम करने के लिए भारत जैसे देशों के साथ सहयोग का लाभ उठाना होगा। वस्तुतः अफ्रीकी संघ G20 में अपनी भूमिका को मजबूत करने के लिए सक्रिय और रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाकर, यह वैश्विक शासन में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन सकता है और अफ्रीका के विकास और समृद्धि में योगदान दे सकता है।

 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के संभावित प्रश्न

  1. भारत की जी20 अध्यक्षता के दौरान अफ्रीकी संघ को स्थायी सदस्य के रूप में जी20 में शामिल करने के निहितार्थों पर चर्चा करें। वैश्विक शासन और जलवायु परिवर्तन जैसे दबावपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने में जी20 की भूमिका के लिए इसके द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों और अवसरों का विश्लेषण करें। (10 अंक, 150 शब्द)
  2. ग्लोबल आर्थिक निर्णय-निर्माण में प्रभावी प्रतिनिधित्व और अफ्रीकी राष्ट्रों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए, यूरोपीय संघ की तुलना में जी20 में अफ्रीकी संघ द्वारा सामना की जाने वाली संरचनात्मक और प्रतिनिधित्व संबंधी चुनौतियों की जांच करें। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सुधार और रणनीतियाँ सुझाएं। (15 अंक, 250 शब्द)

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