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Daily-current-affairs / 05 Jun 2025

"स्वर्ण ऋण: वित्तीय समावेशन बनाम नियामकीय सख्ती"

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संदर्भ:
भारत आर्थिक अस्थिरता और बढ़ते घरेलू कर्ज से जूझ रहा है
, ऐसे समय में एक पारंपरिक लेकिन अब और भी महत्वपूर्ण वित्तीय साधन स्वर्ण ऋण (Gold Loan) फिर से चर्चा में है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा सोने के बदले दिए जाने वाले ऋणों को लेकर हाल में जारी मसौदा दिशा-निर्देशों के बाद, वित्त मंत्रालय ने दो प्रमुख छूटों की सिफारिश की है:

·        2 लाख से कम के ऋणों को छूट देना

·        नियमों के कार्यान्वयन की तिथि को 1 जनवरी 2026 तक टालना।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के हस्तक्षेप से प्रेरित इन घटनाक्रमों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत की सामाजिक-आर्थिक संरचना में स्वर्ण ऋण कितने गहरे जुड़े हुए हैं और बिना ठोस नियमन के यह क्षेत्र कितना जोखिम भरा हो सकता है।

भारत में सोने का सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व
भारत में सोना केवल एक कीमती धातु नहीं बल्कि यह सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत मूल्यवान संपत्ति है। शादियों से लेकर धार्मिक त्योहारों तक, सोना विभिन्न अनुष्ठानों में केंद्रीय भूमिका निभाता है और इसे धन, सुरक्षा और प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। भारतीय घरों में भारी मात्रा में सोना संग्रहित है, अक्सर आभूषणों के रूप में, जो पीढ़ियों से आगे बढ़ता रहा है।
इस भावनात्मक और आर्थिक महत्व के कारण, सोना सामान्यतः तभी बेचा जाता है जब अत्यधिक आवश्यकता हो। लेकिन जब बेचना जरूरी हो, तब सोना एक आसानी से उपलब्ध संपार्श्विक (asset) बन जाता है, जो व्यक्तियों को अल्पकालिक ऋण प्राप्त करने का त्वरित मार्ग प्रदान करता है। ऐसे देश में जहाँ बड़ी जनसंख्या औपचारिक ऋण व्यवस्था से बाहर है, वहाँ गोल्ड लोन एक महत्वपूर्ण सेतु का कार्य करता है जो अनौपचारिक आवश्यकताओं और औपचारिक वित्त के बीच पुल बनाता है।

गोल्ड लोन में तीव्रता का कारण:
कई आर्थिक और व्यावहारिक कारणों से गोल्ड लोन की मांग में भारी वृद्धि हुई है:
सुलभता: जिनके पास मजबूत क्रेडिट इतिहास नहीं है, उन्हें भी गोल्ड लोन मिल जाता है, जिससे यह उन लोगों के लिए भी सुलभ है जो बैंकिंग सेवाओं से वंचित हैं।
त्वरित वितरण: कुछ घंटों में ही ऋण स्वीकृत और वितरित हो सकता है, जैसे आपात चिकित्सा, स्कूल फीस या अन्य आकस्मिक खर्चों के समय यह अत्यंत उपयोगी होता है।
कम ब्याज दरें: संपार्श्विक आधारित होने के कारण इन पर व्यक्तिगत ऋण या वेतन-दिवस ऋण की तुलना में ब्याज दरें काफी कम होती हैं।
कम दस्तावेजी आवश्यकता: आधार और पैन जैसे केवल मूल KYC दस्तावेज़ों की आवश्यकता होती है।
लचीला पुनर्भुगतान: एकमुश्त भुगतान, EMI या केवल ब्याज भुगतान जैसी विकल्प उपलब्ध हैं।
क्रेडिट स्कोर की अनिवार्यता नहीं: चूँकि यह ऋण संपार्श्विक आधारित होता है, इसलिए ऋणदाता क्रेडिट स्कोर को लेकर अधिक चिंतित नहीं होते।
संपत्ति को बनाए रखना: गोल्ड लोन से लोग अपनी निष्क्रिय संपत्ति को मोनेटाइज़ कर सकते हैं बिना उसे बेचे।
गोल्ड लोन बैंकों, NBFCs और विशेष रूप से गोल्ड लोन देने वाली कंपनियों द्वारा दिए जाते हैं, जिससे यह सेवा भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक रूप से व्यापक रूप से उपलब्ध है।

बढ़ते एनपीए और नियामकीय खामियाँ
जैसे-जैसे सोने की कीमतें आसमान छू रही हैं (जून 2025 में 24 कैरेट सोने की कीमत ₹95,760 प्रति 10 ग्राम तक पहुँच चुकी है), वैसे-वैसे सोने के बदले ऋण में तेज़ी से वृद्धि हुई है लेकिन इसके साथ ही जोखिम भी बढ़े हैं।
बढ़ते एनपीए:
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, वाणिज्यिक बैंकों द्वारा दिए गए गोल्ड लोन का एनपीए 2023 में ₹1,404 करोड़ से बढ़कर 2024 के अंत तक ₹2,040 करोड़ हो गया। NBFCs के लिए यह आंकड़ा ₹3,904 करोड़ से बढ़कर ₹4,784 करोड़ हो गया।
मूल्यांकन और वसूली में समस्याएँ:
हालाँकि सोने की संपार्श्विक मौजूदगी से ऋणदाताओं को सुरक्षा मिलती है, लेकिन गलत मूल्यांकन, बढ़ा-चढ़ाकर तय LTV अनुपात, सोने की गिरती कीमतें और धीमी नीलामी प्रक्रिया वसूली को संकट में डाल सकते हैं।
उधारकर्ताओं पर भावनात्मक असर:
कई भारतीय घरों में आभूषण केवल आर्थिक नहीं, बल्कि भावनात्मक और पारिवारिक विरासत के रूप में देखे जाते हैं। यदि ऋण न चुकाने की स्थिति में इनकी नीलामी हो जाती है, तो यह उधारकर्ताओं के लिए एक गहरा मानसिक आघात बन सकता है।

