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Daily-current-affairs / 16 May 2025

शिक्षा के अधिकार की पुनर्कल्पना: भारत में समावेशी स्कूली शिक्षा की चुनौतियाँ और संभावनाएँ

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संदर्भ:

बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE) भारत की शैक्षिक नीतियों में एक ऐतिहासिक कदम है। इसका उद्देश्य 6–14 वर्ष के हर बच्चे को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करना है। इस अधिनियम के कारण भारत ने लगभग सार्वभौमिक नामांकन हासिल किया है, लेकिन सामाजिक-आर्थिक और भौगोलिक रूप से वंचित क्षेत्रों में कई गंभीर चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE) को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक लोकतांत्रिक पहुंच प्रदान करने और ऐतिहासिक असमानताओं को दूर करने के लिए बनाया गया था। लेकिन एक दशक से अधिक समय बाद परिणाम भी मिश्रित है। सुधार हुआ है, परंतु गुणवत्ता, समानता और निरंतरता अब भी अनियमित हैं।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) कार्यान्वयन में अंतराल:

भारत में वर्तमान में 6–14 वर्ष के बच्चों में लगभग 98.4% नामांकन दर (ASER 2024) है, फिर भी सीखने के परिणाम बेहद खराब हैं:
केवल 33% कक्षा 3 के छात्र बुनियादी घटाव कर सकते हैं।
कक्षा 5 के कम से कम 50% छात्र कक्षा 2 के स्तर का पाठ नहीं पढ़ सकते।
यह अंतर दर्शाता है कि स्कूलिंग को सार्थक अधिगम में बदलने में प्रणाली असफल रही है।

निजी स्कूलों में ईडब्लूएस (EWS) कोटा:

निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के बच्चों के लिए 25% आरक्षण का प्रावधान कमजोर क्रियान्वयन से जूझ रहा है।
दिल्ली: हर साल 20–30% EWS सीटें खाली रह जाती हैं।
कर्नाटक: 2018 से 2023 के बीच RTE प्रवेश 98% से अधिक घट गया।
आंध्र प्रदेश और गुजरात: यहाँ प्रतिपूर्ति में देरी और माता-पिता के लिए जटिल कागजी कार्यवाही समस्याएँ बनी हुई हैं।

आरटीई (RTE) मानदंडों का अनुपालन: देशभर में केवल 25.5% स्कूल सभी RTE मानकों को पूरा करते हैं। सामान्य कमियों में शामिल हैं:
अपर्याप्त छात्र-शिक्षक अनुपात
अयोग्य स्टाफ की कमी
खराब आधारभूत संरचना
2015 से अब तक हजारों निजी स्कूल मानकों का पालन न करने के कारण बंद हो चुके हैं, जिससे सार्वजनिक प्रणाली पर और बोझ बढ़ा है।

नो-डिटेंशन नीति का परित्याग: 16 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में नो-डिटेंशन नीति को वापस लेना बाल-केंद्रित शिक्षा पद्धति से हटने का संकेत है। कक्षा 5 और 8 में रुकावट और विफलता के कारण पहले से ही हाशिये पर रह रहे बच्चों के बीच ड्रॉपआउट की संभावना बढ़ जाती है।

प्रतीकात्मक समावेशन की मनोवैज्ञानिक लागत: निजी स्कूलों में EWS कोटे के तहत दाखिल बच्चों को अक्सर गुप्त भेदभाव और बहिष्कार का सामना करना पड़ता है:
उन्हें शिक्षकों द्वारा अलग-थलग और कलंकित किया जाता है।
सामाजिक एकीकरण कमजोर होता है, जिससे पहचान का संकट और आत्म-सम्मान में कमी आती है।
यह समावेशन की भावना को कमजोर करता है और बच्चे की गरिमा और पूर्ण भागीदारी के अधिकार का उल्लंघन करता है।

क्षमता के दृष्टिकोण से आरटीई (RTE) की पुनर्परिभाषा: अमर्त्य सेन के कैपेबिलिटी अप्रोच के अनुसार, केवल पहुंच होना पर्याप्त नहीं है। भौतिक संरचना, शिक्षकों की उपलब्धता और पाठ्यचर्या का डिज़ाइन बच्चों को वास्तविक विकल्प और अधिगम लाभ देने लायक होना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक ऐसा पुस्तकालय जिसमें स्थानीय भाषाओं में किताबें या प्रशिक्षित लाइब्रेरियन न हों, वह शिक्षा के लिए बहुत कम उपयोगी है।

