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Daily-current-affairs / 15 May 2025

"आत्मनिर्भर भारत की रक्षा क्रांति: ऑपरेशन सिंदूर में भारत की तकनीकी छलांग"

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ऑपरेशन सिंदूर भारत द्वारा चार दिनों तक चलाया गया एक महत्वपूर्ण सैन्य मिशन था, जिसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) और पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी ठिकानों और सैन्य अड्डों को निशाना बनाया गया। इस ऑपरेशन ने न केवल सैन्य कार्रवाई थी बल्कि इसने भारत की रक्षा तकनीकी क्षमताओं को भी उजागर किया। भारत ने इस दौरान सटीक, शक्तिशाली और समन्वित हमले किए।

भारतीय सेना की बहु-स्तरीय वायु रक्षा प्रणाली की सफलता:

ऑपरेशन सिंदूर की सफलता का एक महत्वपूर्ण कारण था भारत की बहु-स्तरीय रक्षा प्रणाली, जिसमें शामिल थे:

• काउंटर-मानवरहित हवाई प्रणाली (Counter-Unmanned Aerial Systems)
कंधे से दागे जाने वाले हथियार (Shoulder-Fired Weapons)
परंपरागत वायु रक्षा प्रणाली (Legacy Air Defence Weapons)
आधुनिक वायु रक्षा प्रणाली (Modern Air Defence Weapon Systems)

इस बहु-स्तरीय प्रणाली ने अंतरराष्ट्रीय सीमा से लेकर देश के भीतर तक कई सुरक्षा घेरे बनाए, जिससे 9-10 मई, 2025 को पाकिस्तान के जवाबी हवाई हमलों से हवाई अड्डों और रसद स्थलों की सुरक्षा की जा सकी। पिछले एक दशक में सरकारी निवेश से निर्मित ये प्रणाली "फोर्स मल्टीप्लायर" की तरह काम कर रही हैं, जिससे नागरिक और सैन्य ढांचे सुरक्षित रहे।

अंतरिक्ष की रणनीतिक भूमिका: इसरो का उपग्रह नेटवर्क:

भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने इस अभियान में महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया। कम से कम 10 उपग्रह लगातार भारत की उत्तरी सीमाओं और 7,000 किलोमीटर की समुद्री सीमा की निगरानी कर रहे थे, जिससे वास्तविक समय में निगरानी और पहले से चेतावनी मिल सकी।

ये उपग्रह ड्रोन और वायु रक्षा प्रणालियों की संचालन क्षमता को बढ़ाते हैं क्योंकि ये निरंतर निगरानी और खुफिया जानकारी प्रदान करते हैं, जो समय पर खतरे का पता लगाने और जवाब देने में जरूरी हैं। अंतरिक्ष आधारित संसाधनों का रक्षा प्रणाली में एकीकरण भारत की समग्र सुरक्षा दृष्टिकोण को दर्शाता है।

यह असाधारण सटीकता जमीन और अंतरिक्ष आधारित तकनीकों को जोड़ने वाले उन्नत मार्गदर्शन और नेविगेशन सिस्टम के कारण संभव हुई:

  • NavIC (नेविगेशन विद इंडियन कंस्टीलेशन): भारत की स्वदेशी उपग्रह नेविगेशन प्रणाली, जो 10 से 20 सेंटीमीटर की सटीकता प्रदान करती है।
  • पृथ्वी अवलोकन उपग्रह (Earth Observation Satellites): Cartosat, RISAT और EOS श्रृंखला के उपग्रह 25 से 30 सेंटीमीटर जितने छोटे वस्तुओं की पहचान करने में सक्षम हैं।

इन प्रणालियों के संयोजन से भारतीय हथियारों को मीटर से भी कम दूरी की सटीकता से लक्ष्य भेदन में सफलता मिलती है। उदाहरण के लिए, ब्रह्मोस (BrahMos), सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल, जो इस ऑपरेशन में उपयोग की गई, में उन्नत मार्गदर्शन प्रणाली है जिसे वर्षों की स्वदेशी अनुसंधान से डीआरडीओ और इसरो ने विकसित किया है।

मार्गदर्शन और नेविगेशन तकनीकों के महत्व को जून 2023 में DRDO के अनुसंधान चिंतन शिविर में 75 प्राथमिक तकनीकी क्षेत्रों में शामिल कर विशेष महत्व दिया गया।

घातकता और विनाश की क्षमता:

आतंकी ठिकानों और पाकिस्तानी वायु अड्डों की उपग्रह छवियों में देखे गए बड़े गड्ढे और लक्ष्य का पूर्ण विनाश भारतीय हथियारों की मारक क्षमता और विश्वसनीयता को प्रमाणित करते हैं। यह शक्ति भारत के एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) की देन है, जिसकी अगुवाई डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने की थी।