RBI के नए मसौदा दिशा-निर्देश: इस क्षेत्र को स्थिर करने की कोशिश
इन समस्याओं से निपटने के लिए, RBI ने एक व्यापक मसौदा दिशा-निर्देश पेश किया है, जो प्रक्रियाओं के मानकीकरण, जवाबदेही बढ़ाने और प्रणालीगत जोखिमों को कम करने का प्रयास करता है। इन दिशा-निर्देशों में शामिल हैं:

1.      LTV (ऋण-मूल्य अनुपात) सीमा:
उपभोग ऋण के लिए सोने के बाजार मूल्य का अधिकतम 75% तक सीमित। इससे बढ़ी हुई कीमतों के आधार पर अत्यधिक ऋण देने से बचा जा सकेगा।

2.     मानकीकृत मूल्यांकन प्रक्रिया:
प्रमाणित, स्वच्छ रिकॉर्ड वाले मूल्यांकनकर्ता अनिवार्य।
मूल्यांकन 22 कैरेट सोने के मूल्य पर आधारित होगा या तो 30-दिनों का औसत या पिछले दिन का समापन मूल्य, जो भी कम हो।
चाँदी की संपार्श्विक की शुद्धता 999 होनी चाहिए।

3.     स्वामित्व का प्रमाण:
उधारकर्ता को या तो बिक्री रसीद या स्वामित्व विवरण वाली घोषणा प्रस्तुत करनी होगी।

4.    ऋण उद्देश्य का भेद:
उपभोग बनाम आय-सृजन ऋण:
o बुलेट पुनर्भुगतान ऋण की अधिकतम अवधि 12 महीने।
o आय-सृजन ऋण के लिए वितरण संभावित नकदी प्रवाह के आधार पर होगा, केवल संपार्श्विक के आधार पर नहीं।
o गोल्ड का दोहरे उद्देश्य (उपभोग और आय) के लिए उपयोग वर्जित।

5.     संपार्श्विक सीमा:
एक उधारकर्ता द्वारा अधिकतम गिरवी:
o 1 किलोग्राम सोने/चाँदी के आभूषण
o 50 ग्राम सोने के सिक्के
o 500 ग्राम चाँदी के सिक्के

6.    कुछ संपार्श्विकों पर रोक:
सोने की ईंट, बारीक सोना, सिल्लियाँ या फिर से गिरवी रखा गया सोना इन पर ऋण प्रतिबंधित।

7.     पुनर्भुगतान और नीलामी शर्तें:
पारदर्शी ऋण अनुबंध, पुनर्भुगतान विकल्प और ब्याज दर अनिवार्य।
डिफ़ॉल्ट की स्थिति में, ऋणदाता को नीलामी से पहले सूचना देनी होगी। नीलामी के बाद बची हुई राशि उधारकर्ता को वापस की जानी चाहिए।

वित्त मंत्रालय की प्रतिक्रिया: सामाजिक संवेदनशीलता और नियामकीय विवेक का मेल
तमिलनाडु जैसे राज्यों की आपत्ति के बाद जिनका तर्क था कि ये नए नियम निम्न-आय वर्ग के लिए ऋण उपलब्धता को सीमित कर देंगे, वित्त मंत्रालय ने दो प्रमुख सिफारिशें की हैं:
• ₹2 लाख से कम के गोल्ड लोन को नए दिशा-निर्देशों से छूट देना।
नियमों के कार्यान्वयन को 1 जनवरी 2026 तक टालना, जिससे प्रणाली को बदलाव के लिए पर्याप्त समय मिल सके।
यह प्रतिक्रिया एक प्रमुख नीति द्वंद्व को दर्शाती है: वित्तीय समावेशन सुनिश्चित करना, लेकिन नियामकीय अखंडता से समझौता किए बिना।

निष्कर्ष:
RBI के गोल्ड लोन दिशा-निर्देश उस क्षेत्र को औपचारिक रूप देने का प्रयास करते हैं जो अब तक अर्ध-औपचारिक रहा है, वह भी उसकी पहुँच को सीमित किए बिना। जैसे-जैसे भारत अधिकाधिक ऋण-निर्भर होता जा रहा है और अब भी सोने को मूल्य संचय के रूप में देखता है ऐसे में यह नियामकीय स्पष्टता आवश्यक हो जाती है। हालाँकि, वित्त मंत्रालय द्वारा सुझाया गया चरणबद्ध और लचीला कार्यान्वयन ज़मीनी सच्चाईयों के साथ नियामकीय लक्ष्यों के संतुलन के लिए उपयुक्त प्रतीत होता है।
आर्थिक अनिश्चितता के इस दौर में, गोल्ड लोन भारतीय परिवारों के लिए एक आवश्यक साधन बने रहेंगे। लेकिन उधारकर्ता की गरिमा और ऋणदाता की वित्तीय स्थिरता की रक्षा के लिए, समझदारी भरे नियमन की आवश्यकता है, न कि कठोर नियंत्रण की।

 

मुख्य प्रश्न- भारत के अनौपचारिक ऋण बाजार में स्वर्ण ऋण के सामाजिक-आर्थिक महत्व पर चर्चा करें। वे वित्तीय समावेशन में कैसे योगदान करते हैं और उनके अंतर्निहित जोखिम क्या हैं?