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Daily-current-affairs / 30 Apr 2025

"सुरक्षित डिजिटल भारत: अश्लील सामग्री पर संतुलित नियंत्रण की दिशा में"

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संदर्भ:

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ओटीटी प्लेटफॉर्मों और सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री की उपस्थिति को लेकर चिंता जताई है। न्यायालय ने केंद्र सरकार को इस बढ़ती समस्या से निपटने के लिए कानूनी सीमाओं के भीतर कार्रवाई करने का निर्देश दिया। यह मामला एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई के दौरान सामने आया। याचिका में इंटरनेट पर बिना किसी नियंत्रण के फैल रही अश्लील, यौन रूप से स्पष्ट और हानिकारक सामग्री को लेकर गंभीर चिंता जताई गई थी। सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मुद्दे की गंभीरता को स्वीकार करते हुए बताया कि इन प्लेटफॉर्मों पर अश्लीलता को रोकने के लिए और अधिक नियमों पर विचार किया जा रहा है।

याचिका में उठाए गए प्रमुख मुद्दे:

1.        डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर अश्लील सामग्री: याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर अश्लील और विकृत सामग्री आसानी से उपलब्ध है। इनमें बाल अश्लीलता, बाल यौन शोषण, अनैतिक रिश्तों, जानवरों के साथ अशोभनीय सामग्री और सॉफ्ट कोर एडल्ट कंटेंट शामिल हैं।

2.      समाज पर प्रभाव: याचिका में कहा गया कि इस तरह की सामग्री के बेरोकटोक प्रसार से महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों में वृद्धि हो सकती है। इससे युवाओं की यौन समझ पर नकारात्मक असर पड़ता है और उनकी सोच व व्यवहार विकृत हो सकता है।

3.      प्रशासन की विफलता: शिकायतों और निवेदनों के बावजूद अधिकारियों द्वारा कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया। याचिकाकर्ताओं ने चिंता जताई कि सरकार इस गंभीर मुद्दे को जानते हुए भी कोई ठोस नियमन लेकर नहीं आई है।

डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर अश्लीलता के नियमन की आवश्यकता:

1.        सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा: बिना नियंत्रण के अश्लील सामग्री समाज की नैतिकता को कमजोर कर सकती है और अनादर व नैतिक पतन को बढ़ावा देती है।

·        उदाहरण: 2021 में "बुल्ली बाई" ऐप घटना, जिसमें महिलाओं की तस्वीरों की ऑनलाइन नीलामी की गई थी, इस बात का उदाहरण है कि किस प्रकार सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर महिलाओं को नुकसान पहुंचाया गया।

2.      मानव गरिमा की रक्षा: ऐसी सामग्री जो व्यक्ति को केवल वासना की वस्तु के रूप में प्रस्तुत करती है, व्यक्तिगत गरिमा और स्वायत्तता के सिद्धांत का उल्लंघन करती है।

3.      अश्लीलता को सामान्य बनाने से बचाव: नियमित रूप से इस तरह की सामग्री देखने से लोगों की संवेदनशीलता कम हो जाती है और वे हानिकारक धारणाओं को सच मानने लगते हैं।

4.     प्लेटफॉर्मों की नैतिक जिम्मेदारी: डिजिटल प्लेटफॉर्मों का दायित्व है कि वे ऐसा कंटेंट प्रसारित करें जो सार्वजनिक हित को बढ़ावा दे और एक सुरक्षित डिजिटल वातावरण सुनिश्चित करे।

5.      संवैधानिक नैतिकता का पालन: संविधान का नैतिक ढांचा यह सुनिश्चित करता है कि डिजिटल कंटेंट न्याय और समानता जैसे मूल्यों का सम्मान करे। अनुच्छेद 19(2) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सार्वजनिक व्यवस्था और शिष्टता के आधार पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

डिजिटल अश्लील सामग्री के नियमन से जुड़े नैतिक मुद्दे

डिजिटल अश्लील सामग्री के नियमन से जुड़े नैतिक मुद्दे:
डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर अश्लील सामग्री के नियमन से कई नैतिक द्वंद्व उत्पन्न होते हैं:

