संदर्भ:
भारत का रक्षा क्षेत्र एक ऐतिहासिक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। बढ़ती सुरक्षा चुनौतियाँ, तकनीकी श्रेष्ठता की आवश्यकता और आयात पर निर्भरता कम करने की महत्वाकांक्षा ने इस बदलाव को गति दी है। हाल ही में आयोजित कंट्रोलर्स कॉन्फ्रेंस 2025 में अधिकारियों ने खरीद प्रक्रिया में तेजी लाने, घरेलू निर्माण को सशक्त करने और वित्तीय चुस्ती को सुधारने के लिए किए गए सुधारों की जानकारी दी।
पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने स्वदेशी क्षमताओं को विकसित करने, खरीद प्रक्रिया को तेज करने और एक ऐसा इकोसिस्टम तैयार करने के लिए व्यापक सुधार किए हैं जहाँ निजी कंपनियाँ, स्टार्टअप और एमएसएमई महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।
यह परिवर्तन निम्नलिखित कारकों द्वारा प्रेरित हुआ है:
• बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और ऑपरेशन सिंदूर से मिली सीख।
• आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत आत्मनिर्भरता पर नया जोर।
• यह पहचान कि रक्षा खर्च आर्थिक विकास और नवाचार को बढ़ावा दे सकता है।
• वैश्विक सैन्य व्यय में वृद्धि (अब $2.7 ट्रिलियन से अधिक)।
बजटीय आवंटन और आर्थिक महत्व:
केंद्रीय बजट 2025–26 में रक्षा मंत्रालय को अभूतपूर्व ₹6.81 लाख करोड़ (US$ 78.7 बिलियन) आवंटित किए गए, जो साल-दर-साल 9.5% की वृद्धि को दर्शाता है। इसमें शामिल हैं:
• पूंजीगत व्यय ₹1.80 लाख करोड़ (US$ 20.8 बिलियन) – नए हथियार, युद्धपोत, विमान और आधुनिक उपकरण खरीदने हेतु।
• ₹7,146 करोड़ (US$ 825.7 मिलियन) विशेष रूप से सीमा सड़क संगठन (BRO) के लिए, जो सामरिक क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा निर्माण के लिए आवश्यक है।
यह बजट ऑपरेशनल रेडीनेस, आधारभूत संरचना विस्तार और तकनीकी उन्नयन के महत्व को दर्शाता है।
बाजार आकार और वैश्विक स्थिति
ग्लोबल पावर इंडेक्स के अनुसार, भारत का रक्षा क्षेत्र अग्निशक्ति में वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर है, जिसकी स्कोरिंग 0.0979 है (0 के निकटतम स्कोर उच्च शक्ति को दर्शाता है)।
प्रमुख लक्ष्य और उपलब्धियाँ:
• रक्षा विनिर्माण लक्ष्य: FY29 तक ₹3,00,000 करोड़ (US$ 34.7 बिलियन)।
• रक्षा निर्यात: 2024 में ₹21,000 करोड़ (US$ 2.43 बिलियन) पार, 2029 तक ₹50,000 करोड़ (US$ 5.8 बिलियन) का लक्ष्य।
• भारत अब 75 से अधिक देशों को रक्षा उत्पाद निर्यात करता है और 2019 में 19वें स्थान से ऊपर चढ़ चुका है।
यह निर्यात वृद्धि—5 वर्षों में 334%—भारत की रक्षा विनिर्माण क्षमताओं पर बढ़ते वैश्विक विश्वास को दर्शाती है।
हालिया निवेश और औद्योगिक विकास
भारत का रक्षा क्षेत्र भारतीय समूहों, विदेशी कंपनियों और स्टार्टअप्स से बड़े निवेश आकर्षित कर रहा है:
• Rolls-Royce: अगले पाँच वर्षों में भारत से एयरोस्पेस और रक्षा घटकों की सोर्सिंग को काफी बढ़ाने की योजना।
• TechEagle: सार्वजनिक सुरक्षा और आपदा राहत हेतु ड्रोन निर्माण के लिए तीन वर्षों में ₹100 करोड़ (US$ 11.6 मिलियन) का निवेश करेगा।
• जेएसडब्ल्यू डिफेन्स: तेलंगाना में ड्रोन निर्माण के लिए ₹800 करोड़ (US$ 92.4 मिलियन) की प्रतिबद्धता।