शिक्षा के लिए प्रमुख सरकारी पहलें:
स्कूली शिक्षा सुधार
पीएम-श्री स्कूल (2022–2027): राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सिद्धांतों के अनुरूप 14,500 से अधिक आदर्श स्कूलों का विकास। ₹27,360 करोड़ की लागत से ये स्कूल आधारभूत ढांचे, शिक्षण विधियों और छात्र परिणामों में उत्कृष्टता का प्रदर्शन करेंगे।
समग्र शिक्षा (2021–2026): सर्व शिक्षा अभियान (SSA), राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA) और शिक्षक शिक्षा जैसी पुरानी योजनाओं को मिलाकर शुरू की गई समग्र शिक्षा योजना, सभी स्तरों पर समावेशी और समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास करती है। यह लैंगिक, सामाजिक और क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने पर केंद्रित है।
निपुण भारत (2021–2027): कक्षा 3 तक सभी बच्चों के लिए बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान सुनिश्चित करने का लक्ष्य, जो आजीवन सीखने और अकादमिक सफलता के लिए आवश्यक है।
विद्या प्रवेश (2021): कक्षा-I के छात्रों के लिए तीन महीने का खेल-आधारित स्कूल तैयारी कार्यक्रम, जिससे औपचारिक शिक्षा में सहज और रोचक प्रवेश हो सके।
प्रेरणा (2024): एक पायलट परियोजना जो माध्यमिक छात्रों के लिए विरासत और नवाचार को मिलाकर रिहायशी अधिगम अनुभव प्रदान करती है। इसका उद्देश्य नेतृत्व, समस्या-समाधान और राष्ट्रीय गौरव को प्रोत्साहित करना है।
उल्लास/राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (2022–2027): 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के ऐसे व्यक्तियों के लिए वयस्क शिक्षा पर केंद्रित, जो औपचारिक शिक्षा से वंचित रहे हैं। यह योजना बुनियादी साक्षरता, संख्यात्मकता और डिजिटल कौशल को बढ़ावा देती है, जिससे हाशिये पर रह रहे वर्गों को सशक्त किया जा सके।
विद्यान्जलि (2021): स्कूलों में स्वयंसेवा को बढ़ावा देने के लिए जनभागीदारी प्लेटफॉर्म, जिससे सामुदायिक सहभागिता और CSR समर्थन को प्रोत्साहन मिलता है।

डिजिटल और शिक्षक सशक्तिकरण
दीक्षा (DIKSHA) 2017: शिक्षक प्रशिक्षण और संसाधन साझा करने के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म, जिससे राज्य अपनी आवश्यकताओं के अनुसार सामग्री तैयार कर सकते हैं।
निष्ठा (NISHTHA) 2019 से: विश्व का सबसे बड़ा शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम, अब ऑनलाइन रूप में उपलब्ध है। इसमें निष्ठा NISHTHA 2.0 (माध्यमिक) और 3.0 (बुनियादी स्तर) शामिल हैं।

उच्च शिक्षा और रोज़गार योग्यता
स्वयं प्लस (SWAYAM Plus) 2024: स्वयं का उन्नत संस्करण, जो उद्योग-उन्मुख सामग्री और क्रेडिट मान्यता ढाँचा जोड़ता है ताकि रोजगार के अवसर बढ़ें।
पीएम-विद्यालक्ष्मी योजना (2024–2031): 860 शीर्ष संस्थानों में प्रवेश लेने वाले 22 लाख से अधिक छात्रों के लिए एक डिजिटल शिक्षा ऋण योजना।
 NIRF रैंकिंग (2015 से): उच्च शिक्षा संस्थानों में गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए एक पारदर्शी मूल्यांकन व्यवस्था।

सुधार एजेंडा: RTE को भविष्य के लिए तैयार करना

नि:शुल्क शिक्षा की आयु सीमा 18 वर्ष तक बढ़ाना:
14 वर्ष की आयु सीमा मनमानी है और किशोरावस्था के महत्वपूर्ण चरण में बच्चों को असुरक्षित छोड़ती है। कक्षा 12 तक शिक्षा को RTE अधिनियम में शामिल करने से ड्रॉपआउट में कमी आएगी और सामाजिक गतिशीलता बढ़ेगी।

सीखने के परिणामों को प्राथमिकता देना
परिणाम-आधारित मूल्यांकन अपनाएँ।
बुनियादी साक्षरता और गणितीय क्षमता पर ज़ोर दें।
पाठ्यक्रम में जीवन कौशल और डिजिटल साक्षरता को शामिल करें।

ECC शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा को सार्वभौमिक बनाना
बच्चों की प्रारंभिक देखभाल एवं शिक्षा (ECCE) और व्यावसायिक प्रशिक्षण को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में समाविष्ट करना आवश्यक है, जिससे समग्र विकास और भविष्य की रोजगार संभावनाएँ सुनिश्चित हो सकें।

समावेशन को व्यवहार में लागू करना-
आदिवासी क्षेत्रों में मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा लागू करें।
शिक्षकों को समावेशी शिक्षण विधियों और सामाजिक संवेदनशीलता का प्रशिक्षण दें।
पहली पीढ़ी के शिक्षार्थियों के लिए साथियों से मार्गदर्शन और परामर्श की व्यवस्था करें।

शासन और जवाबदेही को सशक्त करना
निजी स्कूलों को समय पर प्रतिपूर्ति दी जाए।
विद्यालय प्रबंधन समितियों (SMCs) को वित्तीय निगरानी की शक्ति दी जाए।
डैशबोर्ड के माध्यम से अनुपालन और शिकायतों की निगरानी की जाए।

निष्कर्ष:
15 वर्षों की यात्रा में RTE अधिनियम ने भारत को महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ दिलाईं हैं, लेकिन इसका पूर्ण परिवर्तनकारी प्रभाव अब भी अपूर्ण है। पश्चिमी सिंहभूम जैसे आदिवासी क्षेत्रों से लेकर पूरे देश में भौगोलिक, भाषाई, सामाजिक और आर्थिक बाधाएँ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच में अब भी अड़चन बनी हुई हैं। अब आवश्यकता है कि नामांकन से आगे बढ़ें और समानता, समावेशन, सीखने और सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित करें।

भारत को अब शिक्षा को केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन के साधन के रूप में देखना चाहिए, एक ऐसा माध्यम जो हर बच्चे को लोकतांत्रिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन में पूर्ण भागीदारी के लिए तैयार कर सके।

 

मुख्य प्रश्न: स्कूली शिक्षा तक पहुँच में सुधार हुआ है, लेकिन सार्थक शिक्षा अभी भी अप्राप्य है।शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के संदर्भ में इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।