अस्पष्टता और व्यक्तिपरकता: क्या सामग्री अश्लील है, इसका निर्धारण सांस्कृतिक, क्षेत्रीय और समय के अनुसार अलग-अलग हो सकता है। जो भाषा और सामग्री कभी अनुपयुक्त मानी जाती थी, वह आज सामान्य बातचीत में इस्तेमाल होती है।
पालकत्व बनाम स्वायत्तता: अत्यधिक नियमन यह मानकर चलता है कि उपयोगकर्ता खुद निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं। हानिकारक सामग्री से रक्षा आवश्यक है, लेकिन साथ ही उपयोगकर्ता की स्वतंत्रता का सम्मान भी जरूरी है।
बदलते सामाजिक मानदंड: अश्लीलता एक सांस्कृतिक अवधारणा है जो समय के साथ बदलती है। उदाहरणस्वरूप, खजुराहो और कोणार्क मंदिरों की मूर्तियों में कामुकता दर्शाई गई है, जिन्हें यदि आज बनाया जाए, तो सेंसरशिप का सामना करना पड़ सकता है।
सत्ता समीकरण: यह सवाल उठता है कि स्वीकार्य सामग्री का निर्धारण कौन करेगा। यह आशंका बनी रहती है कि सेंसरशिप का दुरुपयोग करके हाशिए पर पड़े समुदायों की अभिव्यक्ति को दबाया जा सकता है।
सेंसरशिप बनाम उचित प्रतिबंध: कुछ लोगों का मानना है कि सेंसरशिप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है, जबकि अन्य का मानना है कि सार्वजनिक नैतिकता की रक्षा के लिए उचित प्रतिबंध जरूरी हैं। अत्यधिक नियंत्रण से रचनात्मकता और मीडिया की विविधता सीमित हो सकती है।

अश्लील सामग्री से संबंधित कानूनी ढांचा

भारत में डिजिटल सामग्री को नियंत्रित करने के लिए कई कानून और नियम मौजूद हैं, लेकिन अश्लीलताकी परिभाषा को लेकर अब भी अस्पष्टता बनी हुई है:
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 67): इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करने पर दंड का प्रावधान है।
भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023: इसमें व्यापक दंडात्मक प्रावधान जोड़े गए हैं, लेकिन अश्लीलता की स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है।
सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021:

o   आयु-आधारित सामग्री वर्गीकरण अनिवार्य है।

o   तीन-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किया गया है:

§  स्तर I: प्रकाशक का आंतरिक शिकायत अधिकारी

§  स्तर II: स्व-नियामक निकाय (Self-regulatory Bodies – SRBs)

§  स्तर III: सूचना और प्रसारण मंत्रालय (MIB) और शिकायत अपीलीय समिति (GAC) द्वारा निगरानी

सिनेमेटोग्राफ अधिनियम, 1952 और केबल टीवी नेटवर्क विनियमन अधिनियम, 1995: पारंपरिक प्रसारण मीडिया पर लागू होते हैं।
महिलाओं का अशोभनीय चित्रण (निषेध) अधिनियम, 1986: महिलाओं को नीचा दिखाने वाले चित्रण पर प्रतिबंध लगाता है।

न्यायिक व्याख्या और चुनौतियाँ
अदालतों द्वारा समय-समय पर अश्लीलता की व्याख्या बदलती रही है।
रंजीत डी. उदेशी बनाम महाराष्ट्र राज्य (1964): सुप्रीम कोर्ट ने 'हिक्लिन टेस्ट' अपनाया, जिसमें यह देखा जाता है कि क्या सामग्री व्यक्ति को नैतिक रूप से भ्रष्ट या विकृत कर सकती है।
अवीक सरकार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2014): इसमें कोर्ट ने समुदाय मानक परीक्षण’ (community standards test) अपनाया, जिसमें अश्लीलता का मूल्यांकन सामाजिक और नैतिक मानकों के आधार पर किया जाता है। यह बदलाव इस बात को दर्शाता है कि भारत जैसे विविध समाज में एक समान मानदंड लागू करना कितना कठिन है।

इसके अलावा, एक ही अपराध के लिए कई एफआईआर दर्ज करने की प्रवृत्ति भी बढ़ी है, जिससे आरोपी के निष्पक्ष बचाव के अधिकार का हनन और उत्पीड़न की आशंका उत्पन्न होती है।

निष्कर्ष
डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर अश्लीलता का नियमन एक जटिल मुद्दा है क्योंकि यह विषय व्यक्तिपरक है, सामाजिक मानदंडों के साथ बदलता रहता है और रचनात्मकता तथा सामाजिक उत्तरदायित्व के बीच संतुलन की मांग करता है।

एक जिम्मेदार डिजिटल मीडिया वातावरण तैयार करने के लिए आवश्यक है:
स्पष्ट कानूनी दिशानिर्देश
स्व-नियमन
जनजागरूकता
वैश्विक सहयोग

न्याय, गरिमा, पारदर्शिता और जवाबदेही जैसे मूल्यों का पालन करते हुए ही डिजिटल प्लेटफॉर्म रचनात्मक स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन बना सकते हैं।

 

मुख्य प्रश्न: "भारत में डिजिटल सामग्री का नियमन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक नैतिकता के बीच संतुलन का विषय है।" ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर अश्लीलता के संदर्भ में इस कथन की समीक्षा कीजिए।