इसके अलावा, भारत इस क्षेत्र में लगातार प्रगति कर रहा है और नई तकनीकों का विकास कर रहा है, जैसे कि:

  • गहराई तक भेदन करने वाले वारहेड (Deep Penetration Warheads)
  • हरित विस्फोटक (Green Explosives)
  • निर्देशित ऊर्जा हथियार (Directed Energy Weapons - DEWs): लेज़र आधारित प्रणालियाँ जो लक्ष्य को क्षति या निष्क्रिय करने में सक्षम हैं। इन्हें ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तानी ड्रोन को निष्क्रिय करने में संभवतः इस्तेमाल किया गया।

वर्ष 2022 में निर्देशित ऊर्जा हथियारों (DEWs) को रक्षा मंत्रालय द्वारा उद्योग-आधारित विकास के एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई थी। इस तकनीक का प्रदर्शन 2024 की गणतंत्र दिवस परेड में भी किया गया।

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स्वदेशी रडार और वायु रक्षा प्रणाली:

हालांकि रूस की S-400 मिसाइल प्रणाली ने विश्व स्तर में सबका ध्यान आकर्षित किया है, भारत की वायु रक्षा प्रणाली में कई उन्नत स्वदेशी रडार और मिसाइल प्रणालियाँ शामिल हैं, जो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पूरी तरह से समन्वित तरीके से काम कर रही थीं।

मुख्य रडार प्रणालियाँ इस प्रकार हैं:

    • राजेन्द्र रडार: एक बहु-कार्यात्मक फायर कंट्रोल रडार जो एक साथ कई लक्ष्यों को ट्रैक कर सकता है और मिसाइलों को निर्देशित कर सकता है।
    • रोहिणी 3D मीडियम-रेंज सर्विलांस रडार
    • 3D लो-लेवल लाइटवेट रडार
    • लो-लेवल ट्रांसपोर्टेबल रडार (LLTR)

ये रडार युद्धक्षेत्र में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे दुश्मन के ड्रोन और हवाई खतरों को अत्यंत सटीकता से ट्रैक किया जा सकता है। DRDO में अनुसंधान के माध्यम से रडार क्षमताओं को और बेहतर बनाने के लिए AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता), सिग्नल प्रोसेसिंग, पेड़-पत्तियों के आर-पार देखने वाले रडार, और स्टेल्थ तकनीक का पता लगाने वाली तकनीकों पर काम किया जा रहा है।

आकाश मिसाइल प्रणाली:

भारत की रक्षात्मक सफलता का एक केंद्रीय हिस्सा थी आकाश मिसाइल प्रणाली। यह प्रणाली DRDO के एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) के तहत विकसित की गई है। आकाश एक मोबाइल, कम से मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है, जो महत्वपूर्ण ढांचों और संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा करती है।

इसकी मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
एक साथ कई हवाई लक्ष्यों (विमान, मिसाइल, UAV) को भेदने की क्षमता।
• 96% स्वदेशी निर्माण, जिसमें 250 से अधिक भारतीय उद्योगों का योगदान है।
मोबाइल प्लेटफ़ॉर्म त्वरित तैनाती और पुनः तैनाती की अनुमति देता है।
शक्तिशाली रैमजेट इंजन, जो मिसाइल को Mach 2.5 की गति तक ले जाता है।
राजेन्द्र रडार द्वारा 80 किमी की दूरी तक 3D लक्ष्य पहचान और ट्रैकिंग।
• 55 किलोग्राम का प्री-फ्रैगमेंटेड वारहेड, जो प्रॉक्सिमिटी फ्यूज़ से सक्रिय होता है और बिना सीधे टकराए भी प्रभावी नुकसान पहुँचाता है।
• ECCM (इलेक्ट्रॉनिक काउंटर-काउंटर मेजर्स)दुश्मन की जैमिंग और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध से सुरक्षा देता है।

भारत वर्तमान में इसके उन्नत संस्करणों का विकास कर रहा है:

  • आकाश प्राइम: उच्च ऊँचाई और कम तापमान वाले क्षेत्रों में अधिक विश्वसनीय और इसमें स्वदेशी सक्रिय रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर लगा है।
  • आकाश-NG (न्यू जेनरेशन): 70 किमी तक की बढ़ी हुई रेंज, हल्का और चिकना डिज़ाइन, कैनिस्टराइज्ड रूप में संग्रह और संचालन में आसान, और स्टेल्थ एवं अत्यधिक गतिशील लक्ष्यों को भेदने की क्षमता।

विशेष रूप से, दिसंबर 2020 में भारत सरकार ने आकाश मिसाइलों के निर्यात को मंज़ूरी दी, जो इसकी क्षमताओं में वैश्विक विश्वास को दर्शाता है।


मानवरहित वाहनों की बढ़ती भूमिका:

