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Daily-current-affairs / 07 Nov 2025

भारत में बार‑बार होने वाली भीड़ दुर्घटनाएँ: प्रबंधन विफलताएँ और सबक | Dhyeya IAS

भारत में बार‑बार होने वाली भीड़ दुर्घटनाएँ: प्रबंधन विफलताएँ और सबक | Dhyeya IAS

सन्दर्भ:

आंध्र प्रदेश के काशीबुग्गा स्थित वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में हाल ही में हुई भगदड़ ने एक बार फिर भारत की भीड़ प्रबंधन प्रणाली की कमी को उजागर किया है। एकादशी के अवसर पर रेलिंग टूटने से हुई इस दुर्घटना में दो बच्चों सहित नौ लोगों की मौत हो गई। यह इस वर्ष ऐसी तीसरी त्रासदी है, जो व्यापक राष्ट्रीय प्रवृत्ति की ओर संकेत करती है। भारत में मंदिरों, रेलवे स्टेशनों, त्योहारों, खेल आयोजनों और राजनीतिक सभाओं में अक्सर भगदड़ की घटनाएँ होती रही हैं, जिनमें केवल 2025 में ही अब तक लगभग 100 लोगों की जान जा चुकी है।

बार-बार होने वाली त्रासदियों का पैटर्न:

भारत ने 2025 में कई भगदड़ की घटनाएँ देखी हैं:

      • काशीबुग्गा मंदिर (नवंबर 2025): लगभग 25,000 से अधिक भक्तों की भीड़ मंदिर में दर्शन के लिए उमड़ी जबकि मंदिर की इतनी क्षमता नहीं थी। रेलिंग टूटने से भगदड़ मच गई।
      • बेंगलुरु आरसीबी परेड (जून 2025): अफवाह और बिना अनुमति के परेड के कारण भारी भीड़ और कई मौतें हुईं।
      • गोवा की शिरगांव यात्रा (मई 2025): ग्रामीण धार्मिक जुलूस में अनियंत्रित भीड़ से हताहत।
      • कुंभ भगदड़ (फरवरी 2025, जनवरी 2025): नई दिल्ली रेलवे स्टेशन और प्रयागराज संगम घाट पर अपर्याप्त भीड़ नियंत्रण के कारण अलग-अलग घटनाओं में 40 से अधिक लोगों की मौत।
      • तिरुपति (जनवरी 2025): विशेष दर्शन टिकटों के लिए भीड़ में छह लोगों की मौत।

भारत क्यों अत्यधिक संवेदनशील है?

1.        कमज़ोर प्रशासनिक जवाबदेही: आयोजन स्थल अक्सर सुरक्षित क्षमता सीमा से अधिक भीड़ को अनुमति देते हैं। निरीक्षण के बिना अनुमति दी जाती है और निजी आयोजक अनिवार्य स्वीकृतियों को नज़रंदाज़ कर देते हैं।

2.      खराब योजना और समन्वय: भीड़ सुरक्षा स्थानीय प्रशासन, पुलिस और आयोजकों के बीच तालमेल पर निर्भर करती है। लेकिन अधिकांश मामलों में यह समन्वय विफल हो जाता है। निर्णय लेने में देरी, अस्पष्ट जिम्मेदारियाँ और पुरानी या अनुपस्थित निकासी योजनाएँ स्थिति को और बिगाड़ देती हैं।

3.      तकनीक का कम उपयोग: एनडीएमए वास्तविक समय निगरानी की सिफारिश करता है, फिर भी अधिकांश आयोजन मैनुअल मॉनिटरिंग पर निर्भर हैं। ड्रोन, एआई आधारित भीड़ घनत्व उपकरण या सेंसर-सक्षम अलर्ट की अनुपस्थिति में अधिकारी समय रहते हस्तक्षेप नहीं कर पाते।

4.     सामाजिक व्यवहार और भीड़ संस्कृति: भारत के सार्वजनिक स्थल पहले से ही उच्च घनत्व में संचालित होते हैं। लोग तंग कतारों, धक्का-मुक्की और अचानक बढ़ती भीड़ के अभ्यस्त हैं, जिससे शुरुआती चेतावनी संकेतों को पहचानना कठिन हो जाता है। भीड़ व्यवहार विशेषज्ञों के अनुसार, लोग गैर-मौखिक संकेतों पर अत्यधिक निर्भर होते हैं, जब तक असुविधा फैलती है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

5.      तीर्थ पर्यटन में वृद्धि: बढ़ती आय और बेहतर कनेक्टिविटी ने तीर्थयात्रियों की संख्या में भारी वृद्धि की है, लेकिन मंदिरों और धार्मिक आयोजनों की बुनियादी ढाँचा क्षमता उतनी तेज़ी से नहीं बढ़ी।

