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Daily-current-affairs / 21 May 2025

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी पर रोक लगाई: प्रभाव

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संदर्भ:
हाल ही में 16 मई 2025 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) की एक अधिसूचना (2017) को रद्द कर दिया। इस अधिसूचना के तहत उद्योगों को संचालन शुरू करने के बाद पर्यावरणीय मंजूरी लेने की अनुमति दी गई थी, जिसे पूर्वव्यापी (Ex-post facto) मंजूरी कहा जाता है। कोर्ट ने 2021 का एक कार्यालय ज्ञापन (OM) भी अमान्य घोषित कर दिया, जिसमें ऐसे मामलों से निपटने के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) तय की गई थी। कोर्ट ने इसे अवैध और असंवैधानिक ठहराते हुए भविष्य में इस तरह की अधिसूचना जारी करने पर भी रोक लगा दी। यह फैसला भारत में पर्यावरणीय शासन, कानून के शासन और जनस्वास्थ्य के लिए दूरगामी प्रभाव रखता है। इससे यह स्पष्ट हुआ कि पर्यावरणीय नियमों का पालन पहले से होना चाहिए, न कि उल्लंघन के बाद माफी दी जाए।

पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन (EIA) के बारे में:
पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन (EIA) एक अध्ययन है जो किसी प्रस्तावित परियोजना के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का मूल्यांकन करता है। यह 1986 के पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम के तहत अधिसूचित किया गया था। इसका उद्देश्य यह तय करना है कि किसी परियोजना को अनुमति दी जाए, अस्वीकार किया जाए या उसमें संशोधन किया जाए।
EIA प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:

• स्क्रीनिंग (यह जांचना कि क्या अनुमति की ज़रूरत है),
स्कोपिंग (मूल्यांकन के दायरे को तय करना),
प्रभाव विश्लेषण,
शमन योजना बनाना,
ड्राफ्ट रिपोर्ट के आधार पर सार्वजनिक सुनवाई,
फैसला लेना।

2006 के EIA नियमों के अनुसार परियोजनाओं को दो श्रेणियों में बांटा गया है:

• श्रेणी A: केंद्रीय मंत्रालय द्वारा स्वीकृत
श्रेणी B: राज्य स्तर पर स्वीकृत
श्रेणी B को आगे दो हिस्सों में बांटा गया है:
B1: जिन्हें EIA की आवश्यकता होती है
B2: जिन्हें EIA से छूट होती है

रैपिड EIA एक मौसम के आंकड़ों पर आधारित होती है, जबकि व्यापक EIA चारों मौसमों का डेटा लेती है।
पर्यावरण प्रबंधन योजना (EMP) परियोजनाओं को सुरक्षित रूप से लागू करने की रूपरेखा देती है, जबकि पर्यावरण पूरक योजना (ESP) उल्लंघन करने वालों को दंड के साथ पर्यावरण हितैषी गतिविधियाँ करके संचालन जारी रखने की अनुमति देती है, हालांकि ये गतिविधियाँ कानूनी रूप से आवश्यक नहीं होतीं।

EIA अधिसूचना और 2017 का संशोधन
2017 में MoEF&CC ने एक अधिसूचना जारी की, जिसमें छह महीने की "एक बार की माफी की अवधि" दी गई। इसके तहत वे परियोजना डेवलपर्स जो बिना पर्यावरण मंजूरी के काम शुरू कर चुके थे, तय सीमा से अधिक उत्पादन कर रहे थे, या बिना अनुमति उत्पाद में बदलाव कर चुके थे वे पूर्वव्यापी मंजूरी के लिए आवेदन कर सकते थे।
केंद्र सरकार का कहना था कि इसका उद्देश्य इन उल्लंघनों को वैधानिक दायरे में लाना और उन्हें पर्यावरणीय नुकसान की सफाई का खर्च भरवाना था, ताकि उन्हें नियम तोड़ने का आर्थिक लाभ न मिले।

इस अधिसूचना में यह भी प्रावधान था कि ऐसे सभी मामलों की समीक्षा एक राष्ट्रीय स्तर की समिति द्वारा की जाएगी। हालांकि, यह जरूरी था कि परियोजना उस स्थान पर संभावित रूप से मंजूर की जा सकने वाली हो।

इस प्रक्रिया को स्पष्ट करने के लिए केंद्र ने जुलाई 2021 में एक कार्यालय ज्ञापन (OM) जारी किया। इसमें उल्लंघन के मामलों की पहचान और प्रबंधन के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) दी गई। यह कदम राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के आदेशों के बाद उठाया गया था।
2017 से 2021 के बीच, डॉ. एस.आर. वटे (पूर्व निदेशक, NEERI) की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति ने 47 बार बैठक की और 100 से अधिक उल्लंघन मामलों की समीक्षा की।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: संवैधानिक और कानूनी उल्लंघन:

1. अनुच्छेद 21 का उल्लंघन स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार
कोर्ट ने दोहराया कि संविधान का अनुच्छेद 21, पूर्व के कई फैसलों के अनुसार, एक प्रदूषण-मुक्त पर्यावरण के अधिकार को भी शामिल करता है। कोर्ट ने कहा कि पूर्वव्यापी मंजूरी इस अधिकार का उल्लंघन करती है, क्योंकि ये पहले से हो चुके पर्यावरणीय नुकसान को वैध बना देती है।