मानवरहित वाहनों (Unmanned Vehicles) की बढ़ती भूमिका
भारत के रक्षा आधुनिकीकरण में ड्रोन क्षेत्र एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटक बनकर उभरा है। ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया (DFI), जो 550 से अधिक ड्रोन कंपनियों और 5,500 से अधिक पायलटों का प्रतिनिधित्व करती है, भारत को 2030 तक वैश्विक ड्रोन हब बनाने की दिशा में कार्य कर रही है।

उद्योग की वृद्धि और प्रमुख कंपनियाँ

अल्फा डिज़ाइन टेक्नोलॉजीज़ (बेंगलुरु)इज़राइल की एल्बित सिस्टम्स (Elbit Systems) के साथ मिलकर स्काईस्ट्राइकर (SkyStriker) ड्रोन का निर्माण करती है।
टाटा एडवांस्ड सिस्टम्सएकीकृत रक्षा और सुरक्षा समाधान प्रदान करती है।
पारस डिफेंस एंड स्पेस टेक्नोलॉजीज़स्वदेशी ड्रोन विकास में विशेषज्ञता रखती है।
IG Dronesड्रोन सर्वेक्षण और मैपिंग जैसी सेवाओं के माध्यम से रक्षा अनुप्रयोगों पर केंद्रित है, और भारतीय सेना तथा विभिन्न सरकारों के साथ सहयोग करती है।

भारत का ड्रोन बाजार 2030 तक 11 अरब डॉलर तक पहुँचने की संभावना है, जो वैश्विक बाजार का 12% से अधिक होगा। सरकार की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना, जिसे 2021 में ₹120 करोड़ के आवंटन के साथ शुरू किया गया था, ने देश में ड्रोन और काउंटर-ड्रोन तकनीक के निर्माण और नवाचार को गति दी है

ऑपरेशन सिंदूर ने भारत-पाकिस्तान संघर्षों में एक बड़ा बदलाव दर्शाया, जिसमें ड्रोन और अन्य मानवरहित प्रणालियाँ मुख्य भूमिका में थीं। विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य का युद्ध मानव-संचालित और मानवरहित प्रणालियों के समन्वय से लड़ा जाएगा।

नीति, नवाचार और रक्षा निर्माण:

भारत के रक्षा निर्यात ने वित्त वर्ष 2024-25 में ₹24,000 करोड़ का रिकॉर्ड स्तर छू लिया है। सरकार का लक्ष्य है कि 2029 तक ₹50,000 करोड़ और 2047 तक दुनिया का सबसे बड़ा रक्षा निर्यातक बनना।

मेक इन इंडिया पहल ने इस वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है:
वित्त वर्ष 2023-24 में ₹1.27 लाख करोड़ का स्वदेशी रक्षा उत्पादन हुआ।
2013-14 से निर्यात में 34 गुना की वृद्धि हुई है।
निजी क्षेत्र की भागीदारी और iDEX, SRIJAN जैसे सरकारी नवाचार मंचों ने अनुसंधान और निर्माण को बढ़ावा दिया है।
उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में बने डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर्स ने रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को और मजबूत किया है।

प्रमुख स्वदेशी रक्षा प्लेटफ़ॉर्म में शामिल हैं:

·         धनुष तोप

·         ATAGS (एडवांस्ड टोअड आर्टिलरी गन सिस्टम)

·         अर्जुन मेन बैटल टैंक

·         LCA तेजस (लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट)

·         ALH (एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर)और नौसेना के विमानवाहक पोत एवं पनडुब्बियाँ।


निष्कर्ष:

ऑपरेशन सिंदूर भारत की स्वदेशी रक्षा तकनीकों के विकास और एकीकरण की अद्वितीय प्रगति का प्रमाण है। इस अभियान की सफलता दर्शाती है:
उपग्रह नेविगेशन, मिसाइल मार्गदर्शन और प्रणोदन में दशकों का आधारभूत कार्य।
उन्नत रडार और वायु रक्षा प्रणालियों का विकास।
निर्देशित ऊर्जा हथियार और मानवरहित हवाई प्रणालियों जैसी नई तकनीकों का तीव्र एकीकरण।
आकाश मिसाइल जैसी प्रमुख प्रणालियों में 96% से अधिक स्वदेशी सामग्री और आत्मनिर्भरता पर रणनीतिक जोर।

तेजी से बदलते खतरों और तकनीकी विकास के युग में भारत की रक्षा क्षमताओं को बनाए रखने और आगे बढ़ाने के लिए अनुसंधान, नवाचार और रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में लगातार निवेश आवश्यक है

मुख्य प्रश्न: "ऑपरेशन सिन्दूर आधुनिक युद्ध में स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने की दिशा में भारत के रणनीतिक बदलाव को दर्शाता है।" चर्चा करें कि भारत की बहु-स्तरीय वायु रक्षा प्रणाली और अंतरिक्ष परिसंपत्तियों ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता में कैसे योगदान दिया?