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Daily-current-affairs / 08 Dec 2023

इतिहास के काल विभाजन का पुनर्मूल्यांकन - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख Date : 9/12/2023

प्रासंगिकताः जीएस पेपर 1-इतिहास

की-वर्ड्स : आवधिकरण, यूरोसेन्ट्रिज्म, आधुनिकता, बौद्धिक उपनिवेशीकरण, पुरातत्व

संदर्भ -

इतिहास का काल विभाजन, अतीत के अध्ययन का वस्तुनिष्ठ,कठोर और सार्वभौमिक विभाजन नहीं होता है, बल्कि मानव सभ्यता के विकास के संदर्भ मे इसकि विशिष्ट उत्पत्ति और निहितार्थ होते है। इस लेख में, हम इतिहास के पारंपरिक विभाजन में निहित समस्याओं, इसका यूरोप आधारित विभाजन और इसकी विकसित होती अवधारणाओं को समझेंगे, साथ ही वैश्विक संदर्भ में इसकी प्रयोज्यता पर क्या प्रशचिह्न उठ रहे हैं? उस पर भी चर्चा करेंगे।


यूरोप केंद्रित (Eurocentrism) विभाजन और इसका प्रभाव

विशिष्ट प्रांतीय और अस्थायी उत्पत्तिः

  • इतिहास का प्राचीनकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल मे विभाजन 16वीं और 17वीं शताब्दी में यूरोप से उभरा था। वर्तमान मे यह विभाजन सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया जाता है।
  • हालाँकि, यह समझना महत्वपूर्ण है कि अन्य समाजों के इतिहास को विभाजित करने के अपने विशिष्ट तरीके थे, जैसे कि भारत, ईरान और तुर्क-मंगोल क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार से राजवंश और शासन काल का विभाजन किया गया है।

यूरोपीय काल विभाजन की वस्तुनिष्ठता:

  • यूरोपीय काल विभाजन ने यूरोप की तर्कसंगतता, विज्ञान और प्रगति के कारण प्रमुखता प्राप्त की ।
  • जैसे-जैसे यूरोप ने विश्व स्तर पर अपने प्रभाव का विस्तार किया, ऐतिहासिक समय और स्थान की स्वदेशी धारणाओं की जगह उपनिवेशों पर यूरोपीय काल विभाजन लागू होता गया।
  • जैक गुडी का कहना है इस बौद्धिक उपनिवेशीकरण ने यूरोसेंट्रिक प्रभाव को मजबूत किया और उपनिवेशों के मध्ययुग को "अंधकार युग"(Dark era ) के रूप में प्रस्तुत किया।

भारतीय काल विभाजन में विकृतियाँ:

  • भारतीय संदर्भ में, जेम्स मिल ने इतिहास को हिंदू, मुस्लिम और ब्रिटिश काल के रूप में विभाजित किया।
  • इस विभाजन ने न केवल एक पक्षपाती दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है, बल्कि मध्ययुगीन मुस्लिम शासन को अंधकार युग भी बताया। इसी के साथ इसने ब्रिटिश शासन को वैध बनाने का भी काम किया।
  • दिल्ली के शासकों के आधार पर हिंदू, मुस्लिम और ब्रिटिश काल में जेम्स मिल द्वारा भारतीय इतिहास का चित्रण कई कारणों से त्रुटिपूर्ण है।
  • पहला , भारतीय इतिहास को केवल शासकों के धर्म के चश्मे से वर्गीकृत किया गया, जो कि गलत है, क्योंकि इस समय कई धर्म एक साथ सह-अस्तित्व में थे।
  • इसके अतिरिक्त, मिल का यह दावा कि भारतीय इतिहास में पूर्व-ब्रिटिश युग असभ्य था और सामाजिक बुराइयों से ग्रस्त था, यह एक अतार्किक धारणा को दर्शाता है। इस तरह का दृष्टिकोण उन समृद्ध और जटिल सामाजिक संरचनाओं की अनदेखी करता है जो ब्रिटिश उपनिवेशीकरण से पहले मौजूद थे।
  • मिल का काल विभाजन भारतीय उपमहाद्वीप के भीतर विभिन्न स्वतंत्र क्षेत्रों की विविध समय-सीमाओं की उपेक्षा करती है। सम्पूर्ण भारत, हमेशा दिल्ली से एक राजनीतिक इकाई के रूप में शासित नहीं रहा, यहाँ कई छोटे-छोटे राज्य सदैव अस्तित्व मे रहे। अतः हम कह सकते हैं कि जेम्स मिल का विभाजन भारतीय साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में सूक्ष्म ऐतिहासिक विकास को पकड़ने में विफल रहा।

