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Daily-current-affairs / 14 Nov 2025

भारत में बढ़ता फंगल रोग बोझ: निगरानी और शोध की तात्कालिक जरूरत | Dhyeya IAS

भारत में बढ़ता फंगल रोग बोझ: निगरानी और शोध की तात्कालिक जरूरत | Dhyeya IAS

सन्दर्भ:

भारत धीरे-धीरे मौन रूप से एक ऐसे चरण में प्रवेश कर रहा है जहाँ फंगस संक्रमण, जिन्हें पहले दुर्लभ, निश्चित समय या विशेष भौगोलिक क्षेत्रों तक सीमित माना जाता था, अब व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय बनता जा रहा हैं। पर्यावरणीय परिवर्तन, जनसंख्या में कमजोर होती प्रतिरक्षा, एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग और अपर्याप्त निदान सुविधाओं के संयोजन ने फंगस रोगों में वृद्धि की है। इसी समय, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) में हो रहे संगठनात्मक परिवर्तन जिसमें विशेषीकृत माइकोलॉजी प्रयोगशालाओं को व्यापक संक्रामक रोग नेटवर्क में एकीकृत किया जा रहा है, ने इस महत्वपूर्ण समय पर फंगस अनुसंधान पर केंद्रित ध्यान कम होने की आशंका को जन्म दिया है।

ICMR की प्रयोगशाला एकीकरण प्रक्रिया:

ICMR ने अपनी विशेषीकृत फंगस प्रयोगशालाओं को व्यापक संक्रामक रोग अनुसंधान और निदान प्रयोगशाला (IDRL) नेटवर्क के अंतर्गत एकीकृत करना प्रारंभ किया है। यद्यपि परिषद ने यह स्पष्ट किया है कि फंगस अनुसंधान उसकी प्राथमिकता बना हुआ है और इन प्रयोगशालाओं को उन्नत भी किया गया है, फिर भी शोधकर्ताओं को चिंता है कि फोकस का कम होना और संसाधनों की प्रतिस्पर्धा प्रगति को बाधित कर सकती है।

लगभग पाँच वर्षों से ICMR का माइकोलॉजी नेटवर्क (MycoNet)—जिसमें आठ एडवांस्ड माइकोलॉजी डायग्नॉस्टिक एंड रिसर्च सेंटर्स (AMDRCs) शामिल हैं, महत्वपूर्ण योगदान देता आ रहा है। इन केंद्रों ने:

·        फंगस संक्रमणों का मानचित्रण किया,

·        प्रारंभिक राष्ट्रीय-स्तरीय डेटा उत्पन्न किया,

·        तकनीकी क्षमता विकसित की,

·        प्रमुख संस्थानों में शीघ्र निदान सुनिश्चित किया।

कुछ केंद्रों ने भारत में पहली बार प्रतिरोधी या दुर्लभ फंगस प्रजातियों की पहचान की है, जैसे: भारत में पहचाने गए तीन दुर्लभ फंगस संक्रमण, ऐज़ोल-प्रतिरोधी मैडुरेला फाहाली (Madurella fahalii), आर्थ्रिनियम रसिका रविंद्रे (Arthrinium rasika ravindrae) द्वारा उत्पन्न केराटाइटिस और फोंसेकिया न्यूबिका (Fonsecaea nubica) से होने वाला क्रोमोब्लास्टोमाइकोसिस यह दिखाते हैं कि देश में जटिल, कठिन-उपचार योग्य और उभरते फंगस रोग बढ़ रहे हैं। इनमें प्रतिरोधी प्रजातियाँ, दृष्टि-हानि का जोखिम और दीर्घकालिक त्वचा संक्रमण शामिल हैं, जिनका उपचार सीमित दवाओं और उन्नत प्रयोगशाला क्षमताओं पर निर्भर है।

ये उदाहरण बताते हैं कि भारत को सुदृढ़ निगरानी, विशेषज्ञ माइकोलॉजिस्ट, और आधुनिक निदान सुविधाओं की तत्काल आवश्यकता है ताकि दुर्लभ व गंभीर फंगस संक्रमणों की समय पर पहचान और प्रभावी उपचार सुनिश्चित किया जा सके।

 शोधकर्ताओं को आशंका है कि विशेषीकृत प्रयोगशालाओं को बड़े नेटवर्क में समाहित करने से समर्पित वित्तीय प्रवाह कम हो सकता है और फोकस व्यापक रोगजनकों की ओर स्थानांतरित हो सकता है।

भारत में फंगस रोगों का बढ़ता बोझ:

