संदर्भ:
भारत में मोटापा पिछले साढ़े तीन दशकों में तेजी से बढ़ा है, जो दुनिया भर में विभिन्न आयु वर्गों में शरीर के भार में बढ़ोतरी की वैश्विक प्रवृत्ति को दर्शाता है। वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन (WHF) की वर्ल्ड हार्ट रिपोर्ट 2025 के अनुसार, मोटापा अब केवल अमीर देशों या शहरी संभ्रांत वर्गों तक सीमित नहीं है, यह सभी सामाजिक-आर्थिक वर्गों में फैल चुका है। 1990 के बाद से वैश्विक स्तर पर मोटापे से पीड़ित वयस्कों की संख्या चार गुना हो चुकी है। फिर भी, उपचार और प्रभावी प्रबंधन उपकरणों तक पहुंच बहुत सीमित है, विशेषकर भारत जैसे देशों में।
वैश्विक और राष्ट्रीय वृद्धि-
2022 में, दुनिया भर में लगभग 87.8 करोड़ वयस्क मोटापे से ग्रस्त थे, जबकि 1990 में यह संख्या 19.4 करोड़ थी। यदि वर्तमान प्रवृत्तियाँ जारी रहीं, तो 2050 तक 25 वर्ष से अधिक आयु के लगभग दो में से एक व्यक्ति अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त हो सकता है।
भारत में, 1990 और 2024 के बीच महिलाओं में मोटापा सात गुना बढ़ा है। वर्तमान में, भारत में 20 वर्ष से अधिक उम्र की लगभग 4.4 करोड़ महिलाएं जो वयस्क महिलाओं की लगभग 10% हैं, मोटापे से ग्रस्त हैं। इसके विपरीत, लगभग 2.6 करोड़ पुरुष या भारत की पुरुष आबादी के 5% मोटे हैं। यह दर्शाता है कि भारत में मोटी महिलाओं की संख्या मोटे पुरुषों से दोगुनी है।
यह वृद्धि केवल वयस्कों तक सीमित नहीं है। बच्चों में भी मोटापा बढ़ रहा है:
• भारत में अब 52 लाख लड़कियाँ (3%) और 73 लाख लड़के (4%) मोटापे से ग्रस्त हैं।
• 1990 की तुलना में, यह लड़कियों के लिए 3% और लड़कों के लिए 3.7% की वृद्धि है।
इसके दीर्घकालिक प्रभाव हैं। उच्च बॉडी मास इंडेक्स (BMI) वाले बच्चों में मध्य आयु में हृदय रोग होने की संभावना 40% अधिक होती है। प्रारंभिक अवस्था में होने वाला मोटापा जीवन प्रत्याशा को भी कम कर सकता है।
मोटापा क्यों बढ़ रहा है?
कई आपस में जुड़े सामाजिक, आर्थिक और व्यावहारिक कारण मोटापे की महामारी को बढ़ावा दे रहे हैं:
1. प्रोसेस्ड फूड का सेवन:
एक मुख्य कारण है अत्यधिक नमक, चीनी और वसा वाले अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की उपलब्धता और खपत में वृद्धि। 2009 और 2019 के बीच, भारत ने प्रति व्यक्ति इन खाद्य पदार्थों की बिक्री में सबसे अधिक वार्षिक वृद्धि दर्ज की, कैमरून और वियतनाम के साथ।
2. आहार में बदलाव:
पारंपरिक भोजन, जो पशु उत्पादों, नमक, चीनी और मैदा से कम होते थे, से हटकर अब ऊर्जा से भरपूर लेकिन पोषण से गरीब आहार की ओर झुकाव हो गया है, जिसमें रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोसेस्ड मांस की अधिकता है।
3. शहरीकरण और निष्क्रिय जीवनशैली:
तेज़ी से होता शहरीकरण शारीरिक गतिविधि में कमी, लंबे समय तक सफर, डेस्क जॉब्स और काम से संबंधित तनाव को बढ़ावा दे रहा है। ये सभी कारक नींद की कमी, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और अंततः वजन बढ़ने से जुड़े हैं।
4. लैंगिक असमानताएं:
भारतीय महिलाओं में मोटापा विशेष रूप से तेजी से बढ़ रहा है। महिलाएं अक्सर-
o पारंपरिक घरेलू भूमिकाओं के कारण व्यायाम के लिए समय नहीं निकाल पातीं।
o पौष्टिक भोजन तक सीमित पहुंच रखती हैं।
o ऐसी सांस्कृतिक प्रथाओं का सामना करती हैं, जिनमें दूसरों के पोषण को प्राथमिकता दी जाती है।
o स्वास्थ्य देखभाल और जागरूकता कार्यक्रमों तक कम पहुँच पाती हैं।
मोटापे को कैसे मापा जाता है?