काल-विभाजन में चुनौतियां और परिवर्तन

मानव विकास के रूप में काल-विभाजन

  • विकसित होते नवीन विचारों के साथ प्राचीन, मध्ययुगीन और आधुनिक काल के विभाजन को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • प्राचीन काल का उत्तरार्ध, पूर्व मध्ययुग और पूर्व आधुनिक जैसे नवीन वर्गीकरण अब प्रमुखता प्राप्त कर रहे हैं।
  • अब विकास की अवधारणा मे स्पष्ट परिवर्तन के भीतर निरंतरता को भी स्वीकार किया जाने लगा है ।

काल-विभाजन में क्षेत्रीय भिन्नता

  • तीन कालों मे इतिहास का विभाजन दुनिया भर में क्षेत्रीय भिन्नता प्रदर्शित करता है।
  • उदाहरण के लिए, चीन मे "मध्ययुग" को कई शताब्दियों ईसा पूर्व से माना जाता है, जबकि भारत मे 18 वीं शताब्दी ईस्वी तक के काल को मध्ययुग माना जाता है।
  • • जैक्स ले गोफ और अन्य विद्वानों ने अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर देते हुए इतिहास को अलग-अलग हिस्सों में विभाजित करने की धारणा पर सवाल उठाया है।

आधुनिकता और उसके विकास की धारणा

आधुनिकता की यूरोप केंद्रित उत्पत्ति

  • ऐतिहासिक काल विभाजन का केंद्र आधुनिकता की उस धारणा में निहित है, जिसकी उत्पत्ति यूरोप के 17वीं-18वीं शताब्दी में हुई थी।
  • तीन काल खंड यूरोप की प्रगति के आधार पर वर्तमान से अतीत तक की यात्रा के रूप में इतिहास का निर्माण करते है। यह यूरोसेंट्रिक परिप्रेक्ष्य, आधुनिक दुनिया को पश्चिमी विकास के रूप में चित्रित करता है। यह विभाजन लंबे समय से निर्विवाद रूप से स्थापित है।

आधुनिकता की बहुलताएँ

  • हाल के दशकों में, आधुनिकता की धारणा पर काफी विचार विमर्श किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप अकादमिक विमर्श में "आधुनिकता" की नवीन अवधारणा को स्वीकार किया जा रहा है।
  • आधुनिकता को अब एक वस्तुनिष्ठ वास्तविकता नहीं माना जाता है। इसके बजाय, यह व्यक्तिपरक, स्थानपरक है। इतिहास विभिन्न समाजों और सभ्यताओं के विविध योगदानों के अनुरूप आकार लेता है।

एक सार्वभौमिक इकाई के रूप में इतिहास

  • आधुनिकता की विकसित होती समझ- हम इतिहास को कैसे देखते हैं ? इसमें एक प्रतिमान बदलाव की मांग करती है। इसे अलग-अलग भागों में विभाजित करने के बजाय, इतिहास को एक सार्वभौमिक इकाई के रूप में माना जाना चाहिए जिसमें क्षेत्र घटक के रूप मे शामिल हो । यह परिप्रेक्ष्य इस विचार के साथ संरेखित है कि सभी सभ्यताओं ने मानवता के विकास में योगदान दिया है। यह योगदान,आज हम जिस दुनिया में रहते हैं उसे आकार दे रहा है।