• पारस डिफेन्स एंड स्पेस टेक्नोलॉजीज़: महाराष्ट्र में भारत का पहला ऑप्टिक्स पार्क स्थापित करने हेतु ₹12,000 करोड़ (US$ 1.39 बिलियन) निवेश की घोषणा।
• टाटा एयरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स: वडोदरा में सैन्य विमानों की असेंबली हेतु भारत की पहली निजी क्षेत्र की लाइन शुरू की गई। प्रारंभिक आयात के बाद 40 C-295 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट देश में बनाए जाएंगे।
• भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड: नौसेना से जुड़ी गहरी तकनीकी रिसर्च को उत्पादों में बदलने के लिए IIT दिल्ली के साथ साझेदारी।
• ग्रीन प्रपल्शन सिस्टम: बेंगलुरु स्थित स्टार्टअप बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस ने ISRO के PSLV C-58 मिशन में पर्यावरण-अनुकूल प्रणोदन प्रणाली का सफल परीक्षण किया—यह दोहरे उपयोग वाली तकनीक को दर्शाता है।
स्वदेशीकरण और नीतिगत सुधार
आयात को और कम करने के लिए सरकार ने पांचवीं पॉजिटिव इंडीजेनाइजेशन लिस्ट (PIL) जारी की, जिसमें 346 वस्तुएँ शामिल हैं:
• लाइन रिप्लेसमेंट यूनिट्स
• सब-सिस्टम और कंपोनेंट्स
• कच्चा माल—जिसका आयात प्रतिस्थापन मूल्य ₹1,048 करोड़ (US$ 126.57 मिलियन) है।
यह पहले की नीतियों का पूरक है जो निजी क्षेत्र और स्टार्टअप्स की भागीदारी को प्रोत्साहित करती हैं।
खरीद प्रक्रिया में सुधार और तेज अधिग्रहण
भारत ऐतिहासिक रूप से लंबी खरीद प्रक्रिया से जूझता रहा है—प्रमुख उपकरणों के लिए औसतन 5–6 वर्ष। इसे ध्यान में रखते हुए नई नीतियाँ समयसीमा कम करने और पारदर्शिता बढ़ाने पर केंद्रित हैं:
• राफाल मरीन विमान की खरीद केवल 24 महीनों में पूरी की गई, जो तेज अधिग्रहण का आदर्श है।
• रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2025: DAP 2020 को बदलने हेतु तैयार की जा रही है, जिसमें मुख्य बिंदु हैं:
o सरलीकृत दस्तावेज़ीकरण।
o फील्ड ट्रायल की समयावधि में कटौती।
o नामांकन की बजाय खुले टेंडर।
o उद्योग को बेहतर स्पष्टता देने हेतु निश्चित समयसीमाएँ।
• आपातकालीन खरीद: अब बजट का लगभग 15% इसका हिस्सा है जिससे संकट की स्थिति में तत्परता सुनिश्चित की जा सके।
यह ढांचा उद्योग को क्षमताओं में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करता है, देरी के डर के बिना।
निजी क्षेत्र और स्टार्टअप्स की भागीदारी
भारत के रक्षा क्षेत्र में बदलाव सार्वजनिक उपक्रमों से परे विस्तार पर जोर देता है। उल्लेखनीय उदाहरण:
• पहलगाम आतंकी हमले के बाद निजी कंपनियों को तीन-शिफ्ट उत्पादन के लिए तेजी से सक्रिय किया गया।
• सार्वजनिक-निजी मॉडल, जिसमें डीआरडीओ अनुसंधान करता है और निजी कंपनियाँ उत्पादन करती हैं (जैसे भारत फोर्ज द्वारा DRDO डिजाइन की गई कार्बाइनों का निर्माण)।
• टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट फंड (TDF) के तहत स्टार्टअप्स को समर्थन, जिनको ड्रोन, सेंसर और प्रणोदन तकनीकों पर नए प्रोजेक्ट्स दिए गए हैं।
यह दृष्टिकोण एक व्यापक और अधिक लचीले रक्षा इकोसिस्टम का निर्माण करता है।
निर्यात संवर्धन और वैश्विक एकीकरण
