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Daily-current-affairs / 24 Jul 2025

परमाणु ऊर्जा में निजी क्षेत्र की भागीदारी: भारत का अगला बड़ा सुधार

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संदर्भ:

परमाणु ऊर्जा दुनिया में विद्युत् का एक सबसे शक्तिशाली और विश्वसनीय स्रोत है। सौर और पवन ऊर्जा के विपरीत, जो मौसम पर निर्भर करती हैं, परमाणु ऊर्जा लगातार और स्थिर विद्युत् प्रदान कर सकती है जिसे बेस-लोड पावर कहा जाता है। यह लगभग शून्य कार्बन उत्सर्जन भी करती है, जिससे यह एक स्वच्छ ऊर्जा स्रोत बनती है जो जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद कर सकती है।

  • वित्त वर्ष 2025–26 के केंद्रीय बजट में भारत की परमाणु ऊर्जा के लिए एक महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया गया। सरकार ने एक साहसिक नया लक्ष्य निर्धारित किया है — 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करना, जो वर्तमान 8.18 गीगावाट से एक बहुत बड़ी छलांग है। यह दो राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप है: 2047 तक विकसित राष्ट्र (विकसित भारत) बनना और 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन प्राप्त करना।
  • इस लक्ष्य को समर्थन देने के लिए, सरकार ने न्यूक्लियर एनर्जी मिशन शुरू किया है, जिसके अंतर्गत ₹20,000 करोड़ का विशेष आवंटन किया गया है ताकि 2033 तक कम से कम पाँच स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किए गए स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs) विकसित किए जा सकें। हालांकि, इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, भारत को परमाणु क्षेत्र जो अब तक सरकारी एकाधिकार में है को निजी और विदेशी भागीदारी के लिए खोलना होगा। इसके लिए बड़े कानूनी, वित्तीय और नियामक बदलावों की आवश्यकता होगी।

भारत की परमाणु यात्रा:
• 1956 में भारत ने एशिया का पहला अनुसंधान रिएक्टर अप्सरास्थापित किया।
• 1963 में तारापुर पॉवर रिएक्टर्स पर काम शुरू हुआ।
• 1954 में डॉ. होमी भाभा, जिन्हें भारत के परमाणु कार्यक्रम का जनक माना जाता है, ने 1980 तक 8 गीगावाट परमाणु ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा था।
हालांकि, भारत की परमाणु महत्वाकांक्षाओं के सामने कई बाधाएं आईं:
• 1962 के चीन युद्ध के बाद भारत रणनीतिक परमाणु क्षमता पर अधिक केंद्रित हो गया।
भारत ने 1968 में परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
• 1974 में भारत ने एक शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट (PNE) किया।
इसके परिणामस्वरूप, भारत को वैश्विक परमाणु सहयोग से अलग कर दिया गया। भारत परमाणु तकनीक या ईंधन का आयात आसानी से नहीं कर सकता था। इन प्रतिबंधों ने प्रगति को धीमा कर दिया। परमाणु ऊर्जा का लक्ष्य 2000 तक 10 गीगावाट तक बढ़ाया गया।
भारत ने इसके बाद परमाणु तकनीक को स्वदेशी बनाने पर काम किया। भारत ने 220 मेगावाट के प्रेशराइज्ड हेवी वाटर रिएक्टर (PHWR) विकसित किए, जो आयातित ईंधन की जगह प्राकृतिक यूरेनियम का उपयोग करते थे। इन्हें राजस्थान, नरौरा, कैग़ा और काकरापार में स्थापित किया गया।
बाद में भारत ने 2005-06 में तारापुर में 540 मेगावाट के रिएक्टर बनाए और फिर 700 मेगावाट की क्षमता तक उन्नयन किया, जिनमें से दो यूनिट 2024 में काकरापार में शुरू हुईं।
1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद, भारत ने अमेरिका और अन्य वैश्विक शक्तियों से गंभीर वार्ता शुरू की। 2008 में भारत को न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) से विशेष छूट मिली। इससे भारत दोबारा परमाणु ईंधन और तकनीक का आयात कर सका।
लेकिन एक नई चुनौती सामने आई — 2010 का सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट (CLNDA)। इस कानून की सख्त उत्तरदायित्व धाराओं ने कई विदेशी आपूर्तिकर्ताओं को डरा दिया।
केवल रूस, जिसने 1988 में CLNDA से पहले एक समझौता किया था, फिलहाल भारत के साथ कुडनकुलम में छह VVER-1000 रिएक्टरों का निर्माण कर रहा है।