1. बीएमआई की भूमिका
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) मोटापे को असामान्य या अत्यधिक वसा संचय के रूप में परिभाषित करता है जो स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। मोटापे को मापने के लिए बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स) एक मानक उपकरण है:
• अल्पवजन: BMI < 18.5
• सामान्य वजन: BMI 18.5–24.9
• अधिक वजन: BMI 25–29.9
• मोटापा: BMI ≥ 30
हालांकि, बीएमआई की कुछ गंभीर सीमाएं हैं। यह वसा और मांसपेशियों के द्रव्यमान में अंतर नहीं करता, जिससे अधिक या कम मूल्यांकन हो सकता है।
उदाहरण: कोई व्यक्ति जिसकी मांसपेशियाँ कम हैं लेकिन वसा अधिक है, उसका बीएमआई "सामान्य" हो सकता है लेकिन वह अस्वस्थ हो सकता है। वहीं, एक मांसल व्यक्ति का बीएमआई अधिक हो सकता है लेकिन वह चयापचय के लिहाज़ से स्वस्थ हो सकता है।
भारत में कई दुबले-पतले दिखने वाले व्यक्तियों का बीएमआई 30 से कम होता है, फिर भी उनके पेट के आसपास वसा होती है, जो हृदय रोग के जोखिम से जुड़ी होती है।
2. मोटापे की बदलती परिभाषाएं
हाल ही में, द लैन्सेट कमीशन ऑन डायबिटीज़ एंड एंडोक्रिनोलॉजी ने मोटापे की एक और व्यापक परिभाषा दी है, जिसमें शामिल हैं:
• वजन, ऊंचाई और कमर की माप
• मांसपेशियों का द्रव्यमान
• अंगों के कार्य पर प्रभाव
इसने "अधिक वजन" श्रेणी को हटाने और एक नई श्रेणी पेश करने का सुझाव दिया:
• पूर्व-चिकित्सीय मोटापा: ऐसा शारीरिक लक्षण जिसमें तुरंत कोई बीमारी नहीं होती, लेकिन यह भविष्य में बीमारी का संकेत हो सकता है।
3. भारत की वर्गीकरण प्रणाली
भारत की अपनी मोटापा वर्गीकरण प्रणाली है:
• स्टेज 1 मोटापा:
o BMI > 23
o दैनिक जीवन में कोई बड़ी बाधा नहीं
o कोई गंभीर मोटापा-संबंधी बीमारी नहीं
• स्टेज 2 मोटापा:
o BMI > 23
o कमर-ऊंचाई अनुपात जैसे एक या अधिक अतिरिक्त संकेतक
o साथ में सह-रोग या गतिविधियों में बाधा
भारत में उपचार की चुनौतियां
मोटापे को एक बीमारी के रूप में मान्यता मिलने के बावजूद, इसके इलाज में कई व्यवस्थागत खामियां हैं:
• मानक उपचार प्रोटोकॉल तक पहुंच सीमित है।
• ज्यादातर रणनीतियाँ व्यवहार में बदलाव (आहार और व्यायाम) पर निर्भर हैं, जो लंबे समय तक टिकाऊ नहीं होते।
• वजन घटाने की दवाएं जैसे माउंटजारो (Eli Lilly की GLP-1 दवा) हाल ही में भारत में मंजूर हुई है, जिसकी कीमत ₹17,500 प्रति माह है, जो अधिकांश लोगों की पहुंच से बाहर है।
• बेरियाट्रिक सर्जरी केवल चुनिंदा शहरी केंद्रों में उपलब्ध है।
हालाँकि मार्च से अप्रैल 2025 के बीच माउंटजारो की बिक्री ₹1.42 करोड़ से बढ़कर ₹4.80 करोड़ हो गई, यह वृद्धि साप्ताहिक खुराक अनुसूची के पालन को दर्शाती है। नोवो नॉर्डिस्क की वेगोवी भी जल्द लॉन्च हो सकती है, और सेमाग्लूटाइड के 2026 में पेटेंटमुक्त होने के बाद, भारतीय कंपनियां सस्ते विकल्प तैयार कर रही हैं, जिससे इलाज अधिक सुलभ हो सकता है।
आर्थिक और स्वास्थ्य प्रभाव
मोटापा केवल स्वास्थ्य पर ही नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी भारी असर डालता है:
• 2019 में मोटापे से भारत को $28.95 बिलियन (GDP का 1%) का नुकसान हुआ।
• 2060 तक यह बढ़कर $838.6 बिलियन (GDP का 2.5%) हो सकता है—29 गुना वृद्धि।
हृदय संबंधी जोखिम:
• भारत में कुल मृत्यु का 25% कारण हृदय रोग हैं।
• इनमें से 5.6% उच्च BMI के कारण हैं।
• 1990 में हृदय रोग केवल 15% मौतों के लिए जिम्मेदार थे, और BMI-संबंधी मौतें 2.44% थीं।
महिलाएं अधिक जोखिम में हैं:
• पुरुषों में हृदय रोग से होने वाली 4.6% मौतें उच्च बीएमआई से जुड़ी हैं।
• महिलाओं में यह आंकड़ा 7% है।
आगे का राह-
• स्वस्थ जीवनशैली के बारे में सार्वजनिक जागरूकता अभियान चलाना।
• मोटापे को लेकर गलत जानकारी और सामाजिक कलंक को दूर करना।
• इलाज के विकल्पों की पहुंच और किफायती दरों को सुनिश्चित करना।
• अत्यधिक प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के आक्रामक प्रचार-प्रसार पर नियंत्रण लगाना।
मोटापा एक जटिल स्थिति है। इससे निपटने के लिए केवल व्यक्तिगत प्रयास ही नहीं, बल्कि व्यापक स्वास्थ्य सुधार, सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव और ऐसी सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों की आवश्यकता है, जो रोकथाम, शीघ्र पहचान और समान उपचार उपलब्धता को प्राथमिकता दें।
मुख्य प्रश्न: भारत में मोटापा जैसे गैर-संचारी रोगों से निपटने में सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे और नीतियों की क्या भूमिका है? देश में मोटापा प्रबंधन तक समान पहुंच में क्या बाधाएं हैं? (250 शब्द) |