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Daily-current-affairs / 09 Sep 2025

नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क रैंकिंग 2025: भारतीय उच्च शिक्षा परिदृश्य का विश्लेषण

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परिचय:

शिक्षा, किसी भी राष्ट्र की प्रगति और उसकी बौद्धिक संपन्नता का मूलाधार है। भारत, जो आज विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी का घर है, अपनी उच्च शिक्षा प्रणाली के माध्यम से न केवल प्रतिभाओं का पोषण कर रहा है बल्कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। इसी पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF), जिसे शिक्षा मंत्रालय ने 2015 में लॉन्च किया था और 2016 से लागू किया गया, उच्च शिक्षा संस्थानों के मूल्यांकन और तुलनात्मक अध्ययन का सबसे विश्वसनीय साधन बन चुका है।

  • 2025 में जब इसका दसवाँ संस्करण जारी हुआ, तो यह केवल एक रैंकिंग सूची नहीं बल्कि भारतीय उच्च शिक्षा की मजबूती, खामियों और भविष्य की दिशा का प्रतीक बन गया। इस वर्ष की रैंकिंग में 17 श्रेणियों को शामिल किया गया है जैसे इंजीनियरिंग, प्रबंधन, चिकित्सा, विधि, अनुसंधान संस्थान आदि। विशेष रूप से, 2025 में सतत विकास लक्ष्य (SDGs) पर आधारित एक नई श्रेणी को जोड़ा गया है, जो शिक्षा के सतत विकास और सामाजिक योगदान के बढ़ते महत्व को दर्शाता है।

NIRF क्यों महत्वपूर्ण है?

भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली दुनिया की सबसे बड़ी प्रणालियों में से एक है। इसमें 1000 से अधिक विश्वविद्यालय, 40,000 से ज्यादा कॉलेज और लाखों छात्र सम्मिलित हैं। इतने व्यापक नेटवर्क में गुणवत्ता का मूल्यांकन कठिन कार्य है। ऐसे में NIRF न केवल पारदर्शी मानदंड प्रस्तुत करता है, बल्कि छात्रों, अभिभावकों और नीति-निर्माताओं को सूचित निर्णय लेने में मदद करता है।

इसके पाँच प्रमुख मूल्यांकन पैमाने हैं:

  • शिक्षण, अधिगम और संसाधन (TLR)बुनियादी ढाँचा, शिक्षकछात्र अनुपात और पाठ्यक्रम की गुणवत्ता।
  • अनुसंधान और व्यावसायिक अभ्यास (RPC)शोध प्रकाशन, पेटेंट और उद्योग सहयोग।
  • स्नातक परिणाम (GO)प्लेसमेंट, उच्च शिक्षा में प्रगति और प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता।
  • संपर्क और समावेशिता (OI)सामाजिक व क्षेत्रीय विविधता, लैंगिक संतुलन और सबको साथ लेने की प्रवृत्ति।
  • छवि (Perception)अकादमिक जगत और उद्योग में संस्था की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता।

2025 में इन पैमानों के अतिरिक्त SDG पैरामीटर को शामिल करना उल्लेखनीय है, क्योंकि यह संस्थानों को केवल अकादमिक उत्कृष्टता तक सीमित नहीं रखता बल्कि समाज और पर्यावरण के प्रति उनकी ज़िम्मेदारी को भी मापता है। 

National Institutional Ranking Framework Ranking 2025

2025 के रैंकिंग में नई पहल:

इस वर्ष NIRF ने तार्किक और दूरदर्शी बदलाव किए हैं

  • 17 श्रेणियों में 7,692 संस्थाएँ शामिल हुईं, जो अब तक की सर्वाधिक है।
  • पहली बार सतत विकास लक्ष्य (SDG) श्रेणी जोड़ी गई है, जिससे हरित परिसर’, सामाजिक-सांस्कृतिक जिम्मेदारी और टिकाऊ शिक्षा के वैश्विक उद्देश्य रैंकिंग का हिस्सा बने हैं।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप 'भारतीय ज्ञान पद्धति', 'क्षेत्रीय भाषा' 'लचीली शैक्षिक प्रणाली' जैसी अवधारणाओं को भी सूचकांक में स्थान मिला है।

SDGs: शिक्षा की नई दिशा:

2025 में NIRF ने एक क्रांतिकारी कदम उठाते हुए SDG आधारित मूल्यांकन श्रेणी शामिल की। इसका महत्व दो स्तरों पर है:

  • शैक्षिक दायित्व: विश्वविद्यालय और कॉलेज केवल डिग्री देने वाली इकाइयाँ नहीं, बल्कि समाज को बेहतर बनाने वाली संस्थाएँ भी हैं। SDGs पर काम करके वे जलवायु परिवर्तन, गरीबी उन्मूलन, लैंगिक समानता और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा जैसे मुद्दों पर ठोस योगदान दे सकते हैं।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा: आज विश्वभर के प्रमुख रैंकिंग फ्रेमवर्क (जैसे QS और THE) भी सतत विकास लक्ष्यों को अहम मानदंड बना रहे हैं। भारत का NIRF इस प्रवृत्ति के साथ तालमेल बैठाकर अपनी विश्वसनीयता को और मज़बूत कर रहा है।

