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Daily-current-affairs / 22 Aug 2023

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(4) को पुन: प्रभावी बनाना : एक व्यापक समीक्षा - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख (Date): 23-08-2023

प्रासंगिकता: जीएस पेपर 2- राजनीति - विधायकों की अयोग्यता।

कीवर्ड: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA Act), लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013) मामला, अनुच्छेद 103

सन्दर्भ:

वर्ष 2019 में मानहानि के मामले में दोषी ठहराए जाने के कारण कांग्रेस पार्टी के एक प्रमुख सदस्य राहुल गांधी की अयोग्यता ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA Act) की धारा 8(4) को पुन: प्रभावी बनाने की आवश्यकता के बारे में बहस को फिर से शुरू कर दिया है। यह व्यापक विश्लेषण लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के दूरगामी प्रभावों की आलोचनात्मक समीक्षा करता है और विधायकों की अयोग्यता के लिए एक संतुलित व संवैधानिक रूप से ठोस दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए धारा 8 (4) को पुन: प्रभावी के लिए तर्क प्रस्तुत करता है।

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम,1951 (RPA Act 1951):

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 (RPA Act 1951) को आम चुनावों से पहले भारतीय विधायिका द्वारा प्रख्यापित किया गया था। यह अधिनियम चुनावी प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं को शामिल करते हुए भारत में चुनावों की निगरानी के लिए, आधार के रूप में कार्य करता है। यह अधिनियम चुनाव आयोजित करने की विशिष्टताओं को रेखांकित करने के साथ-साथ, संसद के दोनों सदनों (लोकसभा एवं राज्यसभा) और राज्य विधानसभाओं (राज्य विधान सभा एवं राज्य विधान परिषद) में सदस्यों की योग्यता और अयोग्यता को भी संबोधित करता है। यह चुनाव आयोजित करने के प्रक्रियात्मक पहलुओं के लिए व्यापक दिशानिर्देश भी प्रदान करता है।

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 विशिष्ट अपराधों के लिए दोषसिद्धि के बाद प्रतिनिधियों की अयोग्यता से संबंधित है। यह अनुभाग निम्नलिखित प्रावधानों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है:

1. इस अधिनियम का, भारतीय दंड संहिता, नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम 1967, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988, आतंकवाद निवारण अधिनियम 2002 आदि जैसे कुछ कृत्यों के तहत दंडनीय अपराधों का दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को, सामना करना पड़ता है। इसमें निम्नलिखित शर्तों के तहत अयोग्यता का प्रावधान है:

  • यदि दोषी व्यक्ति को केवल जुर्माने की सजा दी जाती है, तो अयोग्यता दोषसिद्धि की तारीख से छह साल तक रहती है।
  • यदि कारावास सजा का हिस्सा है, तो अयोग्यता दोषसिद्धि की तारीख से शुरू होती है और रिहाई के बाद अतिरिक्त छह साल तक बनी रहती है।

2. जमाखोरी या मुनाफाखोरी, भोजन या दवाओं में मिलावट, या 1961 के दहेज निषेध अधिनियम के प्रावधानों से संबंधित कानूनों का उल्लंघन करने का दोषी व्यक्ति अयोग्यता के अधीन है।

3. जिस व्यक्ति को दोषी ठहराया गया है यदि उसे कम से कम दो साल (उपधारा 1 और 2 में उल्लिखित अपराधों को छोड़कर) के लिए कारावास की सजा सुनाई गई है तो, उसे सजा की तारीख से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है और रिहाई के बाद छह साल की विस्तारित अवधि तक जारी रखा जाता है।

10 जुलाई 2013 को सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने जन प्रतिनिधित्व RPA Act 1951 अधिनियम की धारा 8(4) को रद्द कर दिया। धारा 8(4) दोषी सांसदों को अपनी सीट पर बने रहने का प्रावधान करती है, बशर्ते कि उन्होंने तीन महीने के भीतर अपील दायर की हो।


भारतीय संविधान का अनुच्छेद 103

सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित प्रश्नों पर निर्णय.-

  1. यदि कोई प्रश्न उठता है कि क्या संसद के किसी भी सदन का कोई सदस्य अनुच्छेद 102 के खंड (1) में उल्लिखित किसी अयोग्यता के अधीन हो गया है, तो प्रश्न को राष्ट्रपति को संदर्भित किया जाएगा। जिसका निर्णय अंतिम होगा.
  2. ऐसे किसी भी प्रश्न पर कोई भी निर्णय देने से पहले राष्ट्रपति चुनाव आयोग की राय लेंगे और उस राय के अनुसार ही कार्य करेंगे।

तत्काल अयोग्यता और लिली थॉमस मामला

लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2013) में न्यायपालिका ने RPA Act 1951 की धारा 8(4) को रद्द करके एक ऐतिहासिक निर्णय दिया था। अधिनियम की धारा 8(4) पहले दोषसिद्धि के खिलाफ अपील करने के लिए तीन महीने की अवधि की अनुमति देता थी, जिसके दौरान अयोग्यता को स्थगित कर दिया जाता था। यद्यपि, इस निर्णय के बाद RPA Act 1951 की धारा 8(3) के तहत दोषसिद्धि के मौजूदा विधायकों को तत्काल अयोग्य घोषित कर दिया गया था। परन्तु इस निर्णय ने तत्काल कार्रवाई और संविधान में निहित न्याय और भेदभाव के सिद्धांतों के बीच नाजुक संतुलन के बारे में बहस छेड़ दी थी।