भारत का लक्ष्य रक्षा हार्डवेयर का एक विश्वसनीय निर्यातक बनना है।
मुख्य बिंदु:
• 75 से अधिक देशों को निर्यात, विशेष रूप से गोला-बारूद, छोटे हथियारों और ड्रोन प्रणालियों की मजबूत मांग।
• रक्षा आयात मूल्य US$ 463–469 मिलियन के बीच स्थिर, जो घरेलू उत्पादन की ओर बदलाव को दर्शाता है।
• पांच वर्षों में US$ 5 बिलियन के निर्यात का लक्ष्य।
निर्यात से न केवल राजस्व बढ़ता है, बल्कि राजनयिक संबंध भी मजबूत होते हैं और भारत की सामरिक स्थिति सुदृढ़ होती है।
डिजिटल प्लेटफॉर्म और वित्तीय आधुनिकीकरण
पारदर्शिता और दक्षता में सुधार के लिए डिजिटल टूल्स का व्यापक उपयोग किया गया है:
• सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM): ₹2 लाख करोड़ की खरीद प्रक्रियाएँ संपन्न।
• SPARSH: 32 लाख सेवानिवृत्त कर्मियों को पेंशन सेवाएँ प्रदान की गईं।
• कम्प्रिहेन्सिव पे सिस्टम और सेंट्रलाइज्ड डाटाबेस: वेतन और डेटा प्रबंधन को आधुनिक बनाने के लिए विकासाधीन।
ये प्लेटफॉर्म जवाबदेही और तेज सेवा प्रदान सुनिश्चित करते हैं।
राजकोषीय अनुशासन और बजट उपयोग
राजकोषीय अनुशासन सुधारों की आधारशिला बना हुआ है:
• वित्त-वर्ष 25 में पूंजीगत बजट का पूर्ण उपयोग।
• वित्त-वर्ष 26 के मई अंत तक ₹1.8 लाख करोड़ पूंजीगत बजट में से 14% खर्च, जबकि पिछले वर्ष केवल 4% था।
• वित्त मंत्रालय ने आश्वासन दिया है कि यदि अतिरिक्त आवश्यकताएँ हों तो पूंजीगत व्यय में कोई बाधा नहीं होगी।
ये उपाय उपकरणों के आधुनिकीकरण को समय पर बनाए रखते हैं और अपूर्ण खर्च से बचाते हैं।
दोहरे उपयोग की तकनीकों और नवाचार पर ध्यान
सरकार मानती है कि रक्षा में निवेश नागरिक उद्योगों को भी मजबूत करता है:
• बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस जैसे स्टार्टअप्स ने ऐसी प्रणालियाँ बनाई हैं जो सैन्य और नागरिक दोनों क्षेत्रों में उपयोगी हैं।
• 2024 में DRDO ने स्वदेशी तकनीकों के विकास हेतु सात प्रोजेक्ट्स दिए।
यह दोहरे उपयोग वाला दृष्टिकोण संसाधनों के प्रभावी उपयोग को सुनिश्चित करता है और नवाचार को गति देता है।
निष्कर्ष
भारत का रक्षा क्षेत्र तेजी से एक आधुनिक, चुस्त और आत्मनिर्भर इकोसिस्टम में बदल रहा है। रिकॉर्ड बजट आवंटन, सुगम खरीद प्रक्रिया और निजी भागीदारी के विस्तार के साथ, देश तकनीकी नेतृत्व और परिचालन तत्परता की नींव रख रहा है।
यह यात्रा चुनौतियों से रहित नहीं है। समयसीमा का संकुचन, स्वदेशीकरण लक्ष्य और वित्तीय अनुशासन – इन सभी के लिए सावधानीपूर्वक योजना और सहयोग की आवश्यकता है। लेकिन दिशा स्पष्ट है: भारत केवल एक बड़ा उपभोक्ता नहीं, बल्कि उन्नत रक्षा प्रणालियों का एक प्रमुख निर्यातक भी बनना चाहता है।
इन प्रयासों के माध्यम से, रक्षा क्षेत्र न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करेगा, बल्कि आर्थिक वृद्धि को भी प्रेरित करेगा और वैश्विक मंच पर भारत की क्षमताओं को प्रदर्शित करेगा।
मुख्य प्रश्न: भारत के रक्षा विनिर्माण इकोसिस्टम को सशक्त बनाने में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnerships) और स्टार्ट-अप्स की क्या भूमिका है? हाल के निवेशों और सुधारों के सन्दर्भ में विश्लेषण कीजिये? |