भारत के लिए परमाणु ऊर्जा का महत्व:
2047 तक एक विकसित देश बनने के लिए भारत को मजबूत आर्थिक वृद्धि की जरूरत होगी। अर्थव्यवस्था का आकार वर्तमान $4 ट्रिलियन से बढ़कर $35 ट्रिलियन से अधिक होना चाहिए। साथ ही, प्रति व्यक्ति आय को लगभग $2,800 से बढ़ाकर $22,000 तक ले जाना होगा। इस तरह का आर्थिक परिवर्तन ऊर्जा की भारी माँग करेगा।
आर्थिक वृद्धि और ऊर्जा खपत के बीच सीधा संबंध होता है। 2022 में:
भारत की प्रति व्यक्ति बिजली खपत 1,208 kWh थी।
चीन की 4,600 kWh
अमेरिका की 12,500 kWh
भारत के पास वर्तमान में 480 गीगावाट की स्थापित क्षमता है, जो जीवाश्म ईंधनों और नवीकरणीय स्रोतों से पूरी होती है। भविष्य की माँग को पूरा करने के लिए, भारत को अपनी स्थापित क्षमता को पाँच गुना बढ़ाना होगा, खासकर बढ़ते शहरीकरण और जनसंख्या के कारण।
हालांकि, सौर, पवन और लघु जल विद्युत स्रोत अनियमित हैं। 2024 में:
नवीकरणीय स्रोतों ने 50% स्थापित क्षमता दी लेकिन कुल 2030 TWh बिजली में से केवल 240 TWh ही उत्पन्न किया।
कोयला-आधारित संयंत्रों ने कुल उत्पादन का 75% योगदान दिया।
COP26 (ग्लासगो, 2021) में भारत ने यह वादे किए:
• 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन।
• 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म क्षमता।
ऊर्जा की 50% आवश्यकता नवीकरणीय स्रोतों से पूरी करना।
• 2005 के स्तर के मुकाबले कार्बन तीव्रता को 45% तक घटाना।

क्यों परमाणु ऊर्जा ही समाधान है
बैटरी और ऊर्जा भंडारण में निवेश बढ़ाने के बावजूद, नवीकरणीय स्रोत केवल लगभग 20-25% ऊर्जा माँग ही पूरी कर सकते हैं। ऐसे में परमाणु ऊर्जा ही एकमात्र भरोसेमंद, निम्न-कार्बन विकल्प है जो बड़े स्तर पर बेस-लोड पावर दे सकती है।

परमाणु ऊर्जा के लिए वैश्विक समर्थन
• COP28 (दुबई, 2023) में देशों ने परमाणु ऊर्जा को तीन गुना करने की घोषणा पर हस्ताक्षर किए।
• IAEA और विश्व बैंक ने विकासशील देशों में परमाणु ऊर्जा को समर्थन देने पर सहमति जताई।
विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने कहा कि परमाणु ऊर्जा "आधुनिक अर्थव्यवस्था बनाने" के लिए आवश्यक है क्योंकि यह बेस लोड पावर देती है।

तीन-स्तरीय रणनीति

1.        स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) का मानकीकरण
भारत 220 मेगावाट के PHWR डिज़ाइन का उपयोग SMRs के विकास में करेगा। ये उद्योगों में वर्तमान में उपयोग हो रहे 100+ गीगावाट के कोयला संयंत्रों की जगह ले सकते हैं। SMRs छोटे, सुरक्षित और जल्दी बनने योग्य होते हैं।

2.      700 मेगावाट रिएक्टरों का विस्तार
भारत NPCIL के नेतृत्व में 700 मेगावाट PHWR कार्यक्रम का विस्तार करेगा। इसके लिए आवश्यकताएँ हैं:
तेजी से भूमि अधिग्रहण,
लाइसेंसिंग प्रक्रिया को सरल बनाना,
स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करना।

3.      विदेशी सहयोग को बढ़ावा देना
भारत, फ्रांस और अमेरिका के साथ पिछले 15 वर्षों से धीमी वार्ता को तेज करेगा। विदेशी साझेदारी बड़े स्तर पर क्षमता बढ़ाने के लिए आवश्यक है।