धारा 8(3) का विश्लेषण

धारा 8(3) के गहन विश्लेषण से अयोग्यता के समय पर एक सूक्ष्म परिप्रेक्ष्य का पता चलता है। यह प्रावधान "सजा की तारीख से" अयोग्यता निर्दिष्ट करता है, जिसका अर्थ है की आधिकारिक घोषणा की आवश्यकता अभी भी बनी हुई है । इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है की अनुच्छेद 103 के तहत राष्ट्रपति, अयोग्यता घोषित करने का प्राधिकारी होता है। यह दृष्टिकोण पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों के अनुरूप है, जो अयोग्यता के संबंध में मनमाने निर्णयों को रोकने के लिए एक तंत्र प्रदान करता है।

राष्ट्रपति प्राधिकरण और धारा 8(3)

धारा 8(3) दोषी ठहराए जाने पर अयोग्यता लागू करने में राष्ट्रपति को एक महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करता है। यह संवैधानिक परिप्रेक्ष्य शक्तियों के पृथक्करण को कायम रखने और अयोग्यता को लागू करने के लिए एक मजबूत तंत्र सुनिश्चित करने के महत्व पर जोर देता है। अनुच्छेद 103 के तहत राष्ट्रपति की भागीदारी, भारतीय लोकतांत्रिक ढांचे में निहित नियंत्रण और संतुलन को रेखांकित करती है।

सजा के स्थगन की दुविधा: सजा बनाम दोषसिद्धि

इन घटनाक्रमों से उत्पन्न होने वाले दिलचस्प वैधानिक प्रश्नों में से एक ‘सजा पर रोक बनाम अयोग्यता पर स्थगन का प्रभाव’ है। इस सन्दर्भ में ऐतिहासिक निर्णयों की परस्पर विरोधी व्याख्याएँ सामने आई हैं। वास्तव में इस द्वन्द पर सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट राय का अभाव, जैसा कि राहुल गांधी के मामले में देखा गया है साथ ही यह स्थगन , दोषसिद्धि और अयोग्यता के बीच परस्पर क्रिया के मध्य की जटिलता को प्रत्यक्ष करता है।

विधायकों के करियर पर प्रभाव

लिली थॉमस के फैसले द्वारा स्थापित तत्काल अयोग्यता की मिसाल का विधायकों के करियर पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, क्योंकि न्यायिक प्रणाली की लंबी अपील प्रक्रिया निर्वाचित प्रतिनिधियों की विधायी यात्राओं में संभावित व्यवधान के बारे में चिंता उत्पन्न करती है। इस परिप्रेक्ष्य में दोषसिद्धि पर रोक लगाने में आगरा अदालत के त्वरित हस्तक्षेप का असाधारण मामला एक दुर्लभ त्वरित प्रतिक्रिया को दर्शाता है परन्तु इस प्रकार की त्वरित कार्यवाही से बहुत से विधायक वंचित हैं ।

संतुलन विभेदन: अनुच्छेद 103 और संशोधन पर विचार

धारा 8(4) को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का तर्क विधायिका में सत्ता पक्ष द्वारा किये जा रहे भेदभाव पर आधारित था,क्योंकि अनुच्छेद 103 मौजूदा विधायकों के संबंध में भेदभाव के लिए एक संवैधानिक अवसर प्रदान करता है। यह संवैधानिक सीमाएं धारा 8(4) को प्रभावी बनाने के लिए संभावित संवैधानिक संशोधन पर विचार करने का मार्ग प्रशस्त करती हैं । ऐसा संशोधन अनुच्छेद 103 के अनुरूप हो सकता है, जो संवैधानिक रूप से सुदृढ़ ढांचे के आधार पर भेदभाव की सम्भावना उत्पन्न करता है।

निष्कर्ष

RPA Act 1951 की धारा 8(4) की बहाली कानूनी, संवैधानिक और व्यावहारिक निहितार्थों के बहुमुखी मूल्यांकन की मांग करती है। साथ ही यह विश्लेषण एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है जो विधायकों के करियर को संरक्षित करता है, संविधान की भावना का सम्मान करता है, और न्याय, भेदभाव और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांतों की रक्षा करता है। वास्तव में अयोग्य विधायकों के लिए एक मजबूत और न्यायसंगत ढांचा सुनिश्चित करने में तत्काल कार्रवाई और प्रक्रियात्मक निष्पक्षता के बीच नाजुक संतुलन महत्वपूर्ण है।

मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

  • प्रश्न 1. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम ( RPA Act 1951) की धारा 8(4) के प्रावधान क्या थे ?, और लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013) मामले में इसे रद्द करने से कानून निर्माताओं की अयोग्यता पर क्या प्रभाव पड़ा? धारा 8(3) के तहत दोषसिद्धि पर तत्काल अयोग्यता के बाद के प्रभावों और विधायकों के करियर पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजये। (10 अंक, 150 शब्द)
  • प्रश्न 2. आरपी अधिनियम की धारा 8(3) की बारीकियों और दोषसिद्धि पर प्रतिनिधियों की अयोग्यता का निर्धारण करने में इसकी प्रासंगिकता की व्याख्या कीजिये। अनुच्छेद 103 के तहत राष्ट्रपति की भागीदारी इस संदर्भ में कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है? संविधान में निहित न्याय और भेदभाव के सिद्धांतों के साथ तत्काल अयोग्यता को संतुलित करने में चुनौतियों और विचारों पर चर्चा कीजिये। (15 अंक,250 शब्द)

Source - The Hindu

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