2. अनुच्छेद 14 का उल्लंघन कानून के समक्ष समानता
इस नीति को मनमाना और भेदभावपूर्ण बताया गया, क्योंकि यह नियमों का पालन करने वाले परियोजना डेवलपर्स की तुलना में उल्लंघन करने वालों को लाभ देती है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि जो व्यक्ति या कंपनियाँ जानबूझकर कानून को नजरअंदाज करते हैं, उन्हें अपने कार्यों को पीछे से वैध करने का अवसर नहीं मिलना चाहिए।

3. केंद्र सरकार की पूर्व सहमति का उल्लंघन
कोर्ट ने नोट किया कि केंद्र ने पहले मद्रास हाई कोर्ट में यह आश्वासन दिया था कि 2017 की अधिसूचना केवल एक बार की छूट थी। लेकिन 2021 के कार्यालय ज्ञापन के ज़रिए इस नीति को जारी रखना उस वादे का उल्लंघन है।

4. पूर्ववर्ती न्यायिक निर्णयों के विपरीत
कोर्ट ने दो महत्वपूर्ण मामलों का हवाला दिया:
कॉमन कॉज़ बनाम भारत संघ (2017)
एलेम्बिक फार्मास्युटिकल्स बनाम रोहित प्रजापति (2020)
एलेम्बिक मामले में जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि पूर्वव्यापी मंजूरी पर्यावरणीय कानून के सिद्धांतों के खिलाफ है और EIA प्रक्रिया की रोकथाम आधारित सोच को कमजोर करती है।

कोर्ट की टिप्पणियाँ और आलोचनाएँ:

  • कोर्ट ने कहा कि पर्यावरणीय सफाई (remediation) का तर्क, पूर्व जांच की आवश्यकता को नज़रअंदाज़ करने का औचित्य नहीं बन सकता, क्योंकि यही EIA प्रक्रिया की रीढ़ है।
  • कोर्ट ने सरकार की इस बात के लिए आलोचना की कि SOP को "चालाकी से" इस तरह लिखा गया कि उसमें "पूर्वव्यापी मंजूरी" शब्द का उपयोग नहीं हो, लेकिन असल में वही इजाज़त दी जा रही थी।
  • कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि क्या आर्थिक विकास की कीमत अपूरणीय पर्यावरणीय नुकसान होनी चाहिए।
  • दिल्ली जैसे शहरों में गंभीर वायु प्रदूषण को कोर्ट ने उदाहरण के रूप में पेश किया कि जब पर्यावरणीय उल्लंघनों को अनदेखा किया जाता है, तो उसका कितना गंभीर असर होता है।

फैसले के प्रभाव:
1. पूर्वव्यापी मंजूरी पर कानूनी रोक
इस फैसले से केंद्र सरकार की ऐसी किसी भी योजना पर रोक लग गई है जो पर्यावरणीय उल्लंघनों को पीछे से वैध बनाना चाहती है। कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया कि भविष्य में ऐसी कोई अधिसूचना या कार्यालय आदेश जारी न किया जाए।

2. पर्यावरणीय कानून के रोकथाम सिद्धांत को बल
फैसला यह दोहराता है कि पर्यावरणीय कानून को पूर्वानुमानित और रोकथाम पर आधारित होना चाहिए, न कि उल्लंघन के बाद सुधारात्मक। परियोजनाओं को संचालन शुरू करने से पहले प्रभाव मूल्यांकन कराना ही होगा।

3. मौजूदा परियोजनाओं पर असर
2017 से 2021 के बीच जिन 100 से अधिक परियोजनाओं ने माफी का लाभ उठाया था, अब वे कानूनी अनिश्चितता में हैं। सरकार को अब इन परियोजनाओं की दोबारा जांच करनी होगी और आगे के न्यायिक व प्रशासनिक निर्देशों के अनुसार दंड या संचालन निरस्तीकरण जैसे कदम उठाने पड़ सकते हैं।

4. पर्यावरणीय शासन को सशक्त बनाना
यह फैसला नियामक एजेंसियों और नीति-निर्माताओं के लिए एक चेतावनी है कि पर्यावरण की रक्षा को किसी भी कीमत पर प्राथमिकता दी जाए, और संवैधानिक कर्तव्यों का पूरी तरह पालन किया जाए।

निष्कर्ष
पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी पर सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय एक ऐतिहासिक फैसला है जो स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण के संवैधानिक अधिकार को दृढ़ता से स्वीकार करता है। यह उस शासन प्रणाली को चुनौती देता है जो अल्पकालिक आर्थिक लाभ के लिए दीर्घकालिक पारिस्थितिकीय सुरक्षा को नज़रअंदाज़ करती है।

इस फैसले ने न केवल कानून के शासन और पीढ़ियों के बीच न्याय को सुदृढ़ किया है, बल्कि EIA प्रक्रिया की निष्पक्षता और प्रभावशीलता को भी बनाए रखा है।

अब कार्यपालिका की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि वह पर्यावरणीय अनुपालन को बेहतर बनाए, पारदर्शिता बढ़ाए और कानून का उल्लंघन करने वालों को दंडित करे।
यह भारत के पर्यावरणीय कानून के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ है और यह स्पष्ट संदेश देता है: "आर्थिक विकास कभी भी पर्यावरणीय विनाश और संवैधानिक अधिकारों की कीमत पर नहीं हो सकता।"

मुख्य प्रश्न: "पर्यावरणीय शासन को अल्पकालिक आर्थिक लाभ के लिए बलि नहीं चढ़ाया जाना चाहिए।" सुप्रीम कोर्ट की दिल्ली के प्रदूषण पर की गई टिप्पणी और नीति-निर्माताओं को दिए गए व्यापक संदेश के संदर्भ में इस कथन पर चर्चा कीजिए।