6.     आपातकालीन प्रतिक्रिया में देरी: पुलिस बल और स्वयंसेवक अक्सर तनाव की स्थिति में मानवीय व्यवहार को संभालने के लिए प्रशिक्षित नहीं होते। जैसे ही घबराहट फैलती है, गलत संचार, स्थिति को और खराब कर देता है।

भीड़ त्रासदियों के पीछे का विज्ञान:

भीड़ त्रासदियाँ इसलिए नहीं होतीं क्योंकि लोग भागतेहैं, बल्कि इसलिए क्योंकि शरीर एक-दूसरे पर दब जाते हैं। जब घनत्व 6–7 व्यक्ति प्रति वर्ग मीटर तक पहुँच जाता है, तो लोग अपनी गति पर नियंत्रण खो देते हैं। 8–10 व्यक्ति प्रति वर्ग मीटर पर छाती का फैलाव असंभव हो जाता है, जिससे दम घुटने से मौत होती है। कई पीड़ित सीधे खड़े हुए ही दम तोड़ देते हैं।

अनुसंधान से पता चला है:

      • संकीर्ण रास्तों से 27% मौतें होती हैं।
      • अत्यधिक भीड़ से 23% मौतें और 35% घायल होते हैं।
      • एक व्यक्ति का गिरना डोमिनो प्रभावउत्पन्न करता है।
      • अफवाहें या अचानक अवरोध घबराहट को तेजी से बढ़ाते हैं।

यह वैज्ञानिक समझ दर्शाती है कि उचित डिज़ाइन और पूर्वानुमान कितना आवश्यक है।

नीतिगत कार्यान्वयन में विफलताएँ:

1.        अपर्याप्त जोखिम मूल्यांकन: एनडीएमए बड़े आयोजनों से पहले जोखिम, खतरा और संवेदनशीलता विश्लेषण (Hazard, Risk and Vulnerability Analysis (HRVA)) को अनिवार्य बनाता है, लेकिन अधिकांश आयोजक इसे नजरअंदाज कर देते हैं। भीड़ बढ़ने की पूर्व चेतावनियों को अनसुना कर दिया जाता है।

o    उदाहरण: 2013 रतनगढ़ मंदिर भगदड़, जिसमें रेलिंग टूटने से 115 लोगों की मौत हुई।

2.      खराब निकासी और मार्ग डिज़ाइन: कई स्थलों में संकरे प्रवेश/निकास द्वार, अवरुद्ध गलियारे, कमजोर रेलिंग और अपर्याप्त रोशनी होती है, जो भगदड़ के समय स्थिति को और बिगाड़ती है।

o    उदाहरण: 2005 मंधरादेवी मंदिर भगदड़, जहाँ संकरे सीढ़ियों ने त्रासदी को बढ़ाया।

3.      वास्तविक समय निगरानी की कमी: प्रमुख आयोजनों में अभी भी सीसीटीवी नेटवर्क, निगरानी कक्ष और एआई आधारित विश्लेषण अनुपस्थित हैं।

o    उदाहरण: 2022 वैष्णो देवी मंदिर भगदड़, जहाँ वास्तविक समय ट्रैकिंग की कमी के कारण नियंत्रण खो गया।

4.     कमजोर अंतर-एजेंसी समन्वय: विभिन्न एजेंसियाँ परस्पर विरोधी निर्देश देती हैं।

o    उदाहरण: 2015 गोदावरी पुष्करालु भगदड़, जहाँ यातायात और भीड़ नियंत्रण की खराबी से अफरा-तफरी मच गई।

5.      एकीकृत कमांड ढांचे का अभाव: अलग-अलग विभाग अलग-अलग कार्य करते हैं। भगदड़ की स्थिति में यह अस्पष्टता पैदा करता है कि बचाव और निकासी का नेतृत्व कौन करेगा।

6.     स्वतः उत्पन्न भीड़ों का सीमित नियमन: रेलवे स्टेशन, गाँव के मेले या स्थानीय आयोजनों जैसी घटनाएँ बिना औपचारिक अनुमति के हो जाती हैं। प्रशासन प्रतिक्रियात्मक रूप से कार्य करता है, न कि पूर्व नियोजन के साथ।

मौजूदा सकारात्मक पहलें:

बहु-एजेंसी समन्वय: 2019 प्रयागराज कुंभ मेले जैसे आयोजनों ने दिखाया कि संयुक्त प्रबंधन से क्या हासिल किया जा सकता है, जहाँ पुलिस, स्वास्थ्य टीमों और आपदा बलों ने मिलकर कार्य किया।