कानूनी और नीति सुधार
परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962
इस अधिनियम के तहत केवल सरकार ही परमाणु संयंत्र चला सकती है। न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) ही एकमात्र सार्वजनिक कंपनी है जो परमाणु संयंत्र बनाती और चलाती है। लेकिन 100 गीगावाट हासिल करने के लिए निजी भागीदारी आवश्यक है।
विचाराधीन मुख्य मुद्दे:
क्या निजी कंपनियाँ बहुमत हिस्सेदारी रख सकती हैं?
रिएक्टर के परमाणु भाग को कौन नियंत्रित करेगा?
ईंधन आपूर्ति और अपशिष्ट निपटान कौन सुनिश्चित करेगा?
टाटा, अडानी, रिलायंस और वेदांता जैसी निजी कंपनियाँ रुचि दिखा चुकी हैं। हालाँकि इसके लिए अधिनियम में स्पष्ट संशोधन जरूरी हैं।

CLNDA, 2010
इस कानून ने आपूर्तिकर्ताओं को परमाणु दुर्घटनाओं के लिए ऑपरेटरों के साथ जिम्मेदार बनाया। इससे कई वैश्विक आपूर्तिकर्ता हतोत्साहित हुए। अब भारत इस उत्तरदायित्व धारा में संशोधन पर विचार कर रहा है ताकि अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ प्रवेश कर सकें।

विवाद समाधान और टैरिफ
परमाणु बिजली के लिए टैरिफ वर्तमान में परमाणु ऊर्जा अधिनियम के तहत निर्धारित किए जाते हैं। लेकिन NPCIL और गुजरात ऊर्जा विकास निगम के बीच एक विवाद ने परमाणु ऊर्जा अधिनियम और विद्युत अधिनियम की भूमिका के बीच भ्रम पैदा किया। निजी क्षेत्र के प्रवेश के साथ, टैरिफ को थर्मल, सौर और पवन ऊर्जा की तरह लेवलाइज्ड कॉस्ट ऑफ एनर्जी (LCOE) मॉडल पर लाना पड़ सकता है।

स्वतंत्र नियामक
एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (AERB) वर्तमान में परमाणु ऊर्जा विभाग को रिपोर्ट करता है। हालांकि यह स्वायत्त संस्था है, लेकिन यह एक वैधानिक इकाई नहीं है। 2011 में एक स्वतंत्र नियामक स्थापित करने के लिए एक मसौदा विधेयक लाया गया था जो बाद में रद्द हो गया। निजी क्षेत्र के प्रवेश के साथ, एक वैधानिक, स्वतंत्र नियामक की सख्त जरूरत है।

वर्तमान प्रगति
दो 700 मेगावाट PHWR पहले ही काकरापार में चालू हो चुके हैं।
माही बांसवाड़ा (राजस्थान) में एक बड़ा प्रोजेक्ट NPCIL-NTPC संयुक्त उद्यम द्वारा चार 700 मेगावाट रिएक्टर स्थापित करेगा।
भूमि अधिग्रहण चल रहा है, और पहले रिएक्टर को निर्माण शुरू होने के सात साल बाद चालू किया जाएगा।
एक समान संयुक्त उद्यम ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (REC) के साथ भी विचाराधीन है।

निष्कर्ष
भारत की परमाणु ऊर्जा में एक लंबी और सम्माननीय विरासत है। 2047 के लिए नए लक्ष्य सरकार की इस क्षेत्र को अपने विकास और जलवायु लक्ष्यों का प्रमुख आधार बनाने की गंभीरता को दर्शाते हैं। इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए, बड़े सुधार, निजी क्षेत्र की भागीदारी और वैश्विक साझेदारी आवश्यक हैं। सही नीति, वित्तीय योजना और सशक्त कार्यान्वयन के साथ, भारत परमाणु ऊर्जा को अपने स्वच्छ ऊर्जा भविष्य का केंद्रीय हिस्सा बना सकता है।

मुख्य प्रश्न: भारत की नेट-ज़ीरो प्रतिबद्धता और बढ़ती ऊर्जा मांग के संदर्भ में, स्वच्छ बेस-लोड ऊर्जा सुनिश्चित करने में परमाणु ऊर्जा की भूमिका का परीक्षण कीजिए। साथ ही, इसके विस्तार से जुड़े वित्तीय और पर्यावरणीय सरोकारों पर भी चर्चा कीजिए।