·        अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक जर्नल, ओपन फोरम इन्फेक्शियस डिजीज में 2022 के एक अध्ययन के अनुसार, 5.7 करोड़ से अधिक भारतीय अर्थात लगभग 4.1% जनसंख्या गंभीर फंगस रोगों से पीड़ित हैं, जिससे भारत विश्व में प्रति व्यक्ति फंगस रोग बोझ का सबसे बड़ा देश बन गया है। अधिक चिंताजनक यह है कि गंभीर फंगस संक्रमणों का वार्षिक अनुमानित बोझ भारत की सबसे व्यापक संक्रामक बीमारी, ट्यूबरक्युलोसिस से 10 गुना अधिक पाया गया।

·        यह आँकड़े चेतावनी देते हैं क्योंकि फंगस संक्रमण अक्सर कम आंके जाते हैं, गलत निदान किए जाते हैं या देर से पहचाने जाते हैं। सीमित निगरानी और पैची (patchy) निदान क्षमताओं के कारण वास्तविक बोझ इससे भी अधिक हो सकता है। इस अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं ने कहा है कि लक्ष्य केवल प्रसार का अनुमान लगाना नहीं है, बल्कि बेहतर निदान उपकरण, निगरानी प्रणाली और विशेषज्ञ प्रशिक्षण सुनिश्चित करना है।

फंगस संक्रमणों के प्रकार:

1. सतही एवं त्वचीय संक्रमण:

        दाद, एथलीट फुट और ओनाइकोमाइकोसिस त्वचा, पैरों और नाखूनों को प्रभावित करते हैं।

        कैंडिडायसिस प्रायः मुंह, त्वचा की सिलवटों और जननांग क्षेत्रों को प्रभावित करता है।

ये संक्रमण व्यापक हैं और अक्सर इसलिए उपेक्षित रह जाते हैं क्योंकि ये सामान्य एवं उपचार योग्य माने जाते हैं, यद्यपि बार-बार होने वाले मामले गहरे सार्वजनिक स्वास्थ्य अंतर की ओर संकेत करते हैं।

2. आक्रामक और गहन फंगस संक्रमण:

ये अत्यंत गंभीर होते हैं और शीघ्र निदान के बिना घातक साबित हो सकते हैं:

        हिस्टोप्लाज़्मोसिस: मिट्टी से फैलने वाले हिस्टोप्लाज़्मा (Histoplasma) द्वारा उत्पन्न फेफड़ों का संक्रमण।

        एस्परगिलोसिस: एस्परगिलस  जीवाणुओं का श्वसन के माध्यम से फेफड़ों में पहुंचना जो फेफड़ों के रोगियों के लिए विशेष रूप से खतरनाक है। 

        कैंडिडीमिया: रक्त प्रवाह का संक्रमण; ICU रोगियों में सामान्य और जीवन-घातक।

        म्यूकोर्माइकोसिस: तेजी से फैलने वाला संक्रमण; विशेषकर कोविड-19 के बाद विनाशकारी प्रकोपों के लिए जाना जाता है।

इन आक्रामक संक्रमणों के लिए उच्च तकनीकी विशेषज्ञता और उन्नत प्रयोगशालाओं की आवश्यकता होती है जो भारत में असमान रूप से उपलब्ध हैं।

वृद्धि के प्रमुख कारण:

1.      जलवायु परिवर्तन: बढ़ते तापमान और आर्द्रता, फंगस वृद्धि के लिए आदर्श परिस्थितियाँ बनाते हैं। गर्म वातावरण अधिक प्रतिरोधी फफूंदों के जीवित रहने में सहायता करता है, जो मिट्टी, हवा और भवनों में लंबे समय तक बने रहते हैं।

2.     शहरीकरण एवं प्रदूषण: निर्माण धूल, खराब वेंटिलेशन और वायु प्रदूषण से फंगस घनी आबादी वाले शहरों में आसानी से फैलते हैं।

3.     एंटीबायोटिक का दुरुपयोग: अत्यधिक उपयोग से शरीर की प्राकृतिक जीवाणु प्रणाली कमजोर होती है, जिससे कैंडिडा (Candida) जैसी प्रजातियाँ अनियंत्रित रूप से बढ़ती हैं।

4.    प्रतिरक्षा का क्षरण: कोविड-19 से उबरने वाले लोग, मधुमेह रोगी, कैंसर रोगी तथा कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोग म्यूकोर्माइकोसिस, कैंडिडीमिया और एस्परगिलोसिस जैसे आक्रामक संक्रमणों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।

समर्पित फंगस अनुसंधान की आवश्यकता:

फंगस निदान के लिए विशिष्ट कौशल और विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है, जिन्हें सामान्य जीवाणु या वायरल परीक्षणों से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता।

1.        जटिल निदान:
फंगस निदान भारी रूप से निर्भर करता है:
विशिष्ट कल्चर मीडिया,
• PCR जैसी आणविक तकनीकें,
क्रिप्टोकोकल एंटीजन जैसे परीक्षण और
दुर्लभ प्रजातियों की पहचान में विशेषज्ञता।