1.        वैज्ञानिक पूर्वानुमान मॉडल: HRVA और विफलता मोड और प्रभाव विश्लेषण (FMEA) का उपयोग जोखिम क्षेत्रों और भीड़ वाले बिंदुओं की पहचान में मदद करता है।

o    उदाहरण: जगन्नाथ रथ यात्रा, जहाँ योजनाकार चरम भीड़ का पूर्वानुमान लगाने के लिए मॉडलिंग का उपयोग करते हैं।

2.      तकनीकी नियंत्रण उपाय: 2021 कुंभ में ड्रोन निगरानी, जियो-टैगिंग और एआई आधारित भीड़ मानचित्रों का सफल उपयोग हुआ।

3.      बेहतर निकासी प्रोटोकॉल: कुछ त्योहार अब नियंत्रित प्रवेश-निकास बिंदु, चरणबद्ध समय और निर्धारित गलियारों के माध्यम से भीड़ को नियंत्रित करते हैं।

o    उदाहरण: त्रिशूर पूरम में नियंत्रित मार्गों और डाइवर्जन का उपयोग किया जाता है।

4.     जन-जागरूकता पहल: तिरुपति बालाजी जैसे मंदिर नियमित अभ्यास और भक्तों को सुरक्षित चलने और कतार में रहने की जानकारी प्रदान करते हैं।

तत्काल सुधार की ज़रूरत:

1.        पूर्व-आयोजन जोखिम मूल्यांकन को अनिवार्य बनाना: HRVA और FMEA को सभी बड़े आयोजनों के लिए अनिवार्य किया जाए। अनुमति केवल अनुपालन के बाद दी जाए।

2.      एआई और वास्तविक समय निगरानी को अपनाना: एआई आधारित घनत्व विश्लेषण, ड्रोन और सेंसर आधारित निगरानी को मानक प्रथा बनाया जाए। जब घनत्व 5 व्यक्ति प्रति वर्ग मीटर से अधिक हो, तो अलर्ट जारी किया जाए।

3.      कानूनी जवाबदेही को मजबूत करना: केवल आपराधिक मामलों से काम नहीं चलेगा। सिविल हर्जाना, बीमा और दंडात्मक ढांचे से आयोजकों, प्रशासकों और निजी मंदिर बोर्डों को जवाबदेह बनाया जाए।

4.     बुनियादी ढांचे का सुधार: चौड़े निकास द्वार, आपातकालीन गलियारे, मजबूत रेलिंग, स्पष्ट संकेतक और बाधा-मुक्त मार्ग अनिवार्य हों।

5.      एकीकृत कमांड प्रणाली: पुलिस, निगरानी टीम, स्वास्थ्य इकाइयों और स्थानीय प्रशासन को जोड़ने वाला एक नियंत्रण कक्ष प्रमुख आयोजनों के दौरान सक्रिय रहना चाहिए।

6.     व्यावसायिक प्रशिक्षण: पुलिस, स्वयंसेवकों और आयोजन कर्मियों के लिए भीड़ प्रबंधन का प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाए। इसमें भीड़ मनोविज्ञान, संवाद कौशल और निकासी अभ्यास शामिल हों।

7.      निजी धार्मिक प्रतिष्ठानों का नियमन: काशीबुग्गा घटना ने दिखाया कि निजी मंदिर अक्सर सुरक्षा स्वीकृति से बच जाते हैं। सख्त परमिट-आधारित प्रणाली आवश्यक है।

8.     पूर्वानुमान तकनीक का उपयोग: क्वांटम एआई आधारित सिमुलेशन, भीड़ पूर्वानुमान और निकासी मॉडलिंग से योजना में बड़ा सुधार किया जा सकता है।

आगे की राह:

भारत में बार-बार होने वाली भगदड़, दुर्घटनाएँ नहीं हैं; वे कमजोर योजना और जवाबदेही की कमी से उत्पन्न रोकी जा सकने वाली विफलताएँ हैं। भीड़ व्यवहार का विज्ञान अच्छी तरह स्थापित है और वैश्विक मानक दिखाते हैं कि यदि पिछले सबक से सीखें तो ऐसी त्रासदियाँ टाली जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त भारत को स्वैच्छिक दिशानिर्देशों से हटकर कानूनी रूप से बाध्यकारी सुरक्षा मानकों की ओर बढ़ना होगा। भीड़ सुरक्षा को एक बहु-विषयक जिम्मेदारी के रूप में मान्यता देनी होगी, जिसमें अभियांत्रिकी, व्यवहार विज्ञान, प्रशासन और वास्तविक समय निगरानी का समावेश हो।

 

UPSC/PCS मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारत में भीड़ से जुड़ी त्रासदियाँ प्रशासनिक लापरवाही से अधिक संबंधित हैं। मंदिरों, रेलवे स्टेशनों और सार्वजनिक आयोजनों में हालिया भगदड़ की घटनाओं के संदर्भ में इस कथन का मूल्यांकन कीजिए।