प्रचलित मानदंडों को चुनौती और काल विभाजन में नवीन परिवर्तन

नवीन सार्वभौमिक दृष्टिकोण

  • आधुनिक इतिहासकारों ने इतिहास को एक सार्वभौमिक इकाई के रूप में मानने पर बल दिया है जिसमें क्षेत्रों को इसके घटक के रूप में माना जाता है।
  • यह दृष्टिकोण इतिहास को एक निरंतर प्रक्रिया के रूप में रेखांकित करता है, जो इसे अलग-अलग अवधियों में विभाजित करने के मानदंड को चुनौती देता है। प्रचलित काल विभाजन की कमियाँ तेजी से स्पष्ट हो रही है क्योंकि इतिहास मे अब नवीन क्षेत्रों में शोध किया जा रहा है, जैसे कि जलवायु, ग्रहों का इतिहास, और पूर्व-इतिहास और पुरातत्व पर पुनर्विचार आदि।

जलवायु और ग्रहों का इतिहास

  • जलवायु और ग्रहों के इतिहास पर विचार करते समय पारंपरिक काल विभाजन अप्रासंगिक हो जाता है।
  • समय और स्थान के साथ घटनाओं का परस्पर जुड़ाव काल के कठोर विभाजन को चुनौती देता है। यह परिवर्तन इस बात के पुनर्मूल्यांकन को प्रेरित करता है कि हम इतिहास की अवधारणा और शिक्षण कैसे करते हैं?

पूर्व-इतिहास और पुरातत्व पर पुनर्विचार

  • प्रागैतिहासिक और पुरातत्व का अध्ययन पारंपरिक कालक्रम की सीमाओं को स्पष्ट करता है।
  • जैसे-जैसे अंतःविषयक अनुसंधान अतीत के बारे में हमारी समझ का विस्तार कर रहे है, ऐतिहासिक प्रक्रियाओं की जटिलता को पकड़ने में काल विभाजन द्वारा लगाए गए प्रतिबंध अपर्याप्त साबित हो रहे हैं।

निष्कर्ष

यूरोपीय बौद्धिक विकास से उत्पन्न प्राचीन, मध्ययुगीन और आधुनिक इतिहास के विभाजन को नवीन विचारों और चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इतिहास को कठोर खंडों में विभाजित करने की सीमाओं को पहचानते हुए, इतिहासकारों द्वारा नई सीमाओं का पता लगाने के प्रयास किये जा रहे है।

इतिहास, जो विविध सभ्यताओं के योगदान से आकार लेता है, एक अधिक सूक्ष्म और परस्पर जुड़े दृष्टिकोण की मांग करता है। यह दृष्टिकोण निरंतरता को स्वीकार करने के साथ समय और स्थान में स्पष्ट परिवर्तनों को भी स्वीकार करता है।

जैसे-जैसे हम ऐतिहासिक विद्वता के विकसित परिदृश्य को समझेंगे पारंपरिक विभाजन पुनर्मूल्यांकन और अनुकूलन की मांग करेगा।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  1. प्राचीन, मध्ययुगीन और आधुनिक इतिहास के यूरोसेंट्रिक वर्गीकरण के अधिरोपण ने गैर-यूरोपीय समाजों, विशेष रूप से उपनिवेशवाद और बौद्धिक उपनिवेशीकरण को कैसे प्रभावित किया? (10 Marks, 150 Words)
  2. किस तरह से आधुनिकता की विकसित समझ पारंपरिक यूरोसेंट्रिक कथा को चुनौती देती है और विविध "आधुनिकताओं" को पहचानने की दिशा में बदलाव को प्रेरित करती है? (15 Marks, 250 Words)

Source- The Hindu


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