ओडिशा में माइक्रोबायोलॉजी प्रयोगशालाओं की हालिया समीक्षा में चिंताजनक अंतर सामने आए:

        आधे से भी कम में एंटीफंगल सस्प्टिबिलिटी परीक्षण उपलब्ध था।

        15% से भी कम में क्रिप्टोकोकल एंटीजन परीक्षण किया जाता था जबकि यह WHO द्वारा अनिवार्य माना जाता है। यह अपर्याप्त पहचान लगातार कम निवेश की ओर ले जाती है।

2.      बढ़ता एंटीफंगल प्रतिरोध:
कृषि और मानव स्वास्थ्य, दोनों में एंटीफंगल दवाओं के दुरुपयोग ने प्रतिरोध बढ़ा दिया है। एस्परगिलस और कैंडिडा प्रजातियों में ऐज़ोल प्रतिरोध वैश्विक समस्या बनता जा रहा है।

3.      प्रशिक्षित माइकोलॉजिस्ट की कमी:
भारत में औपचारिक रूप से प्रशिक्षित चिकित्सकीय माइकोलॉजिस्ट बहुत कम हैं।

4.     शीघ्र पहचान का महत्व:
देर से निदान होने पर घातकता दर कई गुना बढ़ जाती है। समर्पित केंद्र समय पर और सटीक निदान सुनिश्चित करते हैं।

मजबूत राष्ट्रीय फंगस निगरानी प्रणाली का निर्माण:

भारत को ऐसी रणनीति की आवश्यकता है जो केवल क्लीनिकल रिपोर्टिंग तक सीमित न हो। फंगस रोगजनक पर्यावरण में मनुष्यों को संक्रमित करने से बहुत पहले विकसित होते हैं, इसलिए निगरानी को पारिस्थितिक, पूर्वानुमानित और सतत होना चाहिए।

बहु-स्तरीय निदान मॉडल (प्रस्तावित)

1.      जिला अस्पताल
• KOH माइक्रोस्कोपी
बुनियादी फंगस कल्चर
किफायती त्वरित एंटीजन परीक्षण

2.     राज्य-स्तरीय प्रयोगशालाएँ
• PCR आधारित फंगस पैनल
औषधि प्रतिरोध परीक्षण

3.     क्षेत्रीय उत्कृष्टता केंद्र
जीनोम अनुक्रमण
आणविक महामारी विज्ञान
• AI-सहायता प्राप्त माइक्रोस्कोपी
शोध सहयोग

एकीकरण के माध्यम से सुदृढ़ीकरण:

ICMR का कहना है कि प्रयोगशाला एकीकरण वन हेल्थ (One Health) दृष्टिकोण के तहत वायरस, बैक्टीरिया, फंगस और परजीवियों के लिए एकीकृत निदान क्षमता विकसित करने का हिस्सा है। परिषद के अनुसार:

        फंगस प्रयोगशालाओं को डाउनग्रेड नहीं किया जा रहा है,

        उनका दायरा विस्तृत किया गया है और

        नए IRDLs राज्यों में स्थापित किए जा रहे हैं।

प्रत्येक IRDL के लिए पाँच वर्षों में ₹10–16 करोड़ की आवश्यकता होगी, जिसमें उपकरण, स्टाफ और उपभोग्य सामग्री शामिल हैं।

भारत को प्राथमिकता देनी चाहिए

1.        प्रयोगशाला अवसंरचना को मजबूत करना

2.      एंटीफंगल स्टेवार्डशिप कार्यक्रमों का विस्तार

3.      जन-जागरूकता बढ़ाना

4.     प्रशिक्षण का विस्तार

5.      अनुसंधान में निवेश बढ़ाना

निष्कर्ष:

भारत में फंगस रोग अब अदृश्य समस्या नहीं हैं। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, एंटीबायोटिक दुरुपयोग और कमजोर प्रतिरक्षा के मेल से यह दीर्घकालिक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनते जा रहे हैं। यद्यपि ICMR का एकीकृत मॉडल व्यापक निदान क्षमता को मजबूत करने हेतु तैयार किया गया है, देश को यह सुनिश्चित करना होगा कि समर्पित फंगस अनुसंधान और विशेषज्ञता सुरक्षित और सुदृढ़ वित्तपोषित रहे। समय पर निदान, मजबूत निगरानी, प्रशिक्षित विशेषज्ञ और सतत निवेश भारत में इस उभरते खतरे को नियंत्रित कर सकेगा।

 

UPSC/PCS Main Question: फंगस रोग भारत की अगली मौन सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में उभर रहे हैं।इस वृद्धि को संचालित करने वाले कारणों पर चर्चा कीजिए और भारत की वर्तमान निदान एवं निगरानी प्रणालियों की पर्याप्तता का मूल्यांकन कीजिए।