इससे छात्रों और शोधकर्ताओं को भी प्रेरणा मिलेगी कि वे केवल करियर-उन्मुख न रहकर समाज-उन्मुख अनुसंधान और प्रोजेक्ट्स में सक्रिय भागीदारी करें।

व्यापक प्रभाव: छात्रों से लेकर नीति तक:

1.        छात्रों के लिए:
रैंकिंग उन्हें संस्थान चुनने में मदद करती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई इंजीनियरिंग पढ़ना चाहता है तो वह IIT मद्रास, IIT दिल्ली या IIT बॉम्बे की ओर देख सकता है। वहीं, मेडिकल के इच्छुक AIIMS दिल्ली या KGMU जैसे संस्थानों को प्राथमिकता देंगे।

2.      अभिभावकों के लिए:
NIRF उन्हें यह भरोसा दिलाता है कि उनके बच्चे जिस संस्थान में पढ़ रहे हैं, वह शिक्षा गुणवत्ता के मानकों पर खरा उतरता है।

3.      संस्थानों के लिए:
रैंकिंग एक तरह की प्रतिस्पर्धा भी है। हर संस्थान चाहता है कि वह सूची में ऊपर आए, इसलिए वह बुनियादी ढाँचे, शोध और समावेशिता में सुधार के लिए लगातार प्रयास करता है।

4.     नीति-निर्माताओं के लिए:
यह रैंकिंग उन्हें बताती है कि किन क्षेत्रों में निवेश और सुधार की ज़रूरत है। उदाहरण के लिए, यदि किसी श्रेणी में निजी विश्वविद्यालय तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं तो इसका मतलब है कि सरकारी विश्वविद्यालयों को अतिरिक्त समर्थन की आवश्यकता है।

National Institutional Ranking Framework Ranking 2025

चुनौतियाँ:

हालाँकि NIRF एक महत्त्वपूर्ण कदम है, परंतु यह चुनौतियों से मुक्त नहीं है।

  • रैंकिंग बनाम वास्तविकता: कई बार संस्थान रैंकिंग सुधारने के लिए आँकड़ों में हेरफेर करते हैं।
  • समान अवसर की कमी: महानगरों के संस्थान ग्रामीण और छोटे शहरों के विश्वविद्यालयों की तुलना में अधिक संसाधनों से संपन्न हैं।
  • पैरामीटर्स का सीमित दायरा: SDG जोड़ने के बावजूद, कई मानवीय और सामाजिक पहलुओं को अभी भी पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया है।
  • धारणा पर अधिक जोर: किसी संस्था की छवि कभी-कभी वास्तविक प्रदर्शन से अलग हो सकती है।

इन चुनौतियों को दूर करने के लिए NIRF को लगातार अपने मूल्यांकन तंत्र में सुधार और पारदर्शिता बढ़ाने की आवश्यकता है।

आगे की राह:

1. अनुसंधान और नवाचार को मजबूत करना

भारतीय विश्वविद्यालयों को केवल शिक्षण तक सीमित न रहकर विश्वस्तरीय शोध केंद्र बनना होगा। इसके लिए उद्योगअकादमिक साझेदारी और वित्तीय निवेश ज़रूरी है।

2. मुख्यधारा के सतत विकास लक्ष्य

सतत विकास लक्ष्यों में योगदान को प्रतीकात्मक न रखकर ठोस कार्यजैसे ग्रीन कैंपस, ग्रामीण विकास प्रोजेक्ट, लैंगिक समावेशनके आधार पर मापा जाना चाहिए।

3. क्षेत्रीय असंतुलन को कम करना

राज्य विश्वविद्यालयों और ग्रामीण इलाकों के संस्थानों को विशेष अनुदान और प्रशासनिक समर्थन दिया जाए।

4. पारदर्शिता सुनिश्चित करना

डेटा संग्रह और मूल्यांकन में स्वतंत्र ऑडिट प्रणाली लागू हो, ताकि किसी प्रकार का डेटा मैनिपुलेशन न हो।

5. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना

भारतीय संस्थानों को विदेशी विश्वविद्यालयों से साझेदारी करनी चाहिए ताकि उनकी रिसर्च और पाठ्यक्रम अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हों।

निष्कर्ष:

NIRF रैंकिंग 2025 ने यह साबित किया है कि भारतीय उच्च शिक्षा अब केवल देश तक सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक मानकों की ओर अग्रसर है। IIT मद्रास का लगातार शीर्ष पर रहना यह दिखाता है कि यदि संस्थान उत्कृष्टता, अनुसंधान और सामाजिक जिम्मेदारी पर ध्यान दें तो विश्व-स्तर की पहचान संभव है।

नई SDG श्रेणी यह स्पष्ट करती है कि शिक्षा केवल अकादमिक उपलब्धि नहीं, बल्कि सामाजिकपर्यावरणीय योगदान भी है। आने वाले समय में यही दृष्टिकोण भारत को न केवल "ज्ञानमहाशक्ति" बल्कि "सतत विकास में अग्रणी राष्ट्र" के रूप में स्थापित कर सकता है।

यूपीएससी/ यूपीपीसीएस मुख्य प्रश्न- भारतीय उच्च शिक्षा को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए अनुसंधान, नवाचार और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को किस प्रकार सशक्त किया जा सकता है?